करूर (तमिलनाडु), तमिलगा वेत्री कषगम (टीवीके) प्रमुख विजय के नेतृत्व में यहां आयोजित एक रैली में शनिवार को भगदड़ जैसी स्थिति देखी गई ! सूचनाओं के अनुसार इसमें बच्चों समेत कम से कम 36 लोगों की मौत होने की आशंका है। रैली में भारी भीड़ के मद्देनजर हताहतों की संख्या और बढ़ सकती है।54 से ज्यादा लोगों के घायल होने की सूचना है।
जब विजय सभा को संबोधित कर रहे थे, तब भीड़ बढ़ती गई और बेकाबू हो गई तथा पार्टी कार्यकर्ताओं और कुछ बच्चों समेत कई लोग बेहोश होकर गिर पड़े।
कई कार्यकर्ताओं ने स्थिति को भांप लिया और शोर मचाया। विजय ने ध्यान दिया और अपना भाषण रोककर, खासतौर पर बनाई गई प्रचार बस के ऊपर से लोगों तक पानी की बोतलें पहुंचाने की कोशिश की।
एम्बुलेंस को भीड़-भाड़ वाली सड़क से होते हुए घटनास्थल तक पहुंचने में काफी मशक्कत करनी पड़ी।
बेहोश हुए लोगों को एम्बुलेंस से पास के अस्पतालों में ले जाया गया और बताया जा रहा है कि उनमें से कुछ लोगों की हालत खराब है।
विजय ने स्थिति को समझते हुए अपना भाषण निर्धारित समय से पहले ही समाप्त कर दिया।
इस बीच तमिलनाड के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने कहा कि ‘करूर से मिली जानकारी चिंताजनक’ है।
उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य मंत्री मा सुब्रमण्यम और जिलाधिकारी को हरसंभव सहायता प्रदान करने की सलाह दी। उन्होंने मंत्री अन्बिल महेश को भी सहायता प्रदान करने के लिए करूर जाने को कहा है।
घटना की सूचना पर मंत्री, शीर्ष प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी करूर पहुंच गए हैं।
मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा कि उन्होंने शीर्ष पुलिस अधिकारियों को करूर में सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए उचित कदम उठाने का निर्देश दिया है।
स्टालिन ने करूर में आम जनता से चिकित्सकों और पुलिस के साथ सहयोग करने की अपील की।
ठाणे, (भाषा) महाराष्ट्र के ठाणे जिले में मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी) ने मोटरसाईकिल दुर्घटना में 42 साल की महिला के मौत पर उसके परिजनों को 19.72 लाख का मुआवजा देने का आदेश दिया है। यह दुर्घटना साल 2020 में हुई थी।
एमएसीटी के सदस्य आर वी मोहिते ने मोटरसाईकिल के मालिक और बीमाकर्ता (आईसीआईसीआई लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड) को दावा दायर करने के दिन से प्रतिवर्ष नौ प्रतिशत ब्याज के साथ संयुक्त रूप से और अलग-अलग मुआवजा भुगतान करने का आदेश दिया।
यह आदेश 23 सितंबर को दिया गया जिसकी प्रति शनिवार को प्राप्त हुई।
पीड़िता शिवानी संदीप पश्ते 19 नवंबर,2020 को मोटरसाइकिल पर पीछे बैठी थीं तभी लापरवाही से वाहन चलाने के कारण मोटरसाइकिल फिसल गई। इससे पश्ते को गंभीर चोटें आई। कुछ दिन बाद मुंबई के जे जे अस्पताल में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई।
पश्ते ठाणे नगर परिवहन सेवा में परिचालक के पद पर कार्यरत थीं।
न्यायाधिकरण ने कहा कि दुर्घटना के समय मोटर साईकिल फिसल गई और पश्ते गिर गईं जिससे उनके सिर में चोट लग गई।
न्यायाधिकरण ने कहा कि दुर्घटनास्थल पर सड़क निर्माण कार्य चल रहा था, लेकिन मोटरसाईकिल के मालिक के किसी चीज की परवाह नहीं की।
इस मामले में मोटरसाईकिल मालिक के खिलाफ एकपक्षीय रूप से फैसला किया गया जिसके कारण बीमाकर्ता कंपनी ने दावे का विरोध किया। कंपनी ने कहा कि वाहन और चालक दुर्घटना में शामिल नहीं थे और चालक का लाइसेंस वैध नहीं था।
हालांकि न्यायाधिकरण ने इन आपत्तियों को खारिज कर दिया है।
न्यायाधिकरण ने पश्ते की आय और परिवार में उनके योगदान को ध्यान में रखते हुए मुआवजे की गणना की।
न्यायाधिकरण ने कहा कि मृतक एक कामकाजी महिला थी जो बहुत स्नेह और प्यार के साथ परिवार के सदस्यों की देखरेख करने के साथ घरेलू काम, अपने करियर और परिवार से जुड़ी ज्म्मेदारियों को भी निभाती थी।
आदेश में कहा गया है कि महिला की आकस्मिक मृत्यु के कारण दावेदारों (महिला के परिजन) को नुकसान हुआ है। न्यायाधिकरण ने पश्ते के पति और दो बेटियों को 19.72 लाख रुपये का मुआवजा प्रदान करने का आदेश दिया।
उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में हाल ही में जुम्मे की नमाज़ के बाद ‘आई लव मोहम्मद’ स्लोगन को लेकर बड़ा विवाद और हिंसक झड़प देखने को मिली। यह घटनाक्रम कानपुर में इसी स्लोगन वाले बैनर पर दर्ज हुई FIR के विरोध में बुलाई गई एक रैली के बाद शुरू हुआ। प्रशासन ने रैली की अनुमति नहीं दी थी, जिसके बावजूद बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए और तनाव पैदा हो गया।
1. विवाद का मूल कारण बरेली में हिंसा की पृष्ठभूमि कानपुर में एक धार्मिक जुलूस के दौरान ‘आई लव मोहम्मद’ (I Love Muhammad) लिखे बैनर लगाए जाने के मामले से जुड़ी है। इस मामले में कानपुर पुलिस द्वारा कुछ लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की गई थी। इसी FIR और धार्मिक मुद्दों पर कथित अपमानजनक टिप्पणियों के विरोध में, इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल (IMC) के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रज़ा खान ने 26 सितंबर, 2025 (शुक्रवार) को जुम्मे की नमाज़ के बाद प्रदर्शन का आह्वान किया था। 2. प्रशासन द्वारा अनुमति अस्वीकार विरोध प्रदर्शन की घोषणा के बाद, जिला प्रशासन ने पूरे जिले में धारा 163 BNSS (जो सार्वजनिक सभाओं पर रोक लगाती है) लागू करते हुए किसी भी तरह के जुलूस या सभा की अनुमति देने से इनकार कर दिया। प्रशासन ने मौलाना तौकीर रज़ा खान को उनके आवास पर नजरबंद भी कर दिया था, ताकि वह भीड़ को संबोधित न कर सकें। 3. नमाज़ के बाद भीड़ का जमावड़ा शुक्रवार की नमाज़ शांतिपूर्वक समाप्त होने के बावजूद, दोपहर करीब 2:30 बजे, बड़ी संख्या में लोग शहर के हृदय स्थल इस्लामिया ग्राउंड और दरगाह-ए-आला हज़रत के आसपास जमा होने लगे। प्रदर्शनकारियों के हाथों में ‘आई लव मोहम्मद’ लिखे पोस्टर और बैनर थे, और वे ज़ोर-ज़ोर से नारे लगा रहे थे। 4. पुलिस बैरिकेड तोड़कर आगे बढ़ने की कोशिश भीड़ मौलाना रज़ा की अपील पर इस्लामिया ग्राउंड तक मार्च करने की जिद पर अड़ी थी और जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपना चाहती थी। पुलिस ने उन्हें रोकने के लिए कई स्थानों पर बैरिकेड लगाए थे। जब पुलिस ने भीड़ को आगे बढ़ने से रोका और वापस जाने की चेतावनी दी, तो कुछ उपद्रवी तत्वों ने आक्रामक रुख अपना लिया और बैरिकेड्स तोड़कर आगे बढ़ने की कोशिश की। 5. हिंसक झड़प और पथराव यह विरोध जल्द ही हिंसक टकराव में बदल गया। भीड़ ने पुलिसकर्मियों पर पथराव शुरू कर दिया। रिपोर्टों के अनुसार, पत्थर छतों और गलियों से भी फेंके गए। इस दौरान कुछ वाहनों में तोड़फोड़ की गई और पुलिसकर्मियों को निशाना बनाया गया। पुलिस अधिकारियों ने पुष्टि की कि कुछ उपद्रवियों ने हवा में गोलीबारी भी की। पथराव में 20 से अधिक पुलिसकर्मी घायल हुए। 6. पुलिस का लाठीचार्ज और आंसू गैस का प्रयोग हालात बेकाबू होते देख, पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए हल्के बल का प्रयोग किया, जिसमें लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले दागना शामिल था। पुलिस की कार्रवाई के बाद भीड़ में भगदड़ मच गई और लोग इधर-उधर भागने लगे। 7. गिरफ्तारी और कानूनी कार्रवाई हिंसा पर नियंत्रण पाने के बाद, पुलिस ने उपद्रवियों की पहचान करने के लिए वीडियो और सीसीटीवी फुटेज का इस्तेमाल किया। पुलिस ने मौलाना तौकीर रज़ा खान सहित लगभग 40 उपद्रवी तत्वों को गिरफ्तार/हिरासत में लिया है। पुलिस ने लगभग 2000 अज्ञात लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की है। प्रशासन ने इस घटना को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अशांति पैदा करने की एक “सुनियोजित साजिश” बताया है और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी है।
देश और दुनिया के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का आगामी विजयादशमी से शताब्दी वर्ष शुरू हो रहा है। शताब्दी वर्ष के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा गृह सम्पर्क अभियान शुरू करेगा। इस अवसर पर संघ के लाखों स्वयंसेवक घर घर जाकर लोगों को संघ की रीति नीति के साथ पंच परिवर्तन का शंखनाद करेंगे। पंच परिवर्तन में पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक समसरता, स्व आधारित व्यवस्था, कुटुंब प्रबोधन तथा नागरिक कर्तव्य, इन बिंदुओं का समावेश रहेगा। शताब्दी वर्ष के दौरान व्यापक गृह संपर्क अभियान, हिन्दू सम्मेलन, प्रबुद्ध नागरिक गोष्ठी और सामाजिक सद्भाव बैठकों का आयोजन भी किया जाएगा। शताब्दी वर्ष का पहला कार्यक्रम विजयादशमी का होगा। मण्डल व बस्ती स्तर पर आयोजित विजयादशमी उत्सव के कार्यक्रम में सभी स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में शामिल होंगे। 20 नवम्बर से 21 दिसम्बर के बीच संघ कार्यकर्ता देश के छह लाख गांवों के 20 करोड़ परिवारों में सम्पर्क करेंगे।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने विजयादशमी के दिन 1925 में की थी। आज देश भर में 51570 स्थानों पर प्रतिदिन कुल 83129 शाखाएं संचालित की जाती हैं, जो पिछले वर्ष की तुलना में 10 हजार से अधिक हैं। साप्ताहिक मिलन में पिछले वर्ष की तुलना में 4430 की वृद्धि के साथ 32147 हो गए है। देश में शाखाओं और मिलन की कुल संख्या 1,15,276 है। यह विश्व का सबसे विशाल संगठन है। समाज के हर क्षेत्र में संघ की प्रेरणा से विभिन्न संगठन चल रहे हैं जो राष्ट्र निर्माण तथा हिंदू समाज को संगठित करने में अपना योगदान दे रहे हैं। संघ के विरोधियों ने तीन बार 1948 1975 व 1992 में इस पर प्रतिबंध लगाया, लेकिन तीनों बार संघ पहले से भी अधिक मजबूत होकर उभरा। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने अनेक निर्णयों में माना है कि संघ एक सामाजिक, सांस्कृतिक संगठन है।
आजादी के बाद से ही कांग्रेस के निशाने पर रहा है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। लाख चेष्टा के बावजूद कांग्रेस संघ को समाप्त करना तो दूर हाशिये पर लाने में सफल नहीं हुआ। संघ को खत्म करने के चक्कर में खुद कांग्रेस अपना वजूद समाप्त करने की ओर अग्रसर है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर पहली विपदा महात्मा गांधी की हत्या के दौरान आई जब हत्यारे नाथूराम गोडसे को संघ का स्वयंसेवक बताकर संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था। बाद में एक जांच समिति ने संघ पर लगे आरोपों को सही नहीं बताया तब संघ से प्रतिबन्ध हटा लिया गया और एक बार फिर संघ ने स्वतंत्र होकर अपना कार्य शुरू किया। संघ पर इस दौरान यह आरोप लगाया गया कि वह हिन्दू अधिकारों की वकालत करता है। मगर संघ का कहना है कि हिन्दुत्व एक जीवन पद्धति है। भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है तो इसका कारण यह है कि यहाँ हिन्दू बहुमत में हैं। बताया जाता है कि 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान संघ के अप्रतिम सेवाभावी कार्यों से प्रभावित होकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने 1963 में गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने का संघ को निमंत्रण दिया। दो दिन की अल्प सूचना के बाबजूद तीन हजार गणवेशधारी स्वयं सेवक उस परेड में शामिल हुए। यहाँ यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि संघ गांधी हत्यारा था तो पं. नेहरू ने उसे देशभक्त संगठन मानकर परेड में शामिल क्यों किया। संघ पर दूसरी विपदा 1975 में तब आई जब आपातकाल के दौरान उस पर प्रतिबन्ध लगाकर हजारों स्वयंसेवकों को कारागार में डाल दिया गया। आपातकाल के बाद संघ से प्रतिबन्ध हटाया गया और संघ ने पुनः अपना कार्य प्रारम्भ किया।
बापू की हत्या के आरोप सहित कई बार प्रतिबन्ध की मार झेल चुका यह संगठन आज भी लोगों के दिलों में बसा है और यही कारण है की इसका एक स्वयं सेवक प्रधान मंत्री की कुर्सी पर काबिज है और अनेक स्वयं सेवक राज्यों के मुख्यमंत्री है। संघ विचारकों का मानना है कि डॉ. राममनोहर लोहिया और लोक नायक जय प्रकाश नारायण सरीखे देश भक्तों ने कभी संघ का विरोध नहीं किया और समय-समय पर संघ कार्यों की प्रशंसा की। विभिन्न गुटों में बंटे उनके कथित समाजवादी अनुयायी अपने राजनैतिक लाभों को हासिल करने के लिए उनका विरोध करते हैं। पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी भी संघ के नागपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लेकर कांग्रेस को झटका दे चुके है। उन्होंने संघ के संस्थापक हेडगेवार को बड़ा देशभक्त बताया था।
बब्बर खालसा इंटरनेशनल (BKI) के कुख्यात आतंकी परमिंदर सिंह उर्फ ‘पिंडी’ को अबू धाबी (UAE) से भारत लाया गया है। केंद्रीय एजेंसियों और विदेश मंत्रालय के सहयोग से पंजाब पुलिस ने से यह कामयाबी हासिल की है।
पिंडी विदेश में बैठे कुख्यात आतंकियों हरविंदर सिंह उर्फ ‘रिंदा’ और हैप्पी पासिया का करीबी सहयोगी माना जाता है। वह गुरदासपुर के बटाला इलाके में पेट्रोल बम हमलों, हिंसक वारदातों और जबरन वसूली जैसे कई गंभीर अपराधों में वांछित था।
नयी दिल्ली, 27 सितंबर (भाषा) दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ ने हाशिम गिरोह के सदस्य गैंगस्टर रूबल सरदार को अमृतसर हवाई अड्डे से गिरफ्तार किया है। आधिकारिक सूत्रों ने शनिवार को यह जानकारी दी।
सूत्रों ने बताया कि सरदार के खिलाफ लुकआउट सर्कुलर (एलओसी) जारी था और उस पर पुलिस टीम लगातार नजर बनाए हुए थीं।
हाशिम गिरोह के सदस्यों के खिलाफ जारी कार्रवाई के तहत ही उसे गिरफ्तार किया गया है।
अपनी सुन्दरता और रहस्यों के लिए पहले से ही प्रसिद्ध शनि ग्रह के लिए यह और भी अधिक रहस्यमय हो गया है।
शनि ग्रह से मिले नएचित्र में काले मोती जैसा तारा दिखाई दे रहा है।जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप ( JWST ) से प्राप्त ताज़ा और ग्रह के ऊपरी वायुमंडल के अब तक के सबसे विस्तृत अवलोकन में शनि के चमकते उरोरा में बिखरे “काले मोती” और एक तारे के आकार का दिखाई देता है। इसकी दो भुजाएँ रहस्यमय ढंग से गायब हैं। ऐसी विशेषताएँ किसी अन्य ग्रह पर पहले कभी नहीं देखी गई हैं।
ब्रिटेन के नॉर्थम्ब्रिया विश्वविद्यालय के खगोलशास्त्री टॉम स्टालार्ड, जिन्होंने इस अध्ययन का नेतृत्व किया, ने एक बयान में कहा , “ये विशेषताएं पूरी तरह से अप्रत्याशित और वर्तमान में पूरी तरह से अस्पष्ट हैं।”
वैज्ञानिकों का कहना है कि इन विचित्रताओं का अध्ययन करने से इस बारे में महत्वपूर्ण सुराग मिल सकते हैं कि शनि का चुंबकीय बुलबुला अपने वायुमंडल के साथ किस प्रकार ऊर्जा का आदान-प्रदान करता है, यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो ग्रह के झिलमिलाते धूर्वीय ज्योतिशियों को शक्ति दान करती है ।
ये निष्कर्ष पिछले सप्ताह फिनलैंड के हेलसिंकी में आयोजित यूरोप्लेनेट विज्ञान कांग्रेस-ग्रह विज्ञान प्रभाग की बैठक में प्रस्तुत किये गये।
शनि के वायुमंडल में एक नई पहेली
चित्रों को कैद करने के लिए, ब्रिटेन, अमेरिका और फ्रांस के 23 वैज्ञानिकों की एक टीम ने 29 नवंबर, 2024 को JWST का उपयोग करते हुए शनि ग्रह का लगातार 10 घंटे तक, यानी तेजी से घूमते इस विशालकाय ग्रह पर लगभग एक पूरा दिन, निरीक्षण किया। उन्होंने हाइड्रोजन आयनों और मीथेन से निकलने वाले अवरक्त प्रकाश का पता लगाया, जो दोनों ही ग्रह के आकाश में रसायन विज्ञान और गति के बारे में मूल्यवान सुराग प्रदान करते हैं।
बादलों से लगभग 680 मील (1,100 किलोमीटर) ऊपर, टीम ने शनि के ध्रुवीय ज्योतियों में गहरे, मनके जैसे धब्बों की एक श्रृंखला देखी। नए अध्ययन के अनुसार, ये मनके प्रकाश में छोटे-छोटे छिद्रों जैसे दिखते थे, जो घंटों तक स्थिर रहते थे और दिन के दौरान केवल कुछ डिग्री ही आगे बढ़ते थे।
सरदार भगत सिंह का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक ऐसे ज्वलंत सितारे के रूप में दर्ज है, जिसने अपनी अल्पायु में ही देश की आज़ादी के लिए सर्वस्व न्योछावर कर दिया। वह सिर्फ एक क्रांतिकारी नहीं थे, बल्कि एक महान विचारक, लेखक और समाजवादी थे, जिनकी दृष्टि केवल राजनीतिक स्वतंत्रता तक सीमित नहीं थी, बल्कि वे एक शोषण मुक्त, समतावादी समाज की स्थापना का सपना देखते थे। भगत सिंह का जीवन, बलिदान और विचार आज भी भारत के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर, 1907 को पंजाब के लायलपुर जिले (वर्तमान पाकिस्तान) के बंगा गाँव में एक देशभक्त सिख परिवार में हुआ था। उनके पिता सरदार किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह जैसे परिवार के सदस्य पहले से ही स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय थे, जिसका गहरा प्रभाव बालक भगत सिंह पर पड़ा। मात्र 12 वर्ष की आयु में, 13 अप्रैल, 1919 को हुए जलियाँवाला बाग नरसंहार ने उनके कोमल मन पर अमिट छाप छोड़ी और उन्हें ब्रिटिश शासन के अत्याचारों के विरुद्ध लड़ने के लिए प्रेरित किया। इस घटना ने उन्हें यह विश्वास दिलाया कि देश को आज़ाद कराने के लिए अहिंसक आंदोलनों के साथ-साथ सशक्त प्रतिरोध भी आवश्यक है। लाहौर के नेशनल कॉलेज में अपनी पढ़ाई के दौरान, उन्हें क्रांतिकारी विचारों के अध्ययन का मौका मिला। उन्होंने यूरोप और रूस की क्रांतियों का गहन अध्ययन किया, जिससे उनके विचार और भी परिपक्व हुए।
क्रांतिकारी गतिविधियाँ और संगठन
भगत सिंह ने अपनी युवावस्था में ही क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू कर दिया था। 1926 में उन्होंने ‘नौजवान भारत सभा’ की स्थापना की, जिसका उद्देश्य युवाओं को संगठित करना और उनमें देशभक्ति तथा क्रांतिकारी विचारों का संचार करना था। वह ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ (HRA) से जुड़े, जिसे बाद में उनके और उनके साथियों के सुझाव पर ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ (HSRA) का नाम दिया गया। यह नाम परिवर्तन उनकी समाजवादी विचारधारा को दर्शाता था, जिसका लक्ष्य केवल राजनीतिक आज़ादी नहीं, बल्कि समाजवादी राज्य की स्थापना करना था। सांडर्स हत्याकांड (1928) साइमन कमीशन के विरोध में प्रदर्शन के दौरान, वृद्ध राष्ट्रवादी नेता लाला लाजपत राय पर हुए घातक लाठीचार्ज के कारण उनकी मृत्यु हो गई। भगत सिंह और उनके साथियों ने इस अपमान का बदला लेने का संकल्प लिया। उन्होंने पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट को मारने की योजना बनाई, लेकिन गलती से उन्होंने सहायक पुलिस अधीक्षक जे.पी. सांडर्स को गोली मार दी। इस घटना ने उन्हें ब्रिटिश सरकार की नज़र में सबसे वांछित क्रांतिकारी बना दिया। केंद्रीय विधानसभा में बम फेंकना (1929) भगत सिंह का सबसे प्रसिद्ध कार्य आठ अप्रैल, 1929 को उनके सहयोगी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर दिल्ली की केंद्रीय विधानसभा में बम फेंकना था। यह कार्य किसी को नुकसान पहुँचाने के इरादे से नहीं किया गया था; बम केवल ध्वनि उत्पन्न करने वाले थे। उनका उद्देश्य बहरी ब्रिटिश सरकार को अपनी आवाज़ सुनाना और जनता का ध्यान दमनकारी ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ और ‘ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल’ की ओर आकर्षित करना था। बम फेंकने के बाद, उन्होंने भागने के बजाय अपनी गिरफ्तारी दी और “इंकलाब जिंदाबाद” और “साम्राज्यवाद मुर्दाबाद” के नारे लगाए। इस कार्य ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर एक नायक बना दिया।
जेल जीवन और वैचारिक विरासत
जेल में रहते हुए भी भगत सिंह की क्रांतिकारी भावना कम नहीं हुई। उन्होंने और उनके साथियों ने भारतीय और ब्रिटिश कैदियों के साथ होने वाले भेदभावपूर्ण व्यवहार के खिलाफ लंबी भूख हड़ताल की। इस हड़ताल ने पूरे देश में व्यापक सहानुभूति और समर्थन हासिल किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। जेल में उन्होंने लेखन कार्य जारी रखा और अपने क्रांतिकारी विचारों को व्यक्त किया। उनकी प्रसिद्ध रचना ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’ उनके तार्किक, वैज्ञानिक और नास्तिक विचारों को दर्शाती है। उनके लेखन और पत्रों ने उनकी गहन वैचारिक समझ, समाजवाद के प्रति उनकी आस्था और रूढ़िवादी मान्यताओं के प्रति उनके विरोध को उजागर किया।
शहादत और अमरत्व
सांडर्स हत्याकांड के आरोप में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी की सज़ा सुनाई गई। 23 मार्च, 1931 को, मात्र 23 वर्ष की आयु में, उन्हें लाहौर जेल में फाँसी दे दी गई। फाँसी के फंदे को चूमने से पहले तक, वे हँसते रहे और क्रांति के गीत गाते रहे। भगत सिंह की शहादत ने भारतीय युवाओं में आज़ादी का ऐसा ज़ज़्बा भरा, जिसने आंदोलन की गति को तेज़ कर दिया। वह एक प्रेरणास्रोत बन गए, जिन्होंने यह सिखाया कि देश के लिए आत्म-बलिदान से बड़ा कोई धर्म नहीं होता। उनकी विचारधारा और साहस ने पीढ़ियों को प्रेरित किया है। भारत माँ का यह वीर सपूत आज भी ‘शहीद-ए-आज़म’ के रूप में हर भारतीय के दिल में अमर है, जिनके नारे “इंकलाब जिंदाबाद” ने स्वतंत्रता संग्राम का जयघोष बन गए। यह वीडियो सरदार भगत सिंह के जीवन और उनकी क्रांति के बारे में जानकारी प्रदान करता है:
भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) एक महत्त्वपूर्ण संगठन के रूप में स्थापित है। 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा स्थापित यह संस्था मूलतः पुरुष स्वयं सेवक के लिए बनी थी। इसकी शाखाओं, अनुशासन और विचारधारा ने धीरे-धीरे भारतीय राजनीति और समाज पर गहरा असर डाला। परन्तु जब हम महिलाओं की भूमिका की ओर देखते हैं, तो तस्वीर कुछ अलग मिलती है। आरएसएस के समानान्तर 1936 में जन्मी “राष्ट्र सेविका समिति” ने ही स्त्रियों के लिए रास्ता खोला। आज जब संघ अपनी शताब्दी मना रहा है, तब इस यात्रा पर नज़र डालना ज़रूरी है कि स्त्रियों की भागीदारी कहाँ से शुरू हुई और 2025 तक वह किस मुकाम तक पहुँची।
शुरुआती दौर: 1925 से 1936
संघ की स्थापना 1925 में नागपुर में हुई। यह संगठन अनुशासन, परेड, शाखा और राष्ट्रवाद पर आधारित था। लेकिन इसकी संरचना पुरुष प्रधान रही। हेडगेवार स्वयं मानते थे कि स्त्रियों को अलग मंच चाहिए, क्योंकि उस समय के सामाजिक परिवेश में स्त्रियों का सीधे पुरुष शाखाओं में आना सहज नहीं माना जाता था। इसी पृष्ठभूमि में 1936 में लक्ष्मीबाई केलकर ने विजयादशमी के दिन वर्धा में “राष्ट्र सेविका समिति” की स्थापना की। हेडगेवार ने भी इस पहल का स्वागत किया और सुझाव दिया कि महिलाएँ अपनी संस्था चलाएँ, ताकि वे अपनी शक्ति, संस्कृति और नेतृत्व को स्वतंत्र रूप से विकसित कर सकें। इस तरह महिलाओं की भागीदारी औपचारिक रूप से शुरू हुई।
सेविका समिति की स्थापना और शुरुआती संघर्ष
1939 में पहली बार समिति ने प्रशिक्षण वर्ग आयोजित किया। धीरे-धीरे अलग-अलग प्रांतों में इसकी शाखाएँ बनने लगीं। समिति का उद्देश्य केवल राष्ट्रवादी विचार फैलाना नहीं था, बल्कि स्त्रियों में ‘मातृत्व, कर्तृत्व और नेतृत्व’ (मातृत्व, कर्र्तृत्व, नेत्रृत्व) जैसे गुणों का विकास करना भी था। इसमें शारीरिक प्रशिक्षण, योग, गीत, खेल, अनुशासन और समाज सेवा शामिल किए गए। आज़ादी के आंदोलन में भी समिति की महिलाओं ने परोक्ष रूप से भूमिका निभाई। परन्तु उनकी गतिविधियाँ मुख्यतः सांस्कृतिक और सामाजिक क्षेत्रों तक सीमित रहीं।
1940 से 1970 का दशक: विस्तार की ओर
स्वतंत्रता के बाद के दशकों में समिति का नेटवर्क बढ़ा। लक्ष्मीबाई केलकर की मृत्यु (1978) तक संगठन कई राज्यों में फैल चुका था। उनके बाद सरस्वती आपटे प्रमुख संचालिका बनीं। इस समय तक शाखाओं की संख्या हज़ारों में पहुँच गई थी। समिति का जोर महिला शिक्षा, संस्कार, और सेवा परियोजनाओं पर रहा। आपातकाल (1975–77) में समिति से जुड़ी महिलाओं ने विरोध प्रदर्शनों में भी भाग लिया। इस दौर ने उन्हें राजनीतिक रूप से अधिक सचेत और सक्रिय बनाया।
1980–2000: आधुनिकता और परम्परा का संगम
90 के दशक में जब भारतीय राजनीति में भाजपा और संघ परिवार का प्रभाव बढ़ने लगा, तो महिलाओं की भागीदारी भी चर्चा में आने लगी। समिति ने इस समय शहरी और पेशेवर महिलाओं तक पहुँच बनाने की कोशिश की। महिला शिक्षिकाएँ, चिकित्सक और नौकरीपेशा स्त्रियाँ समिति के कार्यक्रमों से जुड़ने लगीं। 1994 में उषाताई चाटे और 2006 में प्रमिलाताई मेढे प्रखर नेतृत्व के रूप में सामने आईं। इन नेताओं ने महिला शाखाओं को आधुनिक मुद्दों—जैसे कामकाजी महिलाओं की चुनौतियाँ, शिक्षा, स्वास्थ्य और परिवार में संतुलन—से जोड़ा।
2012 से आगे: शांथक्का का नेतृत्व
2012 में वेंकट्रामा शांता कुमारी, जिन्हें लोकप्रिय रूप से “शांथक्का” कहा जाता है, राष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख संचालिका बनीं। उनका जन्म 1952 में हुआ और वे लंबे समय से संघ परिवार के कार्य में सक्रिय थीं। उनके नेतृत्व में समिति ने अपना विस्तार और तेज़ किया। आज समिति के पास चार से पाँच हज़ार शाखाएँ हैं, जो लगभग 800 से अधिक जिलों में फैली हुई हैं। यद्यपि सटीक आँकड़े संगठन सार्वजनिक नहीं करता, लेकिन अनुमान है कि लाखों महिलाएँ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इससे जुड़ी हुई हैं। समिति शिक्षा, स्वास्थ्य, सेवा, छात्रावास और महिला सशक्तिकरण परियोजनाएँ चला रही है। शहरी महानगरों में भी इसकी शाखाएँ सक्रिय हो रही हैं।
संघ और महिला प्रश्न
संघ के भीतर महिलाओं को औपचारिक सदस्यता या नेतृत्व स्थान नहीं दिया गया है। आरएसएस की शाखाएँ केवल पुरुषों के लिए ही हैं। महिलाएँ केवल समिति के माध्यम से संघ के विचारधारा संसार का हिस्सा बनती हैं। आलोचकों का कहना है कि यह व्यवस्था महिलाओं को मुख्यधारा से बाहर रखती है। वे पुरुषों के बराबर निर्णयकारी पदों पर नहीं पहुँच पातीं। परन्तु समर्थकों का मत है कि अलग संगठन होने से महिलाएँ स्वतंत्र रूप से नेतृत्व और गतिविधियाँ विकसित कर पाती हैं। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कई बार कहा है कि महिलाओं की भागीदारी “प्राकृतिक रूप से” बढ़ रही है। परन्तु अब भी नेतृत्व संरचना में असमानता साफ दिखाई देती है।
वर्तमान स्थिति (2025)
संघ अपनी शताब्दी मना रहा है। उसके लगभग 83,000 शाखाएँ देशभर में सक्रिय बताई जाती हैं। वहीं राष्ट्र सेविका समिति की शाखाएँ भी लगातार बढ़ रही हैं। समिति अब गाँवों के साथ-साथ महानगरों में भी काम कर रही है। इसके प्रशिक्षण वर्गों में स्कूली छात्राओं से लेकर पेशेवर महिलाएँ तक भाग ले रही हैं। 2025 में समिति का चेहरा परम्परा और आधुनिकता का मिश्रण है—जहाँ एक ओर मातृत्व और परिवार आधारित मूल्य हैं, वहीं दूसरी ओर समाज सेवा और महिला नेतृत्व के अवसर भी हैं। समिति ने लाखों महिलाओं को संगठित कर आत्मविश्वास और सामूहिकता दी। शिक्षा, सेवा और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से समाज पर ठोस असर पड़ा। महिलाओं को नेतृत्व और प्रबंधन का अवसर मिला। महिलाएँ संघ की मुख्य धारा (आरएसएस) में निर्णयकारी भूमिकाओं से बाहर रहीं। संगठन का वैचारिक ढाँचा महिलाओं को परम्परागत भूमिकाओं तक सीमित करता है। आधुनिक नारीवादी विमर्श से समिति का दृष्टिकोण टकराता है, क्योंकि वह स्वतंत्रता और समानता की बजाय मातृत्व और संस्कृति पर ज़ोर देती है।
सितंबर 2025 में आयोजित व्याख्यानमाला के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि आज महिलाओं की भागीदारी समाज और राष्ट्र निर्माण में पहले से कहीं अधिक आवश्यक है। व्याख्यानमाला में यह भी कहा गया कि 2025 का भारत उस मुकाम पर खड़ा है, जहाँ महिला नेतृत्व केवल “पूरक” नहीं बल्कि “निर्णायक” भूमिका निभा रहा है। वक्ताओं ने यह भी जोड़ा कि आधुनिक शिक्षा, तकनीक और आर्थिक आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में महिलाएँ जिस तरह से आगे बढ़ रही हैं, संघ परिवार को भी उसी अनुरूप अपनी संरचना और कार्यपद्धति को और खुला बनाना होगा। व्याख्यानमाला में अन्य वरिष्ठ कार्यकर्ताओं और विचारकों ने भी महिला नेतृत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि कैसे राष्ट्र सेविका समिति की महिलाएँ दशकों से शिक्षा, संस्कृति और सामाजिक सुधारों के क्षेत्र में काम कर रही हैं। यह तर्क दिया गया कि यदि 1925 में संघ की नींव रखी गई थी, तो उसी दशक में महिलाओं के लिए समानांतर संगठन की स्थापना इस बात का प्रमाण है कि महिलाओं की उपस्थिति को शुरुआत से ही महत्वपूर्ण माना गया।
1925 से 2025 की यात्रा दिखाती है कि संघ की विचारधारा से प्रेरित महिलाओं ने अपना अलग संगठन खड़ा कर लिया और उसे राष्ट्रीय स्तर तक फैलाया। लक्ष्मीबाई केलकर से लेकर शांथक्का तक यह सिलसिला निरंतर चला है। आज जब भारतीय समाज में महिलाएँ राजनीति, शिक्षा, व्यवसाय और सेना तक में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं, तब यह सवाल और महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि—क्या भविष्य में महिलाएँ सीधे संघ की शाखाओं और नेतृत्व में भी शामिल होंगी, या वे हमेशा समानान्तर संगठन तक ही सीमित रहेंगी?संघ की शताब्दी महिलाओं की इस यात्रा का पड़ाव भी है—एक यात्रा जिसमें परम्परा, अ नुशासन, सेवा और नेतृत्व का संगम है, लेकिन समानता और सहभागिता की चुनौती अब भी शेष है।
अजमेर जिला सिविल न्यायाधीश मनमोहन चंदेल ने अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह में सभी वांछित स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगाने का आदेश दिया है। आदेश में ये भी कहा है कि जो लोग इसका विरोध कर रहे हो उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्यवाही अमल में लायी जाए ।
पिछले दिनों केंद्र सरकार के अधीन काम करने वाली दरगाह कमेटी ने प्रयास किए थे कि दरगाह के अंदर जायरीन की भीड़ वाले सभी स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाए, लेकिन तब दरगाह के खादिमों ने आस्ताना सहित कई स्थानों पर कैमरे लगाने का विरोध किया। लेकिन अब खादिमों के आपसी विवाद के एक मामले में सिविल न्यायाधीश मनमोहन चंदेल ने दरगाह के अंदर जरूरी स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगाने के आदेश दिए हैं।सिविल न्यायाधीश मनमोहन चंदेल के इस आदेश की सराहना की जा रही है।अदालत ने यह भी कहा है कि यदि कोई व्यक्ति कैमरे लगाने का विरोध करता है तो उसके विरुद्ध सख्त कानूनी कार्यवाही की जाए।
ज्ञातव्य है कि दरगाह के खादिम शेखजादा नदीम अहमद चिश्ती, खलिक अहमद चिश्ती, नईम अहमद चिश्ती और शेख असरार अहमद चिश्ती ने एक वाद अपने साथी खादिम सैयद शब्बीर अली चिश्ती के खिलाफ दायर किया। इस वाद में शब्बीर अली पर उनके हकों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया। इस प्रकरण में जब सिविल न्यायाधीश मनमोहन चंदेल ने पुलिस से दरगाह के अंदर का रिकॉर्ड तलब किया तो पुलिस ने असमर्थता प्रकट की।पुलिस का कहना था कि दरगाह के अंदर खास कर आस्ताना (मजार शरीफ) का कोई रिकॉर्ड नहीं रहता। यह खादिमों का आपसी मामला है। इसी प्रकरण में दरगाह कमेटी के नाजिम मोहम्मद बिलाल खान ने एक प्रार्थना पत्र में कहा कि दरगाह कमेटी सभी वांछित स्थानों पर सीसीटीवी लगाना चाहती है, लेकिन कुछ लोगों के विरोध के कारण कैमरे नहीं लग पा रहे हैं।
हालांकि शेखजादा नदीम अहमद चिश्ती ने दरगाह के अंदर कैमरे लगाने की मांग नहीं की थी, लेकिन कोर्ट ने मामले की गंभीरता और सीसीटीवी की उपयोगिता को देखते हुए दरगाह के अंदर वांछित स्थानों पर कैमरे लगाने का आदेश दिया। दरगाह में मौजूदा समय में करीब 75 प्रतिशत स्थानों पर कैमरे हैं, लेकिन अस्थाना सहित 25 प्रतिशत स्थान ऐसे हैं, जहां खादिम समुदाय सीसीटीवी लगाने का विरोध करता है। अदालत के इस फैसले से दरगाह कमेटी भी सीसीटीवी लगाने में मदद मिलेगी।
यहां यह उल्लेखनीय है कि सिविल न्यायाधीश मनमोहन चंदेल ने ही गत वर्ष ख्वाजा साहब की दरगाह में शिव मंदिर होने वाली याचिका को भी मंजूर किया था। इस याचिका पर केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय, पुरातत्व विभाग आदि को नोटिस जारी किए गए हैं।