आईएएस अधिकारी के बच्चे आईएएस नहीं बनना चाहते? 

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जब प्रशासन बदलता है दिशा—क्यों भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारियों के बच्चे उसी राह पर कम चलते हैं? 

प्रतिष्ठा की चमक के पीछे छिपी कठोर सच्चाइयों और नई पीढ़ी की बदलती आकांक्षाओं का विस्तृत विश्लेषण

भारतीय प्रशासनिक सेवा को समाज में सम्मान और शक्ति का प्रतीक माना जाता है, परंतु इसके भीतर छिपी कठोर वास्तविकताएँ अक्सर परिवारों के जीवन को गहराई से प्रभावित करती हैं। तेज़ स्थानांतरण, राजनीतिक दबाव, सीमित निजी समय और निरंतर सार्वजनिक अपेक्षाएँ नई पीढ़ी को इस सेवा से दूर करती हैं। साथ ही, बच्चों को उपलब्ध व्यापक शिक्षा और वैश्विक अवसर उन्हें विविध करियर चुनने की स्वतंत्रता देते हैं। यही कारण है कि आज भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारियों के बच्चे उसी राह पर कम चलते हैं और जीवन–संतुलन तथा रचनात्मक स्वतंत्रता आधारित नए करियर को प्राथमिकता देते हैं।

— डॉ प्रियंका सौरभ

भारत में प्रशासनिक सेवा को लंबे समय से शक्ति, प्रतिष्ठा और राष्ट्र-निर्माण के सर्वोच्च प्रतीकों में गिना जाता रहा है। समाज में आज भी “भारतीय प्रशासनिक सेवा” एक ऐसा नाम है जो सम्मान, अधिकार और सफलता की सम्मिलित छवि बनाता है। किंतु विडंबना यह है कि जिन परिवारों ने इस प्रतिष्ठा को बहुत निकट से देखा है, वही परिवार—विशेषकर भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारियों के बच्चे—बहुत कम संख्या में उसी पेशे की राह अपनाते हैं। यह प्रश्न केवल सामाजिक जिज्ञासा भर नहीं है; यह प्रशासनिक जीवन की कठोर सच्चाइयों, बदलते समय और नई पीढ़ी की मनोवृत्ति का गहरा संकेत है।

सबसे पहले, भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारियों के बच्चे उस सेवा की वास्तविक कठिनता को प्रतिदिन देखते हैं जिसे बाहरी दुनिया केवल प्रतिष्ठा के आवरण में देखती है। अनिश्चित और तेज़ स्थानांतरण, राजनीतिक दबाव, जनता की अपेक्षाओं का अंतहीन बोझ, अवकाश का अभाव और निरंतर संघर्ष—इन सभी का प्रभाव परिवार के जीवन पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ता है। नई पीढ़ी जिसके लिए मानसिक स्वतंत्रता और कार्य–जीवन संतुलन अत्यंत महत्वपूर्ण है, वह ऐसी सेवा की ओर आकृष्ट नहीं होती जहाँ व्यक्तिगत समय और निजी जीवन लगभग समाप्त हो जाता है।

दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष है—आर्थिक सुरक्षा। भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी अपने बच्चों को उच्च स्तरीय शिक्षा, उत्कृष्ट वातावरण और व्यापक अवसर प्रदान करने में सक्षम होते हैं। ऐसे में बच्चों के लिए सरकारी सेवा प्राप्त करने का संघर्ष किसी अनिवार्यता के स्थान पर एक अतिरिक्त बोझ जैसा प्रतीत होने लगता है। संघ लोक सेवा आयोग की कठिन, अनिश्चित और समयसाध्य परीक्षा उनके लिए आवश्यक विकल्प नहीं, बल्कि एक चुनौतीपूर्ण यात्रा जैसी लगती है। इसलिए उनकी राहें निजी क्षेत्र, तकनीकी क्षेत्र, अनुसंधान, विधि-विज्ञान या उद्यमिता की ओर अधिक मुड़ जाती हैं—जहाँ आय अधिक है, स्वतंत्रता अधिक है और स्थानांतरण या राजनीतिक दबाव जैसी चुनौतियाँ कम हैं।

तीसरी सच्चाई यह है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के भीतर की जो प्रशासनिक सीमाएँ हैं—फाइलों का व्यवहार, विवश निर्णय, भ्रष्ट तंत्र का दबाव—वे सब इन परिवारों के बच्चे प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करते हैं। जब वे देखते हैं कि उनके माता-पिता कई बार अपनी इच्छा के अनुसार निर्णय नहीं ले पाते, तो यह उनके भीतर प्रशासनिक सेवा की “शक्ति” को कम प्रभावी रूप में प्रस्तुत करता है। समाज इसे चाहे जितना सम्मानजनक माने, परिवार के भीतर इसका वास्तविक चित्र कई बार निराशाजनक होता है।

चौथा पहलू है—नई पीढ़ी की मूल्य-दृष्टि। आज की युवा पीढ़ी सरकारी पदों की स्थिरता से अधिक वैश्विक अवसरों, रचनात्मक स्वतंत्रता, डिजिटल माध्यमों पर आधारित करियर और नव–उद्यम संस्कृति की ओर आकर्षित है। वे जोखिम उठाने को तैयार हैं, परंतु बंधी-बंधाई व्यवस्था में रहना नहीं चाहते। भारतीय प्रशासनिक सेवा जैसी सेवा जहाँ नियम कठोर हैं, प्रक्रिया विस्तृत है और ऊर्जा का बड़ा भाग व्यवस्था को संचालित रखने में व्यतीत होता है—वहाँ उन्हें अपनी क्षमता का पूर्ण विस्तार नहीं दिखाई देता।

यह भी उल्लेखनीय है कि स्वयं अनेक भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी अपने बच्चों को इस सेवा में आने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते। वर्षों की थकान, संघर्ष और भारी दबाव के बाद वे अपने बच्चों के लिए अधिक संतुलित, स्वतंत्र और अपेक्षाकृत शांत जीवन की कल्पना करते हैं। यह माता-पिता की सहज मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति है, और बच्चों के करियर चयन को गहराई से प्रभावित करती है।

यह पूरा परिदृश्य एक व्यापक सामाजिक परिवर्तन की ओर संकेत करता है। वह समय अब समाप्त हो रहा है जब भारतीय प्रशासनिक सेवा को करियर का सबसे उत्कृष्ट विकल्प माना जाता था। आज अनेक प्रतिष्ठित और प्रभावी करियर उपलब्ध हैं जिनमें स्वतंत्रता, रचनात्मकता, सम्मान और आय—सब कुछ प्रचुर मात्रा में है। इस परिवर्तित परिदृश्य ने भारतीय प्रशासनिक सेवा के आकर्षण को कुछ हद तक कम किया है, विशेष रूप से उन परिवारों में जिन्होंने इसकी चमक के पीछे की कठोर थकान को निकट से महसूस किया है।

फिर भी यह सत्य है कि यह रुझान प्रशासनिक सेवा की महत्ता को कभी समाप्त नहीं करता। भारतीय प्रशासनिक सेवा देश की प्रशासनिक रीढ़ है और इसमें आने वाले युवा राष्ट्र को दिशा देने में अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अंतर केवल इतना है कि अब इस सेवा की राह वही चुनता है जो इसे मन से अपनाना चाहता है—न कि वह जो सामाजिक दबाव या मजबूरी में प्रवेश करता है।

अंततः, भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारियों के बच्चों का उसी सेवा में न जाना किसी प्रकार की असफलता का संकेत नहीं है, बल्कि बदलते भारत की सूक्ष्म मानसिकता का परिचायक है—एक ऐसा भारत जहाँ विकल्प अधिक हैं, अपेक्षाएँ नवीन हैं, और करियर का अर्थ केवल प्रतिष्ठा नहीं, बल्कि जीवन की गुणवत्ता भी है। यह परिवर्तन सकारात्मक है, क्योंकि यह दिखाता है कि नई पीढ़ी उस संसार का स्वप्न देखती है जहाँ पेशा शक्ति से नहीं, बल्कि संतुलन, स्वतंत्रता और व्यक्तिगत संतोष से निर्धारित होता है।

-प्रियंका सौरभ 

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,

कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,

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