विधायिका : गरिमा और हंगामे का कड़वा सच

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बाल मुकुन्द ओझा
राजस्थान विधानसभा के चौथे सत्र का पहला ही दिन सोमवार को हंगामे की भेंट चढ़ गया। दिल्ली की तर्ज़ पर राज्यों में भी कांग्रेस और सहयोगी दलों का एक सूत्री प्रोग्राम भाजपा शासित राज्यों में निर्वाचित सदनों को ठप्प करना है। ऐसा लगता है कांग्रेस ने अब तय कर लिया है कि वोट चोरी के आरोप को गरमाये रखना है। बिहार से शरू हुआ ‘वोट चोर, गद्दी छोड़’ का यह अभियान अब राजस्थान में भी जोर-शोर से पहुंच गया है। कांग्रेस विधायकों के जोरदार हंगामे और नारेबाजी के बीच विधानसभा स्पीकर वासुदेव देवनानी ने हालांकि कड़ा रुख अपनाते हुए नाराजगी जाहिर की, मगर हंगामा करने वाले सदस्यों पर कोई असर नहीं हुआ। उन्होंने विधायकों को शांत रहने की हिदायत दी । कहा कि सदन की गरिमा बनाए रखना सभी की जिम्मेदारी है, यह कोई बाजार या चौराहा नहीं है। आधे घंटे के भारी शोर शराबे के बाद आखिर स्पीकर ने तीन सितम्बर तक सदन स्थगित कर दिया। आगे भी कार्यवाही शांति से चलेगी और जनता की समस्याओं को उठाया जायेगा, इसकी भी कोई गारंटी नहीं है।
राहुल गाँधी ने एटम बम के बाद हाइड्रोजन बम के विस्फोट का ऐलान कर दिया है। पटना में उन्होंने ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के समापन के मौके पर यह दावा किया कि वोट चोरी का “हाइड्रोजन बम” आने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जनता को अपना चेहरा नहीं दिखा पाएंगे। राहुल गाँधी पिछले कई सालों से मोदी सहित अन्य संवैधानिक संस्थाओं पर सनसनी खेज आरोप लगाते रहे है। अब राजस्थान के कांग्रेसी कहां पीछे रहने वाले थे, उन्होंने भी अपने नंबर बढ़ाने के लिए वोट चोरी का मुद्दा लपक लिया। देश की संसद और राज्यों की विधानसभाएं आजकल लगातार हंगामे की शिकार हो रही है। विधायिका की सार्थकता पर अब सवाल उठने लगे हैं। समूचे देश की विधायिकाओं में स्वस्थ और रचनात्मक वाद विवाद और बहस के बजाय हंगामा ही हो रहा है।
लगता है विपक्ष का एकमात्र काम हंगामा ही रह गया है। किसी न किसी बहाने हंगामा करना स्वस्थ बहस से ज्यादा जरुरी हो गया है। विरोध का भी एक तरीका होता है। कहावत है पीने वाले को पीने का बहाना चाहिए और हंगामा करने वाले को हंगामे का बहाना चाहिए और बहाना मिल गया है वोट चोरी का। साफ है कि विपक्ष को विधान सभा ठप करने का बहाना चाहिए। सच तो यह है कांग्रेस उन मसलों की खोज करती दिख रही है जिनके जरिये हंगामा किया जा सके और अब हंगामे का मतलब किसी मसले पर सरकार से जवाब मांगना या किसी मसले पर कार्रवाई करना नहीं, बल्कि ऐसे हालात पैदा करना होता है जिससे वहां कोई काम ही न हो सके। इसके भरे-पूरे आसार हैं कि अगर कांग्रेस हंगामा करने लायक कोई मसले नहीं खोज पाई तो उसे ऐसे मसले उपलब्ध करा दिए जाएंगे। अब यह मसला बिहार चुनाव और वोट चोरी के कथित आरोप ने कांग्रेस के हाथों में थमा दिया है। इससे बुरी बात और कोई नहीं हो सकती कि देश और प्रदेश विधायकी चलने की बाट जोहे और कुछ राजनीतिक दल अपना सारा जोर निर्वाचित सदनों को न चलने देने में लगाएं। यह सही है कि विधायकी सत्र पहले भी बर्बाद हुए हैं। मगर अब हर छोटी मोटी बात पर संसद में हंगामा मामूली बात रह गया है।
2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पक्ष और विपक्ष में जो कटुता देखने को मिली वह लोकतंत्र के हित में नहीं कही जा सकती। इससे हमारी लोकतान्त्रिक प्रणाली का ह्रास हुआ है। आज सत्ता और विपक्ष के आपसी सम्बन्ध इतने खराब हो गए है की आपसी बात तो दूर एक दूसरे को फूटी आँख भी नहीं सुहाते। दुआ सलाम और अभिवादन भी नहीं करते। औपचारिक बोलचाल भी नहीं होती। लोकतंत्र में सत्ता के साथ विपक्ष का सशक्त होना भी जरुरी है मगर इसका यह मतलब नहीं है की कटुता और द्वेष इतना बढ़ जाये की गाली गलौज की सीमा भी लाँघी जाये। हमारे देश में राजनीतिक माहौल इतना कटुतापूर्ण हो गया है कि लोकतांत्रिक राजनीति के इतिहास में कहीं नहीं हुआ होगा।
भारतीय राजनीति में विपक्ष का अर्थ, जो सत्ता में नहीं है, से है। विपक्ष के रूप में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है। स्वस्थ विपक्ष का कार्य सरकार की सकारात्मक तरीके से आलोचना करना होना चाहिए। स्वस्थ विपक्ष के रूप में विपक्ष को जनता के हित से जुड़े मुद्दों पर सरकार की आलोचना व बहस करना चाहिए। आज स्थिति बिलकुल उलट है। वर्तमान के विपक्षी दलों में न तो विचारों के साथ चलने को लेकर कोई उत्साह है, न प्रतिबद्धता।


बाल मुकुन्द ओझा
वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार
डी 32, मॉडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर

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