भारत माँ के वीर सपूत: शहीद-ए-आज़म सरदार भगत सिंह

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सरदार भगत सिंह का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक ऐसे ज्वलंत सितारे के रूप में दर्ज है, जिसने अपनी अल्पायु में ही देश की आज़ादी के लिए सर्वस्व न्योछावर कर दिया। वह सिर्फ एक क्रांतिकारी नहीं थे, बल्कि एक महान विचारक, लेखक और समाजवादी थे, जिनकी दृष्टि केवल राजनीतिक स्वतंत्रता तक सीमित नहीं थी, बल्कि वे एक शोषण मुक्त, समतावादी समाज की स्थापना का सपना देखते थे। भगत सिंह का जीवन, बलिदान और विचार आज भी भारत के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं।

​भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर, 1907 को पंजाब के लायलपुर जिले (वर्तमान पाकिस्तान) के बंगा गाँव में एक देशभक्त सिख परिवार में हुआ था। उनके पिता सरदार किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह जैसे परिवार के सदस्य पहले से ही स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय थे, जिसका गहरा प्रभाव बालक भगत सिंह पर पड़ा। मात्र 12 वर्ष की आयु में, 13 अप्रैल, 1919 को हुए जलियाँवाला बाग नरसंहार ने उनके कोमल मन पर अमिट छाप छोड़ी और उन्हें ब्रिटिश शासन के अत्याचारों के विरुद्ध लड़ने के लिए प्रेरित किया। इस घटना ने उन्हें यह विश्वास दिलाया कि देश को आज़ाद कराने के लिए अहिंसक आंदोलनों के साथ-साथ सशक्त प्रतिरोध भी आवश्यक है।
​लाहौर के नेशनल कॉलेज में अपनी पढ़ाई के दौरान, उन्हें क्रांतिकारी विचारों के अध्ययन का मौका मिला। उन्होंने यूरोप और रूस की क्रांतियों का गहन अध्ययन किया, जिससे उनके विचार और भी परिपक्व हुए।

​क्रांतिकारी गतिविधियाँ और संगठन

​भगत सिंह ने अपनी युवावस्था में ही क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू कर दिया था। 1926 में उन्होंने ‘नौजवान भारत सभा’ की स्थापना की, जिसका उद्देश्य युवाओं को संगठित करना और उनमें देशभक्ति तथा क्रांतिकारी विचारों का संचार करना था।
​वह ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ (HRA) से जुड़े, जिसे बाद में उनके और उनके साथियों के सुझाव पर ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ (HSRA) का नाम दिया गया। यह नाम परिवर्तन उनकी समाजवादी विचारधारा को दर्शाता था, जिसका लक्ष्य केवल राजनीतिक आज़ादी नहीं, बल्कि समाजवादी राज्य की स्थापना करना था।
​सांडर्स हत्याकांड (1928)
​साइमन कमीशन के विरोध में प्रदर्शन के दौरान, वृद्ध राष्ट्रवादी नेता लाला लाजपत राय पर हुए घातक लाठीचार्ज के कारण उनकी मृत्यु हो गई। भगत सिंह और उनके साथियों ने इस अपमान का बदला लेने का संकल्प लिया। उन्होंने पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट को मारने की योजना बनाई, लेकिन गलती से उन्होंने सहायक पुलिस अधीक्षक जे.पी. सांडर्स को गोली मार दी। इस घटना ने उन्हें ब्रिटिश सरकार की नज़र में सबसे वांछित क्रांतिकारी बना दिया।
​केंद्रीय विधानसभा में बम फेंकना (1929)
​भगत सिंह का सबसे प्रसिद्ध कार्य आठ अप्रैल, 1929 को उनके सहयोगी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर दिल्ली की केंद्रीय विधानसभा में बम फेंकना था। यह कार्य किसी को नुकसान पहुँचाने के इरादे से नहीं किया गया था; बम केवल ध्वनि उत्पन्न करने वाले थे। उनका उद्देश्य बहरी ब्रिटिश सरकार को अपनी आवाज़ सुनाना और जनता का ध्यान दमनकारी ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ और ‘ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल’ की ओर आकर्षित करना था। बम फेंकने के बाद, उन्होंने भागने के बजाय अपनी गिरफ्तारी दी और “इंकलाब जिंदाबाद” और “साम्राज्यवाद मुर्दाबाद” के नारे लगाए। इस कार्य ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर एक नायक बना दिया।

​जेल जीवन और वैचारिक विरासत

​जेल में रहते हुए भी भगत सिंह की क्रांतिकारी भावना कम नहीं हुई। उन्होंने और उनके साथियों ने भारतीय और ब्रिटिश कैदियों के साथ होने वाले भेदभावपूर्ण व्यवहार के खिलाफ लंबी भूख हड़ताल की। इस हड़ताल ने पूरे देश में व्यापक सहानुभूति और समर्थन हासिल किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी।
​जेल में उन्होंने लेखन कार्य जारी रखा और अपने क्रांतिकारी विचारों को व्यक्त किया। उनकी प्रसिद्ध रचना ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’ उनके तार्किक, वैज्ञानिक और नास्तिक विचारों को दर्शाती है। उनके लेखन और पत्रों ने उनकी गहन वैचारिक समझ, समाजवाद के प्रति उनकी आस्था और रूढ़िवादी मान्यताओं के प्रति उनके विरोध को उजागर किया।

​शहादत और अमरत्व

​सांडर्स हत्याकांड के आरोप में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी की सज़ा सुनाई गई। 23 मार्च, 1931 को, मात्र 23 वर्ष की आयु में, उन्हें लाहौर जेल में फाँसी दे दी गई। फाँसी के फंदे को चूमने से पहले तक, वे हँसते रहे और क्रांति के गीत गाते रहे।
​भगत सिंह की शहादत ने भारतीय युवाओं में आज़ादी का ऐसा ज़ज़्बा भरा, जिसने आंदोलन की गति को तेज़ कर दिया। वह एक प्रेरणास्रोत बन गए, जिन्होंने यह सिखाया कि देश के लिए आत्म-बलिदान से बड़ा कोई धर्म नहीं होता। उनकी विचारधारा और साहस ने पीढ़ियों को प्रेरित किया है। भारत माँ का यह वीर सपूत आज भी ‘शहीद-ए-आज़म’ के रूप में हर भारतीय के दिल में अमर है, जिनके नारे “इंकलाब जिंदाबाद” ने स्वतंत्रता संग्राम का जयघोष बन गए।
​यह वीडियो सरदार भगत सिंह के जीवन और उनकी क्रांति के बारे में जानकारी प्रदान करता है:

सेविका समिति से शताब्दी तक की यात्रा”

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— डॉ प्रियंका सौरभ

भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) एक महत्त्वपूर्ण संगठन के रूप में स्थापित है। 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा स्थापित यह संस्था मूलतः पुरुष स्वयं सेवक के लिए बनी थी। इसकी शाखाओं, अनुशासन और विचारधारा ने धीरे-धीरे भारतीय राजनीति और समाज पर गहरा असर डाला। परन्तु जब हम महिलाओं की भूमिका की ओर देखते हैं, तो तस्वीर कुछ अलग मिलती है। आरएसएस के समानान्तर 1936 में जन्मी “राष्ट्र सेविका समिति” ने ही स्त्रियों के लिए रास्ता खोला। आज जब संघ अपनी शताब्दी मना रहा है, तब इस यात्रा पर नज़र डालना ज़रूरी है कि स्त्रियों की भागीदारी कहाँ से शुरू हुई और 2025 तक वह किस मुकाम तक पहुँची।

शुरुआती दौर: 1925 से 1936

संघ की स्थापना 1925 में नागपुर में हुई। यह संगठन अनुशासन, परेड, शाखा और राष्ट्रवाद पर आधारित था। लेकिन इसकी संरचना पुरुष प्रधान रही। हेडगेवार स्वयं मानते थे कि स्त्रियों को अलग मंच चाहिए, क्योंकि उस समय के सामाजिक परिवेश में स्त्रियों का सीधे पुरुष शाखाओं में आना सहज नहीं माना जाता था। इसी पृष्ठभूमि में 1936 में लक्ष्मीबाई केलकर ने विजयादशमी के दिन वर्धा में “राष्ट्र सेविका समिति” की स्थापना की। हेडगेवार ने भी इस पहल का स्वागत किया और सुझाव दिया कि महिलाएँ अपनी संस्था चलाएँ, ताकि वे अपनी शक्ति, संस्कृति और नेतृत्व को स्वतंत्र रूप से विकसित कर सकें। इस तरह महिलाओं की भागीदारी औपचारिक रूप से शुरू हुई।

सेविका समिति की स्थापना और शुरुआती संघर्ष

1939 में पहली बार समिति ने प्रशिक्षण वर्ग आयोजित किया। धीरे-धीरे अलग-अलग प्रांतों में इसकी शाखाएँ बनने लगीं। समिति का उद्देश्य केवल राष्ट्रवादी विचार फैलाना नहीं था, बल्कि स्त्रियों में ‘मातृत्व, कर्तृत्व और नेतृत्व’ (मातृत्व, कर्र्तृत्व, नेत्रृत्व) जैसे गुणों का विकास करना भी था। इसमें शारीरिक प्रशिक्षण, योग, गीत, खेल, अनुशासन और समाज सेवा शामिल किए गए। आज़ादी के आंदोलन में भी समिति की महिलाओं ने परोक्ष रूप से भूमिका निभाई। परन्तु उनकी गतिविधियाँ मुख्यतः सांस्कृतिक और सामाजिक क्षेत्रों तक सीमित रहीं।

1940 से 1970 का दशक: विस्तार की ओर

स्वतंत्रता के बाद के दशकों में समिति का नेटवर्क बढ़ा। लक्ष्मीबाई केलकर की मृत्यु (1978) तक संगठन कई राज्यों में फैल चुका था। उनके बाद सरस्वती आपटे प्रमुख संचालिका बनीं। इस समय तक शाखाओं की संख्या हज़ारों में पहुँच गई थी। समिति का जोर महिला शिक्षा, संस्कार, और सेवा परियोजनाओं पर रहा। आपातकाल (1975–77) में समिति से जुड़ी महिलाओं ने विरोध प्रदर्शनों में भी भाग लिया। इस दौर ने उन्हें राजनीतिक रूप से अधिक सचेत और सक्रिय बनाया।

1980–2000: आधुनिकता और परम्परा का संगम

90 के दशक में जब भारतीय राजनीति में भाजपा और संघ परिवार का प्रभाव बढ़ने लगा, तो महिलाओं की भागीदारी भी चर्चा में आने लगी। समिति ने इस समय शहरी और पेशेवर महिलाओं तक पहुँच बनाने की कोशिश की। महिला शिक्षिकाएँ, चिकित्सक और नौकरीपेशा स्त्रियाँ समिति के कार्यक्रमों से जुड़ने लगीं। 1994 में उषाताई चाटे और 2006 में प्रमिलाताई मेढे प्रखर नेतृत्व के रूप में सामने आईं। इन नेताओं ने महिला शाखाओं को आधुनिक मुद्दों—जैसे कामकाजी महिलाओं की चुनौतियाँ, शिक्षा, स्वास्थ्य और परिवार में संतुलन—से जोड़ा।

2012 से आगे: शांथक्का का नेतृत्व

2012 में वेंकट्रामा शांता कुमारी, जिन्हें लोकप्रिय रूप से “शांथक्का” कहा जाता है, राष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख संचालिका बनीं। उनका जन्म 1952 में हुआ और वे लंबे समय से संघ परिवार के कार्य में सक्रिय थीं। उनके नेतृत्व में समिति ने अपना विस्तार और तेज़ किया। आज समिति के पास चार से पाँच हज़ार शाखाएँ हैं, जो लगभग 800 से अधिक जिलों में फैली हुई हैं। यद्यपि सटीक आँकड़े संगठन सार्वजनिक नहीं करता, लेकिन अनुमान है कि लाखों महिलाएँ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इससे जुड़ी हुई हैं। समिति शिक्षा, स्वास्थ्य, सेवा, छात्रावास और महिला सशक्तिकरण परियोजनाएँ चला रही है। शहरी महानगरों में भी इसकी शाखाएँ सक्रिय हो रही हैं।

संघ और महिला प्रश्न

संघ के भीतर महिलाओं को औपचारिक सदस्यता या नेतृत्व स्थान नहीं दिया गया है। आरएसएस की शाखाएँ केवल पुरुषों के लिए ही हैं। महिलाएँ केवल समिति के माध्यम से संघ के विचारधारा संसार का हिस्सा बनती हैं। आलोचकों का कहना है कि यह व्यवस्था महिलाओं को मुख्यधारा से बाहर रखती है। वे पुरुषों के बराबर निर्णयकारी पदों पर नहीं पहुँच पातीं। परन्तु समर्थकों का मत है कि अलग संगठन होने से महिलाएँ स्वतंत्र रूप से नेतृत्व और गतिविधियाँ विकसित कर पाती हैं। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कई बार कहा है कि महिलाओं की भागीदारी “प्राकृतिक रूप से” बढ़ रही है। परन्तु अब भी नेतृत्व संरचना में असमानता साफ दिखाई देती है।

वर्तमान स्थिति (2025)

संघ अपनी शताब्दी मना रहा है। उसके लगभग 83,000 शाखाएँ देशभर में सक्रिय बताई जाती हैं। वहीं राष्ट्र सेविका समिति की शाखाएँ भी लगातार बढ़ रही हैं। समिति अब गाँवों के साथ-साथ महानगरों में भी काम कर रही है। इसके प्रशिक्षण वर्गों में स्कूली छात्राओं से लेकर पेशेवर महिलाएँ तक भाग ले रही हैं। 2025 में समिति का चेहरा परम्परा और आधुनिकता का मिश्रण है—जहाँ एक ओर मातृत्व और परिवार आधारित मूल्य हैं, वहीं दूसरी ओर समाज सेवा और महिला नेतृत्व के अवसर भी हैं। समिति ने लाखों महिलाओं को संगठित कर आत्मविश्वास और सामूहिकता दी। शिक्षा, सेवा और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से समाज पर ठोस असर पड़ा। महिलाओं को नेतृत्व और प्रबंधन का अवसर मिला। महिलाएँ संघ की मुख्य धारा (आरएसएस) में निर्णयकारी भूमिकाओं से बाहर रहीं। संगठन का वैचारिक ढाँचा महिलाओं को परम्परागत भूमिकाओं तक सीमित करता है। आधुनिक नारीवादी विमर्श से समिति का दृष्टिकोण टकराता है, क्योंकि वह स्वतंत्रता और समानता की बजाय मातृत्व और संस्कृति पर ज़ोर देती है।

सितंबर 2025 में आयोजित व्याख्यानमाला के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि आज महिलाओं की भागीदारी समाज और राष्ट्र निर्माण में पहले से कहीं अधिक आवश्यक है। व्याख्यानमाला में यह भी कहा गया कि 2025 का भारत उस मुकाम पर खड़ा है, जहाँ महिला नेतृत्व केवल “पूरक” नहीं बल्कि “निर्णायक” भूमिका निभा रहा है। वक्ताओं ने यह भी जोड़ा कि आधुनिक शिक्षा, तकनीक और आर्थिक आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में महिलाएँ जिस तरह से आगे बढ़ रही हैं, संघ परिवार को भी उसी अनुरूप अपनी संरचना और कार्यपद्धति को और खुला बनाना होगा। व्याख्यानमाला में अन्य वरिष्ठ कार्यकर्ताओं और विचारकों ने भी महिला नेतृत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि कैसे राष्ट्र सेविका समिति की महिलाएँ दशकों से शिक्षा, संस्कृति और सामाजिक सुधारों के क्षेत्र में काम कर रही हैं। यह तर्क दिया गया कि यदि 1925 में संघ की नींव रखी गई थी, तो उसी दशक में महिलाओं के लिए समानांतर संगठन की स्थापना इस बात का प्रमाण है कि महिलाओं की उपस्थिति को शुरुआत से ही महत्वपूर्ण माना गया।

1925 से 2025 की यात्रा दिखाती है कि संघ की विचारधारा से प्रेरित महिलाओं ने अपना अलग संगठन खड़ा कर लिया और उसे राष्ट्रीय स्तर तक फैलाया। लक्ष्मीबाई केलकर से लेकर शांथक्का तक यह सिलसिला निरंतर चला है। आज जब भारतीय समाज में महिलाएँ राजनीति, शिक्षा, व्यवसाय और सेना तक में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं, तब यह सवाल और महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि—क्या भविष्य में महिलाएँ सीधे संघ की शाखाओं और नेतृत्व में भी शामिल होंगी, या वे हमेशा समानान्तर संगठन तक ही सीमित रहेंगी?संघ की शताब्दी महिलाओं की इस यात्रा का पड़ाव भी है—एक यात्रा जिसमें परम्परा, अ नुशासन, सेवा और नेतृत्व का संगम है, लेकिन समानता और सहभागिता की चुनौती अब भी शेष है।

-प्रियंका सौरभ

कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,

ख्वाजा की पूरी दरगाह रहेगी अब कैमरे की नजर में

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अजमेर जिला सिविल न्यायाधीश मनमोहन चंदेल ने अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह में सभी वांछित स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगाने का आदेश दिया है। आदेश में ये भी कहा है कि जो लोग इसका विरोध कर रहे हो उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्यवाही अमल में लायी जाए ।

पिछले दिनों केंद्र सरकार के अधीन काम करने वाली दरगाह कमेटी ने प्रयास किए थे कि दरगाह के अंदर जायरीन की भीड़ वाले सभी स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाए, लेकिन तब दरगाह के खादिमों ने आस्ताना सहित कई स्थानों पर कैमरे लगाने का विरोध किया। लेकिन अब खादिमों के आपसी विवाद के एक मामले में सिविल न्यायाधीश मनमोहन चंदेल ने दरगाह के अंदर जरूरी स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगाने के आदेश दिए हैं।सिविल न्यायाधीश मनमोहन चंदेल के इस आदेश की सराहना की जा रही है।अदालत ने यह भी कहा है कि यदि कोई व्यक्ति कैमरे लगाने का विरोध करता है तो उसके विरुद्ध सख्त कानूनी कार्यवाही की जाए।

ज्ञातव्य है कि दरगाह के खादिम शेखजादा नदीम अहमद चिश्ती, खलिक अहमद चिश्ती, नईम अहमद चिश्ती और शेख असरार अहमद चिश्ती ने एक वाद अपने साथी खादिम सैयद शब्बीर अली चिश्ती के खिलाफ दायर किया। इस वाद में शब्बीर अली पर उनके हकों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया। इस प्रकरण में जब सिविल न्यायाधीश मनमोहन चंदेल ने पुलिस से दरगाह के अंदर का रिकॉर्ड तलब किया तो पुलिस ने असमर्थता प्रकट की।पुलिस का कहना था कि दरगाह के अंदर खास कर आस्ताना (मजार शरीफ) का कोई रिकॉर्ड नहीं रहता। यह खादिमों का आपसी मामला है। इसी प्रकरण में दरगाह कमेटी के नाजिम मोहम्मद बिलाल खान ने एक प्रार्थना पत्र में कहा कि दरगाह कमेटी सभी वांछित स्थानों पर सीसीटीवी लगाना चाहती है, लेकिन कुछ लोगों के विरोध के कारण कैमरे नहीं लग पा रहे हैं।

हालांकि शेखजादा नदीम अहमद चिश्ती ने दरगाह के अंदर कैमरे लगाने की मांग नहीं की थी, लेकिन कोर्ट ने मामले की गंभीरता और सीसीटीवी की उपयोगिता को देखते हुए दरगाह के अंदर वांछित स्थानों पर कैमरे लगाने का आदेश दिया। दरगाह में मौजूदा समय में करीब 75 प्रतिशत स्थानों पर कैमरे हैं, लेकिन अस्थाना सहित 25 प्रतिशत स्थान ऐसे हैं, जहां खादिम समुदाय सीसीटीवी लगाने का विरोध करता है। अदालत के इस फैसले से दरगाह कमेटी भी सीसीटीवी लगाने में मदद मिलेगी।

यहां यह उल्लेखनीय है कि सिविल न्यायाधीश मनमोहन चंदेल ने ही गत वर्ष ख्वाजा साहब की दरगाह में शिव मंदिर होने वाली याचिका को भी मंजूर किया था। इस याचिका पर केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय, पुरातत्व विभाग आदि को नोटिस जारी किए गए हैं।

ग्रीन पटाखों के निर्माण को मंजूरी

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सर्वोच्च न्यायालय ने ग्रीन पटाखों के निर्माण को मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में इसकी बिक्री पर प्रतिबंध जारी रखा है। कोर्ट ने यह भी कहा कि सिर्फ वही निर्माता पटाखे बनाएंगे जिनके पास ग्रीन पटाखे का सर्टिफिकेट होगा। कोर्ट ने यह भाी साफ कहा कि वह पूरे देश में पटाखों की बिक्री और निर्माण पर पूरी तरह से रोक नहीं लगा सकता।

दीपावाली से पहले सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए दिल्ली-एनसीआर में सभी तरह के पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पटाखा निर्माताओं को ग्रीन पटाखे बनाने की इजाजत दे दी है। आदेश में कोर्ट ने साफ कहा कि अगला आदेश आने तक ये पटाखे दिल्ली-एनसीआर में नहीं बेचे जाएंगे। कोर्ट ने शर्त रखी है कि सिर्फ वही निर्माता पटाखे बनाएंगे जिनके पास ग्रीन पटाखे का सर्टिफिकेट होगा। यह प्रमाणपत्र नीरी (एनईईआरआई) और पेसो (पीईएसओ) जैसी अधिकृत एजेंसियों से ही जारी होना चाहिए।मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह फैसला सुनाया।

न्यायालय ने कहा कि कि पटाखा निर्माताओं को यह भी लिखित वचन देना होगा कि वे दिल्ली-एनसीआर में कोई पटाखा नहीं बेचेंगे। यह आदेश इसलिए दिया गया है क्योंकि इस क्षेत्र में दिवाली के समय प्रदूषण का स्तर बहुत बढ़ जाता है। इस मामले पर अगली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि आगे बिक्री पर क्या कदम उठाए जाएं।

पर्यटन का खजाना है भारत

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May be an image of flower and nature

विश्व पर्यटन दिवस

बाल मुकुंद ओझा
विश्व पर्यटन दिवस हर साल 27 सितंबर को दुनिया भर में मनाया जाता है। पर्यटन दिवस
मनाने का अर्थ है अधिक से अधिक जगह पर घूमने जायें, वहां सुन्दर और मन को मोह लेने
वाले स्थलों का आनंद लें। इन सुन्दर यादों को सहेजकर रखने से बहुत कुछ सीखा जा
सकता है। यह दिवस मनाने का उद्देश्य लोगों में पर्यटन का महत्व जगाने तथा अर्थव्यवस्था
को मजबूती से आगे बढ़ाने के लिए लोगों को जागरूक बनाना है। वर्ष 2025 की थीम पर्यटन
और सतत परिवर्तन रखी गई है। इन पंक्तियों के लेखक ने अपनी योरोप यात्राओं के दौरान
लंदन सहित ब्रिटेन के विभिन्न शहरों के दर्जनों पर्यटन क्षेत्रों का भ्रमण किया। विशेषकर यूके
के पर्यटन स्थलों पर अनुशासन, शांति, साफ़ सफाई और विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी
व्यवस्थाएं बहुत जबरदस्त और मंत्रमुग्ध करने वाली थी। देशी विदेशी पर्यटक बिना सुरक्षा
व्यवस्था भ्रमण करते देखे गए। ब्रिटेन के लोग अपने पर्यटन स्थलों से बहुत प्यार करते है।
वे इन स्थलों को अपनी जान से भी ज्यादा सुरक्षित रखते है।
वर्ल्ड ट्रेवल एंड टूरिज्म काउंसिल की 2024-25 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने दुनिया की
आठवीं सबसे बड़ी टूरिज्म इकॉनमी का दर्जा हासिल किया है। जापान और फ्रांस जैसे
विकसित देशों को पीछे छोड़ते हुए भारत ने 231.6 अरब डॉलर (लगभग 19.4 लाख करोड़
रुपये) की पर्यटन आय के साथ इस सूची में अपना स्थान बनाया है। अनुमान है कि अगले
दशक में भारत चौथे स्थान पर पहुंच सकता है। भारत में जीएसटी सुधार के बाद पर्यटन क्षेत्र
में जबरदस्त उछाल की उम्मीद है। नीति आयोग के ‘विकसित भारत @2047’ दृष्टिकोण पत्र
के अनुसार, भारत का लक्ष्य वर्ष 2047 तक 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना है,
जिसमें प्रति व्यक्ति आय 18,000 डॉलर प्रति वर्ष होगी, जो वर्तमान 3.36 ट्रिलियन डॉलर और
2,392 डॉलर प्रति वर्ष से अधिक है।
भारत में पर्यटन सबसे बड़ा सेवा उद्योग है, जहां इसका राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में 6.23
प्रतिशत और भारत के कुल रोज़गार में 8.78 प्रतिशत योगदान है। यह क्षेत्र जीडीपी और
रोजगार सृजन दोनों में योगदान दे सकता है। 2030 तक हमारी अर्थव्यवस्था में 20 लाख
करोड़ रुपये का भारी योगदान देने की क्षमता रखता है। इस प्रभावशाली वित्तीय निवेश के
अलावा, इसमें 13 से 14 करोड़ नए रोजगार के अवसर पैदा करने की क्षमता है। एक रिपोर्ट्स
के मुताबिक भारतीय आउटबाउंड पर्यटन का बाजार 2024 तक 42 अरब डालर 2025 तक 45

अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा। यह दुनिया का तेजी से विकसित होता बाजार
है जहां 8 करोड़ पासपोर्ट यूजर्स, खासतौर पर मध्यम वर्ग में अच्छी खरीद क्षमता है। भारत
सरकार के मुताबिक देश का पर्यटन क्षेत्र 2024 के मध्य तक महामारी-पूर्व स्तर पर आ
जाएगा और देश के जीडीपी में 2030 तक 250 अरब डॉलर का योगदान देगा।
देश के कण कण में पर्यटन स्थल बिखरे पड़े है। इनमें धार्मिक स्थलों की तरफ लोग अधिक
आकर्षित हुए है। भारत में लगभग 30 लाख धर्मस्थल हैं। देश के बहुत से धार्मिक स्थलों पर
लाखों लोगों का आना जाना लगा रहता है। आवश्यकता इस बात की है कि इन स्थलों पर
सभी प्रकार की सुविधाएं सुलभ कराई जाये ताकि ये पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होकर
रोजगार और अर्थव्यवस्था की धुरी बन सके। अयोध्या में राम लला के मंदिर की प्राण
प्रतिष्ठा के बाद देश में धार्मिक और आध्यात्मिक पर्यटन की ऐतिहासिक शुरुआत हुई है।
पुरी, वाराणसी और तिरुपति जैसे धार्मिक स्थलों के बाद अब अयोध्या नगरी देश के ही नहीं
अपितु दुनिया के बड़े धार्मिक केन्द्र के रूप में विकसित होंगी। इससे हमारे धार्मिक पर्यटन
को बड़ा बढ़ावा मिलेगा।
भारत एक ऐसा देश हैं जहां एक से बढ़कर एक प्राकृतिक परिदृश्य देखने को मिलते हैं। यहां
आकर आप ऐसी घाटियों और गांवों की सैर कर सकते हैं जिसे अब तक ज्यादा एक्सप्लोर
नहीं किया गया है। पर्यटन की दृष्टि से भारत विश्व का एक अजब गजब देश है जहाँ समुद्र
से लेकर जंगल और बर्फ से लेकर रेगिस्तान तक देखने को मिल जायेंगे। हरे-भरे घास के
मैदान और पथरीली जमीन भी आपको यहीं मिल जाएगी। पर्यटन की दृष्टि से भारत में
घूमने लायक कई ऐसी जगहें हैं जो अपनी खूबसूरती से आपका मन मोह लेंगी। देश की शान
ताजमहल, कश्मीर, कन्या कुमारी, गोवा, केरल, जयपुर, दिल्ली, दार्जीलिंग, उत्तराखंड का पहाड़ी क्षेत्र
आदि मंत्रमुग्ध करने वाले स्थल इसी देश में है। इंडिया गेट, हुमायूँ का मकबरा, कुतुब मीनार,
बुलंद दरवाजा, लाल किला आगरा, चारमीनार, गेटवे ऑफ इंडिया, लोटस टैंपल, खजुराहो, साँची,
हम्पी, अजंता की गुफाएं, एलोरा की गुफाएं उदयगिरि गुफाएँ इलौरा आदि देश के पर्यटन क्षेत्र
बरबस आपको अपनी और खिंच लेते है। विविधता और प्राकृतिक सुन्दरता से भारत पर्यटन
के लिए हर किसी की पसंदीदा जगह हैं। देश के पहाड़ी क्षेत्र गर्मियों के रिसॉर्ट्स बने रहते हैं।
इनमें पचमढ़ी, अरकु, गुलमर्ग, श्रीनगर, लद्दाख, दार्जिलिंग, मुन्नार, ऊटी और कोडाइकनाल,
शिलांग, शिमला, कुल्लू, मसूरी, देहरादून नैनीताल, गंगटोक आदि प्रमुख है।

बाल मुकुंद ओझा
डी 32 मॉडल टाउन, जयपुर

सड़क पर कफ़न बुनती सफ़ेद लाइट

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“सड़क हादसों की अनकही कहानी – सफ़ेद हेडलाइट्स का सच”

रात में तेज़ सफ़ेद हेडलाइट्स सिर्फ़ आँखों को नहीं, बल्कि जीवन को भी चौंधिया देती हैं। हर साल हजारों लोग इसके कारण हादसों में मरते हैं। यह केवल व्यक्तिगत त्रासदी नहीं, बल्कि परिवारों की टूटी ज़िंदगी है। समाधान आसान है – पीली हेडलाइट लगाएँ, तेज़ सफ़ेद लाइट से बचें, सरकार नियम बनाए और आम लोग जागरूक हों। जनजन गुप्ता अभियान का संदेश साफ़ है: “सफ़ेद चमक नहीं, पीली दोस्ती चाहिए!” सड़कें सुरक्षित हों, परिवार बचें और रात का सफ़र डर-मुक्त बने।

– डॉ सत्यवान सौरभ

रात का सफ़र हमेशा चुनौतीपूर्ण होता है। अंधेरा, धुंध, बारिश – ये सभी कारक सड़क पर जोखिम बढ़ाते हैं। लेकिन आज एक नया और अनदेखा खतरा हमारी सड़कों पर फैल रहा है – वाहनों की तेज़ सफ़ेद हेडलाइट्स। यह चमक केवल आँखों को चुभती नहीं, बल्कि कई बार सड़क हादसों का कारण बनती है।

भारत में हर साल लगभग डेढ़ लाख लोग सड़क हादसों में अपनी जान गंवाते हैं और लाखों लोग घायल होते हैं। इनमें से बड़ी संख्या रात के समय होती है। सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि इन हादसों में सफ़ेद हेडलाइट्स की तेज़ चमक की बड़ी भूमिका होती है। यह केवल तकनीकी समस्या नहीं है। यह परिवारों की टूटन, बच्चों की बेबसी और मात-पिता की पीड़ा का कारण बनती है।

सफ़ेद हेडलाइट्स की रोशनी पारंपरिक पीली रोशनी की तुलना में कहीं अधिक तेज़ होती है। इंसान की आँखें नीली-सफ़ेद रोशनी के प्रति संवेदनशील होती हैं। जब यह तेज़ रोशनी सीधे सामने से आती है, तो चालक और पैदल यात्री दोनों कुछ सेकंड के लिए अंधे हो जाते हैं। इसी पल में हादसा हो जाता है। बाइक सवार गिर जाते हैं, ट्रक या बस चालक वाहन पर नियंत्रण खो देते हैं और पैदल यात्री जीवन-मृत्यु की स्थिति में फँस जाते हैं। बुजुर्ग और बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं, क्योंकि उनकी आँखें पहले से संवेदनशील होती हैं।

सड़क हादसा केवल व्यक्तिगत त्रासदी नहीं है। यह पूरे परिवार की ज़िंदगी बदल देता है। बच्चे अपने माता-पिता से दूर हो जाते हैं, माता-पिता अपने बच्चों को खो देते हैं। कई परिवार हमेशा के लिए अधूरे हो जाते हैं। हादसों का आर्थिक प्रभाव भी बहुत बड़ा है। सड़क हादसों की वजह से हर साल भारत को GDP का लगभग तीन प्रतिशत नुकसान होता है। यह केवल व्यक्तिगत नुकसान नहीं है; यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी गंभीर खतरा है।

दुनिया के कई विकसित देशों ने इस समस्या को पहले ही समझ लिया था। यूरोप, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में हेडलाइट्स की चमक और रंग पर सख़्त नियम हैं। वहां पीली हेडलाइट्स को प्राथमिकता दी जाती है। यह केवल आँखों के लिए सुरक्षित नहीं है, बल्कि बारिश और धुंध में सड़क भी स्पष्ट दिखाई देती है। भारत में नियम मौजूद हैं, लेकिन उनका पालन ढीला है। वाहन निर्माता गाड़ियों में चमकदार हेडलाइट्स लगाते हैं और आम लोग अक्सर इस खतरे के प्रति जागरूक नहीं होते।

भारत में समस्या को और बढ़ाने वाले कारण हैं – अनियंत्रित आफ्टर-मार्केट फिटिंग, यानी लोग बिना सोचे-समझे LED हेडलाइट्स लगवा लेते हैं; कानून का पालन न होना और सड़क सुरक्षा की अनदेखी; जागरूकता की कमी, जहां अधिकतर लोग नहीं जानते कि उनकी सफ़ेद हेडलाइट दूसरों के लिए खतरा बन सकती है।

इस समस्या का समाधान मुश्किल नहीं है। जरूरत है कि सरकार, वाहन निर्माता और आम लोग मिलकर काम करें। सरकार को हेडलाइट्स की चमक और रंग (कलर टेम्परेचर) पर स्पष्ट मानक तय करने होंगे। 4300K से अधिक कलर टेम्परेचर वाली सफ़ेद हेडलाइट्स पर रोक लगानी चाहिए। सड़क परिवहन विभाग को नियमित जांच और सख़्त कार्रवाई करनी होगी। वाहन निर्माता डिफ़ॉल्ट रूप से सुरक्षित और पीली हेडलाइट्स लगाएँ और ब्राइटनेस के बजाय सुरक्षा को प्राथमिकता दें।

साथ ही, जागरूकता अभियान बहुत जरूरी हैं। जनजन गुप्ता जैसे अभियान राष्ट्रीय स्तर पर फैलाए जाएँ। टीवी, रेडियो और सोशल मीडिया पर “पीली हेडलाइट लगाओ – ज़िंदगी बचाओ” जैसे संदेश व्यापक रूप से साझा किए जाएँ। आम लोग खुद पहल करें, अपनी गाड़ी की हेडलाइट सुरक्षित बनाएं और अपने परिवार व मित्रों को भी जागरूक करें।

जनजन गुप्ता अभियान का संदेश सीधा और असरदार है – “सफ़ेद चमक नहीं, पीली दोस्ती चाहिए।” यह केवल नारा नहीं है, बल्कि एक आंदोलन है। यदि हम सब मिलकर इसे अपनाएँ, तो सड़कें सुरक्षित होंगी, परिवार हादसों से बचेंगे और रात का सफ़र डर-मुक्त होगा।

सड़क सुरक्षा केवल नियमों का पालन करना नहीं है, यह मानव जीवन की रक्षा का सवाल है। सफ़ेद हेडलाइट जैसी छोटी चीज़ भी बड़े पैमाने पर मौत और दर्द का कारण बन सकती है। हर हादसा सिर्फ़ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि पूरे समाज की त्रासदी है।

भारत में यह समस्या अब गंभीर रूप ले चुकी है। हर दिन सड़कों पर तेज़ सफ़ेद लाइट से प्रभावित होकर दुर्घटनाएँ होती हैं। इनमें से कई हादसे जानलेवा होते हैं। बुजुर्ग, बच्चे और पैदल यात्री सबसे कमजोर होते हैं। तेज़ सफ़ेद रोशनी उन्हें अपनी दिशा में निर्णय लेने का समय नहीं देती और हादसा अनिवार्य हो जाता है। कई परिवारों की ज़िंदगी इस वजह से हमेशा के लिए बदल जाती है।

सड़क पर हुई दुर्घटना केवल सड़क हादसा नहीं है, यह सामाजिक त्रासदी है। बच्चे अपने माता-पिता से दूर होते हैं, माता-पिता अपने बच्चों से। कई परिवार कभी फिर पूरी तरह से खुश नहीं हो पाते। इसके अलावा, हादसों के कारण इलाज और रिकवरी पर बहुत खर्च होता है, जिससे परिवार और समाज दोनों प्रभावित होते हैं।

दुनिया में कई देशों ने पहले ही कदम उठाए। यूरोप, जापान और अमेरिका में पीली हेडलाइट्स को प्राथमिकता दी जाती है। तेज़ सफ़ेद हेडलाइट्स पर प्रतिबंध है। भारत में नियम हैं लेकिन उनका पालन कमजोर है। वाहन निर्माता चमकदार हेडलाइट्स को फैशन या मार्केटिंग के लिए बढ़ावा देते हैं, और लोग जागरूक नहीं हैं।

इसका समाधान सरल है। सरकार को नियम बनाकर उनका पालन करना चाहिए। वाहन निर्माता सुरक्षित और पीली हेडलाइट्स लगाएँ। आम लोग खुद कदम उठाएँ और दूसरों को भी जागरूक करें। अभियान जैसे जनजन गुप्ता इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

सड़क सुरक्षा केवल नियमों का पालन नहीं है, यह जिंदगी की रक्षा है। सफ़ेद हेडलाइट्स जैसी छोटी-सी चीज़ कई जानों को खतरे में डाल सकती है। एक पल की तेज़ रोशनी कई परिवारों के लिए हमेशा के अंधकार का कारण बन सकती है। अगर हम सब मिलकर जागरूकता फैलाएँ और सुरक्षित हेडलाइट अपनाएँ, तो सड़कें सुरक्षित होंगी, हादसों से परिवार बचेंगे और रात का सफ़र भयमुक्त होगा।

आज समय है कि हम सब मिलकर आवाज़ उठाएँ, सरकार से नियम सख़्त करवाएँ, वाहन निर्माता अपनी ज़िम्मेदारी समझें और आम लोग जागरूक होकर बदलाव लाएँ। एक पल की चमक अगर जीवन का अंधकार बना सकती है, तो क्यों न उसी पल को जीवन और सुरक्षा की रोशनी में बदल दिया जाए। सड़कें सुरक्षित हों, हादसों से परिवार बचें और रात का सफ़र डर-मुक्त बने – यही हमारा लक्ष्य होना चाहिए।

– डॉ सत्यवान सौरभ

डॉ. प्रभात को लाइफ टाईम अचीवमेंट अवार्ड

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युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (पंजीकृत न्यास) नई दिल्ली की ओर से मौलिक सृजन के प्रोत्साहन एवं हिंदी साहित्य – संवर्धन में उल्लेखनीय योगदान हेतु वर्ष-2025 के शीर्षस्थ सम्मान देश के विभिन्न राज्यों के चयनित आठ साहित्यकारों को दिए जाने की घोषणा की गई है। इनमें कोटा राजस्थान के जाने माने साहित्यकार और सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के सेवानिवृत संयुक्त निदेशक डॉ प्रभात कुमार सिंघल भी शामिल है। यह सम्मान आगामी 2 नवंबर 2025 को दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी ( गीतांजलि सभागार) में आयोजित 12 वें अखिल भारतीय साहित्य महोत्सव एवं सम्मान समारोह में प्रदान किए जाएंगे।
जयपुर के वरिष्ठ पत्रकार बालमुकुंद ओझा के अनुसार युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच के अध्यक्ष रामकिशोर उपाध्याय के मुताबिक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल को स्व. डी.पी.चतुर्वेदी स्मृति लाइफ टाईम अचीवमेंट सम्मान से अलंकृत किया जाएगा। उपाध्याय ने बताया कि पुरस्कार राशि के अतिरिक्त मंच की ओर से सभी पुरस्कार गृहीताओं को सम्मान पत्र ,शाल और प्रतीक चिन्ह प्रदान किए जायेंगे।
उल्लेखनीय है दर्जनों पुस्तकों के रचयिता डॉ सिंघल पिछले 40 वर्षों से साहित्य के क्षेत्र में सक्रीय है। विभिन्न विषयों पर इनके हजारों आलेख और फीचर देशभर के समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए है।

एशिया कप 2025,भारत की लगातार 5वीं जीत, बांग्लादेश को 41 रन से रौंदा ,फाइनल में पहुंचा

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Team India

टीम इंडिया ने सूर्यकुमार यादव की कप्तानी में एशिया कप 2025 में लगातार अपनी 5वीं जीत दर्ज की है। इसके साथ ही टीम इंडिया ने फाइनल के लिए क्वालीफाई भी कर लिया है। भारत ने दुबई  इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम में खेले गए सुपर-4 मुकाबले में बांग्लादेश को 41 रन से धूल चटाकर फाइनल में एट्री की। भारत ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 20 ओवर में छह विकेट खोकर 168 रन बनाए। इसके जवाब में बांग्लादेश की टीम महज 127 रन पर आल आउट हो गई। हालांकि, भारत ने इस टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा कैच (12) छोड़े हैं। वहीं बांग्लादेश की तरफ से सबसे ज्यादा सैफ हसन ने 69 रन सबसे ज्यादा बनाए। 

वहीं 169 रनों का पीछा करने उतरी बांग्लादेश की टीम की शुरुआत अच्छी नहीं रही। पिछले मैच पाकिस्तान के खिलाफ एक भी विकेट ना लेने और सबसे महंगे रहे जसप्रीत बुमराह ने इस पर भारत की पहली सफलता तंजिद हसन के रूप में दिलाई। इसके बाद परवरेज हुसैन इमॉन ने सैफ हसन के साथ दूसरे विकेट के लिए 42 रन जोड़े। सातवें ओवर में कुलदीप यादव ने परवेज हुसैन इमॉन (21) को आउटकर भारत को दूसरी सफलता दिलाई। भारतीय स्पिन गेंदबाजी आक्रमण के आगे बांग्लादेशी बल्लेबाज ढेर नजर आए और एक के बाद अपने विकेट गंवाते चले गए। 10वें ओवर में अक्षर पटेल ने तौहीद ह्रदोय को 7 रन पर आउट किया। 

हां इस दौरान सैफ हसन एक छोर से बांग्लादेश की कमान संभाले हुए थे। शमीम हुसैन बिना खाता खोले आउट हुए, मोहम्मद सैफुद्दीन भी चार रन बनाकर वरुण चक्रवर्ती के शिकार बने। 17वें ओवर में कुलदीप यादव ने रिशाद हुसैन (2) और तंजिम हसन साकिब (0) को आउट किया। 18वें ओवर में बुमराह ने सैफ हसन को आउट कर भारत की जीत पर मुहर लगा दी। 20वें ओवर की तीसरी गेंद पर तिलक वर्मा ने मुस्तफिजुर रहमान (6) को आउटकर बांग्लादेश को 127 के स्कोर पर ढेर पर दिया। वहीं भारत की ओर से कुलदीप यादव ने 3, बुमराह और वरुण चक्रवर्ती ने 2-2 जबकि अक्षर और तिलक वर्मा ने 1-1 विकेट झटके।  

टीम इंडिया ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 168 बनाए। हालांकि, भारत की शुरुआत धीमी रही लेकिन पावरप्ले में बतौर ओपनर जोड़ी शुभमन गिल और अभिषेक शर्मा ने गियर बदले और ताबड़तोड़ रन बनाए। जहां गिल 19 गेंद में 29 रन बनाकर आउट हुए। वहीं शिवम दो रन ही बना सके। जबकि अभिषेक शर्मा ने सबसे ज्यादा 37 गेंद में 75 रन की अहम पारी खेली। सूर्यकुमार यादव एक बार फिर फ्लॉप साबित हुए वह महज 5 रन ही बना सके। तिलक वर्मा 7 गेंद में 5 रन बना पाए तो हार्दिक पंड्या ने 29 गेंद में 38 रन की अहम पारी खेली। अक्षर पटेल 15 गेंद में 10 रन बनाकर नाबाद लौटे। वहीं बांग्लादेश की तरफ से हुसैन ने दो जबकि मुस्तफिजुर रहमान, तंजीम हसन साकिब और मोहम्मद सैफुद्दीन ने 1-1 विकेट हासिल किया। 

दो स्वतंत्र राष्ट्र ही समस्या का समाधान

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एमए कंवल जाफरी    

सात अक्टूबर 2023 को हमास ने अचानक इजरायल पर एक साथ जमीन, समुद्र और हवाई हमला कर पूरी दुनिया को आश्चर्य चकित कर दिया था। इस हमले में करीब 1200 लोगों की मौत हुई थी और 251 को बंधक बना लिया गया था। इजरायल ने गाजा पट्टी से हमास के शासन को उखाड़ फेंकने, हमास को पूरी तरह नष्ट करने और अपने बंधकों को छुड़ाने के लिए सैन्य अभियान शुरू किया। इजरायली हमलों में 24 सितंबर 2025 तक 65,382 फलस्तीनी मारे गए और 1,66,985 जख्मी हो चुके हैं। मरने और जख्मी होने वालों में ज्यादातर तादाद बच्चों और महिलाओं की है। इजरायल की बंबारी से अस्पताल, स्कूल और धार्मिक स्थलों समेत गाजा की 80 प्रतिशत से ज्यादा इमारतें जमींदोज होकर मलबे के ढेर में तब्दील हो चुकी हैं। इजरायली प्रधान मंत्री बेनजामिन नेतन्याहू ने हमास का नामानिशान मिटाने तक हमले जारी रखने का संकल्प लिया है। हमास की आड़ में आम नागरिक मारे जा रहे हैं। लड़ाई के लंबी खिंचने और गाज़ा मे आम नागरिकों पर इजरायल के बर्बरतापूर्ण हमलों के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र परिषद समेत कई संगठन और देश आवाज उठा रहे हैं, लेकिन नेतन्याहू को किसी का आग्रह सुनाई नहीं दे रहा है। उनके नजदीक अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून, मानवाधिकार चार्टर और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की भी अहमियत नहीं है।
संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में फलस्तीन और इजरायल के लिए दो-राष्ट्र के सिद्धांत पर आयोजित शिखर सम्मेलन में कई बड़े देशों ने फलस्तीन को आधिकारिक मान्यता देने की घोषणा की। तीन दिनों में फलस्तीन को मान्यता देने वाले देशों में ब्रिटेन, आस्ट्रैलिया, कनाडा, पुर्तगाल, फ्रांस, बेलजियम, माल्टा, इंदौरा, मोनाको और लक्जंबर्ग शामिल हैं। ब्रिटेन और कनाडा ऐसा करने वाले जी-7 के पहले देश हैं। अमेरिका को छोड़कर सुरक्षा परिषद के सभी स्थायी सदस्य रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन फलस्तीन का पूर्ण राष्ट्र बनाने के पक्ष में हैं। भारत समेत संयुक्त राष्ट्र के तीन चौथाई देश पहले ही उसे मान्यता दे चुके हैं। 15 नवंबर 1988 को फलस्तीनी मुक्ति संठन (पीएलओ) के नेता यासिर अराफात के स्वतंत्र फलस्तीनी राज्य की घोषणा करने के कुछ ही मिनटों बाद सबसे पहले अल्जीरिया ने आधिकारिक तौर पर फलस्तीन को मान्यता दी थी। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने कहा है कि एक देश के रूप में मान्यता फलस्तीनियों का अधिकार है, कोई उपहार नहीं। फलस्तीन में निरापराध आम नागरिकों की हत्याएं पूरी तरह अस्वीकारीय हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फलस्तीन के द्विराष्ट्रीय हल की कोशिशें प्रशंसनीय हैं। इसका एकमात्र हल यही है कि दोनों स्वतंत्र देश एक दूसरे को आधिकारिक तौर पर मान्यता देकर पूर्णतया वैश्विक बिरादरी का हिस्सा बनें। इससे न केवल क्षेत्र, अपितु दुनिया में अमन कायम होगा। यदि ऐसा नहीं किया जाता, तो इससे हमास को फायदा पहुंचेगा और उसे अपनी गतिविधियां जारी रखने में मदद मिलेगी। लेकिन, बेंजामिन नेतन्याहू को यह समाधान स्वीकार नहीं है। वह फलस्तीन का अस्तित्व स्वीकार करने को ही तैयार नहीं और उसे मान्यता देने वाले देशों पर अपना गुस्सा उतारते हुए अंजाम भुगतने की धमकी दे रहे हैं। नेतन्याहू के कटु तेवरों और धमकियों से नाराज वे देश भी फलस्तीन की हिमायत में आ खड़े हुए, जो कल तक यहूदियों के साथ होने वाले ऐतिहासिक अन्याय के चलते इजरायल के साथ हमदर्दी रखते आ रहे थे। इजरायल की गाजा में आक्रमक कार्रवाई, निर्दोषों के नरसंहार और भूखे लोगों तक राहत सामग्री नहीं पहुंचने देने के अमानवीय कृत्य से क्षुब्ध और आहत यूरोपीय देशों को कठोर रुख अपनाने पर मजबूर किया। फलस्तीन को संयुक्त राष्ट्र के 193 देशों में से 145 ने मान्यता दे दी है, जबकि इजरायल के साथ सिर्फ 45 मुल्कों का समर्थन है। इजरायल, अमेरिका और उनके सहयोगी देशों के अलावा जापान, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर फलस्तीन को मान्यता नहीं देने वाले देशों में शामिल हैं। अगर, इजरायल ने अपना रवैया नहीं बदला, तो निकट भविष्य में उसकी हिमायत में खड़े देशों में और कमी हो सकती है।

एमए कंवल जाफरी

भारत ने रेल मोबाइल लॉन्चर से अग्नि-प्राइम का सफल परीक्षण किया

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रात में एक चमकदार मिसाइल प्रक्षेपण, बेस से तीव्र लपटें और धुआँ निकल रहा है। मिसाइल एक रेल-आधारित मोबाइल लॉन्चर पर तैनात है, जो पेड़ों से घिरी पटरियों पर दिखाई दे रहा है। प्रक्षेपण की ज्वलंत चमक से दृश्य जगमगा रहा है।

भारत ने गुरुवार को रेल-आधारित मोबाइल लॉन्चर प्रणाली से मध्यम दूरी की अग्नि-प्राइम मिसाइल, एक उन्नत मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल, का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारत ने रेल आधारित मोबाइल प्रक्षेपण प्रणाली से अग्नि-प्राइम मिसाइल का सफल परीक्षण किया है। अगली पीढ़ी की यह मिसाइल 2,000 किलोमीटर तक की दूरी तक मार करने के लिए तैयार की गई है और विभिन्न उन्नत सुविधाओं से लैस है।

सिंह ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा कि विशेष रूप से तैयार रेल-आधारित मोबाइल प्रक्षेपण प्रणाली से किया गया यह अपनी तरह का पहला प्रक्षेपण है। उन्होंने कहा कि इसमें रेल नेटवर्क पर चलने की क्षमता है। इससे उपयोगकर्ता समूचे देश में कहीं भी बेहद कम समय में कम दृश्यता में भी प्रतिक्रिया करने में सक्षम होंगे।

रक्षा मंत्री ने आगे कहा कि उड़ान परीक्षण की सफलता ने भारत को उन चुनिंदा देशों में शामिल कर दिया है जिन्होंने “चलते-फिरते रेल नेटवर्क से कैनिस्टराइज्ड लॉन्च सिस्टम” विकसित किया है। सिंह ने कहा, “मध्यम दूरी की अग्नि-प्राइम मिसाइल के सफल परीक्षण के लिए डीआरडीओ, सामरिक बल कमान (एसएफसी) और सशस्त्र बलों को बधाई। इस सफल उड़ान के लिए।”

पोस्ट में आगे कहा गया, “मध्यम दूरी की अग्नि-प्राइम मिसाइल के सफल परीक्षण पर डीआरडीओ, सामरिक बल कमान (एसएफसी) और सशस्त्र बलों को बधाई। इस सफल उड़ान परीक्षण ने भारत को उन चुनिंदा देशों के समूह में शामिल कर दिया है, जिनके पास मोबाइल रेल नेटवर्क से कैनिस्टराइज्ड प्रक्षेपण प्रणाली विकसित करने की क्षमता है।”

यह परीक्षण अगस्त में ओडिशा के चांदीपुर में मिसाइल के सफल प्रक्षेपण के बाद किया गया है। मार्च 2024 में, ‘मिशन दिव्यास्त्र’ के तहत अग्नि-5 का परीक्षण किया गया, जिसमें MIRV (मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टार्गेटेबल री-एंट्री व्हीकल) क्षमता का प्रदर्शन किया गया। MIRV से लैस एक मिसाइल 3-4 परमाणु हथियार ले जा सकती है, जिनमें से प्रत्येक अलग-अलग लक्ष्यों पर निशाना साधता है। वर्तमान में, 2003 में गठित SFC केवल एकल-हथियार वाली मिसाइलों का संचालन करती है। ठोस ईंधन से चलने वाली, तीन-चरणीय अग्नि-5 को कैनिस्टर से प्रक्षेपित किया जाता है, जिससे इसे तेज़ी से तैनात किया जा सकता है