केंद्रीय मंत्रिमंडल ने स्नातकोत्तर, स्नातक चिकित्सा शिक्षा क्षमता के विस्तार को मंजूरी दी

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नयी दिल्ली: 24 सितंबर (भाषा) केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मौजूदा केंद्रीय और राज्य सरकार के चिकित्सा महाविद्यालयों को सुदृढ़ और उन्नत करने के लिए 5,000 स्नातकोत्तर सीट बढ़ाने की योजना के तीसरे चरण को बुधवार को मंजूरी दे दी।

केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि मंत्रिमंडल ने मौजूदा सरकारी चिकित्सा महाविद्यालयों को उन्नत करने के वास्ते 5,023 एमबीबीएस सीट बढ़ाने के लिए केंद्रीय योजना के विस्तार को भी मंजूरी दी गई।

आई फोन और सिम कार्ड का बदलता सफर: क्या सिम की जरूरत खत्म हो जाएगी?

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आई फोन और सिम कार्ड का बदलता सफर: क्या सिम की जरूरत खत्म हो जाएगी?

मोबाइल फोन की दुनिया में हर कुछ वर्षों में तकनीकी बदलाव आते रहते हैं। 1990 के दशक में बड़े और भारी मोबाइल फोन से लेकर आज के स्मार्टफोन्स तक की यात्रा में एक चीज़ हमेशा महत्वपूर्ण रही है—सिम कार्ड। यही छोटा-सा कार्ड हमें टेलीकॉम नेटवर्क से जोड़ता है और कॉल, मैसेज, इंटरनेट जैसी सेवाओं का उपयोग करने की अनुमति देता है।लेकिन हाल ही में Apple ने अपने नए iPhone एडिशन (खासकर अमेरिकी बाजार में) से फिजिकल सिम स्लॉट को हटाकर केवल eSIM आधारित सिस्टम लागू कर दिया है। इसने यह बहस तेज कर दी है कि क्या आने वाले समय में सिम कार्ड की जरूरत पूरी तरह खत्म हो जाएगी?


  1. सिम कार्ड की पृष्ठभूमि

1991: सबसे पहला GSM सिम कार्ड आया। इसका आकार आज के एटीएम कार्ड जितना बड़ा था। 2000 के दशक में मिनी, माइक्रो और फिर नैनो सिम आए। 2016 से आगे: eSIM (embedded SIM) का कॉन्सेप्ट सामने आया। सिम कार्ड का विकास इस बात का प्रमाण है कि मोबाइल तकनीक लगातार छोटे, तेज और अधिक सुरक्षित समाधानों की ओर बढ़ रही है।


  1. iPhone में सिम सिस्टम का बदलाव

Apple हमेशा नई तकनीक अपनाने में अग्रणी रहा है। उदाहरण:

सबसे पहले 3.5mm हेडफोन जैक हटाया।

चार्जिंग पोर्ट को धीरे-धीरे USB-C की ओर ले गया।

अब फिजिकल सिम स्लॉट को हटाने की दिशा में कदम बढ़ाया है।

अमेरिका में लॉन्च हुए हाल के iPhone एडिशन केवल eSIM सपोर्ट करते हैं। यानी वहां खरीदे गए डिवाइस में नैनो सिम कार्ड लगाने का कोई विकल्प ही नहीं है।


  1. eSIM क्या है?

eSIM का अर्थ है Embedded SIM।

यह किसी कार्ड की तरह अलग से नहीं होता, बल्कि फोन के मदरबोर्ड पर ही चिप के रूप में मौजूद रहता है।

इसमें टेलीकॉम कंपनी की प्रोफाइल डिजिटल रूप से डाउनलोड की जाती है।

इसे हटाया या बदला नहीं जा सकता, लेकिन इसमें कई नेटवर्क प्रोफाइल स्टोर की जा सकती हैं।


  1. eSIM के फायदे
  2. जगह की बचत: फोन में सिम स्लॉट न होने से अतिरिक्त स्पेस बचता है, जिसे बैटरी या अन्य हार्डवेयर के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
  3. जलरोधक क्षमता: फिजिकल स्लॉट न होने से फोन ज्यादा वॉटरप्रूफ बनता है।
  4. नेटवर्क बदलने की सुविधा: यूज़र अलग-अलग नेटवर्क प्रोफाइल डाउनलोड कर सकता है।
  5. सुरक्षा: सिम चोरी होने या निकालकर दूसरी डिवाइस में लगाने की संभावना खत्म हो जाती है।
  6. मल्टीपल सिम: एक ही फोन में कई प्रोफाइल रखना आसान हो जाता है।

  1. eSIM की चुनौतियाँ
  2. नेटवर्क सपोर्ट: अभी सभी टेलीकॉम कंपनियां eSIM को सपोर्ट नहीं करतीं, खासकर छोटे शहरों और विकासशील देशों में।
  3. ट्रांसफर की दिक्कत: फिजिकल सिम की तरह तुरंत निकालकर दूसरे फोन में डालना संभव नहीं है।
  4. तकनीकी जटिलता: नए यूज़र्स के लिए eSIM प्रोविजनिंग और QR कोड स्कैन करना कठिन लग सकता है।
  5. आपात स्थिति: फोन खराब हो जाने पर नेटवर्क तुरंत किसी और डिवाइस में ट्रांसफर करना मुश्किल होता है।

  1. क्या सिम की जरूरत खत्म हो जाएगी?

यह सवाल दो पहलुओं से देखा जाना चाहिए:

(क) तकनीकी दृष्टि से

eSIM के बाद अब iSIM (Integrated SIM) पर काम हो रहा है, जिसमें सिम सीधे मोबाइल के चिपसेट में इंटीग्रेट हो जाएगा।

यानी भविष्य में अलग से सिम कार्ड की कल्पना ही नहीं रहेगी।

(ख) व्यावहारिक दृष्टि से

विकसित देशों में जहां नेटवर्क और तकनीक मजबूत है, वहां फिजिकल सिम का अंत जल्दी हो सकता है।

विकासशील देशों (जैसे भारत, पाकिस्तान, अफ्रीकी देश) में फिजिकल सिम अभी कई वर्षों तक बने रहेंगे, क्योंकि यहां यूज़र बेस और इंफ्रास्ट्रक्चर धीरे-धीरे बदलता है।


  1. टेलीकॉम कंपनियों पर असर

eSIM के आने से कंपनियों का सप्लाई चेन खर्च (प्लास्टिक सिम बनाना, डिस्ट्रीब्यूशन, रिटेल आउटलेट्स) कम हो जाएगा, लेकिन उन्हें डिजिटल सिस्टम और सर्वर इंफ्रास्ट्रक्चर पर ज्यादा निवेश करना होगा। ग्राहकों को बेहतर ऑनलाइन सपोर्ट देना अनिवार्य हो जाएगा।


  1. उपभोक्ता के लिए बदलाव

फायदा: यूज़र बिना स्टोर गए सीधे फोन से नया नेटवर्क एक्टिवेट कर सकता है।

चुनौती: तकनीक न जानने वाले यूज़र्स (गाँव या बुजुर्ग लोग) को शुरू में परेशानी होगी।

अंतरराष्ट्रीय यात्रा: eSIM से लोकल प्रोफाइल आसानी से डाउनलोड की जा सकेगी, जिससे रोमिंग चार्ज कम होंगे।


  1. भविष्य की संभावनाएँ
  2. पूरी तरह डिजिटल पहचान: जैसे आधार कार्ड या डिजिटल आईडी होती है, वैसे ही मोबाइल पहचान भी पूरी तरह डिजिटल हो जाएगी।
  3. सुपर कनेक्टिविटी: eSIM और iSIM इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) डिवाइसों—जैसे स्मार्ट वॉच, गाड़ियाँ, लैपटॉप—में सहजता से जुड़ जाएंगे।
  4. फिजिकल सिम का अंत: अगले 5–10 वर्षों में धीरे-धीरे दुनिया भर में फिजिकल सिम बंद हो सकते हैं, हालांकि गरीब और ग्रामीण देशों में यह संक्रमण लंबा होगा।
  5. सुरक्षा का नया अध्याय: डिजिटल सिम साइबर सुरक्षा के लिए नए चैलेंज भी पैदा करेंगे, क्योंकि हैकिंग का खतरा बढ़ सकता है।

  1. निष्कर्ष

iPhone का नया एडिशन फिजिकल सिम सिस्टम हटाकर एक संदेश देता है कि भविष्य पूरी तरह डिजिटल सिम (eSIM और iSIM) की ओर बढ़ रहा है। इसका मतलब यह है कि आने वाले समय में पारंपरिक सिम कार्ड की जरूरत लगभग खत्म हो जाएगी।

हालांकि यह बदलाव अचानक नहीं होगा। विकसित देशों में यह तेजी से लागू होगा, जबकि विकासशील देशों में फिजिकल और डिजिटल सिम कुछ समय तक साथ-साथ चलेंगे।

आखिरकार, जैसे फ्लॉपी डिस्क, सीडी और हेडफोन जैक इतिहास बन गए, वैसे ही फिजिकल सिम कार्ड भी टेक्नोलॉजी की दुनिया में सिर्फ एक याद बनकर रह जाएगा।

न्यायालय ने लापता बच्चों की तलाश के लिए विशेष ऑनलाइन पोर्टल बनाने को कहा

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नयी दिल्ली: 24 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को केंद्र से कहा कि वह लापता बच्चों का पता लगाने और ऐसे मामलों की जांच के लिए गृह मंत्रालय के तत्वावधान में एक विशेष ऑनलाइन पोर्टल बनाए।

न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने उन पुलिस अधिकारियों के बीच समन्वय की कमी पर जोर दिया, जिन्हें देश के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लापता बच्चों का पता लगाने का काम सौंपा गया है।

भाजपा कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस पदाधिकारी को साड़ी पहनाई

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ठाणे: 24 सितंबर (भाषा) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छेड़छाड़ की हुई तस्वीर साझा करने के आरोप में ठाणे में स्थानीय भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कार्यकर्ताओं ने कथित तौर पर एक कांग्रेस पदाधिकारी को सार्वजनिक रूप से साड़ी पहना दी।

भाजपा के एक स्थानीय पदाधिकारी ने मंगलवार को इस कृत्य का बचाव करते हुए कहा कि कांग्रेस पदाधिकारी मामा उर्फ ​​प्रकाश पगारे द्वारा प्रधानमंत्री को ‘‘बदनाम’’ करने के प्रयास के जवाब में ऐसा किया गया था। इस घटना का एक वीडियो भी सामने आया है।

पगारे (72) ने कहा कि वह मंगलवार को इस कृत्य में शामिल भाजपा पदाधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेंगे।

स्थानीय कांग्रेस पदाधिकारी ने सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री की एक छेड़छाड़ की हुई तस्वीर साझा की थी।

भाजपा की कल्याण इकाई के अध्यक्ष नंदू परब और अन्य पार्टी कार्यकर्ताओं ने मंगलवार सुबह डोंबीवली इलाके के मानपाड़ा रोड पर पगारे को रोका। उन्होंने सड़क के बीचों-बीच उन्हें जबरन साड़ी पहना दी।

इस कृत्य का बचाव करते हुए परब ने कहा कि यह प्रधानमंत्री को ‘‘बदनाम’’ करने की पगारे की कोशिश का जवाब था। परब ने कहा कि हमने मामा पगारे को सड़क पर शालू (एक महंगी साड़ी) पहनाई।’’

बाद में पगारे ने आरोप लगाया कि भाजपा कार्यकर्ताओं ने जातिसूचक गालियां दीं और झड़प के दौरान उन्हें थप्पड़ भी मारे।

कांग्रेस पदाधिकारी ने कहा कि वह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर शिकायत दर्ज कराएंगे। उन्होंने कहा कि ‘‘भीड़ जमा करके निशाना बनाने की मानसिकता’’ और उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अतिक्रमण बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

कांग्रेस की कल्याण इकाई के अध्यक्ष सचिन पोटे ने घटना की निंदा करते हुए दावा किया कि भाजपा कार्यकर्ताओं की यह हरकत ‘‘पूरे महिला वर्ग का अपमान’’ और एक वरिष्ठ नेता पर असभ्य हमला है।

पोटे ने इस कृत्य में शामिल लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की भी मांग की।

 कोच्चि में न्यायिक शहर के निर्माण को मंज़ूरी दी

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तिरुवनंतपुरम, 24 सितंबर (भाषा) केरल में कोच्चि के कलामस्सेरी में जल्द ही 27 एकड़ जमीन पर एक न्यायिक शहर बसाया जाएगा।

मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि राज्य मंत्रिमंडल ने बुधवार को एचएमटी लिमिटेड के स्वामित्व वाली 27 एकड़ जमीन का अधिग्रहण करके कलामस्सेरी में प्रस्तावित न्यायिक शहर की स्थापना को सैद्धांतिक मंज़ूरी दे दी।

बयान के अनुसार, गृह विभाग को परियोजना के क्रियान्वयन के लिए आवश्यक प्रारंभिक कदम उठाने और केंद्रीय सहायता प्राप्त करने की संभावना की पड़ताल करने का काम सौंपा गया है।

मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की हुई बैठक में केरल लोक सेवा अधिकार विधेयक 2025 के मसौदे को भी मंजूरी दी गई।

मंत्रिमंडल ने एक मसौदा विधेयक को भी मंज़ूरी दी, जो राज्य के विश्वविद्यालय अधिनियमों में ‘सिंडिकेट’ बैठकों के आयोजन के संबंध में एक नया प्रावधान जोड़ेगा।

सीएमओ के बयान में कहा गया है कि राज्य खाद्य आयोग के सदस्यों की नियुक्ति की गई है और यह नियुक्ति राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 और राज्य खाद्य सुरक्षा नियम, 2018 के प्रावधानों के अनुसार है।

मंगल ग्रह पर भारत का सफल अंतरिक्ष अभियान : एक ऐतिहासिक दिन

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मंगलयान - विकिपीडिया

(वीकीपीडिया)

भारत के अंतरिक्ष विज्ञान के इतिहास में 24 सितम्बर 2014 का दिन स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। इसी दिन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अपने पहले मंगल मिशन मंगलयान (Mars Orbiter Mission – MOM) को सफलतापूर्वक मंगल की कक्षा में स्थापित किया। यह उपलब्धि न केवल भारत के लिए बल्कि पूरे एशिया के लिए एक ऐतिहासिक क्षण थी, क्योंकि इससे पहले एशिया के किसी भी देश ने मंगल ग्रह तक पहुँचने में सफलता प्राप्त नहीं की थी। यह दिन भारत की वैज्ञानिक क्षमता, तकनीकी आत्मनिर्भरता और विश्व पटल पर बढ़ती अंतरिक्ष शक्ति का सशक्त प्रमाण बन गया।


मंगलयान की पृष्ठभूमि

मानव सभ्यता प्राचीन काल से ही मंगल ग्रह को लेकर जिज्ञासा रखती आई है। लाल ग्रह को युद्ध का प्रतीक भी माना जाता रहा है और वैज्ञानिक दृष्टि से यह ग्रह पृथ्वी से मिलते-जुलते गुणों के कारण अध्ययन का केंद्र बना रहा। अमेरिका, रूस और यूरोप पहले से ही मंगल की खोज में अनेक मिशन भेज चुके थे। लेकिन भारत जैसे विकासशील देश के लिए यह कार्य एक बड़ी चुनौती थी।

इस मिशन की औपचारिक घोषणा वर्ष 2012 में हुई और महज 15 महीनों की तैयारियों के भीतर इसे अंजाम तक पहुँचाया गया। इसे बनाने और अंतरिक्ष में भेजने की लागत मात्र 450 करोड़ रुपये आई, जो विश्व के किसी भी मंगल मिशन की तुलना में सबसे सस्ती रही। यही कारण है कि इसे ‘सबसे किफायती अंतरिक्ष मिशन’ कहा गया।


5 नवम्बर 2013 को पीएसएलवी-सी25 रॉकेट के माध्यम से मंगलयान को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया गया। प्रारंभिक चरण में इसे पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया और फिर क्रमशः कई बार ‘ऑर्बिटल रेजिंग’ की प्रक्रिया से इसकी गति और ऊँचाई बढ़ाई गई।30 नवम्बर 2013 को मंगलयान ने पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण सीमा से बाहर निकलकर अंतरग्रहीय यात्रा शुरू की। लगभग 300 दिन की लंबी और जटिल यात्रा के बाद यह 24 सितम्बर 2014 को मंगल की कक्षा में पहुँचा और वहां सफलतापूर्वक स्थापित हो गया।


मंगलयान का मुख्य उद्देश्य था— मंगल ग्रह के चारों ओर घूमते हुए वैज्ञानिक आंकड़े इकट्ठा करना और भविष्य के मिशनों के लिए तकनीकी अनुभव प्राप्त करना। इसके लिए इसमें पाँच प्रमुख उपकरण लगाए गए :

  1. मार्स कलर कैमरा (MCC) – मंगल ग्रह की सतह और उसके वातावरण की उच्च गुणवत्ता वाली तस्वीरें लेना।
  2. थर्मल इन्फ्रारेड इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर (TIS) – ग्रह की सतह पर खनिजों और तापमान का अध्ययन।
  3. लायमैन अल्फा फोटोमीटर (LAP) – मंगल के वायुमंडल में हाइड्रोजन और ड्यूटेरियम की उपस्थिति का मापन।
  4. मार्स एक्सोस्फेरिक न्यूट्रल कंपोजिशन एनालाइजर (MENCA) – मंगल की ऊपरी वायुमंडलीय संरचना का विश्लेषण।
  5. मीथेन सेंसर फॉर मार्स (MSM) – ग्रह पर मीथेन गैस की खोज, जो जीवन की संभावना से जुड़ा अहम संकेतक है।

इन उपकरणों से प्राप्त आंकड़ों ने वैज्ञानिकों को मंगल ग्रह के वातावरण, सतह और संभावित जीवन संकेतों को समझने में महत्वपूर्ण मदद दी।


वैश्विक प्रतिक्रिया

भारत की इस सफलता को पूरी दुनिया ने सराहा। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने इसे ऐतिहासिक उपलब्धि बताया। विश्वभर के वैज्ञानिकों और अंतरिक्ष विशेषज्ञों ने माना कि भारत ने अपनी सीमित आर्थिक क्षमता के बावजूद जो उपलब्धि हासिल की है, वह किसी चमत्कार से कम नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस समय इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए कहा था— “भारत ने आज इतिहास रचा है। हमने मंगल पर विजय हासिल की है।”


भारत के लिए लाभ

  1. वैज्ञानिक प्रतिष्ठा – भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान में खुद को अग्रणी देशों की श्रेणी में ला खड़ा किया। आर्थिक और तकनीकी आत्मनिर्भरता – इस मिशन से भारत ने यह सिद्ध कर दिया कि वह जटिल तकनीकें स्वयं विकसित करने में सक्षम है। इस उपलब्धि ने भारतीय युवाओं और विद्यार्थियों में विज्ञान और अनुसंधान के प्रति नई रुचि और आत्मविश्वास जगाया। मंगलयान की सफलता ने भारत को चंद्रयान-2, गगनयान और आदित्य-एल1 जैसे अन्य मिशनों की नींव मजबूत करने में मदद की।

चुनौतियाँ और उपलब्धियाँ

मिशन की सफलता आसान नहीं थी। गहरे अंतरिक्ष में संचार की कठिनाइयाँ, ईंधन की सीमित मात्रा, और यान के सटीक संचालन जैसी चुनौतियाँ सामने थीं। मगर इसरो के वैज्ञानिकों ने धैर्य, परिश्रम और नवाचार के बल पर इन सब कठिनाइयों को पार किया। यही कारण है कि जब मंगलयान ने ‘मार्स ऑर्बिट इंसरशन’ की प्रक्रिया सफलतापूर्वक पूरी की तो पूरा देश उल्लास और गर्व से झूम उठा।


निष्कर्ष

मंगल ग्रह पर भारत के अंतरिक्ष यान की सफलता का दिन केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं, बल्कि राष्ट्रीय गर्व और आत्मविश्वास का प्रतीक है। इस मिशन ने दिखा दिया कि भारत सीमित संसाधनों में भी महान वैज्ञानिक लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है। यह दिन आने वाली पीढ़ियों को सदैव याद दिलाएगा कि सपनों को साकार करने के लिए दृढ़ संकल्प और निरंतर प्रयास की आवश्यकता होती है।

भारत का मंगलयान मिशन विश्व पटल पर एक मील का पत्थर है और इसने साबित किया है कि विज्ञान और तकनीकी क्षमता के बल पर कोई भी देश नई ऊँचाइयाँ छू सकता है। 24 सितम्बर 2014 का दिन भारत की अंतरिक्ष यात्रा का स्वर्णिम अध्याय है, जो आने वाले दशकों तक वैज्ञानिकों और नागरिकों को प्रेरित करता रहेगा।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय

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पंडित दीनदयाल उपाध्याय | भारतीय ...

भाजपा के वैचारिक मार्गदर्शक और प्रेरणास्रोत

बाल मुकुन्द ओझा

आज एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 109 वीं जन्म जयंती है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर, 1916 को उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के नगला चंद्रभान नामक गांव में हुआ था। जनसंघ के पितृ पुरुष प. दीनदयाल उपाध्याय एक राज नेता से ज्यादा एक महा मानव के रूप में लोगों के मन मस्तिष्क में समाये हुए थे। उनके विचारों का अध्ययन करें तो पाएंगे उन्हें सियासत से नहीं अपितु आम आदमी की जिंदगी संवारने की चिंता अधिक थी। उन्होंने इसे कभी छिपाया भी नहीं। वे एक संत स्वभाव और विचारों के राज नेता थे। एकात्म मानववाद के प्रणेता और सादगी की प्रतिमूर्ति उपाध्याय जी मानवता के उत्थान के लिए राजनीति में आये थे। उनका लक्ष्य सांसद विधायक बनना नहीं था। वे सामाजिक और राजनीतिक जीवन में सत्यनिष्ठा और शुचिता के साथ अंतिम व्यक्ति के  सर्वांगीण उत्थान के लिए संकल्पित थे। दीनदयाल उपाध्याय ने कहा था लोकतंत्र केवल बहुमत का राज नहीं। उपाध्याय के मुताबिक लोकतंत्र की मुख्यधारा सहिष्णु रही है। इसके बिना चुनाव, विधायिका आदि कुछ भी नहीं है। सहिष्णुता भारतीय संस्कृति का आधार है। उपाध्याय के विचार आज भी सामयिक है। उपाध्याय के असहिष्णुता के मुद्दे पर विचारों का उनके लेखन में कई जगह जिक्र देखने को मिलता है। उन्होंने कहा था, वैदिक सभा और समितियां लोकतंत्र के आधार पर आयोजित की जाती हैं और मध्यकालिन भारत के कई राज्य पूरी तरह से लोकतांत्रिक थे। उन्होंने कहा था, ‘आपने जो कहा मैं उसे नहीं मानता, लेकिन आपके विचारों के अधिकार की मैं आखिरी वक्त तक रक्षा करूंगा।

भारतीय जनता पार्टी के लिए वैचारिक मार्गदर्शन और नैतिक प्रेरणा के स्रोत रहे पंडित दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक और संगठनकर्ता थे। भारतीय जनसंघ पार्टी की स्थापना साल 1951 में हुई थी। अपने राजनीतिक जीवन में वे भारतीय जनसंघ पार्टी के अध्यक्ष भी रहे। सनातन विचारधारा से संबंध रखने वाले दीन दयाल सशक्त भारत का सपना देखते थे। पंडित दीनदयाल उपाध्याय भारत में लोकतंत्र के उन पुरोधाओं में से एक हैं, जिन्होंने इसके उदार और भारतीय स्वरूप को गढ़ा है। वर्ष 1937 में  वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े। जहां उन्होंने संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार से बातचीत की और संगठन के प्रति अपनी सच्ची निष्ठा व्यक्त की।

उन्होंने भारत की उच्च स्तरीय परीक्षा “सिविल सेवा” की परीक्षा पास की, लेकिन आम जनता की सेवा के लिए दीनदयाल ने सिविल सेवा परीक्षा का परित्याग कर दिया। वर्ष 1942 में कॉलेज की शिक्षा पूरी करने के बाद दीनदयाल ने न तो कोई नौकरी की और न ही विवाह किया, बल्कि संघ की शिक्षा का प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए 40 दिवसीय शिविर में भाग लेने नागपुर चले गए। 1951 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ की स्थापना की तो दीनदयाल उपाध्याय को प्रथम महासचिव नियुक्त किया गया था। उन्होंने 15 वर्षों तक महासचिव के रूप में जनसंघ की सेवा की। तत्पश्चात  दिसंबर 1967 में, भारतीय जनसंघ के 14वें वार्षिक अधिवेशन कालीकट में उन्हें भारतीय जनसंघ का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उपाध्याय प्रखर विचारक,  चिंतक, अर्थ शास्त्री, लेखक, इतिहासकार और पत्रकार थे। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निर्माण में महत्वपूर्ण भागीदारी निभाई। उनकी कार्यक्षमता, और सांगठनिक क्षमता से  प्रभावित होकर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी उनके लिए गर्व से नहीं थकते कहते थे कि- ‘यदि मेरे पास दो दीनदयाल हों, तो मैं भारत का राजनीतिक चेहरा बदल सकता हूं।  परंतु अचानक वर्ष 1953 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के असमय निधन से पूरे संगठन की जिम्मेदारी दीनदयाल उपाध्याय के युवा कंधों पर आ गयी। प. उपाध्याय कहते थे भारत को पूंजीवाद या साम्यवाद की नहीं अपितु मानववाद की जरूरत है। दीनदयाल उपाध्याय का ये भी कहना था कि हिंदू कोई धर्म या संप्रदाय नहीं, बल्कि भारत की राष्ट्रीय संस्कृति है।

देश के आम आवाम तक जनसंघ की राजनीतिक विचारधारा पहुंचाने में पंडित दीन दयाल का बहुत बड़ा योगदान रहा। यही वजह है कि बाद में भारतीय जनता पार्टी ने भी उनके विचारों को अपना लिया। दीन दयाल उपाध्याय के बारे में कहा जाता है कि वह कार्यकर्ताओं को सादा जीवन और उच्च विचार के लिए प्रेरित करते थे।  खुद को लेकर अक्सर कहते थे कि दो धोती, दो कुरते और दो वक्त का भोजन ही मेरी संपूर्ण आवश्यकता है। दीनदयाल उपाध्याय ने राष्ट्रधर्म (मासिक), पांचजन्य (साप्ताहिक), स्वदेश (दैनिक) के साथ साहित्य सृजन भी किया। उनकी प्रमुख रचनाओं में सम्राट चंद्रगुप्त, जगतगुरु शंकराचार्य, भारतीय अर्थनीति-विकास की एक दिशा, राष्ट्र चिंतन राष्ट्र-जीवन की दिशा, इनटिगरल ह्यूमनिज्म प्रमुख हैं।

बाल मुकुन्द ओझा

डी-32, मॉडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर

बिहार का मतदाता सूची का पुनरीक्षण अभियान लोकतंत्र के हित में

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भारत का लोकतंत्र विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, और इसकी मजबूती इस बात पर निर्भर करती है कि हर पात्र नागरिक को मतदान का अवसर मिले। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए बिहार में इन दिनों विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण (Special Summary Revision – SIR) चलाया जा रहा है। चुनाव आयोग की यह पहल न केवल प्रशंसनीय है बल्कि लोकतंत्र की जड़ों को और गहरा करने वाली है।

मतदाता सूची किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था की रीढ़ होती है। अगर पात्र नागरिक का नाम सूची से छूट जाए या अपात्र नाम उसमें शामिल हो जाए, तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पवित्रता प्रभावित होती है। SIR अभियान का मुख्य उद्देश्य यही है कि “एक भी पात्र मतदाता वंचित न रहे और एक भी अपात्र नाम सूची में न रहे।”इस पुनरीक्षण के दौरान 18 वर्ष की आयु पूरी कर चुके सभी नागरिकों को मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने का अवसर दिया जा रहा है। साथ ही जिन मतदाताओं की जानकारी में त्रुटि है, उन्हें सुधार का भी पूरा मौका मिल रहा है।

बिहार सरकार और चुनाव आयोग दोनों मिलकर इस अभियान को सफल बनाने में जुटे हैं। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष शिविर लगाए जा रहे हैं। विद्यालयों, पंचायत भवनों और निकाय कार्यालयों में लोगों को आवेदन और सुधार की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। मतदाताओं को जागरूक करने के लिए अखबारों, रेडियो, टीवी, सोशल मीडिया और स्थानीय सभाओं के जरिए व्यापक प्रचार-प्रसार किया जा रहा है।इस अभियान की सबसे बड़ी विशेषता है इसकी पारदर्शिता और निष्पक्षता। चुनाव आयोग इस बात के लिए कटिबद्ध है कि किसी भी नागरिक के अधिकारों का हनन न हो और मतदाता सूची में कोई गड़बड़ी न रहे। साथ ही डिजिटल तकनीक का भी उपयोग किया जा रहा है, जिससे लोग ऑनलाइन आवेदन कर सकें और अपने नाम या विवरण की स्थिति आसानी से जांच सकें।विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण केवल एक औपचारिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र की मजबूती का एक ठोस आधार है। यह अभियान हमें यह संदेश देता है कि लोकतंत्र केवल मतदान करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराए और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी करे।

बिहार में चल रहा यह अभियान चुनाव आयोग और सरकार की उस सोच को दर्शाता है जो नागरिकों के अधिकारों को प्राथमिकता देती है। यह प्रयास न केवल मतदाता सूची को शुद्ध और पारदर्शी बनाएगा बल्कि आने वाले चुनावों को भी और अधिक विश्वसनीय बनाएगा।लोकतंत्र की असली ताकत आम जनता के हाथ में है, और SIR जैसा अभियान उस ताकत को और अधिक प्रभावी बनाने का माध्यम है।

−गुडडू हिंदुस्तानी

“स्वस्थ हरियाणा की ओर: गुटखा-पान मसाला पर बैन”

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हरियाणा सरकार ने गुटखा, पान मसाला और तंबाकू पर पूर्ण बैन लगाने का फैसला किया है। अब इन उत्पादों की बिक्री करने पर 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगेगा। हर महीने राज्य में लगभग 4000 नए कैंसर मरीज सामने आ रहे हैं। गुटखा और तंबाकू न केवल स्वास्थ्य, बल्कि सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से भी हानिकारक हैं। यह कदम लोगों को हानिकारक आदतों से बचाने और नई पीढ़ी को स्वस्थ जीवन की ओर प्रेरित करने के लिए उठाया गया है। जागरूकता और शिक्षा अभियान के माध्यम से इस बैन का प्रभाव और बढ़ाया जा सकता है।

– डॉ प्रियंका सौरभ

हरियाणा सरकार ने हाल ही में एक साहसिक और अहम फैसला लेते हुए पूरे राज्य में गुटखा, पान मसाला और तंबाकू के सेवन और बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है। इस फैसले के तहत इन उत्पादों को बेचने वाले दुकानदारों और वितरकों पर 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। यह कदम केवल कानूनी कार्रवाई नहीं है, बल्कि यह लोगों के स्वास्थ्य और समाज की भलाई के लिए उठाया गया एक निर्णायक कदम है।

हर महीने हरियाणा में कम से कम 4000 नए कैंसर मरीज सामने आ रहे हैं। यह आंकड़ा न केवल चिंताजनक है, बल्कि यह दर्शाता है कि गुटखा, पान मसाला और तंबाकू जैसी हानिकारक आदतें हमारे समाज में कितनी तेजी से फैल रही हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञ लंबे समय से इस समस्या की ओर इशारा कर रहे थे, और अब सरकार ने ठोस कदम उठाकर इस गंभीर स्थिति से निपटने का प्रयास किया है।

गुटखा, पान मसाला और तंबाकू का सेवन केवल एक आदत नहीं, बल्कि यह गंभीर बीमारियों का कारण भी है। लंबे समय तक इसका सेवन मुंह, गले और पाचन तंत्र के कैंसर का खतरा बढ़ाता है। इसके अलावा, यह हृदय रोग, फेफड़ों की समस्याएं और अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को भी जन्म देता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, तंबाकू के सेवन से हर साल लाखों लोग अपनी जान गंवाते हैं। भारत में भी तंबाकू और गुटखा से होने वाली बीमारियों की संख्या लगातार बढ़ रही है।

हरियाणा सरकार का यह बैन इस स्वास्थ्य संकट को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसका सीधा प्रभाव यह होगा कि लोग इन हानिकारक उत्पादों से दूरी बनाएंगे और नई पीढ़ी भी इनसे बचने के लिए प्रेरित होगी। साथ ही यह कदम उन दुकानदारों और वितरकों के लिए भी चेतावनी है जो इन उत्पादों को बेचकर लोगों की जान को खतरे में डाल रहे हैं।

तंबाकू और गुटखा का सेवन केवल स्वास्थ्य पर ही नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से भी हानिकारक है। हरियाणा में कई गरीब परिवार अपनी सीमित आय का एक बड़ा हिस्सा गुटखा और तंबाकू जैसी चीजों पर खर्च कर देते हैं। यह न केवल उनके आर्थिक जीवन को कमजोर करता है, बल्कि बच्चों की पढ़ाई और परिवार की अन्य जरूरी जरूरतों पर भी असर डालता है।

सामाजिक दृष्टि से देखा जाए तो तंबाकू और गुटखा का सेवन युवा पीढ़ी में भी तेजी से बढ़ रहा है। स्कूल और कॉलेज के छात्र इन उत्पादों का प्रयोग कर रहे हैं, जो कि भविष्य में गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं की नींव डालता है। सरकार का यह कदम इस प्रवृत्ति को रोकने और युवाओं को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

सिर्फ बैन लगाना ही पर्याप्त नहीं है। लोगों में जागरूकता और शिक्षा भी उतनी ही जरूरी है। स्कूल, कॉलेज और स्थानीय समुदायों में स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता अभियान चलाना आवश्यक है। जब तक लोग तंबाकू और गुटखा के खतरों के बारे में सही जानकारी नहीं पाएंगे, वे इनसे दूरी नहीं बनाएंगे। स्वास्थ्य मंत्रालय और स्थानीय प्रशासन को मिलकर विभिन्न अभियान चलाने चाहिए, जिसमें कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों के खतरों के बारे में जानकारी दी जाए। इसके साथ ही, लोगों को स्वास्थ्य सुधार के वैकल्पिक उपाय और तंबाकू से मुक्त जीवन जीने के तरीके भी बताने चाहिए।

हरियाणा सरकार का यह निर्णय केवल स्वास्थ्य की दृष्टि से ही नहीं, बल्कि कानूनी और प्रशासनिक दृष्टि से भी अहम है। 10 लाख रुपये तक का जुर्माना एक ऐसा प्रोत्साहन है जो दुकानदारों को इन उत्पादों की बिक्री से रोकने में मदद करेगा। इसके अलावा, यह कदम समाज में संदेश भेजता है कि स्वास्थ्य से खिलवाड़ करना गंभीर अपराध है। इस बैन के लागू होने के बाद अन्य राज्यों में भी इसका प्रभाव देखा जा सकता है। यह कदम एक मिसाल बनेगा कि कैसे राज्य स्तर पर स्वास्थ्य सुरक्षा और कानून का संयोजन कर लोगों को सुरक्षित बनाया जा सकता है।

हरियाणा सरकार का यह फैसला न केवल स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से आवश्यक है, बल्कि यह समाज और युवा पीढ़ी के लिए भी एक संदेश है कि हानिकारक आदतों से दूरी बनाना ही बेहतर जीवन की कुंजी है। तंबाकू, गुटखा और पान मसाला जैसी चीज़ें केवल स्वास्थ्य को नुकसान नहीं पहुँचातीं, बल्कि परिवार और समाज पर भी आर्थिक और सामाजिक दबाव डालती हैं। इस बैन से समय के साथ राज्य में तंबाकू और गुटखा से संबंधित बीमारियों की संख्या घटने की उम्मीद है। इसके साथ ही जागरूकता और शिक्षा कार्यक्रमों के माध्यम से लोग स्वस्थ जीवन की ओर प्रेरित होंगे। यह कदम हरियाणा में स्वास्थ्य क्रांति की शुरुआत है और इसे सफल बनाने के लिए पूरे समाज, प्रशासन और परिवारों को मिलकर काम करना होगा।

अंततः, यह निर्णय यह संदेश देता है कि स्वास्थ्य सर्वोपरि है और समाज के हित में ठोस कदम उठाना किसी भी कीमत पर आवश्यक है। हरियाणा का यह उदाहरण पूरे देश के लिए एक प्रेरणा बन सकता है कि स्वास्थ्य सुरक्षा और कानूनी उपायों के माध्यम से भविष्य की पीढ़ियों को बीमारियों से बचाया जा सकता है।

-प्रियंका सौरभ 

कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,

आपातकाल के संघर्ष के महारथी बने बदलाव के सारथी

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संघ का शताब्दी वर्ष

बाल मुकुन्द ओझा
देश में 25 जून 1975 को जबरिया आपातकाल लागू कर लाखों विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं को जेलों में डाल दिया गया था। 21 महीनों का यह काला दौर संविधान के विध्वंस, नागरिक अधिकारों के उल्लंघन, प्रेस पर पाबंदी और विपक्ष के नेताओं की गिरफ्तारियां का रहा। इस दौरान विपक्षी पार्टियां नेतृत्व विहीन होने से आपातकाल का जबरदस्त विरोध नहीं कर पा रही थी। ऐसे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अनवरत विरोध मार्च की कमान संभाली। इन पंक्तियों के लेखक ने उस दौरान संघ कार्यकर्ताओं का जज्बा देखा जिन्होंने अपने घर परिवार की परवाह न कर आपातकाल के विरोध में सत्याग्रह कर जेलों को भर दिया। सत्याग्रह में हजारों स्वयंसेवकों की गिरफ्तारी के बाद संघ के कार्यकर्त्ताओं ने भूमिगत रह कर आन्दोलन चलाना शुरू किया। आपातकाल के खिलाफ सड़कों पर पोस्टर चिपकाना, जनता को सूचनाएँ देना और जेलों में बन्द विभिन्‍न राजनीतिक कार्यकर्ताओ – नेताओं के बीच संवाद सूत्र का काम संघ कार्यकर्ताओं ने सँभाला। आपातकाल का विरोध करने के कारण तत्कालीन सरकार के इशारों पर संघ कार्यकर्ताओं की पुलिस थानों में पिटाई आम बात हो गई थी। एक अधिकृत जानकारी के अनुसार आपातकाल के दौरान सत्याग्रह करने वाले कुल 1,30,000 सत्याग्रहियों में से 1,00,000 से अधिक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के थे। मीसा के तहत कैद 30,000 लोगों में से 25,000 से अधिक संघ के स्वयंसेवक थे। आपातकाल के दौरान, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के करीब 100 कार्यकर्ताओं की जान चली गई। अनेकानेक कष्ट झेलने के बाद भी संघ कार्यकर्ताओं ने हिम्मत नहीं हारी। आपातकाल के बाद हुए चुनावों में विपक्षी दलों के विलय से बनी जनता पार्टी के सरकार बनाने में संघ कार्यकर्ताओं के योगदान को नकारा नहीं जा सकता ।
आजादी के बाद से ही कांग्रेस के निशाने पर रहा है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। लाख चेष्टा के बावजूद कांग्रेस संघ को समाप्त करना तो दूर हाशिये पर लाने में सफल नहीं हुआ। संघ को खत्म करने के चक्कर में खुद कांग्रेस अपना वजूद समाप्त करने की ओर अग्रसर है। बापू की हत्या के आरोप सहित कई बार प्रतिबन्ध की मार झेल चुका यह संगठन आज भी लोगों के दिलों में बसा है और यही कारण है की इसका एक स्वयं सेवक प्रधान मंत्री की कुर्सी पर काबिज है और अनेक स्वयं सेवक राज्यों के मुख्यमंत्री है। संघ सांप्रदायिक है या देशभक्त यह दंश आज भी सियासत पाले हुए है मगर यह सच है की देश की बहुसंख्यक जनता के दिलों में संघ अपना स्थान बना चुका है। समाजवादी नेता डॉ राम मनोहर लोहिया के बाद जयप्रकाश नारायण अकेले व्यक्ति हैं जिन्होंने आरएसएस को देश की मुख्यधारा में वैधता दिलाने और ‘गांधी के हत्यारे’ की छवि से बाहर निकालने में सबसे अहम भूमिका निभाई। बाद में यही कार्य जॉर्ज फर्नांडीज ने किया। जेपी ने तो यहाँ तक कह दिया संघ यदि फासिस्ट संगठन है तो जयप्रकाश भी फासिस्ट है’। संघ को वैधता दिलाने में पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी भी पीछे नहीं रहे। परिवार और कांग्रेस के भारी विरोध के बावजूद वे नागपुर में संघ मुख्यालय गए। यह पहला अवसर था की इतने बड़े कद के किसी कांग्रेसी नेता को संघ मुख्यालय में जाते देखा गया। कांशीराम, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान भी संघ को अछूत नहीं मानते थे। देश में अनेक विपदाओं के दौरान संघ के कार्यकर्ताओं ने समाज सेवा की अनूठी मिसाल कायम की, यह किसी से छिपा नहीं है। आज देश भर के 922 जिलों, 6597 खंडों और 27,720 मंडलों में संघ की 83 हजार से अधिक शाखाएं हैं। 32 हजार से अधिक साप्ताहिक मिलन चलते हैं। यह विश्व का सबसे विशाल संगठन है। समाज के हर क्षेत्र में संघ की प्रेरणा से विभिन्न संगठन चल रहे हैं जो राष्ट्र निर्माण तथा हिंदू समाज को संगठित करने में अपना योगदान दे रहे हैं। संघ के विरोधियों ने तीन बार 1948 1975 व 1992 में इस पर प्रतिबंध लगाया, लेकिन तीनों बार संघ पहले से भी अधिक मजबूत होकर उभरा। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने अनेक निर्णयों में माना है कि संघ एक सामाजिक, सांस्कृतिक संगठन है।
आगामी विजयादशमी को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के सौ वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। इस अवसर पर 2 अक्टूबर से संघ शताब्दी वर्ष के कार्यक्रमों का शुभारम्भ होगा। शताब्दी वर्ष के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा गृह सम्पर्क अभियान शुरू करेगा। 20 नवम्बर से 21 दिसम्बर के बीच संघ कार्यकर्ता देश के छह लाख गांवों के 20 करोड़ परिवारों में सम्पर्क करेंगे। इस अभियान में लगभग 20 लाख कार्यकर्ता घर-घर जाकर संपर्क करेंगे। शताब्दी वर्ष का पहला कार्यक्रम विजयादशमी का होगा। मण्डल व बस्ती स्तर पर आयोजित विजयादशमी उत्सव के कार्यक्रम में सभी स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में शामिल होंगे।

बाल मुकुन्द ओझा
वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार
, मालवीय नगर, जयपुर