बिहार विधानसभा चुनाव: बनते-बिगड़ते राजनीतिक समीकरण

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​बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का बिगुल बज चुका है, और राज्य की राजनीति एक बार फिर रोमांचक मोड़ पर खड़ी है। यह चुनाव केवल सत्ता का हस्तांतरण नहीं, बल्कि जातिगत, सामाजिक और विकासात्मक समीकरणों की एक जटिल प्रयोगशाला है, जहाँ हर दल अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए नए दांव चल रहा है। निर्वाचन आयोग ने 243 सीटों पर दो चरणों में मतदान का फैसला किया है— पहला चरण 6 नवंबर और दूसरा 11 नवंबर को होगा, जबकि वोटों की गिनती 14 नवंबर को की जाएगी। वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल 22 नवंबर 2025 को समाप्त हो रहा है।

​प्रमुख राजनीतिक ध्रुव और चुनावी रण

​बिहार का चुनावी रण मुख्य रूप से दो बड़े गठबंधनों के बीच सिमटा हुआ है: राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और विपक्षी ‘INDIA’ गठबंधन (महागठबंधन)। दोनों ही खेमे में नेतृत्व और सीट बंटवारे को लेकर गहमागहमी है, जिसने चुनावी समीकरणों को और भी दिलचस्प बना दिया है।
​1. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA)
​भाजपा के नेतृत्व वाला NDA, जिसमें जनता दल (यूनाइटेड), हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) जैसी पार्टियाँ शामिल हैं, डबल इंजन सरकार और ‘विकसित बिहार’ के नारे पर केंद्रित है।

​नीतीश कुमार की अग्निपरीक्षा: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो पिछले दो दशकों से राज्य की राजनीति के केंद्र में रहे हैं, के लिए यह चुनाव उनके राजनीतिक करियर का एक महत्वपूर्ण पड़ाव हो सकता है। उन्हें अपनी छवि, महिलाओं (जिनका एक बड़ा वोट बैंक माना जाता है) और अतिपिछड़ा वर्ग (EBC) के वोटरों के भरोसे को बनाए रखना होगा।

​भाजपा का बढ़ता कद: 2020 के चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के बाद भाजपा दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। भाजपा केंद्रीय नेतृत्व की लोकप्रियता और ‘विकसित भारत’ के एजेंडे के सहारे अपनी सीटों को बढ़ाना चाहती है।

​NDA का लक्ष्य: गठबंधन विकास के वादों और मोदी सरकार के जनकल्याणकारी योजनाओं के सहारे जातीय समीकरणों से इतर एक नया चुनावी नैरेटिव सेट करने की कोशिश में है।

​2. ‘INDIA’ गठबंधन (महागठबंधन)
​राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेतृत्व वाला महागठबंधन, जिसमें कांग्रेस, वाम दल (CPI-ML, CPI, CPI-M) और विकासशील इंसान पार्टी (VIP) जैसी पार्टियाँ शामिल हैं, मुख्य रूप से जातिगत गोलबंदी और युवा-रोजगार के मुद्दों पर जोर दे रहा है।

​तेजस्वी यादव का नेतृत्व: युवा नेता तेजस्वी यादव (RJD) ने खुद को रोजगार और सामाजिक न्याय के चेहरे के रूप में पेश किया है। वे लालू यादव के पारंपरिक MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण को ‘MM’ (महिला-युवा) या अन्य सामाजिक वर्गों तक विस्तारित करने की कोशिश में हैं। 2020 में RJD 75 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी, और इस बार तेजस्वी यादव पर इसे आगे ले जाने का दबाव होगा।

​जातीय गणना का प्रभाव: बिहार सरकार द्वारा कराई गई जातीय गणना के आँकड़े जारी होने के बाद, माना जा रहा है कि महागठबंधन पिछड़े और अतिपिछड़े समुदायों को गोलबंद करने का प्रयास करेगा, जिससे जातीय राजनीति एक बार फिर केंद्र में आ गई है।

​निर्णायक समीकरण: जातीय गणित और नए वोट बैंक

​बिहार की राजनीति सदियों से जातिगत समीकरणों पर टिकी रही है, लेकिन हाल के वर्षों में कुछ नए सामाजिक और चुनावी समीकरण भी निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं:
​1. जाति की चिरंतन शक्ति

​यादव और मुस्लिम (MY): यह राजद का पारंपरिक और सबसे मजबूत आधार रहा है।

​अति पिछड़ा वर्ग (EBC) और महादलित: यह वर्ग लंबे समय तक नीतीश कुमार का समर्थक रहा है, लेकिन अब सभी दल इसमें सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं। जातीय गणना के बाद इस वर्ग का महत्व और भी बढ़ गया है।

​सवर्ण वोट बैंक (‘भूराबाल’): मंडल आयोग के बाद बिहार की राजनीति में सवर्णों का वर्चस्व भले ही कम हुआ हो, पर वे अब भी एक महत्वपूर्ण वोट बैंक हैं। ‘भूराबाल’ (भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण, कायस्थ) की गोलबंदी भी ग्रामीण इलाकों में गहरी जड़ें जमाए हुए है।

​2. महिला मतदाता: ‘किंगमेकर’ की भूमिका में
​बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में सबसे बड़ा और निर्णायक परिवर्तन महिला मतदाताओं के रूप में आया है। पिछले चुनावों में महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले अधिक मतदान किया है।

​नीतीश कुमार का जनाधार: नीतीश कुमार को महिलाओं के बीच अच्छा समर्थन मिला है, जिसका श्रेय शराबबंदी और पंचायती राज संस्थाओं में आरक्षण जैसी योजनाओं को जाता है।

​नए दल की रणनीति: अब सभी दल, चाहे NDA हो या महागठबंधन, महिलाओं को ध्यान में रखकर नीतियां और घोषणाएँ बना रहे हैं। महिला वोट बैंक अब सरकार बनाने में ‘किंगमेकर’ की भूमिका निभा सकता है।

​3. छोटे और स्वतंत्र खिलाड़ी
​कुछ छोटे दल और नेता बड़े गठबंधनों के समीकरण को बिगाड़ने की क्षमता रखते हैं।

​मुकेश सहनी (VIP): ‘सन ऑफ मल्लाह’ के नाम से मशहूर सहनी का निषाद समुदाय (मल्लाह समूह) में प्रभाव है, जिनकी आबादी राज्य की कई सीटों पर निर्णायक है। 2020 में NDA में रहे सहनी अब महागठबंधन के साथ हैं।

​पशुपति पारस: रामविलास पासवान के भाई पशुपति पारस पासवान समुदाय के प्रभाव वाले क्षेत्रों में अपने लिए राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं।

​प्रशांत किशोर (जनसुराज): चुनाव रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर की जनसुराज यात्रा और उनके अभियान को ‘एंटी-इनकम्बेंसी’ वोटों को काटने वाला एक संभावित कारक माना जा रहा है, खासकर मुस्लिम और कुर्मी वोटों में।

​चुनाव के मुख्य मुद्दे

​इस चुनाव में जहां एक ओर जातिगत ध्रुवीकरण और आरक्षण जैसे मुद्दे हावी रहेंगे, वहीं दूसरी ओर विकास, रोजगार और प्रशासन पर भी जोर रहेगा।

​रोजगार: तेजस्वी यादव ने इसे एक प्रमुख हथियार बनाया है, जबकि NDA भी सरकारी नौकरियों और विकास परियोजनाओं के माध्यम से युवाओं को साधने की कोशिश करेगा।

​विकास बनाम पहचान की राजनीति: यह चुनाव ‘विकसित भारत’ के नारे के तहत केंद्र की विकास योजनाओं और बिहार की सदियों पुरानी ‘पहचान की राजनीति’ (जाति और धर्म) के बीच एक दिलचस्प जंग होगा।

​बिहार विधानसभा चुनाव 2025 इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह न सिर्फ राज्य का भविष्य तय करेगा, बल्कि देश की राजनीति में क्षेत्रीय दलों की शक्ति और जातीय ध्रुवीकरण के नए आयामों को भी परिभाषित करेगा। परिणाम वही तय करेगा जो जातिगत गणित, सामाजिक न्याय के वादों और विकास की उम्मीदों के बीच सबसे सटीक संतुलन साध पाएगा

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