त्योहारी सीजन शुरू होते ही मिलावटखोरों की पौ बारह

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बाल मुकुन्द ओझा

देश में नवरात्र से त्योहारी सीज़न शुरू हो गया है। दीपावली तक त्योहारों की धूम रहेगी। त्योहार आये और मिलावटिये सक्रीय न हो, ऐसा हो नहीं सकता। अब तो मिलावट और त्योहार का लगता है चोली दामन का साथ हो गया है। हालांकि देशभर में मिलावटियों पर छापे मारे जा रहे है और मिलावटी सामग्री जब्त की जा रही है। मगर यह छापेमारी ऊंट के मुंह में जीरे के सामान है। आम आदमी महंगाई के साथ खाद्य पदार्थो में हो रही मिलावट खोरी से खासा परेशान रहता है। हमारे बीच यह धारणा पुख्ता बनती जा रही है कि बाजार में मिलने वाली हर चीज में कुछ न कुछ मिलावट जरूर है। लोगों की यह चिंता बेबुनियाद नहीं है। आज मिलावट का कहर सबसे ज्यादा हमारी रोजमर्रा की जरूरत की चीजों पर ही पड़ रहा है। खाने पीने के पदार्थो में मिलावट कोई नयी समस्या नहीं है। मिलावट और खराब उत्पाद बेचे जाने की खबरें आम हो चुकी हैं। साल-दर-साल इसका दायरा व्यापक होता जा रहा है। खाद्य पदार्थों में मिलावट ने हमारा जीना हराम कर रखा है। हर चीज में मिलावट ने हमारी जिंदगी की रफ्तार को अवरुद्ध कर दिया है। शरीर का हर हिस्सा जैसे मिलावट से कराह रहा है। जितनी चोटें युद्ध भूमि में राणा सांगा ने नहीं खाई होंगी उतनी हम मिलावटी वस्तुओं से रोज ही खा रहे हैं। इसका मतलब बिलकुल साफ है कि हमारा शरीर  पूरी तरह मिलावटी हो गया है।

त्योहारी सीज़न में गरीब और अमीर सभी वर्ग के लोग अपने सामर्थ्य के अनुरूप घर की साफ सफाई, नए कपड़े, सोने चांदी के सामान के साथ मिठाइयां बनाने और खरीदने में व्यस्त हो जाते है। इस दौरान घर घर में मीठे पकवान बनते है। नवरात्र सहित अन्य पर्वों पर बिकने वाली मिठाइयों की तैयारियां भी जोरों पर हैं, लेकिन बाजार में बिकने वाली मिठाई कितनी शुद्ध होगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है। बड़े से लेकर छोटे शहरों और ग्रामों में मिलावटखोर सक्रिय हो जाते हैं। दूध से लेकर खोया और घी,  तेल तक में मिलावट की जाती है। त्योहारी सीजन शुरू होते ही मिलावटिये भी सक्रीय होकर आमजन के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करते है।

खाद्य पदार्थों में अशुद्ध, सस्ती अथवा अनावश्यक वस्तुओं के मिश्रण को मिलावट कहते हैं। आज समाज में हर तरफ मिलावट ही मिलावट देखने को मिल रही है। पानी से सोने तक मिलावट के बाजार ने हमारी बुनियाद को हिला कर रख दिया है। पहले केवल दूध में पानी और शुद्ध देशी घी में वनस्पति घी की मिलावट की बात सुनी जाती थी, मगर आज घर-घर में प्रत्येक वस्तु में मिलावट देखने और सुनने को मिल रही है। मिलावट का अर्थ प्राकृतिक तत्त्वों और पदार्थों में बाहरी, बनावटी या दूसरे प्रकार के मिश्रण से है।

मुनाफाखोरी करने वाले लोग रातोंरात धनवान बनने का सपना देखते हैं। अपना यह सपना साकार करने के लिए वे बिना सोचे-समझे मिलावट का सहारा लेते हैं। सस्ती चीजों का मिश्रण कर सामान को मिलावटी कर महंगे दामों में बेचकर लोगों को न केवल धोखा दिया जाता है, बल्कि हमारे स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ भी किया जाता है। मिलावटी खाद्य पदार्थों के सेवन से प्रतिवर्ष हजारों लोग विभिन्न बीमारियों का शिकार होकर जीवन से हाथ धो बैठते हैं। मिलावट का धंधा हर तरफ देखने को मिल रहा है। दूध बेचने और मिलावट करने वाले से लेकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों तक ने मिलावट के बाजार पर अपना कब्जा कर लिया है।

सत्य तो यह है कि हम जो भी पदार्थ सेवन कर रहे हैं चाहें वे खाद्य पदार्थ हो या दूसरे, सब में मिलावट ही मिलावट हो रही है। मिलावट ने अपने पैर जबरदस्त तरीके से फैला लिए हैं। दूधिए की मिलावट तो एक उदाहरण के रूप में है। मगर आज हर वस्तु में मिलावट से हमारा वातावरण प्रदूषित और जहरीला हो उठा है। दूध, मावा, घी, हल्दी, मिर्च, धनिया, अमचूर, सब्जियां, फल आदि सभी मिलावट की चपेट में है। आज खाने पीने सहित सभी चीजों में धड़ले से  मिलावट हो रही है। ऐसा कोई भोज्य पदार्थ नहीं है, जो जहरीले कीटनाशकों और मिलावटों से मुक्त हो। बाजार में  पपीता, आम और केला, सेव अनार जैसे फलों को कैल्शियम कार्बाईड की मदद से पकाया जाता है। चिकित्सकों के अनुसार यह स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक है। फलों को सुनहरा बनाने के लिए पैराफीन वैक्स भी लगाया जाता है। इन  फलों को खाने से  कैंसर और डायरिया जैसी बीमारियां होती है। डेयरी और कृषि उत्पादों-विशेषकर हरी सब्जियों में ऑक्सिटोसिन का खूब  इस्तेमाल हो रहा है। सच तो यह है अधिक मुनाफा कमाने के लालच में नामी कंपनियों से लेकर खोमचेवालों तक ने उपभोक्ताओं के हितों को ताख पर रख दिया है।

बाल मुकुन्द ओझा

वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार

मालवीय नगर, जयपुर

“नवरात्रि, प्रसाद और पालन-पोषण: आस्था में विवेक का महत्व”

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(नवरात्रियों का संदेश यही है कि आस्था, संयम और विवेक को एक साथ अपनाया जाए।) 

नवरात्रि में हलवा-पूरी जैसे पारंपरिक प्रसाद का महत्व है, लेकिन यह केवल इंसानों के लिए ही सुरक्षित है। गाय का पाचन तंत्र इंसानों से भिन्न होता है, इसलिए घी, चीनी और मैदे से बनी चीज़ें उन्हें हानिकारक हो सकती हैं। इस दौरान गायों को केवल हरी घास, भूसा, फल और चारा देना चाहिए। श्रद्धा और सुरक्षा एक साथ चल सकती है। नवरात्रि का उद्देश्य केवल भक्ति नहीं, बल्कि विवेकपूर्ण आस्था और पशु संरक्षण भी है। संतुलन बनाए रखते हुए हम परंपरा और पशु कल्याण दोनों निभा सकते हैं।

– डॉ प्रियंका सौरभ

नवरात्रि, भारतीय संस्कृति और धार्मिक आस्था का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। यह केवल नौ दिन का उत्सव नहीं है, बल्कि यह भक्ति, संयम, स्वास्थ्य और सामाजिक जिम्मेदारी का प्रतीक भी है। नवरात्रियों के दौरान भक्त अपने घरों और मंदिरों में देवी दुर्गा की पूजा करते हैं और भोजन तथा खान-पान पर विशेष ध्यान देते हैं। हलवा-पूरी, चने की दाल, फल और अन्य पारंपरिक व्यंजन इस अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखते हैं। इन व्यंजनों का स्वादिष्ट और पवित्र होना उन्हें एक धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा बनाता है।

हालांकि, इस पवित्र परंपरा के बीच एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है: क्या नवरात्रियों में बनाए जाने वाले ये व्यंजन केवल मानव उपभोग के लिए ही सुरक्षित हैं, या इन्हें हमारे पवित्र मित्र, जैसे गाय, को भी दिया जा सकता है? यह प्रश्न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और पारिस्थितिक संतुलन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

नवरात्रियों में हलवा-पूरी का प्रसाद मुख्य रूप से गेहूं के आटे, घी और चीनी से तैयार किया जाता है। इसके स्वाद और सुगंध से भक्त आनंदित होते हैं और इसे देवी की भक्ति का प्रतीक मानते हैं। हलवा-पूरी का आनंद लेना न केवल उत्सव का हिस्सा है, बल्कि यह पारिवारिक और सामाजिक संबंधों को भी मजबूत करता है। हालांकि, इसके स्वास्थ्य पहलू पर ध्यान देना भी उतना ही जरूरी है।

इंसानों के लिए हलवा-पूरी सीमित मात्रा में ऊर्जा और संतोष प्रदान करती है। परंतु, अत्यधिक मात्रा में इसे खाना पाचन समस्याएँ, वजन बढ़ना और अन्य स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकता है। नवरात्रियों के दौरान लोग अक्सर फल, हल्का सत्त्विक भोजन और दूध जैसी चीज़ों का सेवन करते हैं, ताकि शरीर और मन दोनों को शुद्ध किया जा सके। इसलिए, हलवा-पूरी का सेवन संयमित और सोच-समझकर होना चाहिए।

अब सवाल उठता है कि क्या गाय को भी हलवा-पूरी दी जा सकती है। हिंदू धर्म में गाय को अत्यंत पवित्र माना गया है। इसे माता का दर्जा प्राप्त है और धार्मिक ग्रंथों में उनकी सेवा और संरक्षण का विशेष महत्व बताया गया है। लेकिन, गायों का पाचन तंत्र इंसानों से भिन्न होता है। वे मुख्य रूप से हरी घास, चारा, भूसा और अनाज पर निर्भर करती हैं। घी, चीनी और मैदा जैसी भारी और मीठी चीज़ें उनके लिए हानिकारक हो सकती हैं। हलवा-पूरी में मौजूद अत्यधिक घी और चीनी उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है। इससे दस्त, अपच और अन्य जठरांत्र संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।

यहाँ पर संतुलन की आवश्यकता स्पष्ट होती है। नवरात्रियों का उद्देश्य न केवल आस्था और भक्ति है, बल्कि पशुओं और प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व बनाए रखना भी है। श्रद्धा और सुरक्षा एक साथ चल सकते हैं। गायों के स्वास्थ्य के लिए हलवा-पूरी देना सही नहीं है, और उन्हें प्राकृतिक चारा, हरी घास और फल देना सर्वोत्तम विकल्प है। धार्मिक दृष्टि से, श्रद्धा का वास्तविक अर्थ यही है कि हम अपनी आस्था का पालन करते हुए भी विवेक का उपयोग करें।

पारंपरिक दृष्टि से, नवरात्रियों में प्रसाद वितरण केवल मानव उपभोग तक सीमित होना चाहिए। ऐसा करने से धार्मिक आस्था का पालन होता है और पशुओं की सुरक्षा भी सुनिश्चित रहती है। कई मंदिर और धार्मिक स्थल इस संतुलन को बनाए रखते हुए अपने प्रसाद में केवल फल, हरी पत्तियाँ और सूखा अनाज देते हैं। इससे गायों को पोषण मिलता है और उनका स्वास्थ्य सुरक्षित रहता है।

सांस्कृतिक दृष्टि से यह विषय अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारतीय परंपरा में गाय को माता का दर्जा दिया गया है। धार्मिक ग्रंथों और लोक कथाओं में उनका संरक्षण, सम्मान और सेवा विशेष रूप से उल्लेखित है। अगर हम नवरात्रियों में श्रद्धा और परंपरा का पालन करते हुए गायों के स्वास्थ्य की अनदेखी करते हैं, तो हम उनकी सुरक्षा और पालन-पोषण के सिद्धांतों के प्रति उत्तरदायी नहीं रह पाते। यह एक ऐसा मामला है जहाँ धर्म और विज्ञान का संतुलन आवश्यक है।

शिक्षा और जागरूकता इस संदर्भ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। धार्मिक आयोजकों, मंदिरों और परिवारों को यह समझना आवश्यक है कि उनके द्वारा दिया जाने वाला प्रत्येक प्रसाद केवल इंसानों के लिए ही नहीं, बल्कि अगर पशु उसमें सम्मिलित हैं, तो उनके लिए भी सुरक्षित होना चाहिए। स्कूलों, सामाजिक संस्थाओं और धार्मिक संगठनों के माध्यम से जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए, ताकि लोग समझ सकें कि हलवा-पूरी गायों के लिए सुरक्षित नहीं है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी यह मानते हैं कि गायों को इंसानों के खान-पान से अलग रखना उनके दीर्घकालीन स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। घी, चीनी और तेल से बनी चीज़ें उनके जठरांत्र प्रणाली में समस्याएँ पैदा कर सकती हैं। इसलिए नवरात्रियों के दौरान पारंपरिक प्रसाद का आनंद केवल इंसानों के लिए ही लेना चाहिए। इससे धार्मिक आस्था भी बनी रहती है और पशुओं की सुरक्षा सुनिश्चित होती है।

नवरात्रियों में हलवा-पूरी का महत्व केवल स्वाद या परंपरा तक सीमित नहीं है। यह भक्ति, सामूहिक उत्साह और परिवार के साथ समय बिताने का माध्यम भी है। लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि श्रद्धा का अर्थ केवल परंपरा निभाना नहीं है, बल्कि इसमें विवेक और समझदारी भी शामिल होनी चाहिए। गायों और अन्य पालतू पशुओं के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए प्रसाद का वितरण किया जाना चाहिए।

अध्ययन और अनुभव बताते हैं कि धार्मिक आयोजनों में पशुओं की अनदेखी करने से न केवल उनका स्वास्थ्य प्रभावित होता है, बल्कि समाज में जागरूकता की कमी भी उजागर होती है। इसलिए, नवरात्रियों में पशु सुरक्षा और मानव स्वास्थ्य दोनों को प्राथमिकता देना आवश्यक है। इससे हमारी धार्मिक आस्था और सामाजिक जिम्मेदारी दोनों पूरी होती हैं।

इस परंपरा के माध्यम से हम बच्चों को भी एक महत्वपूर्ण शिक्षा दे सकते हैं। उन्हें यह सिखाया जा सकता है कि धार्मिक पर्व केवल उत्सव और आनंद का माध्यम नहीं हैं, बल्कि इसमें विवेक, जिम्मेदारी और सह-अस्तित्व का भी संदेश छिपा है। बच्चे जब यह सीखते हैं कि हलवा-पूरी केवल इंसानों के लिए है और गायों को प्राकृतिक चारा दिया जाता है, तो वे अपने जीवन में भी संवेदनशील और जिम्मेदार नागरिक बनते हैं।

नवरात्रियों का संदेश यही है कि आस्था, संयम और विवेक को एक साथ अपनाया जाए। पारंपरिक व्यंजनों और प्रसाद का आनंद लेते समय हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारे चार-पाँव वाले मित्रों की सुरक्षा और स्वास्थ्य सर्वोपरि है। अगर हम यह संतुलन बनाए रखते हैं, तो नवरात्रियों का उत्सव और भी अर्थपूर्ण और सुखदायक बन जाता है।

अंत में, यह याद रखना चाहिए कि नवरात्रियों का वास्तविक उद्देश्य केवल खाने-पीने और उत्सव का आनंद नहीं है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि श्रद्धा और विवेक साथ-साथ चल सकते हैं। इंसान और पशु दोनों के स्वास्थ्य का ध्यान रखना हमारी धार्मिक और सामाजिक जिम्मेदारी है। इसलिए, नवरात्रियों में हलवा-पूरी का सेवन संयमित रूप से इंसानों के लिए किया जाए और गायों को केवल प्राकृतिक चारा दिया जाए। यही सही और संतुलित दृष्टिकोण है, जो आस्था, संस्कृति और सुरक्षा का समन्वय स्थापित करता है।

इस संतुलन और विवेक के माध्यम से नवरात्रियों का त्योहार न केवल धार्मिक रूप से पूरक बनता है, बल्कि यह हमारे समाज और पशु कल्याण के लिए भी एक प्रेरणादायक उदाहरण बन जाता है। इस तरह, हम अपने चार-पाँव वाले मित्रों के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए, धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक परंपरा का पालन कर सकते हैं।

-प्रियंका सौरभ 

कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार

खैबर पख्तूनख्वा में टीटीपी के 13 आतंकवादी मारे गए

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पेशावर: 24 सितंबर (भाषा) पाकिस्तान की सेना ने बुधवार को खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के डेरा इस्माइल खान जिले के दराबन क्षेत्र में गोपनीय सूचना के आधार पर की गई कार्रवाई में प्रतिबंधित आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के 13 आतंकियों को मार गिराया।

सेना की मीडिया शाखा के अनुसार, यह अभियान दक्षिण वजीरिस्तान से सटे क्षेत्र में ‘फितना अल-खवारिज’ नाम से पहचाने जाने वाले आतंकियों की मौजूदगी की सूचना पर किया गया। यह नाम टीटीपी के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

सीबीएसई का परीक्षा कार्यक्रम जारी

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माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने 2026 में होने वाली कक्षा 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं की संभावित तिथियों की घोषणा कर दी है। आधिकारिक अधिसूचना के अनुसार, ये परीक्षाएँ 17 फरवरी से 15 जुलाई, 2026 तक भारत और विदेशों में आयोजित की जाएँगी। बोर्ड ने बताया कि इसका उद्देश्य छात्रों, शिक्षकों और स्कूलों को समय रहते योजना बनाने में मदद करना है। 

परीक्षा कार्यक्रम 

कक्षा 10 और 12 के लिए मुख्य परीक्षाएँ 

खेल छात्रों के लिए परीक्षाएँ (कक्षा 12)

द्वितीय बोर्ड परीक्षाएँ (कक्षा 10)

पूरक परीक्षाएँ (कक्षा 12) 

45 लाख छात्र देंगे परीक्षा 

2026 में 204 विषयों में लगभग 45 लाख उम्मीदवारों के परीक्षा में बैठने की उम्मीद है। कक्षा 10 और 12 के छात्र, न केवल पूरे भारत से, बल्कि विदेशों के 26 देशों से भी, इसमें भाग लेंगे, जो सीबीएसई की वैश्विक उपस्थिति को दर्शाता है। बोर्ड ने यह भी बताया है कि मुख्य परीक्षाओं के साथ-साथ, समय पर परिणाम घोषित करने के लिए प्रैक्टिकल, मूल्यांकन और परिणाम-पश्चात प्रक्रियाएँ भी आयोजित की जाएँगी। 

सीबीएसई ने बताया कि संभावित समय-सारिणी को जल्द जारी करने का उद्देश्य छात्रों, स्कूलों और शिक्षकों को अधिक प्रभावी ढंग से योजना बनाने में मदद करना है। ये संभावित तिथियां वर्ष 2025 के लिए कक्षा 9 और कक्षा 11 के पंजीकरण आंकड़ों के आधार पर तैयार की गई हैं।

लद्दाख को राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर जारी आंदोलन हिंसक हुआ, चार मरे

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लेह में छात्र आंदोलन के दौरान हिंसा के बाद आागजनी ।फोटो पीटीआई

लेह, 24 सितंबर (भाषा) लद्दाख को राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर बुधवार को यहां जारी आंदोलन हिंसक हो गया। इस दौरान सड़कों पर आगजनी और झड़पें हुई, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई और 22 पुलिसकर्मियों समेत कम से कम 45 लोग घायल हो गए। अधिकारियों ने यह जानकारी दी।

लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और छठी अनुसूची के विस्तार की मांग को लेकर जारी आंदोलन के हिंसक रूप लेने के बाद जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने 15 दिन से जारी अपनी भूख हड़ताल बुधवार को समाप्त कर दी।

उपराज्यपाल कवींद्र गुप्ता ने कहा कि  हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान की जाएगी और उनके खिलाफ कानून के अनुसार कड़ी कार्रवाई की जाएगी:।केंद्र हमेशा बातचीत के लिए तैयार रहा है। 25 जुलाई को प्रस्तावित बैठक के लिए सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली थी: लद्दाख में हुई हिंसा पर सरकारी सूत्र।

कई घायलों की हालत गंभीर होने के कारण मृतकों की संख्या बढ़ने की आशंका है।

सुबह की शुरुआत लद्दाख की राजधानी में पूर्ण बंद के साथ हुई। सैकड़ों लोग सड़कों पर उतर आए। भाजपा कार्यालय में तोड़फोड़ की गई और कई वाहनों को आग लगा दी गई।

लद्दाख की राजधानी में पूर्ण बंद के बीच आग की लपटें और काला धुआं देखा जा सकता था।

अधिकारियों ने बताया कि प्रदर्शनकारियों द्वारा व्यापक हिंसा शुरू करने के बाद स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए पुलिस को गोलीबारी और आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े।

प्रशासन ने लद्दाख के लेह जिले में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 163 के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी।

अधिकारियों ने बताया कि निषेधाज्ञा के तहत पांच या इससे अधिक व्यक्तियों के एकत्र होने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

कांग्रेस नेता एवं पार्षद फुंटसोग स्टैनजिन त्सेपाग पर मंगलवार को धरना स्थल पर कथित रूप से भड़काऊ भाषण देने के लिए मामला दर्ज किया गया।

लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) की युवा शाखा ने विरोध प्रदर्शन और बंद का आह्वान किया था क्योंकि 10 सितंबर से 35 दिन की भूख हड़ताल पर बैठे 15 लोगों में से दो की हालत मंगलवार शाम बिगड़ने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

यह अनशन उनकी चार सूत्री मांगों – राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची का विस्तार, लेह और कारगिल के लिए अलग लोकसभा सीट और नौकरियों में आरक्षण – के समर्थन में केंद्र पर बातचीत फिर से शुरू करने के लिए दबाव बनाने के लिए था।

वांगचुक ने ऑनलाइन संवाददाता सम्मेलन में कहा कि प्रदर्शनकारियों में से दो, 72 वर्षीय एक पुरुष और 62 वर्षीय एक महिला को मंगलवार को अस्पताल ले जाया गया था और कहा कि संभवतः यह हिंसक विरोध का तात्कालिक कारण था।

स्थिति तेजी से बिगड़ने पर उन्होंने अपील की और घोषणा की कि वे अपना अनशन समाप्त कर रहे हैं।

वांगचुक ने आंदोलन स्थल पर बड़ी संख्या में एकत्र अपने समर्थकों से कहा, ‘‘मैं लद्दाख के युवाओं से हिंसा तुरंत रोकने का अनुरोध करता हूं क्योंकि इससे हमारे उद्देश्य को नुकसान पहुंचता है तथा स्थिति और बिगड़ती है। हम लद्दाख और देश में अस्थिरता नहीं चाहते।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह लद्दाख और मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से सबसे दुखद दिन है क्योंकि पिछले पांच वर्षों से हम जिस रास्ते पर चल रहे हैं वह शांतिपूर्ण था… हमने पांच मौकों पर भूख हड़ताल की और लेह से दिल्ली तक पैदल चले लेकिन आज हम हिंसा और आगजनी की घटनाओं के कारण शांति के अपने संदेश को विफल होते हुए देख रहे हैं।’’

उन्होंने प्रशासन से आंसू गैस के गोले दागना बंद करने की भी अपील की तथा सरकार से अधिक संवेदनशील होने का आग्रह किया।

वांगचुक ने कहा, ‘‘हम अपना अनशन तुरंत समाप्त कर रहे हैं… यदि हमारे युवा अपनी जान गंवाते हैं तो भूख हड़ताल का उद्देश्य पूरा नहीं होगा।”

उन्होंने कहा, ‘‘अब ठंडे दिमाग से बातचीत को आगे बढ़ाने का समय आ गया है। हम अपना आंदोलन अहिंसक रखेंगे और मैं सरकार से भी कहना चाहता हूं कि वह हमारे शांति संदेश को सुने… जब शांति के संदेश की अनदेखी की जाती है, तो ऐसी स्थिति पैदा होती है।’’

वांगचुक ने कहा कि यह स्थिति युवाओं में हताशा का नतीजा है, क्योंकि उन्हें रोजगार नहीं मिल रहा है। उन्होंने दावा किया कि लद्दाख में कोई लोकतंत्र नहीं है और जनता से किया गया छठी अनुसूची का वादा भी पूरा नहीं किया गया है।

संविधान की छठी अनुसूची शासन, राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियों, स्थानीय निकायों के प्रकार, वैकल्पिक न्यायिक तंत्र और स्वायत्त परिषदों के माध्यम से प्रयोग की जाने वाली वित्तीय शक्तियों के संदर्भ में विशेष प्रावधान करती है। छठी अनुसूची चार पूर्वोत्तर राज्यों त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम और असम की जनजातीय आबादी के लिए है।

गृह मंत्रालय और लद्दाख के प्रतिनिधियों, जिनमें एलएबी और करगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) के सदस्य शामिल हैं, के बीच छह अक्टूबर को वार्ता का एक नया दौर निर्धारित है।दोनों संगठन पिछले चार वर्षों से अपनी मांगों के समर्थन में संयुक्त रूप से आंदोलन कर रहे हैं और अतीत में सरकार के साथ कई दौर की वार्ता भी कर चुके हैं।अधिकारियों ने बताया कि प्रदर्शन के आह्वान पर लेह शहर में बंद रहा और एनडीएस स्मारक मैदान में बड़ी संख्या में लोग एकत्र हुए तथा बाद में छठी अनुसूची और राज्य के समर्थन में नारे लगाते हुए शहर की सड़कों पर मार्च निकाला।

उन्होंने बताया कि स्थिति तब और बिगड़ गई जब कुछ युवकों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और ‘हिल काउंसिल’ के मुख्यालय पर पथराव किया। उन्होंने बताया कि शहरभर में बड़ी संख्या में तैनात पुलिस और अर्धसैनिक बलों ने स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े।

युवाओं के समूहों ने एक वाहन और कुछ अन्य वाहनों में आग लगा दी, और भाजपा कार्यालय को भी निशाना बनाया। उन्होंने परिसर और एक इमारत में मौजूद फर्नीचर और कागजात में आग लगा दी।

इस बीच उपराज्यपाल कविंदर गुप्ता ने कहा कि लद्दाख के हिंसा प्रभावित लेह जिले में और अधिक जानमाल की हानि रोकने के लिए कर्फ्यू लगाया गया है।उन्होंने कहा कि लद्दाख में शांतिपूर्ण माहौल बिगाड़ने की साजिश के तहत हिंसा भड़काई गई।

गुप्ता ने कहा कि हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान की जाएगी और देश के कानून के अनुसार उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

लगभग चार महीने तक रुकी रही वार्ता के बाद, केंद्र ने 20 सितंबर को एलएबी और केडीए को वार्ता के लिए आमंत्रित किया था।

पूर्व सांसद एवं एलएबी के अध्यक्ष थुपस्तान छेवांग, जिन्होंने 27 मई को अंतिम दौर की वार्ता के बाद निकाय से इस्तीफा दे दिया था, पुनः अध्यक्ष पद पर आसीन हो गये हैं और वार्ता के दौरान उनके संयुक्त प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने की संभावना है।

कांग्रेस ने एलएबी से बाहर होने का फैसला तब किया जब कुछ घटकों ने यह विचार व्यक्त किया कि अगले महीने ‘लेह हिल काउंसिल’ के चुनावों के मद्देनजर एलएबी प्रतिनिधिमंडल को गैर-राजनीतिक होना चाहिए।

घूमने निकले आईजी का मोबाइल झपटा

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मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में अपराधियों ने घूमने पत्नी के साथ निकले आई जी इटैंलिजैंस का मोबाइल लूट लिया। शहर के सबसे सुरक्षित माने जाने वाले इलाके चार इमली में मंगलवार देर रात करीब 11 बजकर 30 मिनट पर एक हाई-प्रोफाइल लूट हुई। इस घटना से इलाके में हड़कंप मच गया। पुलिस लुटेरों की तलाश में है।

आईजी इंटेलिजेंस डॉ. आशीष (आईपीएस) अपनी पत्नी के साथ नाइट वॉक कर रहे थे, तभी पीछे से बाइक पर सवार दो अज्ञात बदमाश आए और उनका मोबाइल फोन छीनकर फरार हो गए। वारदात इतनी फुर्ती से हुई कि दंपति को संभलने तक का मौका नहीं मिला।घटना की सूचना मिलते ही पुलिस प्रशासन में हड़कंप मच गया.।क्राइम ब्रांच समेत शहर के चार थानों की टीमें अलर्ट मोड पर आ गई हैं। बदमाशों का सुराग लगाने के लिए इलाके के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली जा रही है। पुलिस ने शहर के अलग-अलग इलाकों में तलाशी अभियान तेज कर दिया है। पुलिस पर भी जल्द से जल्द आरोपियों को पकड़ने का दबाव बढ़ गया है। एसीपी उमेश तिवारी ने कहा कि अपराधियों की तलाश और पहचान के लिए सीसीटीवी खंगाले जा रहे हैं। कई थानों की टीमों को अलर्ट किया गया है। जल्दी ही अपराधियों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा।

एच-वन-बी वीज़ा विवाद और आत्मनिर्भर भारत का अवसर

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(अमेरिकी एच-वन-बी वीज़ा विवाद : भारतीय प्रवासी के लिए संकट, भारत के लिए अवसर)  

अमेरिका का नया एच-वन-बी वीज़ा शुल्क केवल आप्रवासन नीति का मुद्दा नहीं है बल्कि वैश्विक आर्थिक समीकरणों का संकेतक है। इससे भारतीय प्रवासी समुदाय में असुरक्षा तो बढ़ी है, लेकिन भारत के लिए यह रिवर्स ब्रेन ड्रेन का अवसर भी है। यदि लौटे हुए पेशेवरों के अनुभव, नेटवर्क और तकनीकी दक्षता को सही नीति समर्थन मिले तो भारत के स्टार्ट-अप, अनुसंधान और आत्मनिर्भर भारत अभियान को नई ऊर्जा मिल सकती है। चुनौती को अवसर में बदलकर भारत न केवल अपने कौशल पूँजी का उपयोग करेगा बल्कि वैश्विक वैल्यू चेन में भी मज़बूती से उभरेगा

– डॉ सत्यवान सौरभ

हाल ही में अमेरिका ने अपनी बहुप्रतीक्षित एच-वन-बी वीज़ा नीति में बड़ा बदलाव करते हुए नए आवेदनों पर एक लाख अमेरिकी डॉलर की भारी फीस लगाने का प्रस्ताव रखा है। यह निर्णय केवल आप्रवासन नीति का मामला नहीं है बल्कि बदलते वैश्विक आर्थिक समीकरणों और श्रम बाज़ार की गहरी हलचलों का प्रतीक है। भारतीय पेशेवर, जो अब तक एच-वन-बी वीज़ा धारकों का लगभग सत्तर प्रतिशत हिस्सा बनाते थे, इस कदम से सीधे प्रभावित हो रहे हैं। लेकिन यही संकट भारत के लिए अवसर भी ला सकता है। यदि लौटती हुई प्रतिभाओं यानी रिवर्स ब्रेन ड्रेन का सही इस्तेमाल हो तो यह आत्मनिर्भर भारत की दिशा में ऐतिहासिक मील का पत्थर साबित हो सकता है।

एच-वन-बी वीज़ा लंबे समय से अमेरिकी तकनीकी कंपनियों की रीढ़ रहा है। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और अमेज़न जैसी दिग्गज कंपनियों में बड़ी संख्या में भारतीय आईटी पेशेवर कार्यरत हैं। किंतु अब अमेरिका में संरक्षणवादी रुझान और आर्थिक राष्ट्रवाद खुलकर सामने आ रहा है। विकसित देश अपने घरेलू श्रमिक वर्ग को संतुष्ट करने के दबाव में बाहरी प्रतिभाओं पर निर्भरता घटाने लगे हैं। यह एक विरोधाभासी स्थिति है क्योंकि अमेरिकी श्रम बाज़ार में उच्च तकनीकी क्षेत्रों में पर्याप्त घरेलू संसाधन नहीं हैं, लेकिन राजनीतिक दबाव इसे बाहर से आने वाले लोगों पर रोक लगाने के लिए मजबूर कर रहा है। अमेरिका आव्रजन को केवल श्रम गतिशीलता का विषय नहीं मानता बल्कि इसे व्यापारिक हथियार के रूप में भी प्रयोग कर रहा है। वीज़ा शुल्क में इस प्रकार की बढ़ोतरी से न केवल राजस्व अर्जित होगा बल्कि अन्य देशों पर राजनीतिक दबाव भी डाला जाएगा। इसी दौरान कनाडा, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश अपनी आप्रवासन नीतियों को उदार बना रहे हैं। इसका सीधा अर्थ है कि वैश्विक प्रतिभा प्रतिस्पर्धा का भूगोल बदल रहा है और अमेरिका का आकर्षण धीरे-धीरे कम हो सकता है।

इस नीति परिवर्तन का असर भारतीय प्रवासी समुदाय पर बहुआयामी है। एक ओर लाखों परिवारों में नौकरी की असुरक्षा और भविष्य की अनिश्चितता का माहौल बन गया है। बच्चों की पढ़ाई, सामाजिक जीवन और पारिवारिक स्थिरता पर इसका असर पड़ रहा है। वहीं दूसरी ओर भारत में इसका सकारात्मक पक्ष भी उभर रहा है। बड़ी संख्या में पेशेवर भारत लौटने के लिए प्रेरित होंगे। वे केवल पूँजी ही नहीं बल्कि वैश्विक अनुभव, नेटवर्क और तकनीकी दक्षता भी लेकर आएँगे। इस प्रकार भारत के स्टार्ट-अप और यूनिकॉर्न इकोसिस्टम को नई ऊर्जा मिल सकती है। विदेशों से लौटे पेशेवरों के पास निवेशकों का दृष्टिकोण और अंतरराष्ट्रीय बाज़ार का अनुभव होगा, जिससे भारत का उद्यमिता वातावरण और मजबूत हो सकता है।

एक और बड़ा अवसर यह है कि लौटे हुए विशेषज्ञ भारत के अनुसंधान और विकास क्षेत्र में अहम योगदान देंगे। कृत्रिम बुद्धिमत्ता, जैव प्रौद्योगिकी, क्वांटम कंप्यूटिंग और सेमीकंडक्टर जैसे क्षेत्रों में वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। यदि लौटे हुए वैज्ञानिक और इंजीनियर भारतीय संस्थानों से जुड़ें तो देश में नवाचार की गति तेज़ हो सकती है। इससे आत्मनिर्भर भारत अभियान को वास्तविक बल मिलेगा। इसके अलावा डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया जैसी पहलें उन प्रतिभाशाली पेशेवरों की मदद से मज़बूत होंगी जो विदेशों में आधुनिक तकनीकी अनुभव लेकर आएंगे।

भारत के लिए यह समय केवल इंतजार करने का नहीं है, बल्कि ठोस नीतिगत कदम उठाने का है। सरकार को लौटती प्रतिभाओं का स्वागत करने के लिए विशेष योजनाएँ बनानी होंगी। उदाहरण के लिए रिटर्निंग टैलेंट स्कीम के तहत विदेशों से लौटने वाले पेशेवरों को कर में छूट, निवेश प्रोत्साहन और विशेष स्टार्ट-अप पैकेज दिए जा सकते हैं। विश्वविद्यालयों और उद्योगों के बीच सहयोग के लिए उच्चस्तरीय शोध प्रयोगशालाएँ और नवाचार केंद्र विकसित किए जा सकते हैं। निजी क्षेत्र को अनुसंधान और विकास में निवेश बढ़ाने के लिए कर रियायत और प्रोत्साहन दिया जा सकता है। इसके साथ ही वेंचर कैपिटल और प्राइवेट इक्विटी फंड्स को प्रवासी पेशेवरों के अनुभव से जोड़कर वित्तीय इकोसिस्टम को मज़बूत करना आवश्यक होगा।

लौटे हुए प्रवासियों और उनके परिवारों के लिए सामाजिक पुनर्वास योजनाएँ भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं। यदि उन्हें भारत में बसने के दौरान कठिनाइयाँ झेलनी पड़ेंगी तो उनकी प्रतिभा का पूरा लाभ नहीं उठाया जा सकेगा। सरकार को शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास जैसी बुनियादी सुविधाओं में उन्हें आसानी उपलब्ध करानी होगी ताकि वे बिना किसी झंझट के समाज और अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन सकें।

इस प्रकार एच-वन-बी वीज़ा विवाद भारत के सामने दोहरी चुनौती पेश करता है। एक ओर लाखों प्रवासी भारतीयों की आजीविका और भविष्य की चिंता है, तो दूसरी ओर यही संकट भारत के लिए सुनहरा अवसर भी है। यदि भारत इस अवसर का लाभ उठाकर रिवर्स ब्रेन ड्रेन को अपनी ताकत बना लेता है तो आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना को नई दिशा और ऊर्जा मिलेगी। संकट हमें यह याद दिलाता है कि आत्मनिर्भरता केवल नारे से नहीं बल्कि दूरदर्शी नीतियों और वैश्विक अवसरों को साधने की क्षमता से संभव है।

– डॉo सत्यवान सौरभ,

कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने स्नातकोत्तर, स्नातक चिकित्सा शिक्षा क्षमता के विस्तार को मंजूरी दी

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नयी दिल्ली: 24 सितंबर (भाषा) केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मौजूदा केंद्रीय और राज्य सरकार के चिकित्सा महाविद्यालयों को सुदृढ़ और उन्नत करने के लिए 5,000 स्नातकोत्तर सीट बढ़ाने की योजना के तीसरे चरण को बुधवार को मंजूरी दे दी।

केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि मंत्रिमंडल ने मौजूदा सरकारी चिकित्सा महाविद्यालयों को उन्नत करने के वास्ते 5,023 एमबीबीएस सीट बढ़ाने के लिए केंद्रीय योजना के विस्तार को भी मंजूरी दी गई।

आई फोन और सिम कार्ड का बदलता सफर: क्या सिम की जरूरत खत्म हो जाएगी?

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आई फोन और सिम कार्ड का बदलता सफर: क्या सिम की जरूरत खत्म हो जाएगी?

मोबाइल फोन की दुनिया में हर कुछ वर्षों में तकनीकी बदलाव आते रहते हैं। 1990 के दशक में बड़े और भारी मोबाइल फोन से लेकर आज के स्मार्टफोन्स तक की यात्रा में एक चीज़ हमेशा महत्वपूर्ण रही है—सिम कार्ड। यही छोटा-सा कार्ड हमें टेलीकॉम नेटवर्क से जोड़ता है और कॉल, मैसेज, इंटरनेट जैसी सेवाओं का उपयोग करने की अनुमति देता है।लेकिन हाल ही में Apple ने अपने नए iPhone एडिशन (खासकर अमेरिकी बाजार में) से फिजिकल सिम स्लॉट को हटाकर केवल eSIM आधारित सिस्टम लागू कर दिया है। इसने यह बहस तेज कर दी है कि क्या आने वाले समय में सिम कार्ड की जरूरत पूरी तरह खत्म हो जाएगी?


  1. सिम कार्ड की पृष्ठभूमि

1991: सबसे पहला GSM सिम कार्ड आया। इसका आकार आज के एटीएम कार्ड जितना बड़ा था। 2000 के दशक में मिनी, माइक्रो और फिर नैनो सिम आए। 2016 से आगे: eSIM (embedded SIM) का कॉन्सेप्ट सामने आया। सिम कार्ड का विकास इस बात का प्रमाण है कि मोबाइल तकनीक लगातार छोटे, तेज और अधिक सुरक्षित समाधानों की ओर बढ़ रही है।


  1. iPhone में सिम सिस्टम का बदलाव

Apple हमेशा नई तकनीक अपनाने में अग्रणी रहा है। उदाहरण:

सबसे पहले 3.5mm हेडफोन जैक हटाया।

चार्जिंग पोर्ट को धीरे-धीरे USB-C की ओर ले गया।

अब फिजिकल सिम स्लॉट को हटाने की दिशा में कदम बढ़ाया है।

अमेरिका में लॉन्च हुए हाल के iPhone एडिशन केवल eSIM सपोर्ट करते हैं। यानी वहां खरीदे गए डिवाइस में नैनो सिम कार्ड लगाने का कोई विकल्प ही नहीं है।


  1. eSIM क्या है?

eSIM का अर्थ है Embedded SIM।

यह किसी कार्ड की तरह अलग से नहीं होता, बल्कि फोन के मदरबोर्ड पर ही चिप के रूप में मौजूद रहता है।

इसमें टेलीकॉम कंपनी की प्रोफाइल डिजिटल रूप से डाउनलोड की जाती है।

इसे हटाया या बदला नहीं जा सकता, लेकिन इसमें कई नेटवर्क प्रोफाइल स्टोर की जा सकती हैं।


  1. eSIM के फायदे
  2. जगह की बचत: फोन में सिम स्लॉट न होने से अतिरिक्त स्पेस बचता है, जिसे बैटरी या अन्य हार्डवेयर के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
  3. जलरोधक क्षमता: फिजिकल स्लॉट न होने से फोन ज्यादा वॉटरप्रूफ बनता है।
  4. नेटवर्क बदलने की सुविधा: यूज़र अलग-अलग नेटवर्क प्रोफाइल डाउनलोड कर सकता है।
  5. सुरक्षा: सिम चोरी होने या निकालकर दूसरी डिवाइस में लगाने की संभावना खत्म हो जाती है।
  6. मल्टीपल सिम: एक ही फोन में कई प्रोफाइल रखना आसान हो जाता है।

  1. eSIM की चुनौतियाँ
  2. नेटवर्क सपोर्ट: अभी सभी टेलीकॉम कंपनियां eSIM को सपोर्ट नहीं करतीं, खासकर छोटे शहरों और विकासशील देशों में।
  3. ट्रांसफर की दिक्कत: फिजिकल सिम की तरह तुरंत निकालकर दूसरे फोन में डालना संभव नहीं है।
  4. तकनीकी जटिलता: नए यूज़र्स के लिए eSIM प्रोविजनिंग और QR कोड स्कैन करना कठिन लग सकता है।
  5. आपात स्थिति: फोन खराब हो जाने पर नेटवर्क तुरंत किसी और डिवाइस में ट्रांसफर करना मुश्किल होता है।

  1. क्या सिम की जरूरत खत्म हो जाएगी?

यह सवाल दो पहलुओं से देखा जाना चाहिए:

(क) तकनीकी दृष्टि से

eSIM के बाद अब iSIM (Integrated SIM) पर काम हो रहा है, जिसमें सिम सीधे मोबाइल के चिपसेट में इंटीग्रेट हो जाएगा।

यानी भविष्य में अलग से सिम कार्ड की कल्पना ही नहीं रहेगी।

(ख) व्यावहारिक दृष्टि से

विकसित देशों में जहां नेटवर्क और तकनीक मजबूत है, वहां फिजिकल सिम का अंत जल्दी हो सकता है।

विकासशील देशों (जैसे भारत, पाकिस्तान, अफ्रीकी देश) में फिजिकल सिम अभी कई वर्षों तक बने रहेंगे, क्योंकि यहां यूज़र बेस और इंफ्रास्ट्रक्चर धीरे-धीरे बदलता है।


  1. टेलीकॉम कंपनियों पर असर

eSIM के आने से कंपनियों का सप्लाई चेन खर्च (प्लास्टिक सिम बनाना, डिस्ट्रीब्यूशन, रिटेल आउटलेट्स) कम हो जाएगा, लेकिन उन्हें डिजिटल सिस्टम और सर्वर इंफ्रास्ट्रक्चर पर ज्यादा निवेश करना होगा। ग्राहकों को बेहतर ऑनलाइन सपोर्ट देना अनिवार्य हो जाएगा।


  1. उपभोक्ता के लिए बदलाव

फायदा: यूज़र बिना स्टोर गए सीधे फोन से नया नेटवर्क एक्टिवेट कर सकता है।

चुनौती: तकनीक न जानने वाले यूज़र्स (गाँव या बुजुर्ग लोग) को शुरू में परेशानी होगी।

अंतरराष्ट्रीय यात्रा: eSIM से लोकल प्रोफाइल आसानी से डाउनलोड की जा सकेगी, जिससे रोमिंग चार्ज कम होंगे।


  1. भविष्य की संभावनाएँ
  2. पूरी तरह डिजिटल पहचान: जैसे आधार कार्ड या डिजिटल आईडी होती है, वैसे ही मोबाइल पहचान भी पूरी तरह डिजिटल हो जाएगी।
  3. सुपर कनेक्टिविटी: eSIM और iSIM इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) डिवाइसों—जैसे स्मार्ट वॉच, गाड़ियाँ, लैपटॉप—में सहजता से जुड़ जाएंगे।
  4. फिजिकल सिम का अंत: अगले 5–10 वर्षों में धीरे-धीरे दुनिया भर में फिजिकल सिम बंद हो सकते हैं, हालांकि गरीब और ग्रामीण देशों में यह संक्रमण लंबा होगा।
  5. सुरक्षा का नया अध्याय: डिजिटल सिम साइबर सुरक्षा के लिए नए चैलेंज भी पैदा करेंगे, क्योंकि हैकिंग का खतरा बढ़ सकता है।

  1. निष्कर्ष

iPhone का नया एडिशन फिजिकल सिम सिस्टम हटाकर एक संदेश देता है कि भविष्य पूरी तरह डिजिटल सिम (eSIM और iSIM) की ओर बढ़ रहा है। इसका मतलब यह है कि आने वाले समय में पारंपरिक सिम कार्ड की जरूरत लगभग खत्म हो जाएगी।

हालांकि यह बदलाव अचानक नहीं होगा। विकसित देशों में यह तेजी से लागू होगा, जबकि विकासशील देशों में फिजिकल और डिजिटल सिम कुछ समय तक साथ-साथ चलेंगे।

आखिरकार, जैसे फ्लॉपी डिस्क, सीडी और हेडफोन जैक इतिहास बन गए, वैसे ही फिजिकल सिम कार्ड भी टेक्नोलॉजी की दुनिया में सिर्फ एक याद बनकर रह जाएगा।

न्यायालय ने लापता बच्चों की तलाश के लिए विशेष ऑनलाइन पोर्टल बनाने को कहा

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नयी दिल्ली: 24 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को केंद्र से कहा कि वह लापता बच्चों का पता लगाने और ऐसे मामलों की जांच के लिए गृह मंत्रालय के तत्वावधान में एक विशेष ऑनलाइन पोर्टल बनाए।

न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने उन पुलिस अधिकारियों के बीच समन्वय की कमी पर जोर दिया, जिन्हें देश के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लापता बच्चों का पता लगाने का काम सौंपा गया है।