व्यंग्य , लागूं…जी !!

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पुरुष को पैर छुआने की आदत कम होती है। वह छूने में विश्वास करता है। छुआने में नहीं। जब कोई उसके यदा कदा पैर छूता है तो आशीर्वाद का हाथ सकपका जाता है। अरे, यह क्या? मानो, शरीर में कोई दर्द हो। और किसी ने मरहम लगा दिया।

नज़र घुमाइए। आपने किस किस को आशीर्वाद दिया। अब तो वीडियो का जमाना है। वीडियो बनाइए। और बार बार देखिए। सोचिए। कहां चूक हो गई। पैर छूना और छुआना एक कला है। यह हर किसी को आती नहीं। पुरुष तो इस मामले में अनभिज्ञ हैं। उन्होंने अपने को कभी इसका पात्र ही नहीं समझा। बेटे ने पैर छुए तो

रौब से बोले..’ठीक है। ठीक है। मन लगाकर पढ़ो।”

संकट बहू के साथ आता है। जैसे तैसे एक हाथ धीरे-धीरे उठता है। नज़र पृथ्वी पर। पोजीशन स्टेट। स्टेच्यू की मुद्रा में हाथ। जैसे महादेव ने सिर पर हाथ रख दिया हो।

महिलाएं निपुण हैं। वह पैर छुआती ही नहीं, दबवाती भी है। शगुन लेती भी हैं। दिलवाती भी हैं। बहू जब आहिस्ता-आहिस्ता उनके पैर की “मालिश” करती है तो चंद्रमा उनकी आंखों में उतर जाता है। बहू को भी आनंद मिलता है। वह भी सास के पांव नहीं छोड़ती। ऐसे पांव कोई बार-बार थोड़े मिलते हैं। ठंडी सांसेंsss मन में उमंगsss। तरंगsss। एक बार। दो बार। पूरे पांच बार। या दस बार। “बहू 11 तो कर ले। 10 शुभ नहीं होता।”

पैर छूने की अपनी अलग अलग परम्परा है। हर समाज अपनी रीतियों से छूता है। टांग भले ही खींचो। मगर पैर छूते रहो। आपके यहां कोई आया। बच्चे ने उनके पैर छू लिए। “वाह। कितना प्यारा बच्चा है। संस्कारवान। ऐसे संस्कार देने चाहिए़। “( इसी चक्कर में आज बच्चे दूर से ही चरण स्पर्श का अहसास करते हैं)।

बच्चा बड़ा हुआ। चमचागीरी में बॉस के पैर छूने लगा। बॉस समझ गया, क्यों छू रहा है। बच्चा पॉलिटिक्स में आया। वहां सबके पांव छूने लगा। पता नहीं, कब कौन काम आ जाए। नेता तो नेता हैं। हजारों लोग उनके पांव छूते हैं। किस किस को टिकट दें। लोकतंत्र में इसको चरण वंदना कहते हैं। गणेश परिक्रमा कहते हैं।

पांव पर्व, गर्व, शर्म और धर्म में छुए जाते हैं। जब कोई आशीर्वाद देता है या देती है ..”सौभाग्यवती रहो। खुश रहो। फूलों फ्लो।” तो कश्मीर की वादियों से ठंडी ठंडी हवा चल पड़ती है। पश्चिमी विक्षोभ होने लगता है। जाहिर है। यह हेलो। हाय से अलग है।

सुनो पुरुषों! कुछ महिलाओं से सीखो। कैसे आशीर्वाद दिया जाता है। यह क्या स्टेच्यू बन जाते हो।

और आप बहन जी! “आशीर्वाद ट्रेनिंग सेंटर” खोल लीजिए। खूब चलेगा। चरण-वंदना और पांव छूने की सबको जरूरत है। यहां हर तरह से पांव छूने और आशीर्वाद देने की कला सिखाई जाती है… दरवाजे से ही हाथ उठाते आने की। घुटना छूने की। पैर पड़ाई की रस्म की। धीरेssss धीरे । मीठे-मीठे। पैर दबाने की।

सूर्यकांत

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