अनुपम मिश्रा: जल संरक्षण के अनन्य साधक

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भारतीय पर्यावरण चिंतन और जल संरक्षण के क्षेत्र में अनुपम मिश्रा का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है। वे केवल एक पर्यावरणविद् ही नहीं, बल्कि परंपरागत जल प्रबंधन व्यवस्था के पुनर्जीवन के प्रेरणास्रोत थे। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन देश की प्राचीन जल संरक्षण परंपराओं को खोजने, उन्हें समाज के समक्ष लाने और तालाबों के महत्व को स्थापित करने में समर्पित कर दिया।
जीवन परिचय
अनुपम मिश्रा का जन्म सन् १९४८ में वर्धा, महाराष्ट्र में हुआ था। उनके पिता प्रसिद्ध साहित्यकार भवानी प्रसाद मिश्र थे, जिनसे उन्हें साहित्य और संवेदनशीलता की विरासत मिली। बचपन से ही उनका परिवेश गांधीवादी विचारधारा से प्रभावित था। उन्होंने अपनी शिक्षा वाराणसी और दिल्ली में पूर्ण की। प्रारंभिक जीवन में वे साहित्य और पत्रकारिता की ओर आकर्षित हुए, किंतु धीरे-धीरे पर्यावरण और जल संरक्षण उनके जीवन का मुख्य ध्येय बन गया।
गांधी शांति प्रतिष्ठान से जुड़ाव ने उनके जीवन को नई दिशा प्रदान की। यहां उन्होंने पर्यावरण पत्रिका के संपादन का दायित्व संभाला और लगभग तीन दशकों तक इस पत्रिका के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का संदेश फैलाया। उनका विवाह हुआ और उनका परिवार भी उनके कार्यों में सहयोगी बना। १९ दिसंबर २०१६ को उनका निधन हो गया, किंतु उनके विचार और कार्य आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करते हैं।
साहित्यिक योगदान
अनुपम मिश्रा केवल कार्यकर्ता ही नहीं, बल्कि उत्कृष्ट लेखक भी थे। उनकी सबसे प्रसिद्ध पुस्तक “आज भी खरे हैं तालाब” भारतीय जल संरक्षण साहित्य में मील का पत्थर मानी जाती है। इस पुस्तक में उन्होंने सरल भाषा में भारत की परंपरागत जल संचयन प्रणालियों का विस्तृत वर्णन किया। पुस्तक में बताया गया है कि कैसे हमारे पूर्वजों ने बिना आधुनिक तकनीक के विशाल तालाब, बावड़ियां और कुएं बनाए।
उनकी दूसरी महत्वपूर्ण कृति “राजस्थान की रजत बूंदें” राजस्थान की पारंपरिक जल संरक्षण प्रणालियों पर केंद्रित है। इस पुस्तक में उन्होंने रेगिस्तानी क्षेत्रों में जल प्रबंधन की अद्भुत तकनीकों का दस्तावेजीकरण किया। उनकी लेखनी सरल, प्रवाहपूर्ण और जनसामान्य की समझ के अनुकूल थी। वे अपनी रचनाओं में तकनीकी जानकारी के साथ सांस्कृतिक और सामाजिक पहलुओं को भी समाहित करते थे।
समाज सेवा और पर्यावरण कार्य
अनुपम मिश्रा का समाज सेवा कार्य अत्यंत व्यापक और प्रेरणादायक था। उन्होंने देश भर में भ्रमण करके पारंपरिक जल प्रबंधन प्रणालियों का गहन अध्ययन किया। वे गांव-गांव जाकर स्थानीय लोगों से मिलते, उनकी जल व्यवस्थाओं को समझते और उन्हें दस्तावेजीकृत करते। उनका मानना था कि भारत की जल समस्या का समाधान आधुनिक तकनीक में नहीं, बल्कि हमारी प्राचीन परंपराओं में छिपा है।
उन्होंने अनेक सामाजिक संगठनों और स्वयंसेवी समूहों के साथ मिलकर तालाब पुनरुद्धार अभियान चलाए। उनके प्रयासों से अनेक सूखे तालाब पुनर्जीवित हुए। वे नीति निर्माताओं, प्रशासकों और आम जनता को समान रूप से जल संरक्षण के प्रति जागरूक करते रहे। उनके व्याख्यान सरल भाषा में होते थे, जिससे हर वर्ग का व्यक्ति उन्हें समझ सकता था।
अनुपम जी ने यह स्थापित किया कि जल प्रबंधन केवल सरकार का कार्य नहीं, बल्कि समुदाय की सामूहिक जिम्मेदारी है। उन्होंने लोगों को बताया कि कैसे छोटे-छोटे प्रयासों से वर्षा जल का संचयन किया जा सकता है। उनका जीवन सादगी और समर्पण का प्रतीक था।
सम्मान और पुरस्कार
अनुपम मिश्रा के असाधारण योगदान को देश और समाज ने विभिन्न सम्मानों से नवाजा। उन्हें जमनालाल बजाज पुरस्कार, इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हुए। किंतु उनके लिए सबसे बड़ा पुरस्कार था समाज में जागरूकता और तालाबों का पुनर्जीवन।
उपसंहार
अनुपम मिश्रा का जीवन प्रेरणा का अक्षय स्रोत है। उन्होंने सिद्ध किया कि एक व्यक्ति अपने दृढ़ संकल्प और निरंतर प्रयासों से समाज में महत्वपूर्ण परिवर्तन ला सकता है। आज जब देश जल संकट से जूझ रहा है, उनके विचार और कार्य पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गए हैं। उनकी स्मृति को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनके बताए मार्ग पर चलते हुए जल संरक्षण को अपने जीवन का अंग बनाएं।(सोनेट)

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