पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और उनकी देश सेवा

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सादगी के प्रतीक, दृढ़ता के पर्याय: पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और उनकी देश सेवा

​भारत के राजनीतिक क्षितिज पर कुछ ऐसे व्यक्तित्व हुए हैं जिनकी सादगी और कर्तव्यनिष्ठा उनकी सबसे बड़ी पहचान बनी। ऐसे ही एक महान सपूत थे लाल बहादुर शास्त्री, जो भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बने। उनका जीवन एक साधारण व्यक्ति के असाधारण राष्ट्र-प्रेम और देश सेवा की एक अनुपम गाथा है।

​प्रारंभिक जीवन और स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी

​लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। एक गरीब परिवार में जन्मे ‘नन्हे’ (बचपन का नाम) को छोटी उम्र में ही पिता का साया खोना पड़ा। अभावों में पले-बढ़े शास्त्री जी ने विपरीत परिस्थितियों में भी शिक्षा के प्रति अपनी लगन बनाए रखी। वाराणसी के काशी विद्यापीठ से ‘शास्त्री’ की उपाधि प्राप्त करने के बाद, यह उपाधि उनके नाम का स्थायी हिस्सा बन गई।
​महात्मा गांधी के विचारों से गहराई से प्रभावित होकर, किशोरावस्था में ही उन्होंने देश की आजादी की लड़ाई में कूदने का फैसला किया। 1921 में गांधी जी के आह्वान पर उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़कर असहयोग आंदोलन में भाग लिया। इस दौरान उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा और उन्होंने अपने जीवन के लगभग सात वर्ष कारावास में बिताए। स्वतंत्रता संग्राम की इस अग्निपरीक्षा ने उनके व्यक्तित्व को और भी अधिक परिपक्व और दृढ़ बनाया।

​स्वतंत्रता के बाद की प्रशासनिक यात्रा

​आज़ादी के बाद, शास्त्री जी ने एक कुशल प्रशासक के रूप में अपनी योग्यता सिद्ध की। उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के रूप में कार्य करने के बाद, वे उत्तर प्रदेश के पुलिस और परिवहन मंत्री बने। इस दौरान उन्होंने पुलिस को भीड़ नियंत्रण के लिए लाठी चार्ज के बजाय पानी की बौछार (वाटर जेट) का उपयोग करने का निर्देश देकर एक मानवीय पहल की। परिवहन मंत्री के रूप में, उन्होंने राज्य सड़क परिवहन सेवा का राष्ट्रीयकरण किया और महिलाओं को बस कंडक्टर के रूप में नियुक्त करने जैसा प्रगतिशील कदम उठाया।
​1951 में वे केंद्र की राजनीति में आए और केंद्रीय मंत्रिमंडल में रेलवे मंत्री, परिवहन और संचार मंत्री, वाणिज्य और उद्योग मंत्री, और गृह मंत्री जैसे कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे। रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उनका रेल मंत्री के पद से इस्तीफा देना उनकी उच्च नैतिक मूल्यों और ईमानदारी का प्रमाण है, जिसने भारतीय राजनीति में शुचिता का एक नया मानदंड स्थापित किया। गृह मंत्री के रूप में, उन्होंने भ्रष्टाचार से निपटने के लिए पहली औपचारिक समिति (संथानम समिति) की स्थापना करके प्रशासन में पारदर्शिता लाने का प्रयास किया।

​प्रधानमंत्री के रूप में संक्षिप्त किन्तु शानदार कार्यकाल

​पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद,नौ जून 1964 को लाल बहादुर शास्त्री ने भारत के दूसरे प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। हालांकि उनका कार्यकाल केवल 18 महीने का था, लेकिन यह चुनौतियाँ और असाधारण नेतृत्व की मिसाल से भरा रहा।
​1965 का भारत-पाकिस्तान युद्ध और “जय जवान, जय किसान”
​उनके प्रधानमंत्रित्व काल की सबसे बड़ी परीक्षा 1965 में आई, जब पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया। एक शांत और विनम्र दिखने वाले नेता ने इस दौरान अभूतपूर्व दृढ़ता और साहस का परिचय दिया। देश में गंभीर खाद्य संकट और युद्ध के खतरे के बीच, उन्होंने ‘जय जवान, जय किसान’ का ऐतिहासिक नारा दिया। यह नारा देश के सैनिकों के पराक्रम और किसानों की मेहनत को एक सूत्र में पिरोकर राष्ट्र की दो सबसे महत्वपूर्ण ताकतों का सम्मान था।
​उनके नेतृत्व में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को निर्णायक जवाब दिया और युद्ध में विजय हासिल की। इस दौरान उन्होंने देशवासियों से हफ्ते में एक दिन (सोमवार की शाम) उपवास रखने का आग्रह किया, ताकि बचे हुए अनाज को खाद्य संकट से जूझ रहे लोगों तक पहुँचाया जा सके। उनके इस आह्वान को पूरे देश ने सहर्ष स्वीकार किया, जो जनता और उनके नेता के बीच अटूट विश्वास को दर्शाता है।
​कृषि और आर्थिक सुधारों की नींव
​शास्त्री जी ने भारत को आत्म-निर्भर बनाने पर ज़ोर दिया। उन्होंने कृषि क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया, जो नेहरू के कार्यकाल में कुछ हद तक उपेक्षित रहा था। उन्होंने हरित क्रांति की नींव रखी, वैज्ञानिक खेती, उच्च उपज वाले बीज और बेहतर सिंचाई सुविधाओं को बढ़ावा दिया।
​इसके अतिरिक्त, उन्होंने भारत को दुनिया के सबसे बड़े दुग्ध उत्पादक देशों में से एक बनाने के उद्देश्य से श्वेत क्रांति के विचार को भी आत्मसात किया। 1965 में उन्होंने राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) की स्थापना की, जिसने आगे चलकर भारत की दुग्ध उत्पादन क्षमता को बदल दिया।

​ताशकंद समझौता और दुखद अंत

​10 जनवरी 1966 को, उन्होंने पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ शांति समझौता करने के लिए ताशकंद (तत्कालीन सोवियत संघ) की यात्रा की। इस समझौते पर हस्ताक्षर करके उन्होंने युद्ध की समाप्ति की घोषणा की, जिसके एक दिन बाद ही, 11 जनवरी 1966 को, रहस्यमय परिस्थितियों में उनका निधन हो गया।

​विरासत और सम्मान

​लाल बहादुर शास्त्री का जीवन सादगी, ईमानदारी और दृढ़ संकल्प की एक अमर कहानी है। वे एक ऐसे नेता थे जिन्होंने कभी अपने पद का दुरुपयोग नहीं किया और हमेशा आम आदमी की तरह जीवन जिया। उनकी ईमानदारी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री रहते हुए भी उनके पास एक साधारण कार खरीदने के लिए कर्ज लेना पड़ा था।
​उनकी सेवाओं के लिए, उन्हें 1966 में मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। ‘जय जवान, जय किसान’ का उनका नारा आज भी भारत की राष्ट्रीय भावना और आत्म-निर्भरता की प्रेरणा बना हुआ है। लाल बहादुर शास्त्री भारतीय राजनीति में एक ऐसे ‘छोटे कद के बड़े नेता’ के रूप में हमेशा याद किए जाएंगे, जिन्होंने अपने थोड़े से कार्यकाल में भी देश को विपरीत परिस्थितियों में भी एक नई दिशा और आत्मविश्वास प्रदान किया।

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