कहां तब जाएगी नाम बदलने की राजनीति                                                                 

Date:

तनवीर जाफ़री

 महात्मा गाँधी के नाम से नफ़रत करने व इसे मिटाने की कोशिशों का एक और प्रयास पिछले दिनों संसद में उस समय देखने को मिला जबकि केंद्र सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम अर्थात ‘मनरेगा ‘ का नाम बदलकर “विकसित भारत – गारंटी फ़ॉर रोज़गार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण)” अथवा संक्षेप में ‘वी बी जी राम जी’  कर दिया। हालांकि पहले यह ख़बरें थीं कि इसे “पूज्य बापू ग्रामीण रोज़गार योजना” का नाम दिया जायेगा परन्तु आख़िरकार इस योजना से सरकार ने महात्मा गाँधी का नाम हटा ही दिया। ग़ौरतलब है कि मनरेगा की शुरुआत 2005 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यू पी ए सरकार द्वारा की गयी थी। प्रारंभ में इसका नाम जवाहर रोज़गार योजना था परन्तु बाद में कांग्रेस ने ही इस योजना को महात्मा गांधी का नाम दे दिया था। अब विपक्ष इसे गांधी का नाम हटाने की भाजपाई कोशिश बता रहा  है, जबकि सरकार के अनुसार वह गांधी के विचारों को और मज़बूत कर रही है। हालांकि सरकार ने योजना का नाम बदलने के साथ ही इस योजना में कुछ सुधार और विस्तार करने का भी दावा किया है परन्तु कांग्रेस व अन्य विपक्षी दल इसे गांधी का अपमान बता रहे हैं। कांग्रेस के अनुसार इससे योजना की मूल भावना ही बदल रही है। विपक्ष आरोप लगा रहा है कि जिस तरह अन्य कई योजनाओं,क़ानूनों,मार्गों,शहरों,स्टेशन आदि के नाम बदलना भाजपा की रणनीति का एक हिस्सा है उसी तरह महात्मा गांधी का नाम हटाना भी उसी मुहिम का एक हिस्सा है।                            भाजपा,गांधी का सम्मान करती है,सम्मान करने का दिखावा करती है या सम्मान करते हुये नज़र आना उसकी मजबूरी है यह एक ऐसी वैचारिक बहस का मुद्दा है जो गांधी की हत्या के बाद से ही छिड़ा हुआ है। गाँधी का हत्यारा कौन था,उसकी विचारधारा क्या थी ? आज उस विचारधारा के अलंबरदार कौन लोग हैं ? सत्ता से उनके क्या रिश्ते हैं यह बातें किसी से छुपी नहीं हैं। विगत दस वर्षों से तो ख़ास तौर पर जिसतरह सत्ता समर्थित अनेक सांसदों द्वारा व इसी से जुड़े अनेक संगठनों के लोगों द्वारा जिसतरह गांधी का बार बार अपमान क्या गया,यहाँ तक कि उन्हें गोली मारने का दृश्य तक दोहराया गया,गांधी के हत्यारे आतंकी नाथू राम गोडसे का महिमामंडन किया गया,उसकी प्रतिमा लगाने तक के दुष्प्रयास किये गये यह सब इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिये काफ़ी हैं कि वर्तमान सत्ता के साये तले महात्मा गाँधी के प्रति नफ़रत ख़ूब फली फूली है। आश्चर्य की बात तो यह है जिनके आदर्श नेताओं ने अंग्रेज़ों के तलवे चाटे थे,उनके रहम-ो-करम पर जीने को मजबूर थे वही शक्तियां आज उस गांधी के अपमान पर उतारू हैं जिन्हें पूरी दुनिया,यहाँ तक कि ख़ुद अंग्रेज़ भी झुककर सम्मान देते हैं? 

              यह पहला मौक़ा नहीं है जबकि मनरेगा से गांधी का नाम हटाया गया है। याद कीजिये 2017 में  खादी ग्रामोद्योग आयोग ने हमेशा छपने वाले अपने कैलेंडर में महात्मा गांधी की चरखा घुमाती हुई तस्वीर की जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की समान मुद्रा वाली फ़ोटो लगा दी थी। उस समय खादी ग्रामोद्योग के कर्मचारियों और विपक्ष ने भी इसे गांधी जी की विरासत का अपमान बताया था। उस समय सोशल मीडिया पर भी ख़ूब फ़ोटोशॉप्ड मीम्स व ट्रोलिंग हुई। भाजपा नेताओं को तो शायद गांधी का नाम भी सम्मान से लेने में परेशानी होती है। तभी अमित शाह ने महात्मा गांधी को जून 2017 को छत्तीसगढ़ के रायपुर में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि ‘गांधी एक चतुर बनिया था। ‘ उस समय भी कांग्रेस ने अमित शाह पर राष्ट्रपिता के लिए ‘चतुर बनिया’ शब्द का इस्तेमाल कर गाँधी का अपमान करने का आरोप लगाया था । उस समय भी कांग्रेस ने कहा था कि आज़ादी के बाद, बीजेपी ऐसा कर रही है,जैसा अंग्रेज़ों ने किया था। 

                      31 अक्टूबर 2013 को गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने  सरदार वल्लभभाई पटेल को समर्पित दुनिया की सबसे ऊँची प्रतिमा स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी का शिलान्यास गुजरात के नर्मदा ज़िले में केवड़िया के पास नर्मदा नदी के किनारे किया था । बाद में जब इसका निर्माण 2018 में पूरा हुआ तो नरेंद्र मोदी ने ही प्रधानमंत्री के रूप में इसका उद्घाटन भी किया। मूर्ति की ऊँचाई 182 मीटर है, जो आधार सहित कुल 240 मीटर बनती है। इस प्रतिमा को स्थापित करके भाजपा ने एक तीर से कई शिकार खेलने की कोशिश की। उनमें एक कोशिश यह साबित करना भी थी कि गुजरात का सबसे ऊँचा व्यक्तित्व गांधी का नहीं बल्कि सरदार पटेल का है। दूसरी यह कि नेहरू के मुक़ाबले में वह पटेल को बड़ा दिखाना चाहती थी। परन्तु अपने उन प्रयासों में वह न तो गाँधी को छोटा कर सकी न ही नेहरू-पटेल के कथित मतभेदों को हवा दे सकी। हाँ पटेल कीप्रतिमा लगाने से यह ज़रूर साबित हो गया कि संघ -भाजपा के पास अपना कोई भी नेता ऐसा नहीं था जिसकी इतनी ऊँची प्रतिमा बनवाई जा सकती। और यह भी कि गांधी-नेहरू को पटेल से छोटा दिखाने की छटपटाहट में वह यह भी भूल गयी कि स्वतंत्र भारत के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने ही 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की हत्या के तुरंत बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर बैन लगा दिया था। यह बैन 4 फ़रवरी, 1948 को तब लगाया गया था जब यह चिंता थी कि संघ की गतिविधियों ने सांप्रदायिकता फैलाई है जिससे हिंसा को बढ़ावा मिला है। पटेल ने फ़रवरी 1948 में नेहरू को लिखा, जिसमें उन्होंने बताया कि संघ के सदस्यों ने गांधी की मौत का जश्न मनाया। सर्वविदित है कि गांधी की हत्या हिंदू महासभा से जुड़े आर एस एस के ही पूर्व सदस्य नाथूराम गोडसे ने की थी, जिसके बाद सरकार ने उन संगठनों के ख़िलाफ़ तुरंत कार्रवाई की जिन्हें नफ़रत फैलाने वाला माना जाता था। पटेल नेसंघ को अस्थिर करने वाला संगठन माना, और इसकी विचारधारा को साम्प्रदायिक बताया। 

                बहरहाल दुनिया भर से दिल्ली पहुँचने वाले राष्ट्राध्यक्षों व राष्ट्र प्रमुखों के दिल्ली आगमन पर राजघाट पहुंचकर उन्हें नमन करना या विश्व शांति व बंधुत्व के लिये दुनिया भर में बुलाये जाने वाले मार्च व प्रदर्शनों में गाँधी के चित्रों व उनके सद्भावनापूर्ण विचारों को सर्वोपरि रखना या फिर दुनिया के अनेक देशों में प्रमुख स्थलों पर गाँधी की आदमक़द प्रतिमाओं को सम्मान दिया जाना इस नतीजे पर पहुँचने के लिये काफ़ी है कि महात्मा गाँधी का नाम किसी योजना से हटाने,उनका नाम शौचालयों पर लिखने या नालों के किनारे उनकी फ़ोटो लगाकर उनका अपमान करने जैसे छिछोरे प्रयासों से न तो गांधी का क़द घटने वाला है न ही उनका नाम मिटने वाला है।

−तनवीर जाफरी

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Share post:

Subscribe

spot_imgspot_img

Popular

More like this
Related

योगी आदित्यनाथ की लघु व सीमांत किसानों को बड़ी सौगात, अब सिर्फ छह फीसदी ब्याज पर मिलेगा लोन

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 के...

प्रधानमंत्री ने असम के नामरूप में असम वैली उर्वरक और रसायन कंपनी लिमिटेड की अमोनिया-यूरिया उर्वरक परियोजना की आधारशिला रखी

प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी ने आज असम के डिब्रूगढ़ जिले के नामरूप में असम वैली उर्वरक और रसायन कंपनी लिमिटेड की अमोनिया-यूरिया उर्वरक परियोजना की आधारशिला रखी। इस अवसर पर एक जनसभा को संबोधित करते हुए श्री मोदी ने कहा कि यह चाओलुंग सुखापा और महावीर लछित बोडफुकन जैसे महान नायकों की भूमि है। उन्होंने भीमबर देउरी, शहीद कुशल कुंवर, मोरन राजा बोदूसा, मालती मेम, इंदिरा मीरी, स्वर्गदेव सरबानंदा सिंह और वीर सती साधनी के योगदान को रेखांकित किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि वे उजानी असम की पवित्र भूमि, इस वीरता और बलिदान की महान भूमि को नमन करते हैं। श्री मोदी ने कहा कि वे आगे बड़ी संख्या में लोगों को अपना स्नेह व्यक्त करते हुए देख सकते हैं। उन्होंने विशेष रूप से माताओं और बहनों की उपस्थिति का उल्लेख करते हुए कहा कि वे जो प्रेम और आशीर्वाद लेकर आई हैं, वह असाधारण है। उन्होंने कहा कि कई बहनें असम के चाय बागानों की सुगंध लेकर आई हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह सुगंध असम के साथ उनके रिश्ते में एक अनूठा भाव पैदा करती है। उन्होंने वहां उपस्थित सभी लोगों को प्रणाम किया और उनके स्नेह और प्रेम के लिए आभार व्यक्त किया। श्री मोदी ने कहा कि आज का दिन असम और पूरे पूर्वोत्तर भारत के लिए ऐतिहासिक है!उन्होंने कहा कि नामरूप और डिब्रूगढ़ का लंबे समय से प्रतीक्षित सपना साकार हो गया है और इस क्षेत्र में औद्योगिक प्रगति का एक नया अध्याय शुरू हो गया है। उन्होंने बताया कि कुछ ही समय पहले उन्होंने अमोनिया-यूरिया उर्वरक संयंत्र का भूमि पूजन किया और डिब्रूगढ़ पहुंचने से पहले गुवाहाटी हवाई अड्डे के नए टर्मिनल का उद्घाटन किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि सभी कह रहे हैं कि असम ने अब विकास की एक नई रफ्तार पकड़ ली है। उन्होंने जोर देकर कहा कि आज जो कुछ हो रहा है वह तो बस शुरुआत है और असम को अभी और आगे ले जाना है। उन्होंने अहोम साम्राज्य के दौरान असम की ताकत और भूमिका को याद करते हुए कहा कि विकसित भारत में असम उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उन्होंने नए उद्योगों की शुरुआत, आधुनिक बुनियादी ढांचे के निर्माण, सेमीकंडक्टर विनिर्माण, कृषि में नए अवसरों, चाय बागानों और उनके श्रमिकों की उन्नति और पर्यटन में बढ़ती संभावनाओं को रेखांकित करते हुए कहा कि असम हर क्षेत्र में प्रगति कर रहा है। श्री मोदी ने आधुनिक उर्वरक संयंत्र के लिए शुभकामनाएं दीं और गुवाहाटी हवाई अड्डे के नए टर्मिनल के लिए लोगों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य स्तर पर उनकी सरकारों के तहत, उद्योग और कनेक्टिविटी के तालमेल से असम के सपने साकार हो रहे हैं और युवाओं को बड़े सपने देखने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। । उन्होंने बताया कि उर्वरक परियोजना में लगभग 11,000 करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा, जिससे प्रतिवर्ष 12 लाख मीट्रिक टन से अधिक उर्वरक का उत्पादन होगा। उन्होंने रेखांकित किया कि स्थानीय स्तर पर उत्पादन होने से आपूर्ति तेज होगी और लॉजिस्टिक लागत कम होगी। श्री मोदी ने इस बात पर प्रकाश डालते हुए कहा कि नामरूप इकाई से हजारों नए रोजगार और स्वरोजगार के अवसर पैदा होंगे और संयंत्र के चालू होने से कई लोगों को स्थानीय स्तर पर स्थायी रोजगार मिलेगा। उन्होंने कहा कि मरम्मत, आपूर्ति और अन्य संबंधित कार्यों से भी युवाओं को रोजगार मिलेगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पिछली सरकार के कार्यकाल में उर्वरक कारखाने बंद हो रहे थे, जबकि वर्तमान सरकार ने गोरखपुर, सिंदरी, बरौनी और रामागुंडम में कई संयंत्र शुरू किए हैं। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में निजी क्षेत्र को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। प्रधानमंत्री ने इस बात पर बल दिया कि इन प्रयासों के परिणामस्वरूप भारत यूरिया के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर है। प्रधानमंत्री ने कहा, “वर्ष 2014 में देश में केवल 225 लाख मीट्रिक टन यूरिया का उत्पादन हुआ था, जबकि आज उत्पादन लगभग 306 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच गया है।” उन्होंने बताया कि भारत को प्रतिवर्ष लगभग 380 लाख मीट्रिक टन यूरिया की आवश्यकता है और सरकार इस कमी को पूरा करने के लिए तेजी से काम कर रही है। उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार किसानों के हितों के प्रति अत्यंत संवेदनशील है। श्री मोदी ने कहा कि विदेशों से अधिक कीमतों पर आयातित यूरिया का भी किसानों पर बोझ नहीं बनने दिया जाता, क्योंकि सरकार सब्सिडी के माध्यम से यह लागत वहन करती है। उन्होंने कहा कि भारतीय किसानों को यूरिया का एक बोरा मात्र 300 रुपये में मिलता है, जबकि सरकार उसी बोरे के लिए अन्य देशों को लगभग 3,000 रुपये का भुगतान करती है। उन्होंने रेखांकित किया कि शेष राशि सरकार द्वारा वहन की जाती है ताकि किसान भाइयों और बहनों पर कोई वित्तीय बोझ न पड़े। उन्होंने किसानों से यूरिया और अन्य उर्वरकों का अधिकतम उपयोग करके मिट्टी को बचाने का भी आग्रह किया। विकसित भारत के निर्माण में पूर्वी भारत और पूर्वोत्तर भारत की भूमिका निरंतर बढ़ती जा रही है, इस बात पर जोर देते हुए श्री मोदी ने कहा कि पूर्वी भारत राष्ट्र के विकास का इंजन बनेगा। उन्होंने बताया कि नामरूप की नई उर्वरक इकाई इस परिवर्तन का प्रतीक है, क्योंकि यहां उत्पादित उर्वरक न केवल असम के खेतों की जरूरतों को पूरा करेगी, बल्कि बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और पूर्वी उत्तर प्रदेश तक भी पहुंचेगी। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि यह देश की उर्वरक आवश्यकताओं में पूर्वोत्तर भारत का महत्वपूर्ण योगदान है। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन का समापन करते हुए कहा कि नामरूप जैसी परियोजनाएं यह दर्शाती हैं कि आने वाले समय में पूर्वोत्तर भारत आत्मनिर्भर भारत का एक प्रमुख केंद्र बनकर उभरेगा और सही मायने में अष्टलक्ष्मी बना रहेगा। उन्होंने नए उर्वरक संयंत्र के लिए सभी को एक बार फिर बधाई दी। असम के राज्यपाल  लक्ष्मण प्रसाद आचार्य, असम के मुख्यमंत्री  हिमंत बिस्व सरमा, केंद्रीय मंत्री श सरबानंद सोनोवाल सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति इस अवसर पर उपस्थित थे।

लारा कोर्ट ने दिया बिजनौर के डीएम आवास को कुर्क करने का आदेश

नौ जनवरी को डीएम को कोर्ट ने किया तलब,...
en_USEnglish