सोशल मीडिया पर प्रतिबंध का परिणाम है नेपाल की अराजकता

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नेपाल में युवाओं का आक्रोश और विरोध प्रदर्शन यह संकेत देते हैं कि सरकार और जनता के बीच विश्वास का संकट गहरा रहा है। अगर यह स्थिति और बिगड़ी तो चीन अपना प्रभाव वहां और बढ़ाने का प्रयास कर सकता है। चीन पहले से ही नेपाल में अपनी पकड़ बनाये हुए है। ऐसे में नेपाल के लोकतांत्रिक संस्थानों में अविश्वास और अशांति बढ़ी तो यह भारत के लिए रणनीतिक चुनौती बन सकती है।

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-नीरज कुमार दुबे

नेपाल में सरकार द्वारा प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर लगाए गए प्रतिबंध ने देश के राजनीतिक, सामाजिक और कूटनीतिक परिदृश्य को गहराई से प्रभावित किया है। यह केवल डिजिटल नीति का सवाल नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और युवा चेतना के लिए एक गंभीर चुनौती है। फेसबुक, यूट्यूब, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम और स्नैपचैट जैसे प्लेटफ़ॉर्म्स, जिन्हें युवा पीढ़ी अपने विचार व्यक्त करने, दोस्तों से जुड़ने और वैश्विक घटनाओं से अपडेट रहने के लिए इस्तेमाल करती है, उन पर बैन लगाने से युवाओं में गहरी नाराजगी और असंतोष पैदा हुआ है।

युवा पीढ़ी पहले ही देश की कमजोर स्वास्थ्य और शिक्षा प्रणाली, भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद से तंग आ चुकी है। ऐसे समय में सोशल मीडिया पर पाबंदी ने उनकी निराशा को और बढ़ा दिया है। हाल ही में ‘नेपो किड्स’ यानि राजनीतिक परिवारों के बच्चों के विरुद्ध उभरे गुस्से और काठमांडू में जेनरेशन ज़ेड के युवाओं का प्रदर्शन यह दर्शाता है कि वह अब अन्याय को चुपचाप सहन नहीं करेंगे। यह चेतावनी है कि यदि सरकार युवा वर्ग की भावनाओं को समझने में विफल रही, तो राजनीतिक अस्थिरता और बढ़ सकती है।

देखा जाये तो इस घटनाक्रम का भारत और दक्षिण एशिया के लिए भी महत्वपूर्ण संदेश है। नेपाल भारत का निकटतम पड़ोसी और रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण देश है। वहां की अस्थिरता न केवल सीमा सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकती है, बल्कि चीन जैसे बाहरी प्रभावों को बढ़ावा देने का अवसर भी दे सकती है। हाल ही में ओली सरकार का चीन के प्रति झुकाव, पश्चिम और जापान से दूरी और सीमा विवादों में आक्रामक रुख ने यह संकेत दिया है कि नेपाल अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता के बावजूद विदेशी प्रभावों के जाल में फंसता जा रहा है।सही कदम गलत तरीके से उठाया

यह ठीक है कि सोशल मीडिया को कानूनी और सामाजिक वास्तविकताओं के अनुरूप नियंत्रित करना आवश्यक था, लेकिन इसे कैबिनेट निर्णय के माध्यम से लागू करना और विवादास्पद प्रावधान लागू करना— जैसे ‘समस्याग्रस्त सामग्री’ को 24 घंटे में हटाना, जैसी नीति को थोपना गलत था। पहले ही दक्षिण एशिया में लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। श्रीलंका, पाकिस्तान और अब नेपाल के हालात यह संदेश देते हैं कि लोकतंत्र केवल चुनाव तक सीमित नहीं रह सकता; इसे जीवित बनाए रखने के लिए नागरिकों की स्वतंत्रता, उनके अधिकार, शासन में पारदर्शिता और संवेदनशील कूटनीति की रक्षा आवश्यक है।

नेपाल की सरकार को अब यह समझना होगा कि विदेशी ऐप्स को कानूनी दायरे में लाना उचित है, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण है कि वह अपने युवाओं और नागरिकों की भावनाओं का सम्मान करें। युवा पीढ़ी देश के भविष्य के निर्माता हैं; उनकी आवाज़ को दबाना, उन्हें अपमानित करना और डिजिटल माध्यमों पर नियंत्रण लगाना केवल अस्थायी समाधान होगा, जबकि अस्थिरता और सामाजिक तनाव स्थायी रूप से बढ़ सकते हैं।

इसमें भी कोई दो राय नहीं कि नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता, सोशल मीडिया पर पाबंदी और युवा विरोध प्रदर्शन न केवल वहां की आंतरिक राजनीति को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि यह भारत के लिए भी चिंता का विषय बन गए हैं। नेपाल भारत का सबसे नजदीकी पड़ोसी और रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण देश है। दोनों देशों के बीच खुले सीमावर्ती संबंध, सामाजिक-सांस्कृतिक मेलजोल और आर्थिक संबंध गहरे हैं। ऐसे में नेपाल में बढ़ती अस्थिरता का सीधे प्रभाव भारत की सीमा सुरक्षा, सीमावर्ती इलाकों की स्थिरता और वहां रहने वाले भारतीय नागरिकों पर पड़ सकता है।

नेपाल में युवाओं का आक्रोश और विरोध प्रदर्शन यह संकेत देते हैं कि सरकार और जनता के बीच विश्वास का संकट गहरा रहा है। अगर यह स्थिति और बिगड़ी तो चीन अपना प्रभाव वहां और बढ़ाने का प्रयास कर सकता है। चीन पहले से ही नेपाल में अपनी पकड़ बनाये हुए है। ऐसे में नेपाल के लोकतांत्रिक संस्थानों में अविश्वास और अशांति बढ़ी तो यह भारत के लिए रणनीतिक चुनौती बन सकती है।

इसके अलावा, नेपाल में सामाजिक असंतोष और राजनीतिक अशांति सीमा पार अपराध, तस्करी और अवैध गतिविधियों को भी बढ़ावा दे सकते हैं। नेपाल में मीडिया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगना युवाओं में निराशा और विद्रोह की भावना को और बढ़ाता है, जो लंबे समय में भारत के लिए सुरक्षा और राजनीतिक स्थिरता की दृष्टि से जोखिम बन सकता है।

इसलिए भारत को नेपाल के हालात पर सतर्क नजर रखनी चाहिए। यह सतर्कता केवल सीमा सुरक्षा तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसमें कूटनीतिक संवाद, आर्थिक सहयोग और सांस्कृतिक संपर्क के माध्यम से नेपाल के लोकतांत्रिक ढांचे और सामाजिक स्थिरता को बनाए रखने का प्रयास शामिल होना चाहिए। भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि नेपाल के अंदरूनी संकट भारत-नेपाल संबंधों को प्रभावित न करें और क्षेत्रीय संतुलन बना रहे। देखा जाये तो नेपाल में बिगड़ते हालात भारत के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा, सामरिक संतुलन और क्षेत्रीय स्थिरता से जुड़ा मामला भी है। इसलिए भारत को सक्रिय, सतर्क और संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाना अनिवार्य है।

नेपाल सरकार को इस स्थिति को संभालने के लिए संतुलित और पारदर्शी रुख अपनाना होगा। सबसे पहले, युवा नेताओं और प्रदर्शनकारियों के साथ खुले संवाद की आवश्यकता है। सोशल मीडिया एप्स पर प्रतिबंध का उद्देश्य और कानूनी आधार स्पष्ट करना जरूरी है ताकि जनता को यह विश्वास हो कि यह कदम सिर्फ डिजिटल सुरक्षा और कानूनी संगति के लिए उठाया गया है, न कि युवाओं की आवाज़ दबाने के लिए। इसके साथ ही, सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्मों को नियंत्रित करने के लिए एक समग्र और न्यायसंगत कानून तैयार किया जाना चाहिए, न कि केवल कैबिनेट निर्णय या तात्कालिक आदेश पर जोर देना चाहिए। विवादास्पद प्रावधानों की समीक्षा और विशेषज्ञ सलाह से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि कानून निष्पक्ष और संतुलित हो।

इसके अलावा, युवाओं की भागीदारी और उनके सुझावों को नीति निर्माण प्रक्रिया में शामिल करना भी आवश्यक है। उनके दृष्टिकोण को गंभीरता से लेने से यह संदेश जाएगा कि सरकार उनकी आवाज़ को महत्व देती है। साथ ही, प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हिंसक कार्रवाई से बचना चाहिए और शांतिपूर्ण संवाद के माध्यम से समाधान खोजा जाना चाहिए। डिजिटल शिक्षा और जागरूकता बढ़ाने के कार्यक्रमों के जरिए युवा समाज को जिम्मेदार इंटरनेट उपयोग की ओर प्रेरित किया जा सकता है।

बहरहाल, देखा जाये तो नेपाल सरकार के सामने यह चुनौती केवल सोशल मीडिया नियंत्रण की नहीं है, बल्कि लोकतंत्र और युवा चेतना को बनाए रखने की भी है। संतुलित, पारदर्शी और संवादात्मक रुख अपनाकर ही सरकार युवा नाराजगी को शांत कर सकती है और देश में राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता सुनिश्चित कर सकती है।

-नीरज कुमार दुबे

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)

दवाएं नहीं फिजियोथेरेपी देगी दर्द से राहत

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बाल मुकुन्द ओझा
हाल ही विश्व फिजियोथेरेपी दिवस मनाया गया। लोग आज भी फिजियोथेरेपी को सिर्फ चोट या दर्द के इलाज तक सीमित मानते हैं, जबकि वास्तव में यह एक संपूर्ण और संतुलित जीवनशैली का अहम हिस्सा है। घुटनों के दर्द, पीठ की तकलीफ और स्ट्रोक के बाद की स्थिति में अब लोग दवा के बजाय फिजियोथेरेपी पर ज्यादा भरोसा जता रहे हैं। फिजियोथैरेपी यानी शरीर की मांसपेशियों, जोड़ों, हड्डियों-नसों के दर्द या तकलीफ वाले हिस्से की वैज्ञानिक तरीके से आधुनिक मशीनो, एक्सरसाइज, मोबिलाइजेशन,टेपिंग के माध्यम से मरीज को आराम पहुंचाना। हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि योगा और कसरतें ही फिजियोथैरेपी होती हैं लेकिन यह सही नहीं है। फिजियोथेरेपी न सिर्फ इलाज का जरिया है, बल्कि यह बीमारियों की रोकथाम और लंबे समय तक शरीर को सक्रिय बनाए रखने का सबसे आसान और सुरक्षित तरीका भी है। फिजियोथैरेपी में विशेषज्ञ कई तरह के व्यायाम और नई तकनीक वाली मशीनों की मदद से इलाज करते हैं। आज की जीवनशैली में हम लंबे समय तक अपनी शारीरिक प्रणालियों का सही ढंग से उपयोग नहीं कर पा रहे हैं और जब शरीर की सहनशीलता नहीं रहती है तो वह तरह-तरह की बीमारियों व दर्द की चपेट में आ जाता है। फिजियोथैरेपी को हम अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाकर दवाइयों पर निर्भरता कम करके स्वस्थ रह सकते हैं।
फिजियोथेरेपी एक स्वास्थ्य प्रणाली है, जिसमे लोगों का परीक्षण कर उपचार किया जाता हैं। फिजियोथेरेपी वह विज्ञान है जिसमें शरीर के अंगों को दवाइयों के बिना ही ठीक ढंग से कार्य कराया जाता है। एक फिजियोथेरेपिस्ट का मुख्य काम शारीरिक कामों का आकलन, मेंटिनेंस और रिस्टोरेशन करना है। फिजियोथेरेपिस्ट वाटर थेरेपी, मसाज आदि अनेक प्रक्रियाओं के द्वारा रोगी का उपचार करता है। दवा रहित उपचार जिसमें मशीनों की सहायता से मांसपेशियों को रिलेक्स कर सूजन व दर्द में राहत दी जाती है। मशीनी तरंगें दर्द वाले प्रभावित हिस्से पर सीधे काम करती हैं। इसमें ठंडा-गर्म सेक, मैकेनिकल ट्रैक्शन (खिंचाव) से इलाज होता है।
अगर दवा, इंजेक्शन और ऑपरेशन के बिना दर्द से राहत पाना चाहते हैं तो फिजियोथेरेपी को अपनाना होगा। चिकित्सा और सेहत दोनों ही क्षेत्रों के लिए यह तकनीक उपयोगी है। जानकारी की कमी की चाह में लोग दर्द निवारक दवाएं लेते रहते हैं। मरीज तभी फिजियोथेरेपिस्ट के पास जाते हैं, जब दर्द असहनीय हो जाता है। फिजियोथेरेपी कमजोर पड़ते मसल्स और नसों को मजबूत करता है। यही वजह है कि अब इसकी जरूरत कॉडिर्यो रिलेटेड बीमारी से लेकर प्रेगनेंसी तक में जरूरत महसूस की जा रही है। हर प्रकार के क्रोनिक डिजीज में यह काम करता है।
फिजियोथेरेपी से कुछ दर्द में तो तुरंत आराम मिलता है, पर स्थायी परिणाम के लिए थोड़ा वक्त लग जाता है। दर्द निवारक दवाओं की तरह इससे कुछ ही घंटों में असर नहीं दिखाई देता। खासकर फ्रोजन शोल्डर, कमर व पीठ दर्द के मामलों में कई सिटिंग्स लेनी पड़ सकती हैं। कई मामलों में व्यायाम भी करना पड़ता है और जीवनशैली में बदलाव भी। इलाज की कोई भी पद्धति तभी कारगर साबित होती है, जब उसका पूरा कोर्स किया जाए। फिजियोथेरेपी के मामले में यह बात ज्यादा मायने रखती है। फिजियोथेरेपी में दर्द की मूल वजहों को तलाशकर उस वजह को ही जड़ से खत्म कर दिया जाता है। मसलन यदि मांसपेशियों में खिंचाव के कारण घुटनों में दर्द है तो स्ट्रेचिंग और व्यायाम के जरिये इलाज किया जाता है।
बैठने, खड़े होने या चलने के खराब पॉस्चर की वजह से या मांसपेशियों में खिंचाव के कारण या फिर आर्थ्राइटिस की वजह से कमर व पीठ में दर्द बढ़ जाता है। पीठ दर्द के इलाज के लिए फिजियोथेरेपी में कुछ सामान्य तरीके आजमाए जाते हैं। इनमें से एक है शरीर का वजन कम करना, ताकि जोड में पड़ने वाले अतिरिक्त भार को कम किया जा सके। दूसरा, मांसपेशियों की मजबूती और तीसरा तरीका है, री-पैटर्निग ऑफ मसल्स यानी किसी खास हिस्से में मांसपेशियों के पैटर्न को व्यायाम के जरिये ठीक करना। हमारी पीठ व कूल्हे के निचले हिस्से में करीब दो दर्जन से ज्यादा मांसपेशियां होती हैं, जिनका ठीक रहना जरूरी है।
लाइफस्टाइल संबंधी परेशानी (मोटापा, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज), क्लाइमेट चेंज से जुड़ी तकलीफें (लंबे समय तक दफ्तर के एसी में रहना, धूप के बिना रहना, लंबी सिटिंग आदि, ऎसा वातावरण जो परेशानी को बढ़ाता है), मैकेनिकल एवं ऑर्थोपेडिक डिसऑर्डर (पीठ, कमर, गर्दन, कंधे, घुटने का दर्द या दुर्घटना के कारण भी), आहार-विहार (जोड़ों का दर्द, हार्मोनल बदलाव, पेट से जुड़ी समस्याएं), खेलकूद की चोटें, ऑर्गन डिसऑर्डर, ऑपरेशन से जुड़ी समस्याएं, न्यूरोलॉजिकल बीमारियां (मांसपेशियों का खिंचाव व उनकी कमजोरी, नसों का दर्द व उनकी ताकत कम होना), चक्कर आना, कंपन, झनझनाहट, सुन्नपन और लकवा, बढ़ती उम्र संबंधी बीमारियों के कारण चलने-फिरने में दिक्कत, बैलेंस बिगड़ना, टेंशन, हैडेक और अनिद्रा में फिजियोथैरेपी को अपना सकते हैं।
फिजियोथैरेपी में तुरंत इलाज संभव नहीं होता। मरीज को धैर्य रखते हुए एक्सपर्ट के बताए अनुसार व्यायाम करने और जीवनशैली में बदलाव लाने से न सिर्फ दीर्घकालिक लाभ होता है बल्कि एक्सरसाइज भी उसकी जीवनशैली का नियमित हिस्सा बन जाते हैं। ये दोनों चीजें दवा रहित जीवन व बीमारियों को दूर रखने में मददगार होती हैं।

बाल मुकुन्द ओझा

वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार
डी 32, मॉडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर

दक्षिण एशिया की अस्थिरता और भारत की चुनौतियाँ

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दक्षिण एशिया इस समय राजनीतिक अस्थिरता की चपेट में है। नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार और मालदीव में हालिया घटनाओं ने भारत की सुरक्षा और रणनीतिक हितों पर सीधा प्रभाव डाला है। चीन और अमेरिका अपनी-अपनी टूलकिट के जरिए क्षेत्र में हस्तक्षेप कर रहे हैं। भारत के लिए केवल प्रतिक्रियात्मक नीति पर्याप्त नहीं है; उसे कूटनीतिक सक्रियता, आर्थिक निवेश, सुरक्षा सहयोग और सांस्कृतिक संबंधों को मज़बूत करना होगा। साथ ही आंतरिक एकजुटता को बनाए रखना अनिवार्य है। भारत अब मूकदर्शक नहीं रह सकता; उसे निर्णायक भूमिका निभाकर क्षेत्रीय स्थिरता और राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों को सुरक्षित करना होगा।

 डॉ. सत्यवान सौरभ

दक्षिण एशिया आज जिस अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है, वह केवल स्थानीय राजनीति का परिणाम नहीं है, बल्कि वैश्विक शक्तियों के गहरे हस्तक्षेप का दुष्परिणाम भी है। नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार और मालदीव जैसे देशों में हाल के वर्षों में जिस तरह राजनीतिक हलचलें और जनआंदोलन सामने आए हैं, उन्होंने पूरे क्षेत्र की स्थिरता पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है। नेपाल में युवाओं की भीड़ का संसद पर धावा, बांग्लादेश में सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसक विरोध, म्यांमार में लगातार जारी सैन्य शासन और उसके विरुद्ध संघर्ष, मालदीव में भारत विरोधी राजनीतिक धारा का उभरना—ये सभी घटनाएँ भारत के लिए गंभीर चिंतन का विषय हैं। इसका कारण साफ है, क्योंकि इन घटनाओं का सीधा असर भारत की सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और सामरिक संतुलन पर पड़ता है।

इन घटनाओं की जड़ में अमेरिका और चीन जैसे महाशक्तियों की टकराहट है। अमेरिका अपने लोकतंत्र और मानवाधिकार की टूलकिट से काम करता है, जहाँ युवा असंतोष, चुनावी धांधली और भ्रष्टाचार को हथियार बनाकर स्थानीय सरकारों पर दबाव डाला जाता है। दूसरी ओर चीन अपने कर्ज़, बुनियादी ढाँचे और निवेश परियोजनाओं के माध्यम से इन देशों को अपनी ओर खींचता है। नेपाल और मालदीव जैसे छोटे देश चीनी निवेश के जाल में फँस चुके हैं, वहीं बांग्लादेश और म्यांमार में अमेरिका और चीन की खींचतान खुलकर दिखाई देती है। यह परिदृश्य केवल इन देशों की राजनीति को नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशियाई भू-राजनीतिक संतुलन को प्रभावित कर रहा है।

भारत इस पूरे परिदृश्य में सबसे महत्वपूर्ण हितधारक है। अगर नेपाल अस्थिर होता है तो वहाँ से आने वाला सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव भारत की सीमा तक पहुँचता है। अगर बांग्लादेश में उथल-पुथल होती है तो पूर्वोत्तर भारत असुरक्षित हो जाता है। अगर म्यांमार में गृहयुद्ध जैसी स्थिति बनती है तो शरणार्थियों और तस्करी की समस्या भारत के लिए चुनौती बनती है। यदि मालदीव में चीन-समर्थित ताकतें हावी होती हैं तो हिंद महासागर में भारत की सामरिक स्थिति कमजोर हो सकती है। इन सभी घटनाओं का सीधा असर भारतीय सुरक्षा, कूटनीति और आर्थिक हितों पर पड़ना तय है।

भारत की अब तक की नीति अधिकतर प्रतिक्रियात्मक रही है। जब भी कोई संकट पड़ोसी देशों में गहराता है, भारत अस्थायी कदम उठाता है, पर दीर्घकालिक रणनीति का अभाव साफ दिखाई देता है। उदाहरण के लिए, नेपाल के साथ खुली सीमा का लाभ उठाकर वहाँ के राजनीतिक समीकरणों में चीन की पैठ ने भारत की स्थिति कमजोर की। मालदीव में भी लंबे समय तक भारत-प्रथम नीति का लाभ लेने के बाद जब नई सरकार चीन के करीब चली गई तो भारत चौकन्ना हुआ। इसी तरह बांग्लादेश में भी हालिया घटनाक्रम ने यह सोचने पर मजबूर किया है कि क्या भारत की विदेश नीति केवल अल्पकालिक सहयोग तक सीमित है या उसमें दूरगामी दृष्टि भी है।

आज की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि भारत को केवल अपनी सीमाओं तक नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्रीय परिदृश्य में सक्रिय भूमिका निभानी होगी। क्षेत्रीय स्थिरता के बिना भारत का विकास और सुरक्षा अधूरा है। चीन और अमेरिका जैसे देश दक्षिण एशिया को केवल अपनी सामरिक प्रतिस्पर्धा का मैदान मानते हैं, जबकि भारत के लिए यह अस्तित्व और भविष्य का प्रश्न है। इसीलिए भारत को अब “मूकदर्शक” की भूमिका से बाहर निकलकर निर्णायक भूमिका निभानी होगी।

भारत की विदेश नीति के हालिया कदमों में संभावनाएँ भी दिखती हैं। जी-20 की अध्यक्षता के दौरान भारत ने वैश्विक दक्षिण की आवाज़ बनने की कोशिश की और विश्व मंच पर अपनी पहचान को मज़बूत किया। क्वाड के जरिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सामरिक संतुलन कायम करने का प्रयास हुआ। ब्रिक्स के विस्तार से भारत ने यह संदेश दिया कि वह बहुपक्षीय ढाँचों में संतुलन साध सकता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या ये वैश्विक पहल पड़ोस की अस्थिरता को सुलझाने में मददगार साबित हो रही हैं? सच तो यह है कि पड़ोस की राजनीति में भारत को और अधिक सक्रिय, लचीला और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।

सिर्फ कूटनीति ही नहीं, भारत को अपनी आंतरिक एकजुटता भी मज़बूत करनी होगी। इतिहास गवाह है कि भारत पर सबसे बड़ी चोटें बाहर से तब आईं जब अंदर से समाज बंटा हुआ था। आज भी जातिवाद, धर्म, आरक्षण, बेरोजगारी और क्षेत्रीय असमानता जैसे मुद्दों को भड़काकर बाहरी ताकतें भारत को अस्थिर करने का प्रयास कर रही हैं। सोशल मीडिया और फंडेड आंदोलनों के जरिए लोगों के बीच अविश्वास पैदा करना इस टूलकिट का अहम हिस्सा है। ऐसे में भारत के नागरिकों के लिए यह समझना जरूरी है कि राजनीतिक मतभेद अपनी जगह हैं, लेकिन राष्ट्रीय हित और सुरक्षा सर्वोपरि हैं।

भारत के लिए आगे की राह स्पष्ट है। सबसे पहले उसे पड़ोसी देशों में दीर्घकालिक निवेश और साझेदारी बढ़ानी होगी। शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढाँचे में सहयोग से ही भारत वहाँ अपनी स्थायी पैठ बना सकता है। दूसरा, भारत को अपनी खुफिया और सुरक्षा साझेदारी को मज़बूत करना होगा ताकि किसी भी बाहरी हस्तक्षेप या षड्यंत्र को समय रहते नाकाम किया जा सके। तीसरा, जन-से-जन संबंधों को गहरा करने की जरूरत है, क्योंकि यही भारत की असली ताकत है जो चीन या अमेरिका कभी हासिल नहीं कर सकते। चौथा, भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर दक्षिण एशिया की स्थिरता को वैश्विक मुद्दा बनाना होगा ताकि विश्व समुदाय इस ओर ध्यान दे।

निष्कर्ष यही है कि दक्षिण एशिया की मौजूदा अस्थिरता भारत के लिए केवल कूटनीतिक या सामरिक चुनौती नहीं है, बल्कि अस्तित्व का प्रश्न है। भारत अगर समय रहते निर्णायक रणनीति नहीं अपनाता, तो वह उन्हीं मुश्किलों में फँस सकता है जिनसे उसके पड़ोसी गुजर रहे हैं। इसलिए आज सबसे बड़ी आवश्यकता है आस्था और सजगता का संतुलन। जनता का विश्वास और नेतृत्व की दूरदृष्टि मिलकर ही भारत को बाहरी टूलकिट से सुरक्षित रख सकते हैं।

नेपाल में हिंसक प्रदर्शन के बीच पीएम ओली का इस्तीफा

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नेपाल में हिंसक प्रदर्शन के बीच पीएम केपी शर्मा ओली ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। इससे एक दिन पहले युवाओं के हिंसक विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस की गोलीबारी में करीब 20 लोगों की मौत हो गई थी और कई लोग घायल हो गए थे।नेपाल में जेनरेशन-जेड के प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन में आग लगा दी है। इससे पहले प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन में घुसकर तोड़फोड़ की थी।

प्रधानमंत्री सचिवालय ने ओली की ओर से राष्ट्रपति को भेजा इस्तीफ़ा सार्वजनिक किया है!प्रधानमंत्री के तौर पर यह ओली का चौथा कार्यकाल था!सत्तारूढ़ गठबंधन सहयोगी नेपाली कांग्रेस और नेपाली समाज पार्टी के कई मंत्रियों के सरकार से इस्तीफ़ा देने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री ओली ने इस्तीफ़ा दे दिया!राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल को भेजे अपने त्यागपत्र में ओली ने कहा, “मैंने संविधान के अनुच्छेद 77 (1) (ए) के अनुसार आज से प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया है, ताकि संविधान के अनुसार राजनीतिक समाधान ढूंढा जा सके और देश में उत्पन्न असामान्य स्थिति को ध्यान में रखते हुए समस्याओं को हल करने के लिए आगे की पहल की जा सके!”

नेपाल के स्वास्थ्य एवं जनसंख्या मंत्री प्रदीप पौडेल ने जेनरेशन जेड के विरोध प्रदर्शनों से निपटने के सरकार के तरीके पर अपनी असहमति जताते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। एक फेसबुक पोस्ट के जरिए अपने फैसले की घोषणा करते हुए, पौडेल ने लिखा कि युवा पीढ़ी ने सिर्फ सुशासन, जवाबदेही और न्याय की मांग की थी, लेकिन इसके बजाय उन्हें सरकारी दमन और गोलीबारी का सामना करना पड़ा।

उन्होंने कहा, ‘देश का बेहतर भविष्य चाहने वाले युवाओं को गोली मारना उचित नहीं ठहराया जा सकता।’ नेपाली कांग्रेस के एक केंद्रीय नेता पौडेल ने कहा कि उनकी अंतरात्मा उन्हें ऐसी परिस्थितियों में मंत्रिमंडल में बने रहने की इजाजत नहीं देती। उनका इस्तीफा देश भर में तेज होते विरोध प्रदर्शनों के बीच आया है, जिसमें कई प्रदर्शनकारी पहले ही अपनी जान गंवा चुके हैं।


नेपाल में त्रिभुवन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर सभी उड़ानें रद्द कर दी गईं। हवाई अड्डा प्राधिकरण ने असुविधा के लिए खेद व्यक्त किया है। टीआईए के महाप्रबंधक हंसराज पांडे ने बताया कि कोटेश्वर के पास धुएं के गुबार के बाद दोपहर 12:45 बजे से अंतरराष्ट्रीय उड़ानें रोक दी गई हैं। उन्होंने कहा, ‘हवाई अड्डा बंद नहीं है। हम इसे बंद भी नहीं करेंगे।’ चालक दल के सदस्य आवाजाही में समस्या के कारण हवाई अड्डे तक नहीं पहुंच पाए, जिससे उड़ानें उड़ान नहीं भर सकीं। बुद्ध एयर समेत घरेलू एयरलाइनों ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए सभी उड़ानें रद्द कर दी हैं।


नेपाल में उग्र प्रदर्शनकारियों ने उपप्रधानमंत्री और वित्त मंत्री बिष्णु पौडेल के भैसपति स्थित आवास पर भी पथराव किया। नेपाल राष्ट्र बैंक के गवर्नर बिस्व पौडेल के भैसपति स्थित आवास पर भी पथराव किया गया।इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने बुधनीलकांठा स्थित ऊर्जा मंत्री दीपक खड़का के घर में भी तोड़फोड़ की और आग लगा दी।नेपाल के मंत्री आरजू राणा देउबा और गृह मंत्री रमेश लेखक के घरों में भी आग लगा दी गई। प्रदर्शनकारियों ने सीपीएन (यूएमएल) पार्टी के केंद्रीय कार्यालय में भी तोड़फोड़ की।

“नेपाल का ऑनलाइन लॉकडाउन: आज़ादी पर सवाल”

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(सोशल मीडिया पर नेपाल का बड़ा ताला: लोगों की आवाज़ पर रोक या नियमों की ज़रूरत?) 

नेपाल सरकार ने 26 बड़े सोशल मीडिया और संदेश भेजने वाले मंच—जिनमें फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और एक्स (पहले ट्विटर) शामिल हैं—को देश में बंद करने का आदेश दिया है। सरकार का तर्क है कि कंपनियों ने स्थानीय कार्यालय नहीं खोला और शिकायत निवारण व्यवस्था नहीं बनाई, जिससे अफवाहें और साइबर अपराध बढ़ रहे हैं। आलोचक इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला मानते हैं। इस कदम से आम नागरिक, परिवार, व्यापारी और सामग्री निर्माता प्रभावित होंगे। विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि पूर्ण प्रतिबंध की बजाय कंपनियों को नियमों का पालन कराने और जनता की आवाज़ सुरक्षित रखने वाला संतुलित समाधान बेहतर होगा। युवा के विरोध को देखते हुए सरकार ने सोशल मीडिया से प्रतिबंध हटा दिया ,किंतु सड़कों पर आए आंदोलनकारी मानने के लिए तैयार नही है।

— डॉ प्रियंका सौरभ

नेपाल जैसे छोटे लोकतांत्रिक देश ने हाल ही में ऐसा बड़ा निर्णय लिया है जिसने पूरी दुनिया को चौंका दिया। सरकार ने 26 सोशल मीडिया और संदेश मंचों पर अचानक रोक लगाने का आदेश दिया। इसमें फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और एक्स जैसे सबसे लोकप्रिय मंच शामिल हैं। यह फैसला जितना अचानक लिया गया, उतना ही गहरी बहस भी शुरू कर दी कि क्या यह कदम नागरिक अधिकारों पर हमला है या देश की डिजिटल सुरक्षा के लिए जरूरी था।

सरकार का कहना है कि सोशल मीडिया कंपनियों को पहले ही चेतावनी दी गई थी कि वे नेपाल में अपना स्थानीय कार्यालय खोलें, प्रतिनिधि नियुक्त करें और शिकायत निवारण की व्यवस्था सुनिश्चित करें। लेकिन कंपनियों ने इसका पालन नहीं किया। सरकार के अनुसार, इस कारण अफवाहें, भ्रामक खबरें और साइबर अपराध तेजी से बढ़ रहे थे। इसे रोकने के लिए ही यह बड़ा कदम उठाया गया।

लेकिन इस फैसले का विरोध भी तेजी से हो रहा है। पत्रकार संगठन, मानवाधिकार समूह और आम नागरिक इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला मान रहे हैं। उनका तर्क है कि सोशल मीडिया केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह अब नागरिकों की आवाज़ और लोकतंत्र का आधार बन चुका है। जब इतने बड़े स्तर पर मंच बंद कर दिए जाएंगे, तो जनता की संवाद और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर गहरा असर पड़ेगा।

नेपाल में लाखों परिवार ऐसे हैं जिनके सदस्य विदेशों में काम कर रहे हैं। उनके लिए व्हाट्सएप और फेसबुक ही परिवार से जुड़े रहने का सबसे आसान माध्यम हैं। इस प्रतिबंध से उनकी रोज़मर्रा की जिंदगी कठिन हो जाएगी। यही नहीं, छोटे व्यापारी और ऑनलाइन कारोबार करने वाले लोग भी सोशल मीडिया के माध्यम से ग्राहकों तक पहुँचते थे। इंस्टाग्राम, यूट्यूब और फेसबुक पर विज्ञापन देकर वे अपने उत्पाद बेचते थे। अब यह सब प्रभावित होगा।

हजारों सामग्री निर्माता और यूट्यूबर, जो सोशल मीडिया से अपनी रोज़ी-रोटी चला रहे थे, अचानक बेरोज़गार होने की कगार पर पहुँच गए हैं। युवाओं में निराशा और असंतोष बढ़ रहा है। यह केवल आर्थिक समस्या नहीं है, बल्कि डिजिटल रोजगार पर भी बड़ा झटका है।

राजनीतिक दृष्टि से भी यह निर्णय नेपाल सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। विपक्ष इसे तानाशाही कदम मान रहा है। उनका कहना है कि सरकार आलोचना और सवालों से डर रही है, इसलिए उसने सोशल मीडिया पर रोक लगा दी। लोकतंत्र की असली ताकत जनता की आवाज़ में है। जब उस आवाज़ को दबाया जाता है, तो लोकतंत्र कमजोर पड़ जाता है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी नेपाल की छवि प्रभावित होगी। निवेशक और डिजिटल कंपनियाँ यह सोचेंगी कि नेपाल का डिजिटल माहौल स्थिर और सुरक्षित नहीं है। इससे निवेश और साझेदारी पर असर पड़ेगा। पर्यटक भी नाखुश हो सकते हैं, क्योंकि आज यात्रा, संचार और जानकारी का बड़ा हिस्सा सोशल मीडिया पर आधारित है।

सरकार का तर्क बिल्कुल गलत नहीं है। सोशल मीडिया पर अफवाहें, फर्जी खबरें और साइबर अपराध तेजी से फैल रहे हैं। इससे सामाजिक तनाव और हिंसा भी भड़क सकती है। सरकार को यह हक़ है कि वह नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करे और कंपनियों को जिम्मेदार बनाए। लेकिन समस्या का हल सीधे मंचों को बंद करना नहीं होना चाहिए।

दुनिया के कई देशों ने सोशल मीडिया कंपनियों पर नियम लागू किए हैं। भारत ने 2021 में नए सूचना प्रौद्योगिकी नियम बनाए, जिनमें कंपनियों को शिकायत अधिकारी नियुक्त करना और सामग्री पर तुरंत कार्रवाई करना अनिवार्य किया गया। यूरोपियन संघ ने भी डिजिटल सेवा कानून लागू किया। लेकिन कहीं भी इस तरह का पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया गया। नेपाल का कदम इसलिए कठोर और जल्दबाज़ी भरा लगता है।

समाधान यही है कि सरकार कंपनियों से बातचीत करे, उन पर जुर्माना लगाए और नियमों का पालन करने के लिए दबाव बनाए। जनता की आवाज़ को पूरी तरह रोकना सही तरीका नहीं है। यह न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है बल्कि जनता और सरकार के बीच अविश्वास भी बढ़ाएगा।

भविष्य में नेपाल को संतुलन की राह चुननी होगी। उसे समझना होगा कि सोशल मीडिया अब केवल तकनीकी साधन नहीं है, बल्कि लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है। इसे बंद करना लोगों की स्वतंत्रता और संवाद दोनों पर चोट है। बेहतर होगा कि सरकार कंपनियों को सख्त नियमों के दायरे में रखे, लेकिन नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुरक्षित भी रहे।

लोकतंत्र की असली ताकत जनता का भरोसा है। यह भरोसा तभी बनता है जब सरकार जनता से संवाद करेगी, न कि उसकी आवाज़ को दबाएगी। नेपाल को चाहिए कि वह अपने इस फैसले पर पुनर्विचार करे और ऐसा रास्ता अपनाए जिससे कानून का पालन भी हो और नागरिकों की स्वतंत्रता भी सुरक्षित रहे। यही सही लोकतांत्रिक समाधान है।

नेपाल की यह घटना पूरे विश्व के लिए भी सीख है। यह दिखाती है कि डिजिटल दुनिया में नियमों और स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाना कितना महत्वपूर्ण है। एक ओर सुरक्षा, अफवाहों और अपराधों पर नियंत्रण की जरूरत है, तो दूसरी ओर जनता की अभिव्यक्ति और संवाद की स्वतंत्रता का सम्मान भी उतना ही आवश्यक है। यदि यही संतुलन मिल जाता है, तो लोकतंत्र मजबूत रहेगा और डिजिटल दुनिया का लाभ सभी को मिलेगा।

नेपाल के निर्णय ने यह स्पष्ट किया है कि सरकारें डिजिटल दुनिया में सही कदम उठाने के लिए जिम्मेदार हैं, लेकिन इस जिम्मेदारी का मतलब जनता की आवाज़ पर अंकुश लगाना नहीं होना चाहिए। हर लोकतंत्र में नागरिकों की स्वतंत्रता सर्वोपरि है। इसलिए नेपाल को चाहिए कि वह कानून की कठोरता और लोगों की स्वतंत्रता के बीच सही संतुलन बनाए और सोशल मीडिया को केवल प्रतिबंध का शिकार न बनने दे।

अंततः यह निर्णय एक चेतावनी भी है कि सोशल मीडिया का महत्व अब केवल मनोरंजन या सूचना तक सीमित नहीं है। यह लोकतंत्र, रोजगार, सामाजिक संवाद और वैश्विक पहचान का अहम हिस्सा बन चुका है। इसे सही ढंग से नियंत्रित करना, नियम लागू करना और नागरिकों की आवाज़ सुरक्षित रखना ही भविष्य की दिशा है।

नेपाल को चाहिए कि वह इस निर्णय का पुनर्विचार करे और ऐसा समाधान निकाले जो कानून का पालन सुनिश्चित करे, अफवाहों और साइबर अपराध पर रोक लगाए, और साथ ही जनता की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को भी सुरक्षित रखे। यही लोकतंत्र की सच्ची ताकत है।

-प्रियंका सौरभ 

कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार

उत्तर प्रदेश पुलिस में फेरबदल

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उत्तर प्रदेश पुलिस में बड़ा प्रशासनिक फेरबदल हुआ है। यहां 28 आईपीएस अधिकारियों का तबादला कर दिया गया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने आईपीएस अधिकारियों की नई तैनाती में श्री राजीव सभरवाल को पुलिस महानिदेशक, प्रशिक्षण एवं आधुनिकीकरण, लखनऊ नियुक्त किया है। इसके साथ ही उन्हें डॉ. भीमराव अंबेडकर पुलिस अकादमी, मुरादाबाद का भी अतिरिक्त प्रभार दिया गया है

आईपीएस ए. सतीश गणेश को अपर पुलिस महानिदेशक, यातायात एवं सड़क सुरक्षा, लखनऊ की जिम्मेदारी दी गई है। श्री के. सत्यनारायण को अपर पुलिस महानिदेशक, नियम एवं प्रशासन लखनऊ बनाया गया है। विजय सिंह मीना को पुलिस महानिदेशक, महिला एवं बाल सुरक्षा संगठन, लखनऊ नियुक्त किया है।आलोक कुमार श्रीवास्तव को विशेष जांच प्रकोष्ठ, लखनऊ भेजा गया है। शुभम पटेल को पुलिस अधीक्षक, पीएसी मुख्यालय, लखनऊ की जिम्मेदारी मिली है।

चक्रपाणि त्रिपाठी को पुलिस अधीक्षक, प्रतापगढ़ बनाया गया है। मनोज कुमार अवस्थी को पुलिस अधीक्षक, 12वीं बटालियन पीएसी, फतेहपुर भेजा गया है। इसके अलावा रोहन पी. को अपर पुलिस अधीक्षक, साइबर क्राइम, लखनऊ नियुक्त किया गया है।मेघनाथ सिंह को सेनानायक, 5वीं बटालियन पीएसी, सहारनपुर भेजा गया है। वहीं अन्य अधिकारियों को भी अलग-अलग जिलों और यूनिट्स में तैनाती दी गई है।बिजनोर के भी अपर पुलिस अधीक्षक हटाएं गए हैं।

तबादले वाले अधिकारियों की सूची

नेपाल में आंदोलन में झड़प , 20 मरे, 250 घायल

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नेपाल में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के बाद Gen-Z हिंसक हुए आंदोलन में में अब तक 20 लोगों की मौत हो चुकी है। नेपाली मीडिया के अनुसार मृतकों में 16 काठमांडू और 2 इटाहारी के हैं। प्रदर्शनों में 250 से अधिक लोग घायल भी हुए हैं ।इनमें प्रदर्शनकारी सुरक्षाकर्मी और पत्रकार शामिल हैं। आंदोलनकारियों पहले सुरक्षाबलों ने लाठीचार्ज किया। आंसू गैस के गोले छोड़े और रबर बुलेट से भीड़ को नियंत्रित करने की कोशिश की । स्थिति बिगड़ने के बाद सेना को उतारना पड़ा। नेपाल के कई शहरों में कर्फ्यू (Nepal Curfew) लगा दिया गया है।भारत से सटी नेपाल की सीमा पर चौकसी बढ़ा दी गई है। नेपाल में सभी परीक्षाएं भी स्थगित कर दी गई हैं। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि सुरक्षाबल उन पर गोलियां चला रहे हैं। वहीं ट्रॉमा सेंटर और सिविल अस्पतालों में भी झड़प की खबरें मिल रही हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नेपाल में इस वक्त राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। प्रधानमंत्री आवास पर आपातकालीन कैबिनेट मीटिंग बुलाई गई है । इसमें नेपाल के गृहमंत्री रमेश लेखक ने नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने की घोषणा की है। छात्र सड़कों से हटने को तैयार नहीं हैं।दरअसल नेपाल में सरकार द्वारा सोशल मीडिया कंपनियों के एक हफ्ते के भीतर नियमों के तहत रजिस्टर करने का अल्टीमेटम दिया था। डेडलाइन पूरी होने के बाद भी मेटा, गूगल समेत दर्जनभर प्लेटफॉर्म्स ने रजिस्ट्रेशन नहीं कराया गया था। इसके बाद ओली सरकार ने कार्रवाई करते हुए इन प्लेटफॉर्म्स को बैन करने का फैसला किया था।सरकार के इसी फैसले के विरोध में नेपाल के युवा सड़कों पर उतर आए। पहले सुरक्षाबलों ने लाठीचार्ज किया। आंसू गैस के गोले छोड़े और रबर बुलेट से भीड़ को नियंत्रित करने की कोशिश की । स्थिति बिगड़ने के बाद सेना को उतारना पड़ा। नेपाल के कई शहरों में कर्फ्यू (Nepal Curfew) लगा दिया गया है। वहीं घायल हुए लोगों के लिए मुफ्त इलाज की घोषणा की गई है।

नेपाल में युवाओं का हालिया आंदोलन, जिसे “जेन जी रिवोल्यूशन” (Gen Z Revolution) भी कहा जा रहा है, सोशल मीडिया पर सरकार के प्रतिबंध के विरोध में शुरू हुआ है। हालांकि, यह केवल सोशल मीडिया बैन का विरोध नहीं है, बल्कि यह आंदोलन भ्रष्टाचार, कुशासन और असमानता के खिलाफ भी युवाओं के गुस्से को दर्शाता है। नेपाल सरकार ने हाल ही में फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब और व्हाट्सएप जैसे 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बैन लगा दिया है। सरकार ने इसका कारण यह बताया है कि ये प्लेटफॉर्म नेपाल के कानूनों का पालन नहीं कर रहे हैं। युवाओं का मानना है कि यह कदम उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने का प्रयास है। युवाओं में सरकार के खिलाफ लंबे समय से गुस्सा है, खासकर भ्रष्टाचार और कुशासन को लेकर। वे महसूस करते हैं कि राजनीतिक अभिजात वर्ग अपने बच्चों को विदेश में भेजकर और विलासितापूर्ण जीवन जीकर अवैध रूप से कमाई गई दौलत का प्रदर्शन कर रहा है, जबकि आम लोग गरीबी और बेरोजगारी से जूझ रहे हैं।

​आदोंलन को देखते हुए सरकार ने कई इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया है, जिसमें संसद भवन और प्रधान मंत्री निवास के आसपास के क्षेत्र शामिल हैं।​प्रदर्शनकारियों द्वारा बैरिकेड्स तोड़ने और संसद भवन में प्रवेश करने की कोशिश के बाद यह कदम उठाया गया।नेपाल के गृह मंत्री रमेश लेखक ने आंदोलन में हुई मौतों की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया है।

​आंदोलन काठमांडू के अलावा नेपाल के अन्य शहरों जैसे पोखरा, बुटवल, नेपालगंज, और विराटनगर में भी फैल गया है।इस आंदोलन का नेतृत्व मुख्य रूप से “जनरेशन ज़ेड” (Gen Z) के युवा कर रहे हैं, जो डिजिटल तकनीक से परिचित हैं।​प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वे शांतिपूर्ण विरोध कर रहे थे, लेकिन पुलिस की हिंसा ने इसे हिंसक बना दिया।

यह आंदोलन नेपाल सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है, जो पहले से ही भ्रष्टाचार और कुशासन के आरोपों का सामना कर रही है।सरकार को न केवल सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के मुद्दे को हल करना होगा, बल्कि युवाओं के गहरे असंतोष को भी संबोधित करना होगा।इस आंदोलन ने नेपाल में एक नई क्रांति ला दी है, जो दर्शाता है कि युवा अब अपनी आवाज़ उठाना चाहते हैं और देश के भविष्य को बदलना चाहते हैं।

राहुल की सियासी संजीवनी का फैसला

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बाल मुकुन्द ओझा
इसमें कोई दो राय नहीं है कि कांग्रेस के सर्वमान्य नेता राहुल गांधी अपनी और पार्टी की साख बचाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे है। सियासत के जानकारों का मानना है बिहार के चुनाव कांग्रेस को सियासी संजीवनी देने का फैसला करेंगे। हाल ही राहुल गांधी द्वारा निकाली गई वोटर अधिकार यात्रा में उमड़ी भीड़ से राहुल और कांग्रेस काफी उत्साहित है। इसी बीच प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की एक लक्खी रैली के आयोजन के माध्यम से भाजपा ने राहुल की यात्रा को पंक्चर करने का प्रयास किया। राहुल गांधी की यात्रा ने बिहार में 1300 किलोमीटर का सफर तय किया और 23 जिलों के 110 विधानसभा क्षेत्रों को कवर किया। अब देखने की बात यह है कि राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा ने क्या हासिल किया और बिहार कांग्रेस के लिए क्या बदल गया है। हालांकि भीड़ किसी जीत का सही पैमाना नहीं है। मगर अपनी पार्टी के लिए यह वातावरण के निर्माण में सहयोगी हो सकती है। पिछले दो सालों में कांग्रेस पार्टी हिंदी पट्टी के तीन राज्यों सहित महाराष्ट्र और हरियाणा तथा लोकसभा चुनाव हारने के बाद घायल शेर की तरह दहाड़ रही है। कांग्रेस ने चुनाव जीतने के लिए हर हथकंडे का उपयोग किया। यहाँ तक की संसद भी चलने नहीं दी जा रही है। ईडी, सीबीआई और चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाओं पर तरह तरह के आरोपों की झड़ी लगाई। बिहार में अपनी यात्रा के दौरान एक नया आरोप और आरोपों की लिस्ट में जुड़ गया। राहुल गाँधी ने कहा नरेंद्र मोदी ने गुजरात चुनाव वोट चोरी से जीता। लोकसभा चुनाव वोट चोरी से जीतने का आरोप तो वे कई बार दोहरा चुके है। अब बिहार चुनाव उनकी संजीवनी का सहारा है। दूसरी तरफ बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा को मुश्किलों में देखकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने महाराष्ट्र और हरियाणा की तर्ज पर बिहार में सक्रिय भूमिका निभाने के संकेत दिए हैं।
लगातार लोकसभा चुनाव हारने के बात कांग्रेस के नेता समय समय पर इस प्रकार के बयान देते रहे है। राहुल गाँधी का वह चर्चित बयान याद कीजिये जिसमें उन्होंने कहा था, अगर राफेल की जांच शुरू हुई, पीएम मोदी जेल जाएंगे। बाद में राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में खेद जताकर माना है कि वह राफेल डील पर आरोप राजनीति से प्रेरित होकर लगा रहे थे। उन्होंने बिना किसी आधार के केन्द्र सरकार की सुरक्षा डील पर सवाल उठाया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे भी बिना सिर पैर के आरोप लगाने में पीछे नहीं रहे है। खरगे भी एक बार यह कह चुके है, अगर हमें 20 सीटें और आ जाती तो ये सारे लोग जेल में होते। ये लोग जेल में रहने के लायक हैं।
गांधी अपनी पार्टी कांग्रेस के गिरते जनाधार से बेहद चिंतित है और देशभर के दौरे कर पार्टी को मज़बूत करने के प्रयास में जुटे है। वैसे हर नेता का दायित्व है वह अपनी पार्टी की साख बनाये, और इसी काम में राहुल लगातार लगे है। राहुल गांधी दिल्ली सहित हरियाणा और महाराष्ट्र में पार्टी की हार से हताश है। राहुल लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमलावर है और ऐसा कोई भी मौका नहीं चुकते जब उनके निशाने पर मोदी होते है। यही नहीं राहुल ने देश की सवैंधानिक संस्थाओं यथा चुनाव आयोग, न्यायालय और प्रेस पर भी समय समय पर हमला बोला है। राहुल हमेशा मोहब्बत की बात करते है मगर मोदी और आरएसएस के बारे में अपनी नफरत छुपा नहीं पाते। हालाँकि वे कहते है मैं मोदी से नफरत नहीं करता। लोकसभा में विपक्ष का नेता बनने के बाद राहुल कुछ अधिक ही उत्साहित हो रहे है। उन्हें होना भी चाहिए मगर विदेशी धरती पर जाकर मोदी और संवैधानिक संस्थाओं पर बेसिरपैर के आरोप लगाना देशवासियों के गले नहीं उतरता। राहुल के बयानों पर भाजपा आग बबूला हो रही है वहां इंडि गठबंधन की सहयोगी पार्टियां राहुल के बयानों का समर्थन कर अपनी एकजुटता प्रदर्शित कर रही है। नेता विपक्ष बनने के बाद राहुल गांधी के गुस्से में बढ़ोतरी देखी जा रही है। राहुल गांधी को बहुत गुस्सा आता है जब लोग उन्हें तरह तरह की उपमाओं से नवाजते है। राहुल कई बार यात्राएं निकालकर लोगों के बीच गए। हर तबके के लोगों से मिले। उनका प्यार भी उन्हें मिला। राहुल गांधी की एक दशक की सियासी यात्रा पर दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने मोदी पर तरह तरह के आरोप लगाए। गौरतलब है राहुल ने देश की सवैंधानिक संस्थाओं यथा चुनाव आयोग, न्यायालय और प्रेस पर भी समय समय पर हमला बोला है।


बाल मुकुन्द ओझा
वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार

कुलगाम में मुठभेड़ में दो आतंकी मरे, दो जवान भी शहीद

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जम्मू-कश्मीर के कुलगाम जिले के गुड्डार इलाके में आतंकियों के साथ सुरक्षाबलों की मुठभेड़ में दो आतंकी मारे गए।, दो जवान के शहीद होने की सूचना है।मुठभेड़ अभी चल रही है। तलाशी अभियान के दौरान आतंकियों ने सुरक्षाबलों पर फायरिंग की। इसके बाद सुरक्षाबलों ने भी जवाब दिया। दो आतंकी मारे गये । इलाके में तलाशी अभियान जारी है।

कश्मीर जोन पुलिस के अनुसार कुलगाम के गुड्डर जंगल में मुठभेड़ हो रही है। तलाशी अभियान के दौरान जंगल में छिपे आतंकियों ने सुरक्षाबलों पर फायरिंग की है, सुरक्षाबलों ने भी मुंहतोड़ जवाब दिया है। दोनों तरफ से तेज गोलीबारी हुई।

रिश्तों की गरिमा की पुनर्स्थापना का यक्ष प्रश्न

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अशोक मधुप
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आज जगह – जगह रिश्तों का खून हो रहा है। हैं।हालत यह है कि बाप बेटी को मार रहा है ।बेटी बाप को मार रही है ।पति-पत्नी को मार रहा है। पत्नी −पति की हत्याकर रही है।भाई− बहिन को मारते नही झिझक रहा तो भाई की हत्या करते बहन के हाथ नही कांप रहे।मां − बेटे और बेटी का हत्या कर रही है तो बेटा और बेटी मां को ही नही बाप की भी हत्या कर रहे हैं।ऐसा लगता है कि भारत की परिवार व्यवस्था टूट चुकी है। रिश्तों पर स्वार्थ हावी हो गया है।
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आज समाज का सबसे दुखद और चिंताजनक पहलू यह है कि जिन रिश्तों को सबसे पवित्र और मजबूत माना जाता है, वहीं रिश्ते टूट रहे हैं और हिंसा का शिकार हो रहे हैं। समाचार पत्र और टीवी चैनल लगभग रोज़ाना ऐसी ख़बरें दिखाते हैं।हालत यह है कि बाप बेटी को मार रहा है ।बेटी बाप को मार रही है ।पति-पत्नी को मार रहा है। पत्नी −पति की हत्याकर रही है।भाई− बहिन को मारते नही झिझक रहा तो भाई की हत्या करते बहन के हाथ नही कांप रहे।मां बेटे और बेटी का हत्या कर रही है तो बेटा और बेटी मां को ही नही बाप की भी हत्या कर रहे हैं।ऐसा लगता है कि भारत की परिवार व्यवस्था टूट चुकी है। रिश्तों पर स्वार्थ हावी हो गया है। व्यक्तिवाद ने समाज पर अपना अधिकार कर लिया।
इन घटनाओं ने यह प्रश्न खड़ा कर दिया है कि आखिर इंसान को इतना निर्दयी और क्रूर कौन बना रहा है? जिन संबंधों में विश्वास, अपनापन और प्रेम होना चाहिए, वहां नफरत, तनाव और हिंसा क्यों बढ़ रही है?लगता है कि भारतीय परिवार टूटने का असर यह हुआ है कि एकल परिवार अब अपने तक सीमित होने की जद्दोजहद में है।पहले संयुक्त परिवार होते है।सामूहिक चूल्हा होता था। सामूहिक खान − पान था। हमारे बचपन तक खाना रसोई के पास जमीन पर बैठकर जीमा जाता था।परिवार के बुजुर्ग बच्चे साथ बैठकर भोजन करते थे। सब दुख− सुख के साथी थे।प्रायः जरूरत के सामान सब घर के आसपास मिल जाते थे।धीरे – धीरे परिवार की जरूरते बढ़ने लगीं। युवक रोजगार के लिए बाहर जाने लगे।धीरे− धीरे उनके साथ पत्नी और बच्चे नौकरी वाले स्थान पर रहने लगे। आज आदमी अपने तक सीमित होकर रह गया। व्यक्तिवाद हावी हो गया।
लगता है कि जैसे समाज ने सारे रिश्ते जंगल बनाकर रहेंगे। हम आदि व्यवस्था से भी आदम की ओर बढ़ते जा रहे हैं ।इन सब रिश्तों को दोबारा कैसे जिंदा किया जाए इस पर विचार करना
होगा।पहले के समय में संयुक्त परिवार होते थे। परिवार के बुज़ुर्ग विवादों को संभालते, बच्चों को संस्कार देते और छोटी-छोटी गलतियों को समय रहते सुधार लेते। आज अधिकांश परिवार ‘न्यूक्लियर फैमिली’ यानी छोटे परिवार बन गए हैं। ऐसे में
पति-पत्नी के झगड़े सुलझाने वाला कोई नहीं होता।माता-पिता और बच्चों के बीच पीढ़ीगत संवाद टूट गया है।अकेलापन और अवसाद घर कर जाता है।जब संवाद टूटता है तो ग़लतफ़हमियाँ बढ़ती हैं और छोटी-सी बात हिंसा तक पहुँच जाती है।
पहले मोहल्ले और गाँव के लोग भी परिवार के सदस्य जैसे होते थे। यदि किसी परिवार में कलह होती थी तो पड़ोसी हस्तक्षेप करके सुलह करा देते थे। आज लोग एक-दूसरे से अलग-थलग हो गए हैं।‘निजता’ के नाम पर लोग किसी के मामलों में बोलना नहीं चाहते।इस चुप्पी का नतीजा है कि छोटे विवाद हिंसक रूप ले लेते हैं।परिवारों में हिंसा का एक बड़ा कारण आर्थिक तनाव भी है।महँगाई, बेरोज़गारी और आर्थिक असमानता ने लोगों को चिड़चिड़ा बना दिया है।पिता बेरोज़गार बेटे पर गुस्सा निकालते हैं, बेटा अपमानित होकर पिता की हत्या तक कर देता है।पति-पत्नी के बीच आर्थिक जिम्मेदारियों को लेकर झगड़े होते हैं जो कभी-कभी खून-खराबे में बदल जाते हैं।शराब, ड्रग्स और अन्य नशे परिवारिक हिंसा की जड़ हैं। नशे में व्यक्ति का विवेक खत्म हो जाता है और वह अपने ही परिवार को मारने तक से नहीं हिचकिचाता। भारत में लगभग 30 प्रतिशत घरेलू हिंसा के मामलों में नशे को मुख्य कारण माना गया है।
आज के समय में शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी या पैसा कमाना रह गया है। बच्चों को नैतिक शिक्षा, संस्कार और धैर्य सिखाने की परंपरा कमजोर हो चुकी है।सम्मान और सहनशीलता की जगह ‘आत्मकेंद्रितता’ बढ़ रही है।लोग रिश्तों को बोझ समझने लगे हैं।आपसी विश्वास और त्याग की भावना खत्म हो रही है।यही कारण है कि भाई-बहन, पति-पत्नी, माँ-बेटे जैसे पवित्र रिश्ते भी हत्या जैसे अपराध तक पहुँच जाते हैं।
मोबाइल, टीवी, इंटरनेट और सोशल मीडिया ने जीवन की धारा को बदला है।युवा वर्ग आभासी (Virtual) दुनिया में ज्यादा जी रहा है।परिवार को समय न देकर ‘फ्रस्ट्रेशन’ (तनाव) में डूब जाता है।अपराध आधारित वेब सीरीज़ और हिंसक वीडियो गेम ने भी संवेदनाओं को कुंद कर दिया है।लोग वास्तविक जीवन में भी गुस्से और हिंसा को सामान्य मानने लगे हैं।
आज मानसिक स्वास्थ्य सबसे बड़ी समस्या है। डिप्रेशन, तनाव और मनोविकृति से पीड़ित लोग अक्सर हिंसा की ओर बढ़ जाते हैं।कई बार माता-पिता अवसाद में आकर अपने ही बच्चों की हत्या कर देते हैं।युवा अवसादग्रस्त होकर माता-पिता पर हमला कर बैठते हैं।मानसिक रोगों की पहचान और इलाज की व्यवस्था की कमी के कारण ऐसी घटनाएँ बढ़ रही हैं।परिवारों में संपत्ति विवाद हिंसा का बड़ा कारण है।भाई-भाई की हत्या कर देते हैं।बेटे-बेटियाँ माँ-बाप की संपत्ति हथियाने के लिए उन्हें मौत के घाट उतार देते हैं।ज़मीन-जायदाद के झगड़े अक्सर खून-खराबे तक पहुँच जाते हैं।
पारिवारिक हिंसा सिर्फ़ अपराध नहीं है, बल्कि समाज की चेतावनी भी है। यह हमें बताता है कि हम रिश्तों के मूल्य, संस्कारों और आपसी संवाद को खोते जा रहे हैं। अगर समय रहते सुधार नहीं किया गया तो परिवार जैसी संस्था ही कमजोर हो जाएगीहमें यह समझना होगा कि पैसा, आधुनिकता और तकनीक से ज़्यादा महत्वपूर्ण मानवता, प्रेम और विश्वास है। यदि रिश्तों में करुणा, धैर्य और संवाद कायम रहेगा तो न बाप बेटी को मारेगा, न बेटी बाप को, न पति पत्नी पर हाथ उठाएगा और न ही भाई-बहन, माँ-बाप, बेटे-बेटी हत्या तक पहुँचेंगे।

अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)