शेख हसीना को मृत्युदंड: दक्षिण एशियाई कूटनीति में भारत की नई चुनौती

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बांग्लादेश के न्यायिक संकट और भारत का कूटनीतिक संतुलन

 शेख हसीना को सुनाई गई मृत्युदंड की सजा के बाद दक्षिण एशियाई राजनीति में उभरते नए समीकरणों का विश्लेषण

बांग्लादेश के विशेष न्यायाधिकरण द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को सुनाई गई मृत्युदंड की सजा ने दक्षिण एशिया की राजनीति को गहरे तक झकझोर दिया है। यह फैसला न केवल बांग्लादेश की लोकतांत्रिक विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगाता है, बल्कि भारत को भी अभूतपूर्व कूटनीतिक दुविधा में डालता है। भारत को हसीना की सुरक्षा, प्रत्यर्पण की मांग, सीमा-सुरक्षा, आर्थिक हितों, और क्षेत्रीय शक्ति-संतुलन के बीच अत्यंत संवेदनशील चालन करना होगा। यह पूरा घटनाक्रम दर्शाता है कि घरेलू राजनीतिक संकट किस प्रकार पड़ोसी देशों के लिए बहुआयामी रणनीतिक चुनौती बन जाता है।

-डॉ. सत्यवान सौरभ

बांग्लादेश की राजनीति में अभूतपूर्व उथल-पुथल के बीच पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश के न्यायाधिकरण द्वारा मृत्युदंड सुनाया जाना केवल एक अदालती फैसला नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशियाई भू-राजनीतिक परिदृश्य को हिला देने वाला ऐतिहासिक घटना-क्रम है। यह सजा उस समय सुनाई गई जब हसीना पहले से ही भारत में राजनीतिक शरण जैसी स्थिति में रह रही थीं और बांग्लादेश में उनकी सरकार के विरोध में विस्तृत जन-आक्रोश तथा हिंसक आंदोलनों की पृष्ठभूमि मौजूद थी। इस फैसले ने बांग्लादेश की लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता, न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता और शासन की स्थिरता को तीव्र विवाद के केंद्र में ला दिया है। लेकिन इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि यह स्थिति भारत को किस प्रकार गहरे कूटनीतिक द्वंद्व में धकेल रही है, जहाँ हर कदम क्षेत्रीय समीकरणों और द्विपक्षीय हितों पर दूरगामी प्रभाव डाल सकता है।

भारत के लिए सबसे पहली चुनौती यह है कि वह इस फैसले पर कैसी आधिकारिक प्रतिक्रिया दर्ज करे। भारत बांग्लादेश का सबसे नजदीकी और सबसे बड़ा साझेदार देश है, जिसके साथ सुरक्षा, व्यापार, ऊर्जा, सीमा-प्रबंधन, कनेक्टिविटी और सांस्कृतिक अन्तःसंबंध जैसे अनेक महत्वपूर्ण क्षेत्र जुड़े हुए हैं। इसलिए भारत किसी भी प्रकार की खुली निंदा या समर्थन का जोखिम उठाने की स्थिति में नहीं है। भारत को लोकतांत्रिक मूल्यों, मानवाधिकार, न्यायिक निष्पक्षता और राजनीतिक स्थिरता के सिद्धांतों को भी साथ में लेकर चलना है, जो उसे क्षेत्रीय नेतृत्व के मानक पर कसते हैं। इसके साथ ही बांग्लादेश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप-नही-करने की नीति भी भारत के लिए अनिवार्य वास्तविकता है। यही कारण है कि भारत के कूटनीतिक वक्तव्यों का स्वर अत्यंत संयत, सावधान और संतुलित रहा है।

भारत के सामने दूसरी बड़ी चुनौती शेख हसीना की सुरक्षा और उनके प्रत्यर्पण की संभावित मांग है। हसीना लंबे समय से भारत में सुरक्षित हैं और बांग्लादेश की नई सत्ता-व्यवस्था व न्यायाधिकरण द्वारा उनका प्रत्यर्पण माँगा जाना लगभग निश्चित है। लेकिन भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि में राजनीतिक अपराध अपवाद का स्पष्ट उल्लेख है, जो भारत को कानूनी आधार देता है कि वह हसीना को बांग्लादेश भेजने से इनकार कर सके। इसके अतिरिक्त, यदि भारत उन्हें प्रतिपक्षीय हिंसा या पक्षपातपूर्ण मुकदमे का शिकार मानता है, तो प्रत्यर्पण देना भारत के मानवाधिकार और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के विरुद्ध होगा। किंतु इससे बांग्लादेश सरकार के साथ तनाव बढ़ सकता है, और भारतीय कूटनीति को इसे अत्यंत सावधानी से संभालने की आवश्यकता है।

भारत को इस स्थिति का तीसरा बड़ा आयाम क्षेत्रीय स्थिरता के संदर्भ में देखना आवश्यक है। भारत और बांग्लादेश लगभग चार हजार किलोमीटर लंबी साझा सीमा साझा करते हैं, जहाँ अशांति फैलने या राजनीतिक हिंसा बढ़ने से सीमा सुरक्षा, सीमा-पार अपराध, अवैध आवागमन, शरणार्थी प्रवाह और कट्टरपंथी समूहों की गतिविधियों में वृद्धि की आशंका है। पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, मिज़ोरम और असम जैसे राज्यों पर इसका सीधा प्रभाव पड़ सकता है। बांग्लादेश की स्थिरता भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी किसी अन्य राष्ट्रीय रणनीति के लिए। इसलिए भारत चाहता है कि बांग्लादेश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया, सामाजिक शांति और प्रभावी शासन जितनी जल्दी बहाल हो सके, उतना बेहतर है।

एक अन्य महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि बांग्लादेश की राजनीति में अस्थिरता से भारत-बांग्लादेश आर्थिक संबंधों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। दोनों देशों के बीच व्यापक व्यापारिक विनिमय, औद्योगिक सहयोग, बिजली और गैस पाइपलाइन परियोजनाएँ, बंदरगाह विकास समझौते, सीमा-पार रेल और सड़क कनेक्टिविटी, और कई आर्थिक गलियारे चल रहे हैं। यदि बांग्लादेश में राजनीतिक संकट लंबा खिंचता है, तो इन परियोजनाओं की गति धीमी पड़ सकती है, निवेश वातावरण प्रभावित हो सकता है और व्यापार बाधित हो सकता है। यह विशेष रूप से उस समय और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है जब क्षेत्रीय शक्तियाँ—विशेषतः चीन—बांग्लादेश में सक्रिय रूप से अपनी उपस्थिति बढ़ा रही हों।

चीन-बांग्लादेश संबंध भारत के लिए लंबे समय से चिंता का विषय रहे हैं। चीन ने बांग्लादेश में बड़े-बड़े बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं, समुद्री समझौतों और सामरिक ठिकानों के माध्यम से अपने प्रभाव का विस्तार किया है। यदि राजनीतिक अस्थिरता के दौरान भारत-बांग्लादेश संबंध कमजोर पड़ते हैं, तो यह चीन को एक बड़ा अवसर प्रदान कर सकता है। इसलिए भारत को ऐसी किसी भी स्थिति से बचना होगा जहाँ उसकी तटस्थता या हसीना के प्रति सहानुभूति को नई बांग्लादेशी सत्ता भारत-विरोधी या अपना-नुकसान समझने लगे। भारत के लिए यह पूर्णतः रणनीतिक चुनौती है: उसे लोकतंत्र और न्यायिक निष्पक्षता का समर्थन भी करना है और अपनी क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा व सामरिक हितों की रक्षा भी।

अमेरिका और पाकिस्तान जैसे देशों की नीतियाँ भी इस घटनाक्रम को और जटिल बनाती हैं। अमेरिका ने कई बार बांग्लादेश में चुनावी पारदर्शिता और मानवाधिकार उल्लंघन पर चिंता जताई है, जबकि पाकिस्तान बांग्लादेश के राजनीतिक उद्देश्यों को भारत-विरोधी दिशा में मोड़ने की कोशिश कर सकता है। भारत इस त्रिकोणीय दबाव के बीच संतुलन साधते हुए एक ऐसी रणनीति अपना रहा है जिसमें वह न तो क्षेत्रीय शक्ति-नीतियों में पीछे हटे और न ही किसी प्रत्यक्ष विवाद में उलझे। भारत का यह संतुलन उसके व्यापक दक्षिण एशिया दृष्टिकोण को भी परिभाषित करता है।

लोग-से-लोग संपर्कों और सांस्कृतिक जुड़ावों पर भी इस घटनाक्रम का असर पड़ सकता है। लाखों बांग्लादेशी भारत में कार्यरत हैं, पढ़ते हैं, आते-जाते हैं और सांस्कृतिक विनिमय करते हैं। यदि बांग्लादेश की नई सत्ता भारत के रुख से असंतुष्ट होती है तो इन लोगों पर दबाव बढ़ सकता है, जो दोनों देशों के सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण को अस्थिर कर सकता है। वहीं भारत में रहने वाले बांग्लादेशी शरणार्थियों को भी अधिक सुरक्षा चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

सार रूप में देखा जाए तो शेख हसीना को सुनाई गई मृत्युदंड की सजा बांग्लादेश के भीतर गहरा राजनीतिक-न्यायिक संकट है, लेकिन इसका प्रभाव केवल वहीं सीमित नहीं रहता; यह पूरे दक्षिण एशिया के कूटनीतिक, आर्थिक, सुरक्षा और सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित करता है। भारत के लिए चुनौती यह है कि वह न केवल अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करे, बल्कि यह भी सुनिश्चित करे कि बांग्लादेश में स्थिरता, लोकतंत्र और न्यायपूर्ण शासन की दिशा में सकारात्मक प्रगति हो। भारत की कूटनीति को धैर्य, सूझबूझ और उच्चतर संवेदनशीलता के साथ आगे बढ़ना होगा।

अंततः, यह घटनाक्रम भारत को यह याद दिलाता है कि पड़ोसी देशों की घरेलू राजनीति कभी अकेली नहीं होती; वह सीमाओं से परे प्रभाव डालती है और शक्ति-संतुलन की नई सिरों पर प्रश्न उठाती है। भारत को ऐसे समय में वही भूमिका निभानी है जिसकी उम्मीद एक जिम्मेदार, लोकतांत्रिक और क्षेत्रीय नेतृत्वकर्ता शक्ति से की जाती है—संवेदनशील लेकिन दृढ़, संतुलित लेकिन सिद्धांतनिष्ठ, और तटस्थ लेकिन मानवीय दृष्टिकोण से समृद्ध।

– डॉo सत्यवान सौरभ,

कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट

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