सर्वोच्च न्यायालय ने ग्रीन पटाखों के निर्माण को मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में इसकी बिक्री पर प्रतिबंध जारी रखा है। कोर्ट ने यह भी कहा कि सिर्फ वही निर्माता पटाखे बनाएंगे जिनके पास ग्रीन पटाखे का सर्टिफिकेट होगा। कोर्ट ने यह भाी साफ कहा कि वह पूरे देश में पटाखों की बिक्री और निर्माण पर पूरी तरह से रोक नहीं लगा सकता।
दीपावाली से पहले सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए दिल्ली-एनसीआर में सभी तरह के पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पटाखा निर्माताओं को ग्रीन पटाखे बनाने की इजाजत दे दी है। आदेश में कोर्ट ने साफ कहा कि अगला आदेश आने तक ये पटाखे दिल्ली-एनसीआर में नहीं बेचे जाएंगे। कोर्ट ने शर्त रखी है कि सिर्फ वही निर्माता पटाखे बनाएंगे जिनके पास ग्रीन पटाखे का सर्टिफिकेट होगा। यह प्रमाणपत्र नीरी (एनईईआरआई) और पेसो (पीईएसओ) जैसी अधिकृत एजेंसियों से ही जारी होना चाहिए।मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह फैसला सुनाया।
न्यायालय ने कहा कि कि पटाखा निर्माताओं को यह भी लिखित वचन देना होगा कि वे दिल्ली-एनसीआर में कोई पटाखा नहीं बेचेंगे। यह आदेश इसलिए दिया गया है क्योंकि इस क्षेत्र में दिवाली के समय प्रदूषण का स्तर बहुत बढ़ जाता है। इस मामले पर अगली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि आगे बिक्री पर क्या कदम उठाए जाएं।
बाल मुकुंद ओझा विश्व पर्यटन दिवस हर साल 27 सितंबर को दुनिया भर में मनाया जाता है। पर्यटन दिवस मनाने का अर्थ है अधिक से अधिक जगह पर घूमने जायें, वहां सुन्दर और मन को मोह लेने वाले स्थलों का आनंद लें। इन सुन्दर यादों को सहेजकर रखने से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। यह दिवस मनाने का उद्देश्य लोगों में पर्यटन का महत्व जगाने तथा अर्थव्यवस्था को मजबूती से आगे बढ़ाने के लिए लोगों को जागरूक बनाना है। वर्ष 2025 की थीम पर्यटन और सतत परिवर्तन रखी गई है। इन पंक्तियों के लेखक ने अपनी योरोप यात्राओं के दौरान लंदन सहित ब्रिटेन के विभिन्न शहरों के दर्जनों पर्यटन क्षेत्रों का भ्रमण किया। विशेषकर यूके के पर्यटन स्थलों पर अनुशासन, शांति, साफ़ सफाई और विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी व्यवस्थाएं बहुत जबरदस्त और मंत्रमुग्ध करने वाली थी। देशी विदेशी पर्यटक बिना सुरक्षा व्यवस्था भ्रमण करते देखे गए। ब्रिटेन के लोग अपने पर्यटन स्थलों से बहुत प्यार करते है। वे इन स्थलों को अपनी जान से भी ज्यादा सुरक्षित रखते है। वर्ल्ड ट्रेवल एंड टूरिज्म काउंसिल की 2024-25 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने दुनिया की आठवीं सबसे बड़ी टूरिज्म इकॉनमी का दर्जा हासिल किया है। जापान और फ्रांस जैसे विकसित देशों को पीछे छोड़ते हुए भारत ने 231.6 अरब डॉलर (लगभग 19.4 लाख करोड़ रुपये) की पर्यटन आय के साथ इस सूची में अपना स्थान बनाया है। अनुमान है कि अगले दशक में भारत चौथे स्थान पर पहुंच सकता है। भारत में जीएसटी सुधार के बाद पर्यटन क्षेत्र में जबरदस्त उछाल की उम्मीद है। नीति आयोग के ‘विकसित भारत @2047’ दृष्टिकोण पत्र के अनुसार, भारत का लक्ष्य वर्ष 2047 तक 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना है, जिसमें प्रति व्यक्ति आय 18,000 डॉलर प्रति वर्ष होगी, जो वर्तमान 3.36 ट्रिलियन डॉलर और 2,392 डॉलर प्रति वर्ष से अधिक है। भारत में पर्यटन सबसे बड़ा सेवा उद्योग है, जहां इसका राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में 6.23 प्रतिशत और भारत के कुल रोज़गार में 8.78 प्रतिशत योगदान है। यह क्षेत्र जीडीपी और रोजगार सृजन दोनों में योगदान दे सकता है। 2030 तक हमारी अर्थव्यवस्था में 20 लाख करोड़ रुपये का भारी योगदान देने की क्षमता रखता है। इस प्रभावशाली वित्तीय निवेश के अलावा, इसमें 13 से 14 करोड़ नए रोजगार के अवसर पैदा करने की क्षमता है। एक रिपोर्ट्स के मुताबिक भारतीय आउटबाउंड पर्यटन का बाजार 2024 तक 42 अरब डालर 2025 तक 45
अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा। यह दुनिया का तेजी से विकसित होता बाजार है जहां 8 करोड़ पासपोर्ट यूजर्स, खासतौर पर मध्यम वर्ग में अच्छी खरीद क्षमता है। भारत सरकार के मुताबिक देश का पर्यटन क्षेत्र 2024 के मध्य तक महामारी-पूर्व स्तर पर आ जाएगा और देश के जीडीपी में 2030 तक 250 अरब डॉलर का योगदान देगा। देश के कण कण में पर्यटन स्थल बिखरे पड़े है। इनमें धार्मिक स्थलों की तरफ लोग अधिक आकर्षित हुए है। भारत में लगभग 30 लाख धर्मस्थल हैं। देश के बहुत से धार्मिक स्थलों पर लाखों लोगों का आना जाना लगा रहता है। आवश्यकता इस बात की है कि इन स्थलों पर सभी प्रकार की सुविधाएं सुलभ कराई जाये ताकि ये पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होकर रोजगार और अर्थव्यवस्था की धुरी बन सके। अयोध्या में राम लला के मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद देश में धार्मिक और आध्यात्मिक पर्यटन की ऐतिहासिक शुरुआत हुई है। पुरी, वाराणसी और तिरुपति जैसे धार्मिक स्थलों के बाद अब अयोध्या नगरी देश के ही नहीं अपितु दुनिया के बड़े धार्मिक केन्द्र के रूप में विकसित होंगी। इससे हमारे धार्मिक पर्यटन को बड़ा बढ़ावा मिलेगा। भारत एक ऐसा देश हैं जहां एक से बढ़कर एक प्राकृतिक परिदृश्य देखने को मिलते हैं। यहां आकर आप ऐसी घाटियों और गांवों की सैर कर सकते हैं जिसे अब तक ज्यादा एक्सप्लोर नहीं किया गया है। पर्यटन की दृष्टि से भारत विश्व का एक अजब गजब देश है जहाँ समुद्र से लेकर जंगल और बर्फ से लेकर रेगिस्तान तक देखने को मिल जायेंगे। हरे-भरे घास के मैदान और पथरीली जमीन भी आपको यहीं मिल जाएगी। पर्यटन की दृष्टि से भारत में घूमने लायक कई ऐसी जगहें हैं जो अपनी खूबसूरती से आपका मन मोह लेंगी। देश की शान ताजमहल, कश्मीर, कन्या कुमारी, गोवा, केरल, जयपुर, दिल्ली, दार्जीलिंग, उत्तराखंड का पहाड़ी क्षेत्र आदि मंत्रमुग्ध करने वाले स्थल इसी देश में है। इंडिया गेट, हुमायूँ का मकबरा, कुतुब मीनार, बुलंद दरवाजा, लाल किला आगरा, चारमीनार, गेटवे ऑफ इंडिया, लोटस टैंपल, खजुराहो, साँची, हम्पी, अजंता की गुफाएं, एलोरा की गुफाएं उदयगिरि गुफाएँ इलौरा आदि देश के पर्यटन क्षेत्र बरबस आपको अपनी और खिंच लेते है। विविधता और प्राकृतिक सुन्दरता से भारत पर्यटन के लिए हर किसी की पसंदीदा जगह हैं। देश के पहाड़ी क्षेत्र गर्मियों के रिसॉर्ट्स बने रहते हैं। इनमें पचमढ़ी, अरकु, गुलमर्ग, श्रीनगर, लद्दाख, दार्जिलिंग, मुन्नार, ऊटी और कोडाइकनाल, शिलांग, शिमला, कुल्लू, मसूरी, देहरादून नैनीताल, गंगटोक आदि प्रमुख है।
“सड़क हादसों की अनकही कहानी – सफ़ेद हेडलाइट्स का सच”
रात में तेज़ सफ़ेद हेडलाइट्स सिर्फ़ आँखों को नहीं, बल्कि जीवन को भी चौंधिया देती हैं। हर साल हजारों लोग इसके कारण हादसों में मरते हैं। यह केवल व्यक्तिगत त्रासदी नहीं, बल्कि परिवारों की टूटी ज़िंदगी है। समाधान आसान है – पीली हेडलाइट लगाएँ, तेज़ सफ़ेद लाइट से बचें, सरकार नियम बनाए और आम लोग जागरूक हों। जनजन गुप्ता अभियान का संदेश साफ़ है: “सफ़ेद चमक नहीं, पीली दोस्ती चाहिए!” सड़कें सुरक्षित हों, परिवार बचें और रात का सफ़र डर-मुक्त बने।
– डॉ सत्यवान सौरभ
रात का सफ़र हमेशा चुनौतीपूर्ण होता है। अंधेरा, धुंध, बारिश – ये सभी कारक सड़क पर जोखिम बढ़ाते हैं। लेकिन आज एक नया और अनदेखा खतरा हमारी सड़कों पर फैल रहा है – वाहनों की तेज़ सफ़ेद हेडलाइट्स। यह चमक केवल आँखों को चुभती नहीं, बल्कि कई बार सड़क हादसों का कारण बनती है।
भारत में हर साल लगभग डेढ़ लाख लोग सड़क हादसों में अपनी जान गंवाते हैं और लाखों लोग घायल होते हैं। इनमें से बड़ी संख्या रात के समय होती है। सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि इन हादसों में सफ़ेद हेडलाइट्स की तेज़ चमक की बड़ी भूमिका होती है। यह केवल तकनीकी समस्या नहीं है। यह परिवारों की टूटन, बच्चों की बेबसी और मात-पिता की पीड़ा का कारण बनती है।
सफ़ेद हेडलाइट्स की रोशनी पारंपरिक पीली रोशनी की तुलना में कहीं अधिक तेज़ होती है। इंसान की आँखें नीली-सफ़ेद रोशनी के प्रति संवेदनशील होती हैं। जब यह तेज़ रोशनी सीधे सामने से आती है, तो चालक और पैदल यात्री दोनों कुछ सेकंड के लिए अंधे हो जाते हैं। इसी पल में हादसा हो जाता है। बाइक सवार गिर जाते हैं, ट्रक या बस चालक वाहन पर नियंत्रण खो देते हैं और पैदल यात्री जीवन-मृत्यु की स्थिति में फँस जाते हैं। बुजुर्ग और बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं, क्योंकि उनकी आँखें पहले से संवेदनशील होती हैं।
सड़क हादसा केवल व्यक्तिगत त्रासदी नहीं है। यह पूरे परिवार की ज़िंदगी बदल देता है। बच्चे अपने माता-पिता से दूर हो जाते हैं, माता-पिता अपने बच्चों को खो देते हैं। कई परिवार हमेशा के लिए अधूरे हो जाते हैं। हादसों का आर्थिक प्रभाव भी बहुत बड़ा है। सड़क हादसों की वजह से हर साल भारत को GDP का लगभग तीन प्रतिशत नुकसान होता है। यह केवल व्यक्तिगत नुकसान नहीं है; यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी गंभीर खतरा है।
दुनिया के कई विकसित देशों ने इस समस्या को पहले ही समझ लिया था। यूरोप, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में हेडलाइट्स की चमक और रंग पर सख़्त नियम हैं। वहां पीली हेडलाइट्स को प्राथमिकता दी जाती है। यह केवल आँखों के लिए सुरक्षित नहीं है, बल्कि बारिश और धुंध में सड़क भी स्पष्ट दिखाई देती है। भारत में नियम मौजूद हैं, लेकिन उनका पालन ढीला है। वाहन निर्माता गाड़ियों में चमकदार हेडलाइट्स लगाते हैं और आम लोग अक्सर इस खतरे के प्रति जागरूक नहीं होते।
भारत में समस्या को और बढ़ाने वाले कारण हैं – अनियंत्रित आफ्टर-मार्केट फिटिंग, यानी लोग बिना सोचे-समझे LED हेडलाइट्स लगवा लेते हैं; कानून का पालन न होना और सड़क सुरक्षा की अनदेखी; जागरूकता की कमी, जहां अधिकतर लोग नहीं जानते कि उनकी सफ़ेद हेडलाइट दूसरों के लिए खतरा बन सकती है।
इस समस्या का समाधान मुश्किल नहीं है। जरूरत है कि सरकार, वाहन निर्माता और आम लोग मिलकर काम करें। सरकार को हेडलाइट्स की चमक और रंग (कलर टेम्परेचर) पर स्पष्ट मानक तय करने होंगे। 4300K से अधिक कलर टेम्परेचर वाली सफ़ेद हेडलाइट्स पर रोक लगानी चाहिए। सड़क परिवहन विभाग को नियमित जांच और सख़्त कार्रवाई करनी होगी। वाहन निर्माता डिफ़ॉल्ट रूप से सुरक्षित और पीली हेडलाइट्स लगाएँ और ब्राइटनेस के बजाय सुरक्षा को प्राथमिकता दें।
साथ ही, जागरूकता अभियान बहुत जरूरी हैं। जनजन गुप्ता जैसे अभियान राष्ट्रीय स्तर पर फैलाए जाएँ। टीवी, रेडियो और सोशल मीडिया पर “पीली हेडलाइट लगाओ – ज़िंदगी बचाओ” जैसे संदेश व्यापक रूप से साझा किए जाएँ। आम लोग खुद पहल करें, अपनी गाड़ी की हेडलाइट सुरक्षित बनाएं और अपने परिवार व मित्रों को भी जागरूक करें।
जनजन गुप्ता अभियान का संदेश सीधा और असरदार है – “सफ़ेद चमक नहीं, पीली दोस्ती चाहिए।” यह केवल नारा नहीं है, बल्कि एक आंदोलन है। यदि हम सब मिलकर इसे अपनाएँ, तो सड़कें सुरक्षित होंगी, परिवार हादसों से बचेंगे और रात का सफ़र डर-मुक्त होगा।
सड़क सुरक्षा केवल नियमों का पालन करना नहीं है, यह मानव जीवन की रक्षा का सवाल है। सफ़ेद हेडलाइट जैसी छोटी चीज़ भी बड़े पैमाने पर मौत और दर्द का कारण बन सकती है। हर हादसा सिर्फ़ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि पूरे समाज की त्रासदी है।
भारत में यह समस्या अब गंभीर रूप ले चुकी है। हर दिन सड़कों पर तेज़ सफ़ेद लाइट से प्रभावित होकर दुर्घटनाएँ होती हैं। इनमें से कई हादसे जानलेवा होते हैं। बुजुर्ग, बच्चे और पैदल यात्री सबसे कमजोर होते हैं। तेज़ सफ़ेद रोशनी उन्हें अपनी दिशा में निर्णय लेने का समय नहीं देती और हादसा अनिवार्य हो जाता है। कई परिवारों की ज़िंदगी इस वजह से हमेशा के लिए बदल जाती है।
सड़क पर हुई दुर्घटना केवल सड़क हादसा नहीं है, यह सामाजिक त्रासदी है। बच्चे अपने माता-पिता से दूर होते हैं, माता-पिता अपने बच्चों से। कई परिवार कभी फिर पूरी तरह से खुश नहीं हो पाते। इसके अलावा, हादसों के कारण इलाज और रिकवरी पर बहुत खर्च होता है, जिससे परिवार और समाज दोनों प्रभावित होते हैं।
दुनिया में कई देशों ने पहले ही कदम उठाए। यूरोप, जापान और अमेरिका में पीली हेडलाइट्स को प्राथमिकता दी जाती है। तेज़ सफ़ेद हेडलाइट्स पर प्रतिबंध है। भारत में नियम हैं लेकिन उनका पालन कमजोर है। वाहन निर्माता चमकदार हेडलाइट्स को फैशन या मार्केटिंग के लिए बढ़ावा देते हैं, और लोग जागरूक नहीं हैं।
इसका समाधान सरल है। सरकार को नियम बनाकर उनका पालन करना चाहिए। वाहन निर्माता सुरक्षित और पीली हेडलाइट्स लगाएँ। आम लोग खुद कदम उठाएँ और दूसरों को भी जागरूक करें। अभियान जैसे जनजन गुप्ता इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
सड़क सुरक्षा केवल नियमों का पालन नहीं है, यह जिंदगी की रक्षा है। सफ़ेद हेडलाइट्स जैसी छोटी-सी चीज़ कई जानों को खतरे में डाल सकती है। एक पल की तेज़ रोशनी कई परिवारों के लिए हमेशा के अंधकार का कारण बन सकती है। अगर हम सब मिलकर जागरूकता फैलाएँ और सुरक्षित हेडलाइट अपनाएँ, तो सड़कें सुरक्षित होंगी, हादसों से परिवार बचेंगे और रात का सफ़र भयमुक्त होगा।
आज समय है कि हम सब मिलकर आवाज़ उठाएँ, सरकार से नियम सख़्त करवाएँ, वाहन निर्माता अपनी ज़िम्मेदारी समझें और आम लोग जागरूक होकर बदलाव लाएँ। एक पल की चमक अगर जीवन का अंधकार बना सकती है, तो क्यों न उसी पल को जीवन और सुरक्षा की रोशनी में बदल दिया जाए। सड़कें सुरक्षित हों, हादसों से परिवार बचें और रात का सफ़र डर-मुक्त बने – यही हमारा लक्ष्य होना चाहिए।
युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (पंजीकृत न्यास) नई दिल्ली की ओर से मौलिक सृजन के प्रोत्साहन एवं हिंदी साहित्य – संवर्धन में उल्लेखनीय योगदान हेतु वर्ष-2025 के शीर्षस्थ सम्मान देश के विभिन्न राज्यों के चयनित आठ साहित्यकारों को दिए जाने की घोषणा की गई है। इनमें कोटा राजस्थान के जाने माने साहित्यकार और सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के सेवानिवृत संयुक्त निदेशक डॉ प्रभात कुमार सिंघल भी शामिल है। यह सम्मान आगामी 2 नवंबर 2025 को दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी ( गीतांजलि सभागार) में आयोजित 12 वें अखिल भारतीय साहित्य महोत्सव एवं सम्मान समारोह में प्रदान किए जाएंगे। जयपुर के वरिष्ठ पत्रकार बालमुकुंद ओझा के अनुसार युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच के अध्यक्ष रामकिशोर उपाध्याय के मुताबिक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल को स्व. डी.पी.चतुर्वेदी स्मृति लाइफ टाईम अचीवमेंट सम्मान से अलंकृत किया जाएगा। उपाध्याय ने बताया कि पुरस्कार राशि के अतिरिक्त मंच की ओर से सभी पुरस्कार गृहीताओं को सम्मान पत्र ,शाल और प्रतीक चिन्ह प्रदान किए जायेंगे। उल्लेखनीय है दर्जनों पुस्तकों के रचयिता डॉ सिंघल पिछले 40 वर्षों से साहित्य के क्षेत्र में सक्रीय है। विभिन्न विषयों पर इनके हजारों आलेख और फीचर देशभर के समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए है।
टीम इंडिया ने सूर्यकुमार यादव की कप्तानी में एशिया कप 2025 में लगातार अपनी 5वीं जीत दर्ज की है। इसके साथ ही टीम इंडिया ने फाइनल के लिए क्वालीफाई भी कर लिया है। भारत ने दुबई इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम में खेले गए सुपर-4 मुकाबले में बांग्लादेश को 41 रन से धूल चटाकर फाइनल में एट्री की। भारत ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 20 ओवर में छह विकेट खोकर 168 रन बनाए। इसके जवाब में बांग्लादेश की टीम महज 127 रन पर आल आउट हो गई। हालांकि, भारत ने इस टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा कैच (12) छोड़े हैं। वहीं बांग्लादेश की तरफ से सबसे ज्यादा सैफ हसन ने 69 रन सबसे ज्यादा बनाए।
वहीं 169 रनों का पीछा करने उतरी बांग्लादेश की टीम की शुरुआत अच्छी नहीं रही। पिछले मैच पाकिस्तान के खिलाफ एक भी विकेट ना लेने और सबसे महंगे रहे जसप्रीत बुमराह ने इस पर भारत की पहली सफलता तंजिद हसन के रूप में दिलाई। इसके बाद परवरेज हुसैन इमॉन ने सैफ हसन के साथ दूसरे विकेट के लिए 42 रन जोड़े। सातवें ओवर में कुलदीप यादव ने परवेज हुसैन इमॉन (21) को आउटकर भारत को दूसरी सफलता दिलाई। भारतीय स्पिन गेंदबाजी आक्रमण के आगे बांग्लादेशी बल्लेबाज ढेर नजर आए और एक के बाद अपने विकेट गंवाते चले गए। 10वें ओवर में अक्षर पटेल ने तौहीद ह्रदोय को 7 रन पर आउट किया।
हां इस दौरान सैफ हसन एक छोर से बांग्लादेश की कमान संभाले हुए थे। शमीम हुसैन बिना खाता खोले आउट हुए, मोहम्मद सैफुद्दीन भी चार रन बनाकर वरुण चक्रवर्ती के शिकार बने। 17वें ओवर में कुलदीप यादव ने रिशाद हुसैन (2) और तंजिम हसन साकिब (0) को आउट किया। 18वें ओवर में बुमराह ने सैफ हसन को आउट कर भारत की जीत पर मुहर लगा दी। 20वें ओवर की तीसरी गेंद पर तिलक वर्मा ने मुस्तफिजुर रहमान (6) को आउटकर बांग्लादेश को 127 के स्कोर पर ढेर पर दिया। वहीं भारत की ओर से कुलदीप यादव ने 3, बुमराह और वरुण चक्रवर्ती ने 2-2 जबकि अक्षर और तिलक वर्मा ने 1-1 विकेट झटके।
टीम इंडिया ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 168 बनाए। हालांकि, भारत की शुरुआत धीमी रही लेकिन पावरप्ले में बतौर ओपनर जोड़ी शुभमन गिल और अभिषेक शर्मा ने गियर बदले और ताबड़तोड़ रन बनाए। जहां गिल 19 गेंद में 29 रन बनाकर आउट हुए। वहीं शिवम दो रन ही बना सके। जबकि अभिषेक शर्मा ने सबसे ज्यादा 37 गेंद में 75 रन की अहम पारी खेली। सूर्यकुमार यादव एक बार फिर फ्लॉप साबित हुए वह महज 5 रन ही बना सके। तिलक वर्मा 7 गेंद में 5 रन बना पाए तो हार्दिक पंड्या ने 29 गेंद में 38 रन की अहम पारी खेली। अक्षर पटेल 15 गेंद में 10 रन बनाकर नाबाद लौटे। वहीं बांग्लादेश की तरफ से हुसैन ने दो जबकि मुस्तफिजुर रहमान, तंजीम हसन साकिब और मोहम्मद सैफुद्दीन ने 1-1 विकेट हासिल किया।
सात अक्टूबर 2023 को हमास ने अचानक इजरायल पर एक साथ जमीन, समुद्र और हवाई हमला कर पूरी दुनिया को आश्चर्य चकित कर दिया था। इस हमले में करीब 1200 लोगों की मौत हुई थी और 251 को बंधक बना लिया गया था। इजरायल ने गाजा पट्टी से हमास के शासन को उखाड़ फेंकने, हमास को पूरी तरह नष्ट करने और अपने बंधकों को छुड़ाने के लिए सैन्य अभियान शुरू किया। इजरायली हमलों में 24 सितंबर 2025 तक 65,382 फलस्तीनी मारे गए और 1,66,985 जख्मी हो चुके हैं। मरने और जख्मी होने वालों में ज्यादातर तादाद बच्चों और महिलाओं की है। इजरायल की बंबारी से अस्पताल, स्कूल और धार्मिक स्थलों समेत गाजा की 80 प्रतिशत से ज्यादा इमारतें जमींदोज होकर मलबे के ढेर में तब्दील हो चुकी हैं। इजरायली प्रधान मंत्री बेनजामिन नेतन्याहू ने हमास का नामानिशान मिटाने तक हमले जारी रखने का संकल्प लिया है। हमास की आड़ में आम नागरिक मारे जा रहे हैं। लड़ाई के लंबी खिंचने और गाज़ा मे आम नागरिकों पर इजरायल के बर्बरतापूर्ण हमलों के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र परिषद समेत कई संगठन और देश आवाज उठा रहे हैं, लेकिन नेतन्याहू को किसी का आग्रह सुनाई नहीं दे रहा है। उनके नजदीक अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून, मानवाधिकार चार्टर और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की भी अहमियत नहीं है। संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में फलस्तीन और इजरायल के लिए दो-राष्ट्र के सिद्धांत पर आयोजित शिखर सम्मेलन में कई बड़े देशों ने फलस्तीन को आधिकारिक मान्यता देने की घोषणा की। तीन दिनों में फलस्तीन को मान्यता देने वाले देशों में ब्रिटेन, आस्ट्रैलिया, कनाडा, पुर्तगाल, फ्रांस, बेलजियम, माल्टा, इंदौरा, मोनाको और लक्जंबर्ग शामिल हैं। ब्रिटेन और कनाडा ऐसा करने वाले जी-7 के पहले देश हैं। अमेरिका को छोड़कर सुरक्षा परिषद के सभी स्थायी सदस्य रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन फलस्तीन का पूर्ण राष्ट्र बनाने के पक्ष में हैं। भारत समेत संयुक्त राष्ट्र के तीन चौथाई देश पहले ही उसे मान्यता दे चुके हैं। 15 नवंबर 1988 को फलस्तीनी मुक्ति संठन (पीएलओ) के नेता यासिर अराफात के स्वतंत्र फलस्तीनी राज्य की घोषणा करने के कुछ ही मिनटों बाद सबसे पहले अल्जीरिया ने आधिकारिक तौर पर फलस्तीन को मान्यता दी थी। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने कहा है कि एक देश के रूप में मान्यता फलस्तीनियों का अधिकार है, कोई उपहार नहीं। फलस्तीन में निरापराध आम नागरिकों की हत्याएं पूरी तरह अस्वीकारीय हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फलस्तीन के द्विराष्ट्रीय हल की कोशिशें प्रशंसनीय हैं। इसका एकमात्र हल यही है कि दोनों स्वतंत्र देश एक दूसरे को आधिकारिक तौर पर मान्यता देकर पूर्णतया वैश्विक बिरादरी का हिस्सा बनें। इससे न केवल क्षेत्र, अपितु दुनिया में अमन कायम होगा। यदि ऐसा नहीं किया जाता, तो इससे हमास को फायदा पहुंचेगा और उसे अपनी गतिविधियां जारी रखने में मदद मिलेगी। लेकिन, बेंजामिन नेतन्याहू को यह समाधान स्वीकार नहीं है। वह फलस्तीन का अस्तित्व स्वीकार करने को ही तैयार नहीं और उसे मान्यता देने वाले देशों पर अपना गुस्सा उतारते हुए अंजाम भुगतने की धमकी दे रहे हैं। नेतन्याहू के कटु तेवरों और धमकियों से नाराज वे देश भी फलस्तीन की हिमायत में आ खड़े हुए, जो कल तक यहूदियों के साथ होने वाले ऐतिहासिक अन्याय के चलते इजरायल के साथ हमदर्दी रखते आ रहे थे। इजरायल की गाजा में आक्रमक कार्रवाई, निर्दोषों के नरसंहार और भूखे लोगों तक राहत सामग्री नहीं पहुंचने देने के अमानवीय कृत्य से क्षुब्ध और आहत यूरोपीय देशों को कठोर रुख अपनाने पर मजबूर किया। फलस्तीन को संयुक्त राष्ट्र के 193 देशों में से 145 ने मान्यता दे दी है, जबकि इजरायल के साथ सिर्फ 45 मुल्कों का समर्थन है। इजरायल, अमेरिका और उनके सहयोगी देशों के अलावा जापान, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर फलस्तीन को मान्यता नहीं देने वाले देशों में शामिल हैं। अगर, इजरायल ने अपना रवैया नहीं बदला, तो निकट भविष्य में उसकी हिमायत में खड़े देशों में और कमी हो सकती है।
भारत ने गुरुवार को रेल-आधारित मोबाइल लॉन्चर प्रणाली से मध्यम दूरी की अग्नि-प्राइम मिसाइल, एक उन्नत मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल, का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बृहस्पतिवार को कहा कि भारत ने रेल आधारित मोबाइल प्रक्षेपण प्रणाली से अग्नि-प्राइम मिसाइल का सफल परीक्षण किया है। अगली पीढ़ी की यह मिसाइल 2,000 किलोमीटर तक की दूरी तक मार करने के लिए तैयार की गई है और विभिन्न उन्नत सुविधाओं से लैस है।
सिंह ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा कि विशेष रूप से तैयार रेल-आधारित मोबाइल प्रक्षेपण प्रणाली से किया गया यह अपनी तरह का पहला प्रक्षेपण है। उन्होंने कहा कि इसमें रेल नेटवर्क पर चलने की क्षमता है। इससे उपयोगकर्ता समूचे देश में कहीं भी बेहद कम समय में कम दृश्यता में भी प्रतिक्रिया करने में सक्षम होंगे।
रक्षा मंत्री ने आगे कहा कि उड़ान परीक्षण की सफलता ने भारत को उन चुनिंदा देशों में शामिल कर दिया है जिन्होंने “चलते-फिरते रेल नेटवर्क से कैनिस्टराइज्ड लॉन्च सिस्टम” विकसित किया है। सिंह ने कहा, “मध्यम दूरी की अग्नि-प्राइम मिसाइल के सफल परीक्षण के लिए डीआरडीओ, सामरिक बल कमान (एसएफसी) और सशस्त्र बलों को बधाई। इस सफल उड़ान के लिए।”
पोस्ट में आगे कहा गया, “मध्यम दूरी की अग्नि-प्राइम मिसाइल के सफल परीक्षण पर डीआरडीओ, सामरिक बल कमान (एसएफसी) और सशस्त्र बलों को बधाई। इस सफल उड़ान परीक्षण ने भारत को उन चुनिंदा देशों के समूह में शामिल कर दिया है, जिनके पास मोबाइल रेल नेटवर्क से कैनिस्टराइज्ड प्रक्षेपण प्रणाली विकसित करने की क्षमता है।”
यह परीक्षण अगस्त में ओडिशा के चांदीपुर में मिसाइल के सफल प्रक्षेपण के बाद किया गया है। मार्च 2024 में, ‘मिशन दिव्यास्त्र’ के तहत अग्नि-5 का परीक्षण किया गया, जिसमें MIRV (मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टार्गेटेबल री-एंट्री व्हीकल) क्षमता का प्रदर्शन किया गया। MIRV से लैस एक मिसाइल 3-4 परमाणु हथियार ले जा सकती है, जिनमें से प्रत्येक अलग-अलग लक्ष्यों पर निशाना साधता है। वर्तमान में, 2003 में गठित SFC केवल एकल-हथियार वाली मिसाइलों का संचालन करती है। ठोस ईंधन से चलने वाली, तीन-चरणीय अग्नि-5 को कैनिस्टर से प्रक्षेपित किया जाता है, जिससे इसे तेज़ी से तैनात किया जा सकता है
देश में नवरात्र से त्योहारी सीज़न शुरू हो गया है। दीपावली तक त्योहारों की धूम रहेगी। त्योहार आये और मिलावटिये सक्रीय न हो, ऐसा हो नहीं सकता। अब तो मिलावट और त्योहार का लगता है चोली दामन का साथ हो गया है। हालांकि देशभर में मिलावटियों पर छापे मारे जा रहे है और मिलावटी सामग्री जब्त की जा रही है। मगर यह छापेमारी ऊंट के मुंह में जीरे के सामान है। आम आदमी महंगाई के साथ खाद्य पदार्थो में हो रही मिलावट खोरी से खासा परेशान रहता है। हमारे बीच यह धारणा पुख्ता बनती जा रही है कि बाजार में मिलने वाली हर चीज में कुछ न कुछ मिलावट जरूर है। लोगों की यह चिंता बेबुनियाद नहीं है। आज मिलावट का कहर सबसे ज्यादा हमारी रोजमर्रा की जरूरत की चीजों पर ही पड़ रहा है। खाने पीने के पदार्थो में मिलावट कोई नयी समस्या नहीं है। मिलावट और खराब उत्पाद बेचे जाने की खबरें आम हो चुकी हैं। साल-दर-साल इसका दायरा व्यापक होता जा रहा है। खाद्य पदार्थों में मिलावट ने हमारा जीना हराम कर रखा है। हर चीज में मिलावट ने हमारी जिंदगी की रफ्तार को अवरुद्ध कर दिया है। शरीर का हर हिस्सा जैसे मिलावट से कराह रहा है। जितनी चोटें युद्ध भूमि में राणा सांगा ने नहीं खाई होंगी उतनी हम मिलावटी वस्तुओं से रोज ही खा रहे हैं। इसका मतलब बिलकुल साफ है कि हमारा शरीर पूरी तरह मिलावटी हो गया है।
त्योहारी सीज़न में गरीब और अमीर सभी वर्ग के लोग अपने सामर्थ्य के अनुरूप घर की साफ सफाई, नए कपड़े, सोने चांदी के सामान के साथ मिठाइयां बनाने और खरीदने में व्यस्त हो जाते है। इस दौरान घर घर में मीठे पकवान बनते है। नवरात्र सहित अन्य पर्वों पर बिकने वाली मिठाइयों की तैयारियां भी जोरों पर हैं, लेकिन बाजार में बिकने वाली मिठाई कितनी शुद्ध होगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है। बड़े से लेकर छोटे शहरों और ग्रामों में मिलावटखोर सक्रिय हो जाते हैं। दूध से लेकर खोया और घी, तेल तक में मिलावट की जाती है। त्योहारी सीजन शुरू होते ही मिलावटिये भी सक्रीय होकर आमजन के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करते है।
खाद्य पदार्थों में अशुद्ध, सस्ती अथवा अनावश्यक वस्तुओं के मिश्रण को मिलावट कहते हैं। आज समाज में हर तरफ मिलावट ही मिलावट देखने को मिल रही है। पानी से सोने तक मिलावट के बाजार ने हमारी बुनियाद को हिला कर रख दिया है। पहले केवल दूध में पानी और शुद्ध देशी घी में वनस्पति घी की मिलावट की बात सुनी जाती थी, मगर आज घर-घर में प्रत्येक वस्तु में मिलावट देखने और सुनने को मिल रही है। मिलावट का अर्थ प्राकृतिक तत्त्वों और पदार्थों में बाहरी, बनावटी या दूसरे प्रकार के मिश्रण से है।
मुनाफाखोरी करने वाले लोग रातोंरात धनवान बनने का सपना देखते हैं। अपना यह सपना साकार करने के लिए वे बिना सोचे-समझे मिलावट का सहारा लेते हैं। सस्ती चीजों का मिश्रण कर सामान को मिलावटी कर महंगे दामों में बेचकर लोगों को न केवल धोखा दिया जाता है, बल्कि हमारे स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ भी किया जाता है। मिलावटी खाद्य पदार्थों के सेवन से प्रतिवर्ष हजारों लोग विभिन्न बीमारियों का शिकार होकर जीवन से हाथ धो बैठते हैं। मिलावट का धंधा हर तरफ देखने को मिल रहा है। दूध बेचने और मिलावट करने वाले से लेकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों तक ने मिलावट के बाजार पर अपना कब्जा कर लिया है।
सत्य तो यह है कि हम जो भी पदार्थ सेवन कर रहे हैं चाहें वे खाद्य पदार्थ हो या दूसरे, सब में मिलावट ही मिलावट हो रही है। मिलावट ने अपने पैर जबरदस्त तरीके से फैला लिए हैं। दूधिए की मिलावट तो एक उदाहरण के रूप में है। मगर आज हर वस्तु में मिलावट से हमारा वातावरण प्रदूषित और जहरीला हो उठा है। दूध, मावा, घी, हल्दी, मिर्च, धनिया, अमचूर, सब्जियां, फल आदि सभी मिलावट की चपेट में है। आज खाने पीने सहित सभी चीजों में धड़ले से मिलावट हो रही है। ऐसा कोई भोज्य पदार्थ नहीं है, जो जहरीले कीटनाशकों और मिलावटों से मुक्त हो। बाजार में पपीता, आम और केला, सेव अनार जैसे फलों को कैल्शियम कार्बाईड की मदद से पकाया जाता है। चिकित्सकों के अनुसार यह स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक है। फलों को सुनहरा बनाने के लिए पैराफीन वैक्स भी लगाया जाता है। इन फलों को खाने से कैंसर और डायरिया जैसी बीमारियां होती है। डेयरी और कृषि उत्पादों-विशेषकर हरी सब्जियों में ऑक्सिटोसिन का खूब इस्तेमाल हो रहा है। सच तो यह है अधिक मुनाफा कमाने के लालच में नामी कंपनियों से लेकर खोमचेवालों तक ने उपभोक्ताओं के हितों को ताख पर रख दिया है।
(नवरात्रियों का संदेश यही है कि आस्था, संयम और विवेक को एक साथ अपनाया जाए।)
नवरात्रि में हलवा-पूरी जैसे पारंपरिक प्रसाद का महत्व है, लेकिन यह केवल इंसानों के लिए ही सुरक्षित है। गाय का पाचन तंत्र इंसानों से भिन्न होता है, इसलिए घी, चीनी और मैदे से बनी चीज़ें उन्हें हानिकारक हो सकती हैं। इस दौरान गायों को केवल हरी घास, भूसा, फल और चारा देना चाहिए। श्रद्धा और सुरक्षा एक साथ चल सकती है। नवरात्रि का उद्देश्य केवल भक्ति नहीं, बल्कि विवेकपूर्ण आस्था और पशु संरक्षण भी है। संतुलन बनाए रखते हुए हम परंपरा और पशु कल्याण दोनों निभा सकते हैं।
– डॉ प्रियंका सौरभ
नवरात्रि, भारतीय संस्कृति और धार्मिक आस्था का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। यह केवल नौ दिन का उत्सव नहीं है, बल्कि यह भक्ति, संयम, स्वास्थ्य और सामाजिक जिम्मेदारी का प्रतीक भी है। नवरात्रियों के दौरान भक्त अपने घरों और मंदिरों में देवी दुर्गा की पूजा करते हैं और भोजन तथा खान-पान पर विशेष ध्यान देते हैं। हलवा-पूरी, चने की दाल, फल और अन्य पारंपरिक व्यंजन इस अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखते हैं। इन व्यंजनों का स्वादिष्ट और पवित्र होना उन्हें एक धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा बनाता है।
हालांकि, इस पवित्र परंपरा के बीच एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है: क्या नवरात्रियों में बनाए जाने वाले ये व्यंजन केवल मानव उपभोग के लिए ही सुरक्षित हैं, या इन्हें हमारे पवित्र मित्र, जैसे गाय, को भी दिया जा सकता है? यह प्रश्न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और पारिस्थितिक संतुलन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
नवरात्रियों में हलवा-पूरी का प्रसाद मुख्य रूप से गेहूं के आटे, घी और चीनी से तैयार किया जाता है। इसके स्वाद और सुगंध से भक्त आनंदित होते हैं और इसे देवी की भक्ति का प्रतीक मानते हैं। हलवा-पूरी का आनंद लेना न केवल उत्सव का हिस्सा है, बल्कि यह पारिवारिक और सामाजिक संबंधों को भी मजबूत करता है। हालांकि, इसके स्वास्थ्य पहलू पर ध्यान देना भी उतना ही जरूरी है।
इंसानों के लिए हलवा-पूरी सीमित मात्रा में ऊर्जा और संतोष प्रदान करती है। परंतु, अत्यधिक मात्रा में इसे खाना पाचन समस्याएँ, वजन बढ़ना और अन्य स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकता है। नवरात्रियों के दौरान लोग अक्सर फल, हल्का सत्त्विक भोजन और दूध जैसी चीज़ों का सेवन करते हैं, ताकि शरीर और मन दोनों को शुद्ध किया जा सके। इसलिए, हलवा-पूरी का सेवन संयमित और सोच-समझकर होना चाहिए।
अब सवाल उठता है कि क्या गाय को भी हलवा-पूरी दी जा सकती है। हिंदू धर्म में गाय को अत्यंत पवित्र माना गया है। इसे माता का दर्जा प्राप्त है और धार्मिक ग्रंथों में उनकी सेवा और संरक्षण का विशेष महत्व बताया गया है। लेकिन, गायों का पाचन तंत्र इंसानों से भिन्न होता है। वे मुख्य रूप से हरी घास, चारा, भूसा और अनाज पर निर्भर करती हैं। घी, चीनी और मैदा जैसी भारी और मीठी चीज़ें उनके लिए हानिकारक हो सकती हैं। हलवा-पूरी में मौजूद अत्यधिक घी और चीनी उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है। इससे दस्त, अपच और अन्य जठरांत्र संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
यहाँ पर संतुलन की आवश्यकता स्पष्ट होती है। नवरात्रियों का उद्देश्य न केवल आस्था और भक्ति है, बल्कि पशुओं और प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व बनाए रखना भी है। श्रद्धा और सुरक्षा एक साथ चल सकते हैं। गायों के स्वास्थ्य के लिए हलवा-पूरी देना सही नहीं है, और उन्हें प्राकृतिक चारा, हरी घास और फल देना सर्वोत्तम विकल्प है। धार्मिक दृष्टि से, श्रद्धा का वास्तविक अर्थ यही है कि हम अपनी आस्था का पालन करते हुए भी विवेक का उपयोग करें।
पारंपरिक दृष्टि से, नवरात्रियों में प्रसाद वितरण केवल मानव उपभोग तक सीमित होना चाहिए। ऐसा करने से धार्मिक आस्था का पालन होता है और पशुओं की सुरक्षा भी सुनिश्चित रहती है। कई मंदिर और धार्मिक स्थल इस संतुलन को बनाए रखते हुए अपने प्रसाद में केवल फल, हरी पत्तियाँ और सूखा अनाज देते हैं। इससे गायों को पोषण मिलता है और उनका स्वास्थ्य सुरक्षित रहता है।
सांस्कृतिक दृष्टि से यह विषय अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारतीय परंपरा में गाय को माता का दर्जा दिया गया है। धार्मिक ग्रंथों और लोक कथाओं में उनका संरक्षण, सम्मान और सेवा विशेष रूप से उल्लेखित है। अगर हम नवरात्रियों में श्रद्धा और परंपरा का पालन करते हुए गायों के स्वास्थ्य की अनदेखी करते हैं, तो हम उनकी सुरक्षा और पालन-पोषण के सिद्धांतों के प्रति उत्तरदायी नहीं रह पाते। यह एक ऐसा मामला है जहाँ धर्म और विज्ञान का संतुलन आवश्यक है।
शिक्षा और जागरूकता इस संदर्भ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। धार्मिक आयोजकों, मंदिरों और परिवारों को यह समझना आवश्यक है कि उनके द्वारा दिया जाने वाला प्रत्येक प्रसाद केवल इंसानों के लिए ही नहीं, बल्कि अगर पशु उसमें सम्मिलित हैं, तो उनके लिए भी सुरक्षित होना चाहिए। स्कूलों, सामाजिक संस्थाओं और धार्मिक संगठनों के माध्यम से जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए, ताकि लोग समझ सकें कि हलवा-पूरी गायों के लिए सुरक्षित नहीं है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी यह मानते हैं कि गायों को इंसानों के खान-पान से अलग रखना उनके दीर्घकालीन स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। घी, चीनी और तेल से बनी चीज़ें उनके जठरांत्र प्रणाली में समस्याएँ पैदा कर सकती हैं। इसलिए नवरात्रियों के दौरान पारंपरिक प्रसाद का आनंद केवल इंसानों के लिए ही लेना चाहिए। इससे धार्मिक आस्था भी बनी रहती है और पशुओं की सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
नवरात्रियों में हलवा-पूरी का महत्व केवल स्वाद या परंपरा तक सीमित नहीं है। यह भक्ति, सामूहिक उत्साह और परिवार के साथ समय बिताने का माध्यम भी है। लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि श्रद्धा का अर्थ केवल परंपरा निभाना नहीं है, बल्कि इसमें विवेक और समझदारी भी शामिल होनी चाहिए। गायों और अन्य पालतू पशुओं के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए प्रसाद का वितरण किया जाना चाहिए।
अध्ययन और अनुभव बताते हैं कि धार्मिक आयोजनों में पशुओं की अनदेखी करने से न केवल उनका स्वास्थ्य प्रभावित होता है, बल्कि समाज में जागरूकता की कमी भी उजागर होती है। इसलिए, नवरात्रियों में पशु सुरक्षा और मानव स्वास्थ्य दोनों को प्राथमिकता देना आवश्यक है। इससे हमारी धार्मिक आस्था और सामाजिक जिम्मेदारी दोनों पूरी होती हैं।
इस परंपरा के माध्यम से हम बच्चों को भी एक महत्वपूर्ण शिक्षा दे सकते हैं। उन्हें यह सिखाया जा सकता है कि धार्मिक पर्व केवल उत्सव और आनंद का माध्यम नहीं हैं, बल्कि इसमें विवेक, जिम्मेदारी और सह-अस्तित्व का भी संदेश छिपा है। बच्चे जब यह सीखते हैं कि हलवा-पूरी केवल इंसानों के लिए है और गायों को प्राकृतिक चारा दिया जाता है, तो वे अपने जीवन में भी संवेदनशील और जिम्मेदार नागरिक बनते हैं।
नवरात्रियों का संदेश यही है कि आस्था, संयम और विवेक को एक साथ अपनाया जाए। पारंपरिक व्यंजनों और प्रसाद का आनंद लेते समय हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारे चार-पाँव वाले मित्रों की सुरक्षा और स्वास्थ्य सर्वोपरि है। अगर हम यह संतुलन बनाए रखते हैं, तो नवरात्रियों का उत्सव और भी अर्थपूर्ण और सुखदायक बन जाता है।
अंत में, यह याद रखना चाहिए कि नवरात्रियों का वास्तविक उद्देश्य केवल खाने-पीने और उत्सव का आनंद नहीं है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि श्रद्धा और विवेक साथ-साथ चल सकते हैं। इंसान और पशु दोनों के स्वास्थ्य का ध्यान रखना हमारी धार्मिक और सामाजिक जिम्मेदारी है। इसलिए, नवरात्रियों में हलवा-पूरी का सेवन संयमित रूप से इंसानों के लिए किया जाए और गायों को केवल प्राकृतिक चारा दिया जाए। यही सही और संतुलित दृष्टिकोण है, जो आस्था, संस्कृति और सुरक्षा का समन्वय स्थापित करता है।
इस संतुलन और विवेक के माध्यम से नवरात्रियों का त्योहार न केवल धार्मिक रूप से पूरक बनता है, बल्कि यह हमारे समाज और पशु कल्याण के लिए भी एक प्रेरणादायक उदाहरण बन जाता है। इस तरह, हम अपने चार-पाँव वाले मित्रों के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए, धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक परंपरा का पालन कर सकते हैं।
पेशावर: 24 सितंबर (भाषा) पाकिस्तान की सेना ने बुधवार को खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के डेरा इस्माइल खान जिले के दराबन क्षेत्र में गोपनीय सूचना के आधार पर की गई कार्रवाई में प्रतिबंधित आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के 13 आतंकियों को मार गिराया।
सेना की मीडिया शाखा के अनुसार, यह अभियान दक्षिण वजीरिस्तान से सटे क्षेत्र में ‘फितना अल-खवारिज’ नाम से पहचाने जाने वाले आतंकियों की मौजूदगी की सूचना पर किया गया। यह नाम टीटीपी के लिए इस्तेमाल किया जाता है।