खतरनाक मौसम में भी स्कूल क्यों बंद नही होते?

0

आज पूरे देश में बाढ़ का प्रकोप है। नदियों की बाढ़ से रास्ते बंद हैं।सड़कों में पानी भरा है।स्कूल भवनों की हालत बहुत खराब है। ऐसे में स्कूल खोलकर बच्चों और शिक्षकों की जान से खिलवाड़ किया जा रहा है। बच्चों को देश का भविष्य बताया जाता है।, किंतु इस देश के भविष्य की चिंता किसी को नही। देश और समाज की पहली चिंता बच्चों की सुरक्षख होनी चाहिए, किंतु इस विषय पर किसी का ध्यान नहीं।बारिश और बाढ़ की स्थिति में बच्चों और शिक्षकों को स्कूल बुलाना उनकी जान से खिलवाड़ है। जर्जर इमारतें, गंदगी, जलभराव और यातायात बाधाएँ पहले से ही खतरनाक हालात पैदा कर चुकी हैं। ऐसे में पढ़ाई से ज़्यादा बच्चों की सुरक्षा पर ध्यान देना ज़रूरी है। शिक्षा तभी सार्थक है जब बच्चे सुरक्षित माहौल में सीखें। सरकार को चाहिए कि संकट की घड़ी में औपचारिकताओं से ऊपर उठकर तुरंत अवकाश घोषित करे, ताकि संभावित हादसों से बचा जा सके।

– डॉ. सत्यवान सौरभ

बरसात का मौसम बच्चों के लिए रोमांच और खेलने का समय माना जाता है, लेकिन जब यही मौसम बाढ़, गंदगी और जीवन-जोखिम का कारण बन जाए, तब सवाल उठता है कि हमारी व्यवस्था आखिर बच्चों और शिक्षकों की सुरक्षा के प्रति कितनी संवेदनशील है। हाल ही में हरियाणा प्रदेश के 18 जिलों में बाढ़ का हाई अलर्ट घोषित होने के बावजूद स्कूलों को बंद न करने का निर्णय इस संवेदनशीलता पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है।

स्कूल भवनों की जर्जर हालत किसी से छिपी नहीं है। कई जगहों पर दीवारों में दरारें हैं, छतों से पानी टपकता है और फर्श गीले होकर दुर्घटनाओं को न्यौता देते हैं। जिन इमारतों में सामान्य दिनों में पढ़ाई मुश्किल हो, वहां लगातार बारिश के दौरान बच्चों और स्टाफ की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जा सकती है? कई सरकारी और ग्रामीण स्कूल तो वैसे भी मरम्मत और रखरखाव के अभाव में खंडहर जैसी स्थिति में हैं।

साफ-सफाई की समस्या भी गंभीर है। गंदगी, पानी भराव और खुले नाले स्कूल परिसरों को अस्वस्थ और खतरनाक बना देते हैं। बारिश के दिनों में मच्छरों और संक्रामक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में बच्चों को स्कूल बुलाना केवल उनकी जान से खिलवाड़ करना है।

यही नहीं, बाढ़ और जलभराव के कारण परिवहन व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हो जाती है। बच्चे और शिक्षक स्कूल तक पहुँचने में भारी कठिनाइयों का सामना करते हैं। कई इलाकों में सड़कों पर घुटनों-घुटनों पानी भरा होता है, कहीं पुल टूटे हैं तो कहीं नदियाँ उफान पर हैं। बच्चों का ऐसे हालात में रोज़ाना आना-जाना केवल प्रशासन की संवेदनहीनता का उदाहरण है।

सबसे हैरानी की बात यह है कि सरकार और उच्च अधिकारी जानते हुए भी स्कूल बंद करने का आदेश नहीं देते। यह निर्णय किसी मजबूरी से अधिक औपचारिकता जैसा लगता है—जैसे केवल आदेश देकर अपनी ज़िम्मेदारी निभा दी गई हो। सवाल यह उठता है कि क्या बच्चों की सुरक्षा से बढ़कर भी कोई औपचारिकता हो सकती है? अगर हादसा हो जाए तो क्या प्रशासन की यह चुप्पी और लापरवाही माफ़ की जा सकेगी?

दुनिया भर में आपदा और संकट के समय शिक्षा व्यवस्था पर अस्थायी रोक लगाना कोई नई बात नहीं है। कोरोना काल में महीनों तक स्कूल बंद रहे और वैकल्पिक माध्यमों से शिक्षा को आगे बढ़ाया गया। जब महामारी के दौर में बच्चों की सुरक्षा सर्वोपरि मानी गई, तो बाढ़ और प्राकृतिक आपदा की स्थिति में वही संवेदनशीलता क्यों नहीं दिखाई जाती?

यहाँ तर्क दिया जा सकता है कि पढ़ाई का नुकसान न हो, इसलिए स्कूल बंद नहीं किए जा सकते। लेकिन क्या पढ़ाई का महत्व बच्चों और शिक्षकों की जान से बड़ा है? शिक्षा तभी सार्थक है जब छात्र और शिक्षक सुरक्षित हों। गीली और टूटती छतों के नीचे, पानी से भरे आंगनों में और बीमारी के खौफ में पढ़ाई कराने का निर्णय शिक्षा नहीं, बल्कि मजबूरी और लापरवाही कहलाएगी।

दरअसल, असली समस्या हमारी नीति और नीयत दोनों की है। जिन अधिकारियों को स्थानीय हालात देखकर तुरंत निर्णय लेना चाहिए, वे केवल ऊपर से आए आदेशों का इंतज़ार करते रहते हैं। और ऊपर बैठे नीति-निर्माता आमतौर पर कागज़ी रिपोर्टों और फाइलों के आधार पर निर्णय लेते हैं। नतीजा यह होता है कि जमीनी हालात और सरकारी आदेशों के बीच बड़ा अंतर रह जाता है।

आज ज़रूरत इस बात की है कि शिक्षा विभाग और आपदा प्रबंधन विभाग मिलकर एक स्पष्ट नीति बनाएँ। इसमें यह तय हो कि किन परिस्थितियों में स्वतः स्कूल बंद माने जाएँगे। जैसे – जब किसी जिले में बाढ़ का हाई अलर्ट जारी हो, जब लगातार बारिश से जीवन अस्त-व्यस्त हो जाए, या जब भवनों की सुरक्षा संदिग्ध हो। इससे निचले स्तर के अधिकारी समय रहते फैसला ले सकेंगे और बच्चों को जोखिम से बचाया जा सकेगा।इसके साथ-साथ स्कूल भवनों की नियमित मरम्मत और रखरखाव पर भी ज़ोर दिया जाना चाहिए। हर बरसात में छत टपकना और दीवारें गिरना हमारी शिक्षा व्यवस्था की पोल खोल देता है। यदि बच्चों के लिए सुरक्षित भवन तक उपलब्ध नहीं करा सकते तो फिर शिक्षा के अधिकार की बातें खोखली साबित होती हैं।

एक और पहलू पर ध्यान देना ज़रूरी है। जब सरकारें ‘स्मार्ट क्लास’, ‘डिजिटल एजुकेशन’ और ‘न्यू एजुकेशन पॉलिसी’ की बात करती हैं, तो क्यों न आपदा के समय ऑनलाइन या वैकल्पिक शिक्षा का सहारा लिया जाए? बच्चों की पढ़ाई बिना उनकी सुरक्षा से समझौता किए जारी रखी जा सकती है। लेकिन दुर्भाग्य है कि ऐसे दूरदर्शी कदमों की जगह केवल आदेश जारी करने की औपचारिकता निभाई जाती है।

बच्चे देश का भविष्य हैं—यह वाक्य हम बार-बार सुनते हैं। लेकिन जब इस भविष्य को सुरक्षित रखने का समय आता है, तो हमारी व्यवस्था सबसे ज्यादा असफल साबित होती है। बारिश और बाढ़ जैसे हालात में स्कूलों को खुला रखना बच्चों और शिक्षकों दोनों की जान को खतरे में डालने जैसा है। यह केवल संवेदनहीनता ही नहीं, बल्कि लापरवाही की पराकाष्ठा है।अब समय आ गया है कि सरकारें औपचारिकताओं से आगे बढ़कर वास्तव में बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता दें। स्कूलों को तुरंत बंद किया जाए और हालात सामान्य होने पर ही पुनः खोला जाए। शिक्षा का असली उद्देश्य तभी पूरा होगा जब बच्चे सुरक्षित माहौल में पढ़ें और सीखें। यदि यह न्यूनतम सुरक्षा भी सुनिश्चित नहीं की जा सकती, तो शिक्षा व्यवस्था पर गहन प्रश्नचिह्न खड़े होते हैं।

संवेदनशील शासन वही है जो संकट की घड़ी में अपने नागरिकों—खासकर बच्चों—की सुरक्षा सुनिश्चित करे। यदि इस बुनियादी दायित्व में भी हम असफल रहते हैं, तो विकास, शिक्षा और प्रगति के सारे दावे केवल खोखले नारे भर रह जाएंगे।

– डॉ. सत्यवान सौरभ

स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार

पीएम मोदी ने किया सेमीकॉन इंडिया-2025 का उद्घाटन

0

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली के यशोभूमि में सेमीकॉन इंडिया-2025 का उद्घाटन किया। सेमीकॉन इंडिया-2025 भारत का सबसे बड़ा सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स शो है। इस मौके पर  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच अप्रैल-जून में 7.8 प्रतिशत की वृद्धि के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था ने सभी उम्मीदों से बेहतर प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा, दुनिया भारत पर भरोसा करती है। भारत में विश्वास करती है और भारत के साथ सेमीकंडक्टर का भविष्य बनाने के लिए तैयार है। सेमीकॉन इंडिया-2025 चौथा संस्करण है। अब तक के इस सबसे बड़े आयोजन में 48 देशों की 350 से अधिक कंपनियां और रिकॉर्ड संख्या में वैश्विक प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। इस पहल का उद्देश्य भारत को सेमीकंडक्टर महाशक्ति बनाना है।सेमीकॉन इंडिया सम्मेलन का उद्घाटन करने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, तेल काला सोना था, लेकिन चिप्स (सेमीकंडक्टर) हीरे हैं।

दो से चार सितंबर तक चलने वाला यह तीन दिवसीय सम्मेलन भारत में एक मजबूत, लचीले व टिकाऊ सेमीकंडक्टर पारिस्थितिकी तंत्र को आगे बढ़ाने पर केंद्रित होगा। सेमीकंडक्टर आधुनिक तकनीक का हृदय हैं। ये स्वास्थ्य, परिवहन, संचार, रक्षा और अंतरिक्ष जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए बेहद अहम है। जैसे-जैसे दुनिया डिजिटलाइजेशन और ऑटोमेशन की ओर बढ़ रही है, सेमीकंडक्टर आर्थिक सुरक्षा और रणनीतिक स्वतंत्रता का आधार बन गए हैं।  यह सम्मेलन सेमीकंडक्टर फैब, एडवांस पैकेजिंग, स्मार्ट मैन्युफैक्चरिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर केंद्रित होगा। इसमें डिजाइन लिंक्ड इंसेंटिव योजना, स्टार्टअप इकोसिस्टम की प्रगति और अंतरराष्ट्रीय सहयोग जैसे मुद्दे भी शामिल होंगे

सम्मेलन में 150 से अधिक वक्ता और 50 से ज्यादा वैश्विक नेता भाग लेंगे। साथ ही 350 से अधिक प्रदर्शक अपनी तकनीकी क्षमताएं पेश करेंगे। छह देशों की राउंडटेबल चर्चाएं, स्टार्टअप और वर्कफोर्स डेवलपमेंट के लिए विशेष पवेलियन भी इस आयोजन का हिस्सा होंगे।2021 में इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन (आईएसएम) शुरू होने के बाद केवल चार वर्षों में भारत ने अपनी सेमीकंडक्टर यात्रा के विजन को वास्तविकता में बदल दिया है। इस विजन को मजबूत करने के लिए सरकार ने 76,000 करोड़ की प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजना शुरू की है।

हरियाणा के आप विधायक पुलिस हिरासत से फरार

0

हरियाणा के करनाल से गिरफ्तार आम आदमी पार्टी के विधायक हरमीत सिंह पठानमाजरा पुलिस हिरासत से फरार हो गए हैं। मंगलवार की सुबह हरियाणा पुलिस उन्हें करनाल से गिरफ्तार करने के बाद पुलिस उन्हें थाने ले जा रही थी, तभी पठानमाजरा और उनके साथियों ने पुलिसकर्मियों पर फायरिंग कर दी । गाड़ी चढ़ाने की कोशिश की। इससे एक पुलिसकर्मी घायल हो गया।

पठान माजरा और उनके साथी एक स्कॉर्पियो और एक फॉर्च्यूनर में फरार हो गए। पुलिस ने फॉर्च्यूनर को पकड़ लिया है।पुलिस टीम स्कॉर्पियो में फरार विधायक का पीछा कर रही है।

पंजाब के पटियाला जिले के सनौर हल्के से विधायक हरमीत सिंह पठान माजरा को पुलिस ने हरियाणा के करनाल के गांव डबरी से गिरफ्तार किया था। जानकारी के अनुसार यह गिरफ्तारी धारा 376 के एक पुराने मामले में की गई है।

पंजाब में बाढ़ आखिर क्यों – क्या प्रकृति रुष्ट है?

0

“प्रकृति चेतावनी देती है, रुष्ट नहीं होती – असली वजह इंसानी लापरवाही और असंतुलित विकास”

पंजाब में बाढ़ को केवल प्राकृतिक आपदा कहना सही नहीं होगा। नदियों का स्वरूप, असामान्य बारिश और जलवायु परिवर्तन तो कारण हैं ही, लेकिन असली दोषी अनियोजित निर्माण, अवैध खनन, ड्रेनेज की उपेक्षा और धान-प्रधान कृषि पद्धति भी है। प्रकृति चेतावनी देती है, रुष्ट नहीं होती। यदि हम नदियों को उनका मार्ग दें, जल का विवेकपूर्ण उपयोग करें और फसल विविधिकरण अपनाएँ, तो बाढ़ की मार को कम किया जा सकता है। पंजाब को चाहिए कि वह पर्यावरण के साथ संतुलन बनाकर विकास की नई राह तय करे।

– डॉ प्रियंका सौरभ

पंजाब, जिसे देश की अन्नदाता भूमि कहा जाता है, आज बाढ़ की विभीषिका से बार-बार जूझ रहा है। खेत जलमग्न हो जाते हैं, गाँव डूब जाते हैं, सड़कें और मकान ढह जाते हैं। हर बार यह सवाल उठता है कि आखिर पंजाब में बाढ़ क्यों आती है? क्या यह केवल प्रकृति की रुष्टता है या फिर इसके पीछे कहीं न कहीं हमारी अपनी भूलें भी जिम्मेदार हैं? सच यह है कि प्रकृति कभी किसी से नाराज़ नहीं होती, वह केवल अपने नियमों और संतुलन के आधार पर काम करती है। जब हम इंसान उसकी मर्यादाओं को लांघते हैं, तो परिणाम हमें बाढ़, सूखा, प्रदूषण और आपदा के रूप में भुगतने पड़ते हैं।

पंजाब की धरती पाँच नदियों की भूमि कहलाती है। सतलुज, ब्यास, रावी, चिनाब और झेलम ने इस राज्य की पहचान बनाई। इनमें से अधिकांश नदियाँ हिमालय से निकलती हैं और मानसून के मौसम में बर्फ़ पिघलने व वर्षा के कारण जलस्तर अचानक बढ़ा देती हैं। नदियों की धाराएँ तेज़ होती हैं और जब वे मैदानों में प्रवेश करती हैं तो पानी फैलकर बाढ़ का रूप ले लेता है। भाखड़ा, पोंग और रणजीत सागर जैसे बड़े बांध भले ही बाढ़ नियंत्रण और सिंचाई के लिए बने हों, लेकिन जब इनसे अचानक पानी छोड़ा जाता है तो आसपास के इलाके जलमग्न हो जाते हैं। यह प्राकृतिक कारणों के साथ-साथ प्रबंधन की कमी को भी उजागर करता है।

पिछले कुछ वर्षों में मानसून का पैटर्न काफी बदल गया है। पहले जहाँ बरसात धीरे-धीरे और लंबे समय तक होती थी, अब अचानक भारी वर्षा कम समय में हो जाती है। इससे नदियों और नालों में पानी का दबाव तेजी से बढ़ता है और फ्लैश फ्लड जैसी स्थिति पैदा हो जाती है। जलवायु वैज्ञानिक मानते हैं कि ग्रीनहाउस गैसों का बढ़ना और ग्लोबल वार्मिंग इसका बड़ा कारण है। इससे हिमालयी ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे हैं। परिणामस्वरूप गर्मियों और बरसात के मौसम में नदियों का जलस्तर अनियंत्रित ढंग से बढ़ जाता है।

प्राकृतिक बाढ़ को विनाशकारी बनाने में सबसे बड़ी भूमिका इंसानी हस्तक्षेप की है। नदियों के किनारों और तलहटी में अंधाधुंध निर्माण कार्य हुए। गाँव और शहर नालों व पुरानी जलधाराओं पर बस गए। रेत और बजरी का अत्यधिक खनन नदियों की गहराई और धार बदल देता है। जब पानी का मार्ग रुकता है तो वह आसपास की बस्तियों में घुस आता है। पंजाब में ड्रेन और नहरों का जाल तो है लेकिन अधिकांश जगह इनकी सफाई व मरम्मत समय पर नहीं होती। नतीजतन बारिश का पानी निकलने की जगह वापस गाँव-शहरों में भर जाता है। इसके साथ ही धान जैसी फसलों ने भूजल का अत्यधिक दोहन किया। मिट्टी की जलधारण क्षमता कम हुई और प्राकृतिक जलसंचयन तंत्र टूट गया।

पंजाब हरित क्रांति का केंद्र रहा। यहाँ गेहूँ और चावल की खेती ने देश को अन्न सुरक्षा दी, लेकिन इसके दुष्परिणाम भी सामने आए। धान की फसल पानी की अत्यधिक मांग करती है। हर साल लाखों ट्यूबवेल से भूजल निकाला गया। इससे भूमिगत जलस्रोत तेजी से सूख गए। जब ऊपर से भारी बारिश या बाढ़ आई तो जमीन उसे सोख नहीं पाई और जलभराव की समस्या बढ़ गई। वनों की कटाई और हरित क्षेत्र के सिकुड़ने से भी प्राकृतिक संतुलन बिगड़ा। नदियों के किनारे पेड़ों की जड़ें पानी को रोकती और मिट्टी को बांधती थीं, लेकिन अब कटान तेज़ हो गया है।

पंजाब में बाढ़ केवल प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक संकट भी है। हजारों एकड़ फसलें बर्बाद हो जाती हैं। किसान कर्ज़ में डूब जाते हैं। ग्रामीण आबादी बेघर हो जाती है और पलायन के लिए मजबूर होती है। सड़कों, पुलों और बिजली के ढांचे को भारी क्षति पहुँचती है। बीमारियों का प्रकोप फैलता है, खासकर डायरिया, मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियाँ। मानसिक आघात से समाज में असुरक्षा और हताशा की भावना पनपती है।

वास्तव में प्रकृति का कोई भाव नहीं होता। वह केवल संतुलन चाहती है। जब हम उसकी मर्यादाओं का उल्लंघन करते हैं, तब वह चेतावनी के रूप में बाढ़, सूखा या आपदा के रूप में सामने आती है। इसलिए यह कहना कि प्रकृति नाराज़ है, सही नहीं है। सच तो यह है कि इंसान ने प्रकृति को नाराज़ करने लायक हालात पैदा कर दिए हैं।

समाधान स्पष्ट हैं। नदियों के किनारे बाढ़ क्षेत्र को चिन्हित कर वहाँ निर्माण पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। पुराने नालों और ड्रेनों की नियमित सफाई व चौड़ाई बढ़ाई जानी चाहिए। अवैध खनन पर सख्ती से रोक लगनी चाहिए ताकि नदियाँ अपने प्राकृतिक स्वरूप में बह सकें। धान के स्थान पर मक्के, दालों और सब्जियों की खेती को बढ़ावा दिया जाए, जिससे पानी की खपत कम होगी और भूजल का स्तर सुधरेगा। राज्य और केंद्र सरकार को मिलकर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए दीर्घकालिक योजना बनानी होगी। साथ ही स्थानीय लोगों को बाढ़ से बचाव और प्रबंधन के लिए प्रशिक्षित करना भी आवश्यक है।

पंजाब में बाढ़ का संकट केवल प्राकृतिक कारणों से नहीं है। यह हमारी विकास नीतियों की असंतुलित दिशा का परिणाम है। यदि हमने अभी भी सबक नहीं लिया तो आने वाले वर्षों में बाढ़ और भयावह हो सकती है। प्रकृति हमें बार-बार चेतावनी दे रही है कि उसके साथ छेड़छाड़ मत करो। हमें याद रखना होगा कि प्रकृति से लड़ाई नहीं, बल्कि उसके साथ तालमेल ही स्थायी समाधान है। पंजाब में बाढ़ केवल आपदा नहीं, बल्कि हमारी नीतियों, आदतों और प्राथमिकताओं की परीक्षा ह

-प्रियंका सौरभ 

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,

कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,

पीएम मोदी ने चिनफिंग से बातचीत में उठाया पाक सीमा पार आतंकवाद का मुद्दा

0

चीन के तियानजिन में SCO सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी और शी चिनफिंग की मुलाकात हुई। पिछले एक साल में यह उनकी दूसरी बैठक है। पीएम मोदी ने शी चिनफिंग को 2026 में भारत में होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया जिस पर चिनफिंग ने समर्थन का भरोसा दिया। दोनों नेताओं ने आपसी सहयोग और वैश्विक मुद्दों पर चर

Hero Image
शंघाई सहयोग संगठन सम्मेलन मोदी और चिनफिंग की तियानजिन में मुलाकात

पीएम मोदी ने शी जिनपिंग को 2026 भारत में होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के लिए न्योता दिया।दोनों नेताओं ने व्यापार, सीमा विवाद और आतंकवाद जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा की।

, नई दिल्ली। चीन के तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग की मुलाकात हुई। यह दोनों नेताओं की पिछले एक साल में दूसरी बैठक है। पिछली बार अक्टूबर 2024 में कजान में मुलाकात हुई थी।

भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने बताया कि बैठक में पीएम मोदी ने शी चिनफिंग को 2026 में भारत में होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया। इस पर चिनफिंग ने धन्यवाद देते हुए भारत की ब्रिक्स अध्यक्षता को पूरा समर्थन दिया

बैठक में वैश्विक और क्षेत्रीय मुद्दों पर भी बात हुई। पीएम मोदी ने चीन की मौजूदा SCO अध्यक्षता का समर्थन किया । तियानजिन सम्मेलन के लिए शुभकामनाएं दीं। दोनों नेताओं ने माना कि भारत और चीन की अर्थव्यवस्था वैश्विक व्यापार को स्थिर करने में अहम भूमिका निभा सकती

इस दौरान आपसी व्यापार घाटा कम करने, निवेश को बढ़ाने और नीतियों में पारदर्शिता लाने पर सहमति बनी। दोनों नेताओं के बीच सीमा मुद्दे पर भी चर्चा हुई। पीएम मोदी ने कहा कि सीमा पर शांति और स्थिरता जरूरी है ताकि रिश्ते सहज रूप से आगे बढ़ सकें।दोनों नेताओं ने पिछले साल हुए सफल डिसएंगेजमेंट की सराहना की और तय किया कि आगे भी बातचीत और मौजूद तंत्र से शांति बनाए रखी जाएगी। इसके अलावा, दोनों ने आतंकवाद से लड़ने, सीमा पार पर सहयोग और लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने जैसे मुद्दों पर भी चर्चा की।

शी चिनफिंग ने रिश्ते मजबूत करने के लिए चार सुझाव दिए

  • रणनीतिक संवाद बढ़ाना और आपसी भरोसा गहरा करना।
  • सहयोग और संपर्क बढ़ाना।
  • दोनों देशों के लिए विन-विन नतीजे सुनिश्चित करना।
  • बहुपक्षीय मंचों पर मिलकर काम करना।

पीएम मोदी ने इन सुझावों का स्वागत किया और कहा कि भारत-चीन प्रतिस्पर्धी नहीं बल्की साझेदार हैं। दोनों नेताओं ने सहमति जताई कि उनके साझा हित मतभेदों से कहीं बड़े हैं और मतभेदों को विवाद में नहीं बदलना चाहिए।

पिथौरागढ़ में भूस्खलन से एनएचपीसी टनल का मुहाना बंद

0

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में भूस्खलन से एनएचपीसी टनल का मुहाना बंद, 11 लोग अभी भी फंसे, रेस्क्यू जारी

उत्तराखंड से मिली सूचना के अनुसार पिथौरागढ़ में एनएचपीसी की टनल का मुहाना भूस्खलन के कारण बंद हो गया है। 19 लोग फंस गए थे। जिनमें से 8 को रेस्क्यू किया जा चुका है। 11 लोग अभी भी फंसे हैं।

सितंबर में भी सामान्य से अधिक बारिश

0

मौसम विभाग ने कहा है कि सितंबर में भी सामान्य से अधिक बारिश होने की संभावना है। इस कारण इस महीने भी उत्तराखंड में भूस्खलन और बादल फटने से अचानक बाढ़ आ सकती है। साथ ही दक्षिण हरियाणा, दिल्ली और उत्तर राजस्थान में सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त हो सकता है।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने रविवार को कहा कि सितंबर, 2025 में मासिक औसत वर्षा, दीर्घावधि औसत 167.9 मिलीमीटर के 109 प्रतिशत से अधिक होने की संभावना है। विभाग के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने चेतावनी दी, ”कई नदियां उत्तराखंड से निकलती हैं। इसलिए भारी वर्षा का मतलब है कि कई नदियां उफान पर होंगी । इसका असर निचले इलाकों के शहरों और कस्बों पर पड़ेगा। ”

जल प्रलय के सन्देश ?

0

तनवीर जाफ़री

वरिष्ठ पत्रकार

−−−−−−−−−−−−

भारतीय पंजाब के जो ज़िले इस भीषण जल प्रलय में प्रभावित हुये उनमें गुरदासपुर, पठानकोट, होशियारपुर, कपूरथला, अमृतसर, तरन तारन, फिरोज़पुर व फ़ज़िल्का के नाम ख़ासतौर पर उल्लेखनीय हैं जबकि लुधियाना और जालंधर में भी बढ़ का प्रभाव देखने को मिला। दर्जनों पुल टूट गये,सैकड़ों पशु बह गये अनेक वाहन तेज़ बहाव में समा गये। लाखों एकड़ फ़सल तबाह हो गयी ,तमाम मकान बह गये या क्षतिग्रस्त हो गये। दर्जनों जगह से हाईवे व मुख्य मार्ग बंद हो गये। और इस प्रलयकारी हालात से जूझने में कई जगह पंजाब का वह किसान स्वयं को असहाय महसूस करता दिखाई दिया जो हमेशा पूरी हिम्मत व हौसले के साथ दूसरों की सेवा सत्कार के लिये तत्पर दिखाई देता है। एक अनुमान के अनुसार राज्य के 500 से अधिक गांव डूबे गये इन गांवों में लगभग 6,600 से अधिक लोग फंसे थे। अमृतसर के रामदास क्षेत्र में रावी नदी का धुसी बांध टूट गया, जिससे 40 गांव डूब गए। इसी तरह गुरदासपुर में लगभग 150, कपूरथला में क़रीब 115, और अमृतसर में लगभग 100 गांव इस प्रलयकारी बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हुये। गोया इस बार की बाढ़ ने कृषि-प्रधान पंजाब की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित कर दिया। इस बाढ़ के चलते सैकड़ों घर, 300 से अधिक स्कूल अनेक सड़कें, पुल और बिजली लाइनें आदि क्षतिग्रस्त हो गयीं । अमृतसर में गुरुद्वारा बाबा बुढ़ा साहिब डूब गया। कई जगह रेल यातायात बाधित हुआ अनेक ट्रेन्स कैंसिल कर दी गयीं। हाईवे टूटने व क्षतिग्रस्त होने के चलते 1,000 से अधिक सड़कें बंद कर दी गयीं । अकेले वैष्णो देवी में बारिश के चलते हुये भूस्खलन से 30 से अधिक मौतें होने की ख़बर है।

−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−−
तनवीर जाफ़री
भारत के पंजाब राज्य को सबसे उपजाऊ धरती के राज्यों में सर्वोपरि गिना जाता है। इसका मुख्य कारण यही है कि यह राज्य खेती के लिये सबसे ज़रूरी समझे जाने वाले कारक यानी पानी के लिये सबसे धनी राज्य है। सिंधु नदी की पांच सहायक नदियाँ सतलुज, ब्यास, रावी, चिनाब और झेलम इसी पंजाब राज्य से होकर बहती हैं। इन पांचों नदियों में केवल व्यास ही एक ऐसी नदी है जो केवल भारत में बहती है शेष सतलुज, रावी, चिनाब और झेलम नदियाँ भारत से होते हुये पाकिस्तान में भी प्रवाहित होती हैं। यही नदियां जो पंजाब को उपजाऊ भूमि बनाने और यहाँ की संस्कृति का आधार समझी जाती हैं इन दिनों यही नदियां भारत से लेकर पाकिस्तान तक जल प्रलय का कारण बनी हुई हैं। इन नदियों के उफान पर होने का कारण जम्मू कश्मीर व हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में लगातार होने वाली तेज़ बारिश यहाँ तक कि अनेक स्थानों पर बादल फटने जैसी घटनाओं को माना जा रहा है।
दरअसल पिछले कुछ दिनों हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और पंजाब के जलागम क्षेत्रों में असामान्य रूप से भारी बारिश हुई। कई ज़िले तो ऐसे भी थे जहाँ केवल एक ही दिन में पूरे एक महीने की बारिश दर्ज की गई। जैसे केवल अमृतसर और गुरदासपुर में 150-200 मिमी से अधिक वर्षा दर्ज हुई। इससे शहरी जलनिकासी प्रणाली पूरी तरह फ़ेल हो गयी। दुर्भाग्यवश हमारे देश के अधिकांश राज्यों में बरसाती जल निकासी प्रणाली प्रायः फ़ेल ही रहती है। भ्रष्टाचारयुक्त निर्माण से लेकर सरकारी अम्लों की अकर्मण्यता व ग़ैर ज़िम्मेदार जनता द्वारा नाले नालियों में अवांछित वस्तुओं की डम्पिंग यहाँ तक कि मरे जानवर से लेकर रज़ाई गद्दे बोतलें प्लास्टक पॉलीथिन आदि सब कुछ नालों व नालियों में फ़ेंक देने जैसी ग़ैर ज़िम्मेदाराना प्रवृति, जल निकासी प्रणाली के फ़ेल होने में सबसे अहम भूमिका निभाती है।
एक ओर तो भारी बारिश व जलभराव उसके बाद भारत के सबसे विशाल भाखड़ा नंगल डैम, पोंग डैम ]रणजीत सागर डैम व शाहपुर कंडी जैसे डैम्स से अतिरिक्त पानी का छोड़ा जाना भी पंजाब की बड़े हिस्से की तबाही का कारण बन गया। इन डैम्स से पानी छोड़ना भी इसलिये ज़रूरी हो गया था क्योंकि इनमें इनकी क्षमता से अधिक जलभराव हो गया था। उदाहरण के तौर पर भाखड़ा डैम का जल स्तर 1,671 फीट तक पहुँच गया था तो पोंग डैम का जलस्तर भी अधिकतम से ऊपर चला गया था। इसी के परिणामस्वरूप राज्य की सतलुज, ब्यास और रावी नदियाँ उफान पर आ गईं थीं। भारत से पानी छोड़ने के कारण ही पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में भी बाढ़ आई, जहाँ रावी, सतलुज और चेनाब नदियाँ प्रभावित हुईं। इस स्थिति के मद्देनज़र भारत ने पहले ही मानवीय आधार पर पाकिस्तान को तीन चेतावनियाँ जारी कर दी थीं।
भारतीय पंजाब के जो ज़िले इस भीषण जल प्रलय में प्रभावित हुये उनमें गुरदासपुर, पठानकोट, होशियारपुर, कपूरथला, अमृतसर, तरन तारन, फिरोज़पुर व फ़ज़िल्का के नाम ख़ासतौर पर उल्लेखनीय हैं जबकि लुधियाना और जालंधर में भी बढ़ का प्रभाव देखने को मिला। दर्जनों पुल टूट गये,सैकड़ों पशु बह गये अनेक वाहन तेज़ बहाव में समा गये। लाखों एकड़ फ़सल तबाह हो गयी ,तमाम मकान बह गये या क्षतिग्रस्त हो गये। दर्जनों जगह से हाईवे व मुख्य मार्ग बंद हो गये। और इस प्रलयकारी हालात से जूझने में कई जगह पंजाब का वह किसान स्वयं को असहाय महसूस करता दिखाई दिया जो हमेशा पूरी हिम्मत व हौसले के साथ दूसरों की सेवा सत्कार के लिये तत्पर दिखाई देता है। एक अनुमान के अनुसार राज्य के 500 से अधिक गांव डूबे गये इन गांवों में लगभग 6,600 से अधिक लोग फंसे थे। अमृतसर के रामदास क्षेत्र में रावी नदी का धुसी बांध टूट गया, जिससे 40 गांव डूब गए। इसी तरह गुरदासपुर में लगभग 150, कपूरथला में क़रीब 115, और अमृतसर में लगभग 100 गांव इस प्रलयकारी बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हुये। गोया इस बार की बाढ़ ने कृषि-प्रधान पंजाब की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित कर दिया। इस बाढ़ के चलते सैकड़ों घर, 300 से अधिक स्कूल अनेक सड़कें, पुल और बिजली लाइनें आदि क्षतिग्रस्त हो गयीं । अमृतसर में गुरुद्वारा बाबा बुढ़ा साहिब डूब गया। कई जगह रेल यातायात बाधित हुआ अनेक ट्रेन्स कैंसिल कर दी गयीं। हाईवे टूटने व क्षतिग्रस्त होने के चलते 1,000 से अधिक सड़कें बंद कर दी गयीं । अकेले वैष्णो देवी में बारिश के चलते हुये भूस्खलन से 30 से अधिक मौतें होने की ख़बर है।
अभी तक जो अनुमान लगाया जा रहे उसके मुताबिक़ धान, गन्ना व मक्का की लगभग 1.5 लाख एकड़ फ़सल पूरी तरह डूब गई। पंजाब में लगभग 3 लाख एकड़ से अधिक भूमि जलमग्न हो गयी। इन बाढ़ग्रस्त क्षत्रों के किसानों को सितंबर-अक्टूबर में होने वाली रबी की फ़सलों में भी नुकसान की आशंका बनी हुई है। पंजाब में आई बाढ़ से हुआ अरबों रुपये का यह नुक़सान खाद्य मुद्रास्फीति को भी प्रभावित करेगा। बाढ़ और बारिश-संबंधी हादसों से भारत व पाकिस्तान में अनेक मौतें भी हुई हैं जबकि अनेक लोग लापता भी हो गए हैं। इसी तरह हज़ारों पशुओं के बह जाने, मरने,बीमार पड़ने के साथ साथ उनके चारों की भी भारी कमी दर्ज की जा रही है। इन्हीं हालात में बीमारियों का भी ख़तरा बढ़ गया है। इससे पर्यटन उद्योग भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है।आपदा के इस समय में सेना एनडीआरएफ़ व एसडीआरएफ़ द्वारा 5,000 से अधिक लोगों की जान बचाई गयी व उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया गया। इन ऑपरेशन्स में चिनूक हेलीकॉप्टर, चीता हेलीकॉप्टर,नावें और एम्फीबियन वाहन इस्तेमाल किये गये ।
पंजाब और ख़ासकर पहाड़ी क्षेत्रों में होने वाली असाधारण बारिश व बादल फटने जैसी अनेक घटनाओं ने मौसम वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों को हैरत में डाल दिया है। इन हालात के लिये जहाँ दुर्लभ परिस्थितियों में पूर्वी, दक्षिणी और पश्चिमी मौसम प्रणालियों के एक साथ आने को ज़िम्मेदार माना जा रहा है वहीं ग्लेशियर का लगातार पिघलते जाना भी बाढ़ को और अधिक भयावह बना रहा है। माना जा रहा है कि यह बाढ़ 1988 की उस भीषण बाढ़ से भी प्रलयकारी है जिसे हज़ार वर्षों में एक बार आने वाली बाढ़ की संज्ञा दी गयी थी। गोया हमें जल प्रलय के इस सन्देश को समझना होगा कि इन हालात के लिये ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप होने वाला जलवायु परिवर्तन ही सबसे अधिक ज़िम्मेदार है। और निश्चित रूप से विकास और इसके नाम पर पैदा किये गये ग्लोबल वार्मिंग के यह हालात पूरी तरह मानवजनित हैं।

(तनवीर जाफ़री )

संपर्क: 989621922

रामचरितमानस में प्रेम और करुणा

0

−डॉ. ऋषिका वर्मा

गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरितमानस भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर है। यह केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं बल्कि मानवीय मूल्यों, आदर्शों और जीवन के मार्गदर्शन का सागर है। इसमें प्रेम और करुणा को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। प्रेम और करुणा ही वह भाव हैं जो जीवन को मधुरता, सद्भाव और दिव्यता से भर देते हैं। रामचरितमानस में भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण, हनुमान और अन्य पात्रों के माध्यम से इन दोनों गुणों का अद्भुत चित्रण किया गया है।
प्रेम को संसार का सबसे बड़ा सूत्रधार बताया गया है। भगवान राम का प्रेम केवल अपने परिवार या भक्तों तक सीमित नहीं है बल्कि यह सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय है। वे निषादराज, भीलनी शबरी, गिलहरी, वानर और भालू सभी के प्रति समान स्नेह रखते हैं। तुलसीदास ने दिखाया कि जब प्रेम निस्वार्थ और निर्मल होता है तब वह ईश्वर से भी जोड़ देता है। इसी भाव को व्यक्त करते हुए तुलसीदास लिखते हैं –
“प्रेम भक्ति जल बिनु रघुराई।
अस धरम नहिं आन उपाई॥”
अर्थात भगवान राम कहते हैं कि उनके दर्शन और कृपा का सबसे बड़ा साधन केवल प्रेममय भक्ति ही है। यह प्रेम किसी नियम या शर्त से बंधा नहीं बल्कि हृदय की सरलता और निष्कपटता पर आधारित है।
इसी प्रकार करुणा रामचरितमानस का दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष है। भगवान राम करुणा के सागर कहलाते हैं। वे शरणागत की रक्षा करते हैं और सबके प्रति दयालु रहते हैं। वे रावण जैसे अहंकारी शत्रु को भी अंत समय में ज्ञान देकर मोक्ष प्रदान करते हैं। यही करुणा उन्हें ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ बनाती है। उनकी करुणा का भाव प्रत्येक जीव मात्र के लिए है, चाहे वह मित्र हो, शत्रु हो या फिर वनवासी। इसी को तुलसीदास ने दोहे में इस प्रकार कहा है –
“सुनहु सखा मम बानी भरोसा।
सकल भूत हित मोरि तैसा॥”
यहां भगवान राम कहते हैं कि उनका भाव सभी जीवों के हित में है। यही करुणा है जो उनके चरित्र को सार्वभौमिक बना देती है।
रामचरितमानस हमें यह शिक्षा देता है कि प्रेम और करुणा केवल धार्मिक मूल्य नहीं बल्कि सामाजिक जीवन की भी आधारशिला हैं। प्रेम से समाज में भाईचारा और सद्भावना उत्पन्न होती है और करुणा से दीन-दुखियों की पीड़ा दूर की जा सकती है। तुलसीदास ने प्रेम और करुणा को साधारण मानव से लेकर भगवान तक की सर्वोच्च विशेषता बताया है।
अतः यह कहा जा सकता है कि रामचरितमानस प्रेम और करुणा का दिव्य ग्रंथ है। यह हमें सिखाता है कि प्रेम ही भक्ति का मार्ग है और करुणा ही मानवता का आभूषण है। जो व्यक्ति अपने जीवन में इन दोनों गुणों को धारण कर लेता है, उसका जीवन सफल और समाज के लिए प्रेरणादायी बन जाता है

−डॉ. ऋषिका वर्मा

गढ़वाल (उत्तराखंडद्व

हिंदुस्तानी गजल से मशहूर हुए  दुष्यंत कुमार

0

अशोक मधुप

−−−−−

आज एक सिंतबर  है प्रसिद्ध  हिंदी गजलकार दुष्यंत कुमार की जन्मदिन  है।  बिजनौर के राजपुर नवादा गांव में एक सिंतबर 1933 में जन्मे दुष्यंत कुमार का मात्र 43 वर्ष की आयु में 30 दिसंबर 1975 को भोपाल में  उनका निधन हुआ।

−−−−−

हिंदी साहित्यकार −गजलकार दुष्यंत कुमार   हिंदी गजल के लिए जाने जाते हैं। वे हिंदी गजल के लिए विख्यात है किंतु  उन्हें यह ख्याति हिंदी गजलों के लिए नहीं , हिंदुस्तानी गजलों के लिए मिली। संसद से  सड़क तब मशहूर हुए उनके शेर हिंदुस्तानी हिंदी में हैं।  हिंदुस्तानी हिंदी में  उन्होंने सभी प्रचलित शब्दों को इस्तमाल किया। शब्दों को प्रचलित रूप में इस्तमाल किया।

वे अपनी पुस्तक साए में धूप की भूमिका में खुद कहते हैं “ ग़ज़लों को भूमिका की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए; लेकिन,एक कैफ़ियत इनकी भाषा के बारे में ज़रूरी है। कुछ उर्दू—दाँ दोस्तों ने कुछ उर्दू शब्दों के प्रयोग पर एतराज़ किया है।उनका कहना है कि शब्द ‘शहर’ नहीं ‘शह्र’ होता है, ’वज़न’ नहीं ‘वज़्न’ होता है।
—कि मैं उर्दू नहीं जानता, लेकिन इन शब्दों का प्रयोग यहाँ अज्ञानतावश नहीं, जानबूझकर किया गया है। यह कोई मुश्किल काम नहीं था कि ’शहर’ की जगह ‘नगर’ लिखकर इस दोष से मुक्ति पा लूँ,किंतु मैंने उर्दू शब्दों को उस रूप में इस्तेमाल किया है,जिस रूप में वे हिन्दी में घुल−मिल गये हैं। उर्दू का ‘शह्र’ हिन्दी में ‘शहर’ लिखा और बोला जाता है ।ठीक उसी तरह जैसे हिन्दी का ‘ब्राह्मण’ उर्दू में ‘बिरहमन’ हो गया है और ‘ॠतु’ ‘रुत’ हो गई है।
—कि उर्दू और हिन्दी अपने—अपने सिंहासन से उतरकर जब आम आदमी के बीच आती हैं तो उनमें फ़र्क़ कर पाना बड़ा मुश्किल होता है। मेरी नीयत और कोशिश यही रही है कि इन दोनों भाषाओं को ज़्यादा से ज़्यादा क़रीब ला सकूँ। इसलिए ये ग़ज़लें उस भाषा में लिखी गई हैं जिसे मैं बोलता हूँ।
—कि ग़ज़ल की विधा बहुत पुरानी,किंतु विधा है,जिसमें बड़े—बड़े उर्दू महारथियों ने काव्य—रचना की है। हिन्दी में भी महाकवि निराला से लेकर आज के गीतकारों और नये कवियों तक अनेक कवियों ने इस विधा को आज़माया है।”
ग़ज़ल पर्शियन और अरबी  से उर्दू में आयी। ग़ज़ल का मतलब हैं औरतों से अथवा औरतों के बारे में बातचीत करना। यह भी कहा जा सकता हैं कि ग़ज़ल का सर्वसाधारण अर्थ हैं माशूक से बातचीत का माध्यम। उर्दू के  साहित्यकार  स्वर्गीय रघुपति सहाय ‘फिराक’ गोरखपुरी  ने ग़ज़ल की  भावपूर्ण परिभाषा लिखी हैं।  कहते हैं कि, ‘जब कोई शिकारी जंगल में कुत्तों के साथ हिरन का पीछा करता हैं और हिरन भागते −भागते किसी ऐसी झाड़ी में फंस जाता हैं जहां से वह निकल नहीं सकता, उस समय उसके कंठ से एक दर्द भरी आवाज़ निकलती हैं। उसी करूण स्वर को ग़ज़ल कहते हैं। इसीलिये विवशता का दिव्यतम रूप में प्रगट होना, स्वर का करूणतम हो जाना ही ग़ज़ल का आदर्श हैं’।

दुष्यंत  की गजलों की खूबी है साधारण बोलचाल के शब्दों का प्रयोग,  हिंदी− उर्दू के घुले मिले शब्दों का प्रयोग । चुटीले व्यंग  उनकी गजल की खूबी है।वे व्यवस्था और समाज पर चोट करते हैं।  ये ही उन्हें सीधे  आम आदमी के दिल तक ले जाती है। उनकी ये शैली उन्हें अन्य कवियों से अलग और लोकप्रिय करती है।
आम आदमी और व्यवस्था पर चोट करने वाले  दुष्यंत कुमार के शेर, व्यवस्था पर चोट करते उनके शेर  सड़कों से  संसद गूंजतें है। शायद दुष्यंत कुमार अकेले ऐसे साहित्यकार होंगे , जिसके शेर सबसे ज्यादा बार संसद में पढ़े गए हों। सभाओं में नेताओं ने उनके शेर सुनाकर व्यवस्था पर चोट की हो।सरकार को जगाने और जनचेतना का कार्य किया हो।उन्होंने हिंदी गजल भी लिखी, पर वह इतनी प्रसिद्धि  नही पा सकी, जितनी हिंदुस्तानी हिंदी में लिखी  गजल लोकप्रिस हुईं।

उनके गुनगुनाए  जाने वाले उनके कुछ  हिंदुस्तानी हिंदी के शेर हैं−

−वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है, 

माथे पे उस के चोट का गहरा निशान है। 

−रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया, 

इस  बहकती  हुई    दुनिया   को    सँभालो      यारों।

−कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता ,

एक पत्थर तो तबीअ’त से उछालो यारों।

− यहां तो  सिर्फ गूंगे और बहरे लोग बसतें है,

खुदा  जाने यहां पर किस तरह जलसा हुआ होगा,

−गूँगे निकल पड़े हैं ज़बाँ की तलाश में ,

सरकार के ख़िलाफ़ ये साज़िश तो देखिए।

−पक गई हैं आदतें बातों से सर होंगी नहीं, 

कोई हंगामा करो ऐसे गुज़र होगी नहीं  ।

आज मेरा साथ दो वैसे मुझे मालूम है ,

पत्थरों में चीख़ हरगिज़ कारगर होगी नहीं। 

इन ठिठुरती उँगलियों को इस लपट पर सेंक लो, 

धूप अब घर की किसी दीवार पर होगी नहीं ।

−सिर से सीने में कभी पेट से पाँव में कभी ,

इक जगह हो तो कहें दर्द इधर होता है ।

−मत कहो आकाश में कोहरा घना है,

ये किसी की व्यक्तगत आलोचना है।

−ये   जिस्म झुककर बोझ से दुहरा हुआ होगा,

मैं सज्दे में नही था, आपको धोखा  हुआ होगा।

−तुमने इस तालाब में रोहू पकड़ने के लिए,

छोटी—छोटी मछलियाँ चारा बनाकर फेंक दीं।

−हम ही खा लेते सुबह को भूख लगती है बहुत

तुमने बासी रोटियाँ नाहक उठा कर फेंक दीं।

गजल

हो गई है पीर पर्वत  सी पिंघलनी चाहिए,

अब हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,

शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,

हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,

मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,

हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

अशोक मधुप

(लेखक  वरिष्ठ  पत्रकार हैं)