फिल्म अभिनेता विनोद मेहरा : सरल व्यक्तित्व और सशक्त अभिनय के प्रतीक

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हिंदी सिनेमा के स्वर्ण युग में कई ऐसे कलाकार हुए जिन्होंने अपनी सादगी, गहराई और सहज अभिनय से दर्शकों के दिलों में अमिट छाप छोड़ी। इनमें से एक नाम था विनोद मेहरा — एक ऐसे अभिनेता जिनके अभिनय में भावनाओं की सच्चाई, चेहरे पर गजब की मासूमियत और संवादों में अद्भुत संवेदना झलकती थी। वे न तो किसी विशेष नायक की तरह ऊँची आवाज़ में संवाद बोलते थे, न ही उनका अंदाज़ आक्रामक था, पर उनकी सादगी ही उनकी सबसे बड़ी पहचान बन गई।

प्रारंभिक जीवन

विनोद मेहरा का जन्म 13 फरवरी 1945 को अमृतसर, पंजाब में हुआ था। उनका परिवार बाद में मुंबई आ गया, जहाँ से उन्होंने अपनी शिक्षा प्राप्त की। बचपन से ही उन्हें फिल्मों का शौक था और उनकी अभिनय यात्रा की शुरुआत बाल कलाकार के रूप में फिल्म बेहरूपिया (1952) से हुई थी। आगे चलकर उन्होंने फिल्मों में सहायक भूमिकाओं से शुरुआत की और धीरे-धीरे मुख्य अभिनेता के रूप में अपनी पहचान बनाई।

फिल्मी करियर की शुरुआत

विनोद मेहरा का पहला प्रमुख ब्रेक फिल्म “एक थी रीता” (1971) से मिला, जिसने उन्हें हिंदी सिनेमा में स्थापित कर दिया। इसके बाद उन्होंने अनेक फिल्मों में अपनी अभिनय प्रतिभा का परिचय दिया। 1970 और 1980 के दशक में वे रोमांटिक, भावनात्मक और पारिवारिक किरदारों के लिए जाने जाने लगे। उनकी अभिनय शैली बहुत स्वाभाविक थी—वे किरदारों को जीते थे, निभाते नहीं।

उनकी प्रमुख फिल्मों में “अनुराग” (1972), “लाल पत्थर” (1971), “गृहप्रवेश” (1979), “स्वयंवर” (1980), “अमर प्रेम” (1972), “नमक हराम” (1973), “घर” (1978), “जानी दुश्मन” (1979), “बेइमान”, “खूबसूरत” (1980) और “अखराई” जैसी अनेक फ़िल्में शामिल हैं।

अभिनय शैली

विनोद मेहरा की अभिनय कला का सबसे बड़ा गुण था—संवेदनशीलता और सरलता। वे अपने चेहरे के भावों से गहरी भावनाएँ व्यक्त कर देते थे। उन्हें अक्सर ऐसे किरदारों में देखा गया जो ईमानदार, दयालु, जिम्मेदार और प्रेम में सच्चे होते थे।
फिल्म “घर” में रेखा के साथ उनका अभिनय आज भी याद किया जाता है, जिसमें उन्होंने एक ऐसे पति का किरदार निभाया जो अपनी पत्नी के साथ हुए अपराध के बाद मानसिक और सामाजिक संघर्ष से गुजरता है। इस फिल्म ने उन्हें समीक्षकों की सराहना दिलाई।

फिल्म “गृहप्रवेश” में उनका अभिनय एक सामान्य पति की दुविधाओं और भावनाओं को बेहद यथार्थ ढंग से पेश करता है। वहीं “अमर प्रेम” और “नमक हराम” जैसी फिल्मों में उन्होंने सहायक भूमिकाओं में भी ऐसा असर छोड़ा कि दर्शक उन्हें भूल नहीं सके।

सह-कलाकारों के साथ संबंध

विनोद मेहरा को उनके सह-अभिनेताओं द्वारा बहुत पसंद किया जाता था। वे अपने विनम्र स्वभाव और सौम्य व्यक्तित्व के कारण फिल्म जगत में सबके प्रिय थे। उन्होंने राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, रेखा, मौसमी चटर्जी, शर्मिला टैगोर, और बिंदिया गोस्वामी जैसे सितारों के साथ काम किया। खास बात यह थी कि हर बड़ी जोड़ी के बीच भी उनका अभिनय अपना अलग प्रभाव छोड़ता था।

व्यक्तिगत जीवन

विनोद मेहरा का व्यक्तिगत जीवन काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा। उन्होंने कई बार विवाह किया। उनका नाम अभिनेत्री रेखा के साथ भी जुड़ा, हालांकि यह रिश्ता कभी सार्वजनिक रूप से स्थायी नहीं हुआ। बाद में उन्होंने किरण से विवाह किया, जिनसे उन्हें दो संतानें—सोनिया मेहरा और रोहन मेहरा—हुए। रोहन मेहरा ने भी फिल्मों में कदम रखा।

अचानक मृत्यु

विनोद मेहरा का जीवन जितना सादगीपूर्ण था, उतना ही उनका अंत अचानक और दुखद था। 30 अक्टूबर 1990 को मात्र 45 वर्ष की आयु में हृदयाघात से उनका निधन हो गया। उनकी असमय मृत्यु ने फिल्म उद्योग को गहरे शोक में डाल दिया। उस समय वे कई फिल्मों की शूटिंग कर रहे थे, जिनमें कुछ फिल्में बाद में रिलीज़ हुईं, जैसे “गुरुदेव” (1993)।

विरासत और योगदान

विनोद मेहरा ने लगभग 100 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया। उन्होंने फिल्मों में वह स्थान पाया जो अभिनय की सादगी और भावनात्मक गहराई का प्रतीक माना जाता है। वे उन कुछ अभिनेताओं में थे जिन्होंने अपने अभिनय से यह साबित किया कि बड़े स्टारडम के बिना भी कोई कलाकार दर्शकों के दिलों में अमर हो सकता है।

उनकी बेटी सोनिया मेहरा ने फिल्म रागिनी एमएमएस 2 से अभिनय में कदम रखा, जबकि बेटे रोहन मेहरा ने बाजार (2018) जैसी फिल्मों में अपनी प्रतिभा दिखाई।

निष्कर्ष

विनोद मेहरा हिंदी सिनेमा के उन कलाकारों में गिने जाते हैं जिन्होंने बिना किसी दिखावे, बिना किसी विवाद के, अपने सच्चे अभिनय और सौम्य व्यक्तित्व से सिनेमा को समृद्ध किया। वे एक ऐसे अभिनेता थे जिन्होंने प्रेम, त्याग, संघर्ष और मानवीय भावनाओं को परदे पर इतनी ईमानदारी से उतारा कि दर्शक आज भी उन्हें याद करते हैं।

उनकी मुस्कान, उनका शांत चेहरा और उनकी भावनाओं की गहराई आज भी हिंदी सिनेमा प्रेमियों के दिलों में जीवित है। विनोद मेहरा भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका योगदान हमेशा हिंदी फिल्म इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित रहेगा।

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