भारत माँ के वीर सपूत: शहीद-ए-आज़म सरदार भगत सिंह

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सरदार भगत सिंह का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक ऐसे ज्वलंत सितारे के रूप में दर्ज है, जिसने अपनी अल्पायु में ही देश की आज़ादी के लिए सर्वस्व न्योछावर कर दिया। वह सिर्फ एक क्रांतिकारी नहीं थे, बल्कि एक महान विचारक, लेखक और समाजवादी थे, जिनकी दृष्टि केवल राजनीतिक स्वतंत्रता तक सीमित नहीं थी, बल्कि वे एक शोषण मुक्त, समतावादी समाज की स्थापना का सपना देखते थे। भगत सिंह का जीवन, बलिदान और विचार आज भी भारत के युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं।

​भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर, 1907 को पंजाब के लायलपुर जिले (वर्तमान पाकिस्तान) के बंगा गाँव में एक देशभक्त सिख परिवार में हुआ था। उनके पिता सरदार किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह जैसे परिवार के सदस्य पहले से ही स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय थे, जिसका गहरा प्रभाव बालक भगत सिंह पर पड़ा। मात्र 12 वर्ष की आयु में, 13 अप्रैल, 1919 को हुए जलियाँवाला बाग नरसंहार ने उनके कोमल मन पर अमिट छाप छोड़ी और उन्हें ब्रिटिश शासन के अत्याचारों के विरुद्ध लड़ने के लिए प्रेरित किया। इस घटना ने उन्हें यह विश्वास दिलाया कि देश को आज़ाद कराने के लिए अहिंसक आंदोलनों के साथ-साथ सशक्त प्रतिरोध भी आवश्यक है।
​लाहौर के नेशनल कॉलेज में अपनी पढ़ाई के दौरान, उन्हें क्रांतिकारी विचारों के अध्ययन का मौका मिला। उन्होंने यूरोप और रूस की क्रांतियों का गहन अध्ययन किया, जिससे उनके विचार और भी परिपक्व हुए।

​क्रांतिकारी गतिविधियाँ और संगठन

​भगत सिंह ने अपनी युवावस्था में ही क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू कर दिया था। 1926 में उन्होंने ‘नौजवान भारत सभा’ की स्थापना की, जिसका उद्देश्य युवाओं को संगठित करना और उनमें देशभक्ति तथा क्रांतिकारी विचारों का संचार करना था।
​वह ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ (HRA) से जुड़े, जिसे बाद में उनके और उनके साथियों के सुझाव पर ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ (HSRA) का नाम दिया गया। यह नाम परिवर्तन उनकी समाजवादी विचारधारा को दर्शाता था, जिसका लक्ष्य केवल राजनीतिक आज़ादी नहीं, बल्कि समाजवादी राज्य की स्थापना करना था।
​सांडर्स हत्याकांड (1928)
​साइमन कमीशन के विरोध में प्रदर्शन के दौरान, वृद्ध राष्ट्रवादी नेता लाला लाजपत राय पर हुए घातक लाठीचार्ज के कारण उनकी मृत्यु हो गई। भगत सिंह और उनके साथियों ने इस अपमान का बदला लेने का संकल्प लिया। उन्होंने पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट को मारने की योजना बनाई, लेकिन गलती से उन्होंने सहायक पुलिस अधीक्षक जे.पी. सांडर्स को गोली मार दी। इस घटना ने उन्हें ब्रिटिश सरकार की नज़र में सबसे वांछित क्रांतिकारी बना दिया।
​केंद्रीय विधानसभा में बम फेंकना (1929)
​भगत सिंह का सबसे प्रसिद्ध कार्य आठ अप्रैल, 1929 को उनके सहयोगी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर दिल्ली की केंद्रीय विधानसभा में बम फेंकना था। यह कार्य किसी को नुकसान पहुँचाने के इरादे से नहीं किया गया था; बम केवल ध्वनि उत्पन्न करने वाले थे। उनका उद्देश्य बहरी ब्रिटिश सरकार को अपनी आवाज़ सुनाना और जनता का ध्यान दमनकारी ‘पब्लिक सेफ्टी बिल’ और ‘ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल’ की ओर आकर्षित करना था। बम फेंकने के बाद, उन्होंने भागने के बजाय अपनी गिरफ्तारी दी और “इंकलाब जिंदाबाद” और “साम्राज्यवाद मुर्दाबाद” के नारे लगाए। इस कार्य ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर एक नायक बना दिया।

​जेल जीवन और वैचारिक विरासत

​जेल में रहते हुए भी भगत सिंह की क्रांतिकारी भावना कम नहीं हुई। उन्होंने और उनके साथियों ने भारतीय और ब्रिटिश कैदियों के साथ होने वाले भेदभावपूर्ण व्यवहार के खिलाफ लंबी भूख हड़ताल की। इस हड़ताल ने पूरे देश में व्यापक सहानुभूति और समर्थन हासिल किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी।
​जेल में उन्होंने लेखन कार्य जारी रखा और अपने क्रांतिकारी विचारों को व्यक्त किया। उनकी प्रसिद्ध रचना ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’ उनके तार्किक, वैज्ञानिक और नास्तिक विचारों को दर्शाती है। उनके लेखन और पत्रों ने उनकी गहन वैचारिक समझ, समाजवाद के प्रति उनकी आस्था और रूढ़िवादी मान्यताओं के प्रति उनके विरोध को उजागर किया।

​शहादत और अमरत्व

​सांडर्स हत्याकांड के आरोप में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी की सज़ा सुनाई गई। 23 मार्च, 1931 को, मात्र 23 वर्ष की आयु में, उन्हें लाहौर जेल में फाँसी दे दी गई। फाँसी के फंदे को चूमने से पहले तक, वे हँसते रहे और क्रांति के गीत गाते रहे।
​भगत सिंह की शहादत ने भारतीय युवाओं में आज़ादी का ऐसा ज़ज़्बा भरा, जिसने आंदोलन की गति को तेज़ कर दिया। वह एक प्रेरणास्रोत बन गए, जिन्होंने यह सिखाया कि देश के लिए आत्म-बलिदान से बड़ा कोई धर्म नहीं होता। उनकी विचारधारा और साहस ने पीढ़ियों को प्रेरित किया है। भारत माँ का यह वीर सपूत आज भी ‘शहीद-ए-आज़म’ के रूप में हर भारतीय के दिल में अमर है, जिनके नारे “इंकलाब जिंदाबाद” ने स्वतंत्रता संग्राम का जयघोष बन गए।
​यह वीडियो सरदार भगत सिंह के जीवन और उनकी क्रांति के बारे में जानकारी प्रदान करता है:

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