‘अहिराणा’ शब्द से हुई है ‘हरियाणा’ की व्युत्पत्ति

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*’हरयान’ या ‘हरियान’ शब्द से नहीं, ‘अहिराणा’ शब्द से हुई है ‘हरियाणा’ की व्युत्पत्ति : डॉ. रामनिवास ‘मानव’*

*(डॉ. रामनिवास ‘मानव’ हरियाणा के जाने-माने साहित्यकार और शिक्षाविद् होने के साथ-साथ हरियाणा के समकालीन हिंदी-साहित्य के प्रथम शोधार्थी और अधिकारी विद्वान भी हैं। ‘हरियाणा में रचित सृजनात्मक हिंदी-साहित्य’ पर पीएचडी और ‘हरियाणा में रचित हिंदी-महाकाव्य’ विषय पर डीलिट् की उपाधि प्राप्त करने वाले डॉ. ‘मानव’ हरियाणा के प्रथम और ये दोनों उपाधियाँ प्राप्त करने वाले अद्यतन एकमात्र विद्वान हैं। हरियाणवी भाषा और साहित्य के विकास में भी इन्होंने बहुआयामी और महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। साहित्य अकादमी, नई दिल्ली की ‘हिंदी की सहभाषा’ श्रृंखला के अंतर्गत हरियाणवी भाषा पर प्रथम पुस्तक लिखने का गौरव भी डॉ. ‘मानव’ को ही प्राप्त हुआ है। इस दृष्टि से इनकी साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘हरियाणवी’  ऐतिहासिक महत्त्व रखती है। विभिन्न विधाओं की चौंसठ महत्त्वपूर्ण पुस्तकों के लेखक और संपादक तथा वर्तमान में सिंघानिया विश्वविद्यालय, पचेरी बड़ी (राजस्थान) में आचार्य तथा सांस्कृतिक संकाय के अधिष्ठाता के पद पर कार्यरत डॉ. ‘मानव’ ने अब हरियाणा प्रदेश के नामकरण को लेकर भी सर्वथा मौलिक और नवीन अवधारणा प्रस्तुत की है। इनकी यह अवधारणा पुरानी और परंपरागत मान्यताओं से कहीं अधिक तथ्यपरक और तर्कसंगत जान पड़ती है। अतः हरियाणा दिवस के सुअवसर पर, इसी संदर्भ में प्रस्तुत हैं डॉ. ‘मानव’ के विशिष्ट विचार।)*

        ‘हरियाणा’ शब्द की व्युत्पत्ति के संदर्भ में चर्चा करने पर डॉ. रामनिवास ‘मानव’ बताते हैं कि ‘हरियाणा’ वैदिक कालीन शब्द है। इसका सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है-“ऋजुभुक्षस्याने रजतं हरियाणे। रथं युक्तं असनाम सुषामणि।” (8:25:22) यहांँ प्रयुक्त ‘हरियाणे’ शब्द के कष्टों को सहने वाला, हरणशील, हरि का यान आदि अनेक अर्थ हो सकते हैं, किंतु इससे प्रदेश-विशेष के नाम का स्पष्ट बोध नहीं होता। मुख्यतः ‘हरियाणा’ शब्द की व्युत्पत्ति ‘हरयान’ अथवा ‘हरि‌यान’ शब्द से‌ मानी जाती है। इसीलिए इसे अंग्रेजी में ‘हरयाणा’ तथा हिंदी में ‘हरियाणा’ लिखा जाता है। किंतु मेरे मतानुसार यह थ्योरी गलत है। हर (शिव) और हरि (विष्णु) के इस क्षेत्र में यान द्वारा विचरण करने का सटीक उल्लेख नहीं मिलता। फिर यान के विचरण करने से किसी क्षेत्र ‌के नामकरण की बात भी गले नहीं उतरती। ‘हरियानक’, ‘हरितारण्यक’, ‘हरिताणक’, ‘आर्यायन’, ‘दक्षिणायन’, ‘उक्षणायन’, ‘हरिधान्यक’, ‘हरिबांँका’ आदि शब्दों से हरियाणा की व्युत्पत्ति की अन्य थ्योरियाँ भी अविश्वसनीय, बल्कि कुछ तो हास्यास्पद लगती हैं। डॉ. बुद्धप्रकाश और प्राणनाथ चोपड़ा ने हरियाणा की व्युत्पत्ति ‘अभिरायण’ शब्द से मानी है, किंतु इसे भी आंशिक रूप में ही सही माना जा सकता है।

        अपनी अवधारणा को स्पष्ट करते हुए डॉ. ‘मानव’ ने कहा कि मेरी सुनिश्चित मान्यता है कि ‘हरियाणा’ की व्युत्पत्ति ‘अहिराणा’ शब्द से हुई है। पशुपालन और कृषि का व्यवसाय करने वाले यदुवंशियों को अभिर या आभीर कहा जाता था, कालांतर में, जिसका तद्भव  रूप अहीर हो गया। अहीर बहादुर योद्धा माने जाते थे, जिनके अस्तित्व के प्रमाण ईसा से छह हजार वर्ष पूर्व भी मिलते हैं। किसी समय अहीर जाति हरियाणा, दिल्ली, बिहार, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान से लेकर गुजरात और महाराष्ट्र तक फैली हुई थी। किंतु वर्तमान हरियाणा, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उसका पूरा आधिपत्य और संपूर्ण वर्चस्व रहा। अहीरों का बाहुल्य होने के कारण ही इस क्षेत्र को ‘अहिराणा’ कहा जाने लगा। (जैसे राजपूतों के कारण राजपुताना, मराठों के कारण मराठवाड़ा और भीलों के कारण भीलवाड़ा कहा जाता है।) बाद‌ में, हरियाणवी बोली की उदासीन अक्षरों के लोप की प्रकृति और प्रवृत्ति के चलते, अखाड़ा-खाड़ा, अहीर-हीर, उतारणा-तारणा, उठाणा-ठाणा और स्थाण-ठाण की तर्ज पर, ‘अहिराणा’ से ‘हिराणा’ और फिर ‘हरयाणा’ या ‘हरियाणा’ हो गया। ‘अहिराणा’ शब्द का अर्थ है- ‘अहीरों का क्षेत्र’। इसे ‘अहीरवाल’ का पर्यायवाची माना जा सकता है।

        डॉ. ‘मानव’ ने कहा कि एक अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य से भी मेरे मत की पुष्टि होती है। आज भी महाराष्ट्र के खानदेश, जिसे कभी हीरदेश भी कहा जाता था और जिसमें महाराष्ट्र के मालेगांव, नंदुरबार और धुले जिलों के अतिरिक्त नासिक जिले के धरनी, कलवण, सटाणा और बागलान तथा औरंगाबाद जिले के देवला क्षेत्र, गुजरात के सूरत और व्यारा तथा मध्यप्रदेश के अंबा और वरला क्षेत्र शामिल हैं, जहांँ आज भी ‘अहिराणी’ बोली, बोली जाती है। देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली और बीस-बाईस लाख लोगों द्वारा बोली जाने वाली ‘अहिराणी’ का अर्थ है- ‘अहीरों की बोली’। इससे स्पष्ट है कि ‘अहिराणा’ और ‘अहिराणी’ में सीधा संबंध और पूरी समानता है। 

        अंत में निष्कर्ष प्रस्तुत करते हुए डॉ. ‘मानव’ कहते हैं कि ‘हरयाणा’ अथवा ‘हरियाणा’ शब्द की व्युत्पत्ति ‘हरयान’ या ‘हरियान’ से नहीं, बल्कि ‘अहिराणा’ शब्द से हुई है। निश्चय ही, डॉ. ‘मानव’ का यह मत पूर्णतया तथ्यपरक, तर्कसंगत और प्रामाणिक है।

*प्रस्तुति : डॉ. सत्यवान सौरभ, हिसार (हरियाणा)*

*(डॉ. रामनिवास ‘मानव’ हरियाणा के जाने-माने साहित्यकार और शिक्षाविद् होने के साथ-साथ हरियाणा के समकालीन हिंदी-साहित्य के प्रथम शोधार्थी और अधिकारी विद्वान भी हैं। ‘हरियाणा में रचित सृजनात्मक हिंदी-साहित्य’ पर पीएचडी और ‘हरियाणा में रचित हिंदी-महाकाव्य’ विषय पर डीलिट् की उपाधि प्राप्त करने वाले डॉ. ‘मानव’ हरियाणा के प्रथम और ये दोनों उपाधियाँ प्राप्त करने वाले अद्यतन एकमात्र विद्वान हैं। हरियाणवी भाषा और साहित्य के विकास में भी इन्होंने बहुआयामी और महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। साहित्य अकादमी, नई दिल्ली की ‘हिंदी की सहभाषा’ श्रृंखला के अंतर्गत हरियाणवी भाषा पर प्रथम पुस्तक लिखने का गौरव भी डॉ. ‘मानव’ को ही प्राप्त हुआ है। इस दृष्टि से इनकी साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘हरियाणवी’  ऐतिहासिक महत्त्व रखती है। विभिन्न विधाओं की चौंसठ महत्त्वपूर्ण पुस्तकों के लेखक और संपादक तथा वर्तमान में सिंघानिया विश्वविद्यालय, पचेरी बड़ी (राजस्थान) में आचार्य तथा सांस्कृतिक संकाय के अधिष्ठाता के पद पर कार्यरत डॉ. ‘मानव’ ने अब हरियाणा प्रदेश के नामकरण को लेकर भी सर्वथा मौलिक और नवीन अवधारणा प्रस्तुत की है। इनकी यह अवधारणा पुरानी और परंपरागत मान्यताओं से कहीं अधिक तथ्यपरक और तर्कसंगत जान पड़ती है। अतः हरियाणा दिवस के सुअवसर पर, इसी संदर्भ में प्रस्तुत हैं डॉ. ‘मानव’ के विशिष्ट विचार।)*

        ‘हरियाणा’ शब्द की व्युत्पत्ति के संदर्भ में चर्चा करने पर डॉ. रामनिवास ‘मानव’ बताते हैं कि ‘हरियाणा’ वैदिक कालीन शब्द है। इसका सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है-“ऋजुभुक्षस्याने रजतं हरियाणे। रथं युक्तं असनाम सुषामणि।” (8:25:22) यहांँ प्रयुक्त ‘हरियाणे’ शब्द के कष्टों को सहने वाला, हरणशील, हरि का यान आदि अनेक अर्थ हो सकते हैं, किंतु इससे प्रदेश-विशेष के नाम का स्पष्ट बोध नहीं होता। मुख्यतः ‘हरियाणा’ शब्द की व्युत्पत्ति ‘हरयान’ अथवा ‘हरि‌यान’ शब्द से‌ मानी जाती है। इसीलिए इसे अंग्रेजी में ‘हरयाणा’ तथा हिंदी में ‘हरियाणा’ लिखा जाता है। किंतु मेरे मतानुसार यह थ्योरी गलत है। हर (शिव) और हरि (विष्णु) के इस क्षेत्र में यान द्वारा विचरण करने का सटीक उल्लेख नहीं मिलता। फिर यान के विचरण करने से किसी क्षेत्र ‌के नामकरण की बात भी गले नहीं उतरती। ‘हरियानक’, ‘हरितारण्यक’, ‘हरिताणक’, ‘आर्यायन’, ‘दक्षिणायन’, ‘उक्षणायन’, ‘हरिधान्यक’, ‘हरिबांँका’ आदि शब्दों से हरियाणा की व्युत्पत्ति की अन्य थ्योरियाँ भी अविश्वसनीय, बल्कि कुछ तो हास्यास्पद लगती हैं। डॉ. बुद्धप्रकाश और प्राणनाथ चोपड़ा ने हरियाणा की व्युत्पत्ति ‘अभिरायण’ शब्द से मानी है, किंतु इसे भी आंशिक रूप में ही सही माना जा सकता है।

        अपनी अवधारणा को स्पष्ट करते हुए डॉ. ‘मानव’ ने कहा कि मेरी सुनिश्चित मान्यता है कि ‘हरियाणा’ की व्युत्पत्ति ‘अहिराणा’ शब्द से हुई है। पशुपालन और कृषि का व्यवसाय करने वाले यदुवंशियों को अभिर या आभीर कहा जाता था, कालांतर में, जिसका तद्भव  रूप अहीर हो गया। अहीर बहादुर योद्धा माने जाते थे, जिनके अस्तित्व के प्रमाण ईसा से छह हजार वर्ष पूर्व भी मिलते हैं। किसी समय अहीर जाति हरियाणा, दिल्ली, बिहार, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान से लेकर गुजरात और महाराष्ट्र तक फैली हुई थी। किंतु वर्तमान हरियाणा, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उसका पूरा आधिपत्य और संपूर्ण वर्चस्व रहा। अहीरों का बाहुल्य होने के कारण ही इस क्षेत्र को ‘अहिराणा’ कहा जाने लगा। (जैसे राजपूतों के कारण राजपुताना, मराठों के कारण मराठवाड़ा और भीलों के कारण भीलवाड़ा कहा जाता है।) बाद‌ में, हरियाणवी बोली की उदासीन अक्षरों के लोप की प्रकृति और प्रवृत्ति के चलते, अखाड़ा-खाड़ा, अहीर-हीर, उतारणा-तारणा, उठाणा-ठाणा और स्थाण-ठाण की तर्ज पर, ‘अहिराणा’ से ‘हिराणा’ और फिर ‘हरयाणा’ या ‘हरियाणा’ हो गया। ‘अहिराणा’ शब्द का अर्थ है- ‘अहीरों का क्षेत्र’। इसे ‘अहीरवाल’ का पर्यायवाची माना जा सकता है।

        डॉ. ‘मानव’ ने कहा कि एक अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य से भी मेरे मत की पुष्टि होती है। आज भी महाराष्ट्र के खानदेश, जिसे कभी हीरदेश भी कहा जाता था और जिसमें महाराष्ट्र के मालेगांव, नंदुरबार और धुले जिलों के अतिरिक्त नासिक जिले के धरनी, कलवण, सटाणा और बागलान तथा औरंगाबाद जिले के देवला क्षेत्र, गुजरात के सूरत और व्यारा तथा मध्यप्रदेश के अंबा और वरला क्षेत्र शामिल हैं, जहांँ आज भी ‘अहिराणी’ बोली, बोली जाती है। देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली और बीस-बाईस लाख लोगों द्वारा बोली जाने वाली ‘अहिराणी’ का अर्थ है- ‘अहीरों की बोली’। इससे स्पष्ट है कि ‘अहिराणा’ और ‘अहिराणी’ में सीधा संबंध और पूरी समानता है। 

        अंत में निष्कर्ष प्रस्तुत करते हुए डॉ. ‘मानव’ कहते हैं कि ‘हरयाणा’ अथवा ‘हरियाणा’ शब्द की व्युत्पत्ति ‘हरयान’ या ‘हरियान’ से नहीं, बल्कि ‘अहिराणा’ शब्द से हुई है। निश्चय ही, डॉ. ‘मानव’ का यह मत पूर्णतया तथ्यपरक, तर्कसंगत और प्रामाणिक है।

*प्रस्तुति : डॉ. सत्यवान सौरभ, हिसार (हरियाणा)*

– डॉo सत्यवान सौरभ,

कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट,

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