भारत की आजादी की पक्षधर थीं मीरा बैन

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मैडलिन स्लैड उर्फ मीरा बेन का जन्म 22 नवम्बर 1892 में इंग्लैंण्ड में हुआ था। वे एक ब्रिटिश सैन्‍य अधिकारी की बेटी थीं। इन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गाँधी जी के सिद्धांतों से प्रभावित होकर खादी का प्रचार किया था। नि:स्वार्थ उनके आदर्शों पर चलकर खादी अपनाना, पहनना और उसका प्रचार-प्रसार करना किसी विदेशी द्वारा हो तो निश्चित ही सराहनीय है। गांधीजी को मीरा बेन एक बहन, एक बेटी, एक मित्र से भी बढ़कर मिलीं, उनका हर कदम पर साथ दिया और सहारा बनीं।

इनके पिता का नाम ‘ऐडमिरल सर ऐडमंड स्लेड’ था, जो मुम्बई में ‘ईस्ट इण्डिया स्क्वैड्रन’ में कार्यरत थे। मीरा बेन ने गाँधी जी के सिद्धांतों से प्रभावित होकर भारत में विभिन्न स्थानों पर जाकर खादी का प्रचार किया। मीरा बेन ने मानव विकास, गांधी जी के सिद्धांतों की उन्नति और स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था। ऐसा करते देख गाँधी जी ने उन्हें मीरा बेन नाम दिया। यह नाम भगवान कृष्ण की भक्त मीरा बाई से मेल खाता था। गांधीजी के विचारों को मानने वाली मीरा बेन सादी धोती पहनती थीं, सूत कातती, गांव-गांव घूमतीं।

वह अंग्रेज़ थीं लेकिन हिंदुस्तान की आजादी के पक्ष में थीं। गांधी का अपनी इस विदेशी पुत्री पर विशेष अनुराग था। मैडलिन स्लैड जब साबरमती आश्रम में बापू से मिलीं तो उन्हें लगा कि जीवन की सार्थकता दूसरों के लिए जीने में ही है। वह गुजरात के साबरमती आश्रम में रहने लगीं।

बचपन से ही सादे जीवन से उन्हें प्यार था। वह प्रकृति से प्रेम करती थीं तथा संगीत में उनकी गहरी रुचि थी। ‘बिथोवेन’ का संगीत उन्हें बहुत पसंद था। मैडलिन स्लैड बचपन में एकाकी स्वभाव की थीं, स्कूल जाना तो पसंद नहीं था लेकिन अलग-अलग भाषा सीखने में रुचि थी। उन्होंने फ्रेंच, जर्मन और हिंदी समेत अन्य भाषाएं सीखीं। गांधी पर लिखी गयी रोम्या रोलां की पुस्तक पढ़कर स्लैड को गांधी के विराट व्यक्तित्व के बारे में पता चला।

मीरा गांधी के नेतृत्व में लड़ी जा रही आजादी की लड़ाई में अंत तक उनकी सहयोगी रहीं। इस दौरान नौ अगस्त, 1942 को गांधी जी के साथ उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। आगा खां हिरासत केंद्र में मई, 1944 तक रखा गया। परंतु उन्होंने गांधी जी का साथ नहीं छोड़ा। 1932 के द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में वह महात्मा गांधी के साथ थीं। महात्मा गांधी के राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में किये सुधारात्मक और रचनात्मक कार्यों में मीरा की अहम भूमिका थी। वे सेवा बस्तियों और पिछड़े वर्ग के लोगों में जाकर नि:संकोच स्वयं सफाई कार्य करतीं।

सेवाग्राम की ‘बापू कुटी’ देश की धरोहर है। देश-विदेश के सैकड़ों दर्शनार्थी यहां आते हैं। वे बापू के जीवन-दर्शन को समझते हैं। सेवाग्राम स्थित बापू की कुटी में महात्मा गांधी 1936 से 1946 तक रहे। शेगांव यानी सेवाग्राम में बापू कुटी का निर्माण मीराबेन ने किया। सेवाग्राम स्थित बापू की कुटी स्थापना के समय महात्मा गांधी का आसन, दफ्तर, भोजन कक्ष आदि कहां होना चाहिए इसी तरह की दिनचर्या के कामकाज की बातों को ध्यान में रखकर बापू की कुटी को वर्ष 1936 में साकार किया गया।

बुनियादी शिक्षा, अस्पृश्यता निवारण जैसे कार्यों में गांधी के साथ मीरा की अहम भूमिका रही।

बापू के निधन के बाद भी मीरा उनके विचार और कार्यों के प्रसार में जुटी रहीं, जिसके चलते 1982 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। भारत के प्रति मीरा बेन का लगाव इतना था कि वह भारत को अपना देश और इंगलैंड को विदेश मानती थीं। मीरा बेन के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए ‘इंडियन कोस्ट गार्ड’ ने नए गश्ती पोत का नाम उनके नाम पर रखा है।

गांधी जी की हत्या के बाद 18 जनवरी 1959 को मीराबेन भारत छोड़कर विएना चली गयीं। 20 जुलाई 1982 को उनका निधन हो गया।

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