प्रकृति संरक्षण हमारे सुनहरे भविष्य का आधार है

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   −बाल मुकुन्द ओझा

आजकल जलवायु से सम्बंधित विषयों जैसे प्रकृति, पर्यावरण, पृथ्वी, जीव जंतु, वनस्पति, पेड़-पौधे आदि आदि पर विभिन्न देशी और वैश्विक शोध रिपोर्टों से अखबार भरे मिलते है। लगभग हर रिपोर्ट में जलवायु में बदलाव के खतरों से लोगों को निरंतर सावचेत किया जाता है। गर्मी हो या सर्दी अथवा बसंत सभी ऋतुओं में हो रहे परिवर्तन हमारे लिए लाभदायक है या हानिकारक इसकी जानकारी दी जाती है। आज यहाँ हम बात कर रहे है प्रकृति के भले बुरे की। प्रकृति से हमारा तात्पर्य जल, जंगल और जमीन से है। यह मानने और स्वीकारने में कोई गुरेज नहीं होनी चाहिए कि प्रकृति का संरक्षण हमारे सुनहरे भविष्य का आधार है। मनुष्य जन्म से ही प्रकृति और पर्यावरण  के सम्पर्क में आ जाता है। प्राणी जीवन की रक्षा हेतु प्रकृति की रक्षा अति आवश्यक है। वर्तमान समय में विभिन्न प्रजाति के जीव जंतु, वनस्पतियां और  पेड़-पौधे विलुप्त हो रहे हैं जो प्रकृति के संतुलन के लिए बहुत ही भयावह है। मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समय समय पर प्रकृति का दोहन करता चला आ रहा है। अगर प्रकृति के साथ खिलवाड़ होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हमें शुद्ध पानी, हवा, उपजाऊ भूमि, शुद्ध पर्यावरण  वातवरण एवं शुद्ध वनस्पतियाँ नहीं मिल सकेंगी। इन सबके बिना हमारा जीवन जीना मुश्किल हो जायेगा। प्रकृति हमारे जीवन का आधार है। विभिन्न प्राकृतिक संसाधन जैसे कि जल, वन्यजीवन, वन, खेती, वायु आदि हमारी जरूरतों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमारी सांसें जल से भरी हुई हैं और हमारी खाद्य आपूर्ति भी खेती द्वारा उत्पन्न होती है। इसलिए, हमें प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने की जरूरत है ताकि हम समृद्धि और सुख-शांति के साथ जीवन जी सकें। प्रकृति के संरक्षण का अर्थ है कि वनों, भूमि, जल निकायों का संरक्षण और खनिजों, ईंधन, प्राकृतिक गैसों आदि जैसे संसाधनों का संरक्षण, यह सुनिश्चित करने के लिए कि ये सभी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रहें। ऐसे कई तरीके हैं जिनसे आम आदमी प्रकृति के संरक्षण में मदद कर सकता है। इनमें से कुछ ऐसे हैं जो आसानी से किए जा सकते हैं और एक बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं। प्रकृति हमें पानी, भूमि, सूर्य का प्रकाश और पेड़-पौधे प्रदान करके हमारी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करती है। इन संसाधनों का उपयोग विभिन्न चीजों के निर्माण के लिए किया जा सकता है जो निश्चित ही मनुष्य के जीवन को अधिक सुविधाजनक और आरामदायक बनाते हैं। प्रकृति के संरक्षण से अभिप्राय जंगलों, भूमि, जल निकायों की सुरक्षा से है तथा प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण खनिजों, ईंधन, प्राकृतिक गैसों जैसे संसाधनों की सुरक्षा से है जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि ये सब प्रचुर मात्रा में मनुष्य के उपयोग के लिए उपलब्ध रहें। ऐसे कई तरीके हैं जिससे आम आदमी प्रकृति के संरक्षण में मदद कर सकता है। यहां कुछ ऐसे ही तरीकों का विस्तृत वर्णन किया गया है जिससे मानव जीवन को बड़ा लाभ हो सकता है।

पृथ्वी के पास हर इंसान की जरूरत पूरी करने के लिए काफी कुछ है, लेकिन उसके लालच को पूरा करने के लिए नहीं हैं। पृथ्वी पर पानी, हवा, मिट्टी, खनिज, पेड़, जानवर, पौधे आदि हर किस्म की जरूरत के लिए संसाधन है। लेकिन औद्योगिक विकास की होड़ में हम पृथ्वी को सफाई और उसके ही स्वास्थ्य को नजरअंदाज करने लगे हैं। हम कुछ भी करने से पहले यह बिलकुल नहीं सोचते कि हमारी उस गतिविधि से प्रकृति को कितना नकुसान होगा। प्रकृति का संरक्षण प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से सबंधित है। इनमें मुख्यतः पानी, धूप, वातावरण, खनिज, भूमि, वनस्पति और जानवर शामिल हैं। प्रकृति हमें पानी, भूमि, सूर्य का प्रकाश और पेड़-पौधे प्रदान करके हमारी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करती है। इन संसाधनों का उपयोग विभिन्न चीजों के निर्माण के लिए किया जा सकता है जो निश्चित ही मनुष्य के जीवन को अधिक सुविधाजनक और आरामदायक बनाते हैं।

धरती के तापमान में लगातार बढ़ते स्तर को ग्लोबल वार्मिंग कहते है। वर्तमान में ये पूरे विश्व के समक्ष बड़ी समस्या के रुप में उभर रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि धरती के वातावरण के गर्म होने का मुख्य कारण का ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में वृद्धि है। इसे लगातार नजरअंदाज किया  जा रहा है जिससे प्रकृति पर खतरा बढ़ता जा रहा है। ये आपदाएँ पृथ्वी पर ऐसे ही होती रहीं तो वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी से जीव-जन्तु व वनस्पति का अस्तिव ही समाप्त हो जाएगा। कहते है प्रकृति संरक्षित होगी तो मानव जीवन भी सुरक्षित होगा। प्रकृति हमारी धरोहर है, इसकी रक्षा करना हमारा कर्त्तव्य है।  प्रकृति ने हमें जीव जंतुओं सहित सूर्य, चाँद, हवा, जल, धरती, नदियां, पहाड़, हरे-भरे वन और खनिज सम्पदा धरोहर के रूप में दी हैं। मनुष्य अपने निहित स्वार्थ के कारण प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग कर रहा है। बढ़ती आबादी की समस्या के लिए आवास समस्या को हल करने के लिए हरे-भरे जंगलों को काट कर ऊंची-ऊंची इमारतें बनाई जा रही हैं। वृक्षों के कटने से वातावरण का संतुलन बिगड़ गया है और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या पूरे विश्व के सामने भयंकर रूप से खड़ी है। खनिज-सम्पदा का अंधाधुंध प्रयोग किया जा रहा है। जीव-जंतुओं का संहार किया जा रहा है, जिसके कारण अनेक दुर्लभ प्रजातियां लुप्त होती जा रही हैं।

बाल मुकुन्द ओझा

वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार

, मालवीय नगर, जयपुर

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