अहंकार मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन

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गुरु नानक देव की जयंती पर

                      बाल मुकुन्द ओझा

हमारे साधु  संतों ने सदा सर्वदा समाज को सद्भाव, प्रेम और भलाई का मार्ग दिखाया था।  इसी परम्परा का निर्वहन करते हुए गुरु नानक देव ने समाज को झूठ, प्रपंच और अहंकार को त्याग कर सामाजिक एकता और भाईचारे का पाठ पढ़ाया था। आज समाज को जिस प्रकार के आडम्बर का सामना करना पढ़ रहा है वह निश्चय ही दुखद और चिंतनीय है। साधु संतों का लिबास ओढ़ कर राक्षसी प्रवृति के लोग अंध विश्वास और आस्था का भ्रम फैलाकर भोले भाले लोगों  को अपने चंगुल में फंसा कर आर्थिक और शारीरिक शोषण और दोहन कर रहे है। ऐसे में हमें ढोंगी साधुओं से सावधान रहकर गुरु नानक देव की शिक्षा और उपदेशों को आत्मसात कर राष्ट्र और समाज की हमारी पुरातन सामाजिक संरचना को मजबूत बनाने की जरूरत है। संत महात्माओं में गुरु नानक देव का नाम इतिहास में  स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। सिख धर्म के संस्थापक  और महान समाज सुधारक गुरु नानक देव का जन्म रावी नदी के किनारे पाकिस्तान के गाँव राय भोई की तलवंडी में कार्तिक पूर्णिमा, संवत् 1527 को हुआ था। अहंकार मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन हर साल  कार्तिक पूर्णिमा के दिन प्रकाश पर्व या गुरुपरब के रूप में मनाई जाती है। यह सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी का जन्मदिवस है। इस साल गुरु नानक देव की 556वीं जयंती  5 नवम्बर को मनाई जा रही है।

सिख समुदाय के लोग इसे बड़ी श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाते हैं। आज के पावन पवित्र  दिन हमें नानक देव के विचारों का गहन मंथन कर आत्मसात करने की जरुरत है। उनके बताये मार्ग पर चलकर हम अपने समाज को शांति और भलाई का रास्ता दिखा सकते है। गुरु नानक जयंती सिखों का सबसे बड़ा त्योहार है। हिंदू धर्म में दीपावली की तरह ही सिख धर्म में गुरु नानक जयंती मनाई जाती है। गुरु नानक देव ने सिख धर्म की स्थापना की थी। सिख समुदाय के लिए लोग इस दिन सुबह प्रभात फेरी निकालते हैं। गुरुद्वारे जाकर मत्था टेकते हैं, वाहे गुरू का जाप करते हैं और भजन कीर्तन करते हैं। गुरु नानक देव के 556 वें प्रकाश पर्व के मौके पर चारों ओर दीप जला कर रोशनी की जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार गुरु नानक ने समाज में बढ़ रही कुरीतियों और बुराइयों को दूर करने का काम किया था। बुराइयों और कुरीतियों को त्याग करके नई राह दिखाई थी।

महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानन्द सहित अनेक महापुरुषों ने कहा था आप अहंकार छोड़ दीजिये, सुखों की अनुभूति होना प्रारम्भ हो जाएगा। धर्मपुस्तक, देवालय और प्रार्थना की कोई आवश्यकता नहीं, यदि हमने अहंकार त्याग दिया है। गुरु नानक देव की शिक्षा का सार भी यही था अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन है। इसलिए अहंकार कभी नहीं करना चाहिए बल्कि विनम्र होकर सेवाभाव से जीवन गुजारना चाहिए। मगर आज हम अपने महापुरुषों के बताये मार्ग पर न चलकर अपने मन और भाव में अहंकार पाले हुए है जो समाज और राष्ट्र को पतन के मार्ग की ओर धकेल रहा है। हमारे  साधु  संतों  ने  सदा  सर्वदा  समाज  को  भलाई  का मार्ग दिखाया था। इसी परम्परा का निर्वहन करते हुए गुरु नानक देव ने समाज को झूठ, प्रपंच और अहंकार को त्याग कर सामाजिक एकता और भाईचारे का पाठ पढ़ाया था।  हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम समाज में प्रेम, भलाई और एक दूसरे के सुख दुःख में भागीदारी देकर गुरु नानक देव जैसे संतों को अपनी सच्ची श्रद्धांजलि देंगे। 

सुख और दुःख पर गुरु नानक देव के विचार बहुत स्पष्ट और अनुकरणीय है। नानक देव का कहना था इस सृष्टि में दुख ही दुख व्याप्त है। कुछ लोग अपने आप को सुखी समझते हैं, लेकिन देखा जाए तो वे भी किसी न किसी दुख से दुखी हैं। गुरु नानक का यह कथन न केवल शाश्वत सत्य अपितु अजर अमर है। आज भी हमारा समाज दुखों के महासागर में गोते खा रहा है। अमीर से गरीब तक समाज का हर तबका किसी न किसी कारण दुखी है।

गुरु नानक देव ने ही इक ओंकार का नारा दिया यानी ईश्वर एक है। ईश्वर सभी जगह मौजूद है। हम सबका पिता वही है इसलिए सबके साथ प्रेमपूर्वक रहना चाहिए। उनका कहना था किसी भी तरह के लोभ को त्याग कर अपने हाथों से मेहनत कर और न्यायोचित तरीकों से धन का अर्जन करना चाहिए। कभी भी किसी का हक नहीं छीनना चाहिए बल्कि मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से जरूरतमंदों की भी मदद करनी चाहिए। धन को जेब तक ही सीमित रखना चाहिए। उसे अपने हृदय में स्थान नहीं बनाने देना चाहिए अन्यथा नुकसान हमारा ही होता है। स्त्री-जाति का आदर करना चाहिए। गुरु नानक देव, स्त्री और पुरुष सभी को बराबर मानते थे। तनाव मुक्त रहकर अपने कर्म को निरंतर करते रहना चाहिए तथा सदैव प्रसन्न रहना चाहिए। संसार को जीतने से पहले स्वयं अपने विकारों और बुराईयों पर विजय पाना अति आवश्यक है। अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन है। इसलिए अहंकार कभी नहीं करना चाहिए बल्कि विनम्र होकर सेवाभाव से जीवन गुजारना चाहिए।

बाल मुकुन्द ओझा

वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार

डी-32, मॉडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर

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