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विश्व डाक दिवस : लेटर बॉक्स से इंटरनेट तक का सुनहरा सफ़र

बाल मुकुन्द ओझा

विश्व डाक दिवस हर साल 9 अक्टूबर को मनाया जाता है। इस वर्ष विश्व डाक दिवस की थीम विश्वास के लिए एक साथ: एक सुरक्षित और जुड़े भविष्य के लिए सहयोग रखी गई है। इस दिवस की शुरुआत 1969 में हुई थी, उसी साल पहला विश्व डाक दिवस मनाया गया था। तभी से हर साल इसे 9 अक्टूबर के दिन मनाया जाता है। भारत में विश्व डाक दिवस के अवसर पर  9 अक्टूबर से लेकर 15 अक्टूबर तक राष्ट्रीय डाक सप्ताह आयोजित किया जाता है। आज हम एक बार फिर अपनी डाक सेवाओं के सुनहरे सफर को याद कर गौरवान्वित हो रहे है। हम ऐसे दौर में विश्व डाक दिवस मना रहे है जब आज का युवा डाकिये को नहीं जानता। उसे नहीं मालूम की कभी डाकिया पैदल चलकर घर घर डाक बांटता था। आज युवा ने पैदल चलना नहीं सीखा इसीलिए उसे यह पता नहीं है की पैदल चलकर भी कोई सरकारी काम होता था। युवा ने कभी पोस्टकार्ड नहीं देखा। मंनिआर्डर का भी उसे मालूम नहीं है। वह पैसे या सन्देश का आदान प्रदान मोबाइल से आधुनिक माध्यम से करता है। फिर भी हम अपनी पुरानी व्यवस्था को धरोहर के रूप में हर साल याद करते है। डाक सेवाओं की हमारी पुरानी परम्परा है। आज के युवा वर्ग को छोड़ दे तो दुनिया भर में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं होगा, जिसका कभी डाक सेवाओं से पाला न पड़ा हो। यह अचरज की बात है कि एक देश में पोस्ट किया हुआ पत्र दुनिया के दूसरे कोनों में आराम से पहुँच जाता है। डाक सेवाओं के संगठन रूप में उद्भव के साथ ही इस बात की जरूरत महसूस की गई कि दुनिया भर में एक ऐसा संगठन होना चाहिए, जो यह सुनिश्चित करे कि सभी देशों के मध्य पत्रों का आवागमन सहज रूप में हो सके और आवश्यकतानुसार इसके लिए नियम-कानून बनाये जा सकें।

डाक सेवाओं का देश और दुनियां के इतिहास में निश्चय ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है। प्राचीन काल से ही संचार का यह एक सशक्त माध्यम रहा है और समाज के विकास में इसका योगदान अविस्मरणीय है। डेढ़ लाख से अधिक डाकघरों का भारत में दुनिया का सबसे बड़ा डाक नेटवर्क है, इसके बावजूद संचार के नवीनतम साधनों के उपयोग की दृष्टि से यह बहुत पिछड़ गया। अब यह दिवस रश्मि हो गया है क्योंकि न तो डाकिया घर घर आता है और न ही डाक के दर्शन होते है। अब कहीं भी डाकिया डाक बांटते दिखाई नहीं देता। वर्षों पुरानी घर घर डाक बांटने की परम्पराएं अब ध्वस्त हो गई है। हमने भी खुद को ज़माने के अनुरूप डाल लिया है। जब इंटरनेट सुविधा का विस्तार हुआ है हम ने डाक व्यवस्था से तौबा करली है। सारे काम इंटरनेट से जुडी सुविधाओं के माध्यम से हो रहे है। फोन, ईमेल से लेकर सोशल मीडिया के माध्यम से संदेशों का आदान-प्रदान किया जाता है। व्हाट्सएप से घर बैठे बात हो जाती है तो डाक की जरुरत कहाँ रह गई। आज आवश्यकता इस बात की है कि त्वरित संदेश और सोशल मीडिया के युग में डाक विभाग को प्रासंगिक बने रहने के लिए विकसित होना होगा।

भारतीय डाक सेवा ने 1 अक्टूबर 2025 को अपने सफर के 176 वर्ष पूरे कर लिए है। डाक व्यवस्था शुरू होते ही हर शहर और गांव में पोस्ट ऑफिस बनाए गए। बाद में तो इन पोस्ट ऑफिसों में चिट्ठियों को संभालने के साथ-साथ लोगों के पैसों को भी जमा करने का काम किया जानेलगा। कभी-कभी यह बैंक का काम भी करता हैं। अब तो सरकार भी इसे बैंक के रूप में स्थापित करने की योजना बना रही है। चिट्ठियों का प्रचलन कम होने के साथ इनके कामों में भी कमी आई है ऐसे में इन्हें अन्य कामों में भी शामिल किया जा रहा है। डाक विभाग ने समय के अनुसार बदलाव करने की तैयारी शुरू कर दी है। इसी कड़ी में ब्रिटिशकाल में वर्ष 1854 में शुरू हुई रजिस्ट्री सेवा को स्पीड पोस्ट में मर्ज कर दिया है। एक अक्तूबर से केवल स्पीड पोस्ट की ही सुविधा उपलब्ध है।

कुछ वर्ष पहले इसकी सबसे महत्वपूर्ण सेवा डाकतार सेवा को पूरी तरह से बंद कर दिया गया। भारत की डाक सेवा में एक खास बात यह है कि यहां एक खास तरह का पिन कोड होता है। यह पिन कोड 6 नंबरों का होता है। पिन कोड पोस्ट ऑफिस का नंबर होता है। इसकी मदद से ही हम तक चिट्ठियां पहुंच पाती हैं। यह हम सबके लिए यह गर्व करने वाली बात है कि भारत की डाक सेवा दुनिया की सबसे बड़ी डाक सेवा है। साथ ही दुनिया में सबसे ऊंचाई पर बना पोस्ट ऑफिस भी भारत में ही है जो हिमाचल प्रदेश के हिक्किम में स्थित है। कबूतर से लेकर कम्प्यूटर तक डाक सेवाओं ने एक लम्बा सफर तय किया है। वर्तमान में सूचना एवं संचार क्रान्ति के चलते डाक व्यवस्था अवरुद्ध हुई है। जबसे निजी क्षेत्र में कोरियर सेवा का प्रारंभ हुआ तब से डाक विभाग की सेवाएं मंद हुई है। इसके बाद इंटरनेट के आने के बाद सूचना आदान प्रदान की सेवाएं द्रुत गति से परवान चढ़ी फलस्वरूप डाक विभाग का कार्य धीमी गति का बुलेटिन हो गया।

बाल मुकुन्द ओझा

वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार

डी 32, मॉडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर

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