©हर्यश्व सिंह ‘सज्जन’
दक्षिण एशिया पिछले कुछ सालों से कई तख्तापलट का गवाह रहा है। तख्तापलट की इन घटनाओं में कई समानताएं नजर आती है। राजनीतिक अस्थिरता के दौर में दक्षिण एशिया की विकास दर खासी प्रभावित हुई है। 2021 से अब तक भारत के लगभग सभी पड़ोसी देशों में सत्ता के खिलाफ आंदोलन हुए। लेकिन, सबसे ज्यादा चितांजनक यह है कि सत्ता परिवर्तन के बाद इन देशों को अब तक बेहद अराजक स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। भारत के लिहाज से पड़ोस में अस्थिरता बेहद चिंताजनक है।
करीब 20 साल तक अफगानिस्तान में रहने के बाद यूएस आर्मी ने 2020 में वापसी की। मार्च-अप्रैल 2021 से तालिबान ने निर्वाचित सरकार पर हमले तेज कर दिए। अगस्त 2021 में तालिबान ने निर्वाचित सरकार को गिराकर सत्ता पर कब्जा कर दिया। तत्कालीन राष्ट्रपति अशरण गनी को विदेश में शरण लेनी पड़ी। फरवरी 2021 में म्यांमार में सेना ने ही तख्तापलट कर दिया। निर्वाचित पीएम आंग सान सू की को जेल में डाल दिया गया। तब से ही वहां लोकतंत्र बहाली की मांग उठ रही है। घनघोर आर्थिक संकट से जूझ रहा श्रीलंका भी इससे नहीं बच पाया। 2022 में महंगाई, ईंधन के संकट और बिजली किल्लत जैसे मुद्दों को लेकर जनता सड़क पर आ गई। कोलंबो में कई दिन हालात खराब रहे। अंततः राष्ट्रपति महिंद्रा राजपक्षे को रातोंरात मालदीव भागना पड़ा। उन्होंने अपना इस्तीफा भी ईमेल से भेजा। 2023 में पाकस्तिान में पीएम इमरान खान को जेल में डाल दिया गया। सेना के हस्तक्षेप से अंतरिम सरकार का गठन हुआ। तब से इमरान समर्थक लगातार उनकी रिहाई के लिए आंदोलन कर रहे है।
बांग्लादेश में 2009 से सत्ता में बनी शेख हसीना की आवामी लीग सरकार का विरोध 2024 में चरम पर पहुंचा। विरोध को दबाने के लिए हुई गोलीबारी में सैकड़ों लोगों की मौत हुई। जिसके बाद प्रदर्शनकारी भड़क उठे। 5 अगस्त को शेख हसीना को भागकर भारत में शरण लेनी पड़ी। तब से वहां सेना के सहयोग से मोहम्मद युनूस सत्ता संभाल रहे है। छात्र लोकतंत्र बहाली की मांग कर रहे है। मालदीव में भी अगस्त 2024 में राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू की सरकार को गिराने का असफल प्रयास किया गया था।
हालिया घटनाक्रम नेपाल का है। जहां पिछले दो दिनों में सोशल मीडिया बैन के खिलाफ आक्रोशित जेन-जेड युवाओं ने सत्ता पलट दी। नेपाल के राजनेताओं को पीटा गया। पीएम केपी ओली, राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल समेत कई नेताओं के देश छोड़ने की खबर आ रही है। कई नेताओं की पिटाई हुई। पूर्व पीएम की पत्नी की जलने से मौत हुई।
दक्षिण एशिया की इन सभी घटनाओं के विश्लेषण में कुछ समानताएं सामने आती है। पहली है सेना की भूमिका। पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार के मामले में सेना की भूमिका हमेशा संदिग्ध रही है। नेपाल और श्रीलंका में भी कमोवेश यही देखने को मिला है। दूसरा है आर्थिक असंतुलन। इस रीजन में दुनिया में कुल आबादी का अधिकांश हिस्सा निवास करता है। विकास के लिहाज से यह देश थर्ड वर्ल्ड का हिस्सा हैं। भ्रष्टाचार, महंगाई, गरीबी, अवसरों में कमी भी कारण हैं। संचार युग में यहां के युवा पश्चिम की तुलना में अपने को कमतर पाकर जल्द आक्रोशित हो रहे है। इसलिए आंदोलनों में हिंसा चरम पर पहुंच रही है। जहां भी सत्ता परिवर्तन हुआ, वहां प्रदर्शनकारियों ने न केवल जमकर हिंसा की वरन ऐतिहासिक विरासत और राष्ट्रीय संपति तक को क्षति पहुंचाई।
इन कारणों के इतर श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल के मामले में नई चीजें भी सामने आई है। वह है जेन-जेड, एक ऐसी पीढ़ी जो अभी 13 से 28 साल की है, की भागीदारी। टीवी और इंटरनेट पर बांग्लादेश और नेपाल के फुटेज देखिए, स्कूली यूनिफार्म पहने बच्चे प्रदर्शनों में शामिल दिखाई देंगे। सोशल मीडिया के मकड़जाल में उलझी इस पीढ़ी में कोई स्पष्ट राजनीतिक समझ होना संदेहास्पद लगता है। कही ऐसा तो नहीं कि इनको राजनीतिक हथियार बनाया जा रहा हो। छात्रों ने बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन किया, लेकिन अब अधिकांश छात्र आंदोलनकारी सरकार से बाहर हो गए है। नेपाल में पीएम ओली के देश छोड़ने की खबर के बाद यूनिफार्म पहने छात्रों की जगह खुलेआम हथियार लहराते युवाओं की तस्वीरें सामने आने लगी। कही दुनिया का डीप स्टेट इंटरनेट पर चारा परोसकर इन युवाओं को अपना नया हथियार तो नहीं बना रहा।
बांग्लादेश में सत्ता पलट के बाद भारत के कुछ नेताओं के बयानों को याद कीजिए। नेपाल में छात्रों के नारे ‘केपी चोर, गद्दी छोड़’ पर भी ध्यान दीजिए। आपको कुछ समानताएं दिखेंगी। डीप स्टेट के प्रभाव में कुछ लोग भारत को भी राजनीतिक अस्थिरता के दौर में धकेलने का प्रयास कर रहे हैं। हम सबसे तेज बढ़ती अर्थवयवस्था है। इसने पूरी दुनिया को चौंकाया है। डीप स्टेट ऐसे किसी प्रयोग को कर भारत में भी राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने की कोशिश कर सकता है। एनआरसी और सीएए को लेकर शाहीन बाग में जिस तरह घेराबंदी की गई। किसान कानूनों को लेकर राजधानी की न केवल घेराबंदी की गई, बल्कि 26 जनवरी को लाल किले पर किसान प्रदर्शनकारियों की आड़ में तोड़फोड़ की गई, इस बात की गवाही दे रहे है कि डीप स्टेट भारत में भी ऐसे प्रयोगों के लिए जमीन तैयार करने का प्रयास कर रहा है। ऐसे में भारत को विशेष सावधान रहने की जरूरत है।
डीप स्टेट की नई चाल, छात्रों को बनाया ढाल
डीप स्टेट की टूल किट का नया पैंतरा देखिए, अब सत्ता विरोधी संघर्ष में शामिल युवाओं को सिर्फ छात्र कहा जा रहा है। कही भी बेरोजगार युवा का जिक्र नहीं है, जबकि इन देशों में शिक्षा के बाद रोजगार के अवसरों में लगातार कमी दर्ज की जा रही है। दरअसल, छात्र कहकर आंदोलनकारियों के प्रति दुनिया के आम जनमानस में एक साफ्ट कॉर्नर बनाने की कोशिश की जा रही है। श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में हुए तख्तापलट में मुख्य रूप से बेरोजगार युवा शामिल रहे हैं। पिछले अनुभव बताते रहे हैं कि बेरोजगार युवा आसानी से हिंसा का रास्ता अपना लेते है। इसी के चलते डीप स्टेट उनको निर्दोष छात्रों के रूप में परिभाषित कर रहा है, ताकि इन तख्तापलट की घटनाओं को दुनिया की सहानुभूति हासिल हो सके।
हर्यश्व सिंह ‘सज्जन’

(ये लेखक के अपने विचार हैं)