मसूरी में 600 प्रशिक्षु आईएएस और एक सवाल

Date:

“उंगलियों पर हल होने वाला सवाल और भविष्य के प्रशासकों की तैयारी का सच”

मसूरी से उठता सवाल: क्या हमारी प्रशासनिक शिक्षा केवल पुस्तकीय हो गई है? मसूरी में 600 प्रशिक्षु और एक सवाल जिसने सबको सोचने पर मजबूर किया। लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी का वास्तविक लक्ष्य: ‘थिंकिंग एडमिनिस्ट्रेटर’ तैयार करना। प्रशिक्षण का अर्थ केवल पाठ नहीं।

मसूरी की कक्षाओं में उठा एक छोटा-सा सवाल, बड़ी सीख। प्रशासनिक प्रशिक्षण का आईना: जब लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी में एक साधारण सवाल ने बड़ा संदेश दिया। उत्तराखंड के मसूरी में 100वाँ फाउंडेशन कोर्स और नेतृत्व की बुनियादी समझ पर गहरा संकेत।

— डॉ प्रियंका सौरभ

उत्तराखंड के शांत, अनुशासित और सुसंस्कृत वातावरण में स्थित मसूरी का प्रसिद्ध प्रशासनिक अकादमी परिसर—लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी—देश के सर्वोच्च सिविल सेवकों के निर्माण का केंद्र बिंदु है। यहाँ आज भी 600 से अधिक प्रशिक्षु अधिकारी भविष्य के भारतीय प्रशासन की रूपरेखा तय करने की तैयारी में डटे हैं। हाल ही में 100वें फाउंडेशन कोर्स का समापन समारोह आयोजित किया गया, जो किसी भी संस्थान के लिए गौरव का क्षण होता है। इस अवसर पर देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की उपस्थिति ने कार्यक्रम की गरिमा और भी बढ़ा दी।

समारोह के दौरान रक्षा मंत्री ने एक सरल-सा गणितीय प्रश्न पूछा— “एक आदमी के पास कुछ पैसे थे। उसने आधा ए को, एक-तिहाई बी को और शेष 100 रुपये सी को दिए। बताइए, कुल पैसा कितना था?”

दैनिक जीवन में प्रयुक्त होने वाला यह सीधा-सा सवाल प्रशिक्षुओं के लिए अप्रत्याशित सिद्ध हुआ। कई प्रशिक्षु अधिकारी प्रश्न में उलझ गए, जबकि समाधान उंगलियों पर किया जा सकता था। बाद में स्वयं राजनाथ सिंह ने इसे सरल तरीके से हल कर समझाया। यह घटना भले ही साधारण प्रतीत हो, पर प्रशासनिक प्रशिक्षण और नेतृत्व क्षमता की वास्तविक दिशा पर यह बेहद महत्त्वपूर्ण संकेत देती है।

प्रशासनिक कार्यों का मूल तत्व केवल कानून और नियमों का ज्ञान नहीं, बल्कि तुरंत समझने, तर्क लागू करने और व्यवहारिक समाधान निकालने की क्षमता है। कभी-कभी सबसे कठिन परिस्थितियों में सर्वाधिक सरल समाधान ही सर्वश्रेष्ठ होता है—पर इसके लिए मन का खुलापन और व्यावहारिक सोच आवश्यक होती है। यही गुण एक सक्षम प्रशासक को भीड़ से अलग करता है।

यह घटना इस बात का स्मरण भी कराती है कि सिविल सेवा केवल अकादमिक बौद्धिकता का अभ्यास नहीं है; यह मानव स्वभाव, सामाजिक व्यवहार, त्वरित निर्णय-क्षमता और सामान्य समझ की माँग भी करती है। किसी भी शासन प्रणाली में सबसे प्रभावशाली अधिकारी वही होता है जो जटिल समस्याओं को सरलता से हल करने की क्षमता रखता हो।

प्रशिक्षण का उद्देश्य केवल ज्ञानार्जन नहीं, बल्कि व्यवहारिक बुद्धि का विकास भी है। एक छोटा सा प्रश्न प्रशिक्षुओं को यह याद दिलाता है कि वास्तविक प्रशासन वही है जो खेत-खलिहान, बाज़ार, थाने, पंचायत भवन और कार्यालयों में घटित होता है—जहाँ जटिलताएँ कम और सादगी अधिक काम आती है।

राजनाथ सिंह द्वारा पूछा गया प्रश्न प्रशासनिक सोच के दो महत्त्वपूर्ण पहलुओं को उजागर करता है—

पहला, अधिकारी का ध्यान समस्या के मूल की ओर होना चाहिए, न कि उसकी सतही जटिलता की ओर।

दूसरा, किसी भी चुनौती में घबराना नहीं, बल्कि उसे विभाजित कर सरल रूप में हल करना चाहिए।

सिविल सेवाओं में ऐसे अनेक अवसर आते हैं जब अधिकारी को अचानक लिए गए निर्णयों के आधार पर जनता को राहत, दिशा और सुरक्षा प्रदान करनी होती है। यदि वह क्षणिक दबाव में भी सामान्य तर्क बनाए रखने में दक्ष है, तो वह बेहतर प्रशासक बन सकता है।

यह प्रसंग इस व्यापक प्रश्न को भी जन्म देता है कि आधुनिक प्रशिक्षण पद्धति कहीं अत्यधिक तकनीकी, सैद्धांतिक या औपचारिक तो नहीं हो गई है? क्या हम प्रशासन के मूल तत्व—सरलता, संवेदनशीलता और सामान्य विवेक—को नजरअंदाज तो नहीं कर रहे?

सिविल सेवा का इतिहास बताता है कि देश के श्रेष्ठ अधिकारी वही रहे, जिन्होंने अत्यधिक बुद्धि के साथ-साथ सरल सोच, जन-संपर्क की क्षमता और सहज निर्णय-प्रक्रिया अपनाई। आज जब देश नई चुनौतियों—प्रौद्योगिकी, जटिल प्रशासनिक व्यवस्था, विस्तृत जनसंख्या और त्वरित परिवर्तनों—से गुजर रहा है, तब एक प्रशासक की भूमिका और भी विस्तृत और बहुआयामी हो चुकी है।

ऐसे समय में यह आवश्यक है कि प्रशिक्षण केवल परीक्षाओं और पुस्तकीय ज्ञान तक सीमित न हो। उसमें व्यवहारिक गणित, तर्कशक्ति, सामान्य समझ, मनोवैज्ञानिक संतुलन और परिस्थितिजन्य विश्लेषण को भी समुचित स्थान मिले।

राजनाथ सिंह द्वारा हल्का-सा पूछा गया यह प्रश्न प्रशासनिक तंत्र को यह संदेश देता है कि नेतृत्व की असल परीक्षा कभी-कभी छोटे-छोटे क्षणों में ही होती है। बड़े निर्णयों का आधार भी वही अधिकारी बनता है जो बेसिक समझ को खोने नहीं देता।

इस प्रसंग से यह भी स्पष्ट होता है कि प्रशिक्षण के दौरान आने वाले ऐसे अप्रत्याशित प्रश्न अधिकारी के मन को गति देते हैं, उसे दबाव में सोचने की क्षमता प्रदान करते हैं और वास्तविक प्रशासनिक दुनिया के लिए मानसिक रूप से तैयार करते हैं।

समय के साथ यह आवश्यक हो गया है कि सिविल सेवा प्रशिक्षण अकादमियाँ इस प्रकार के संवाद, प्रश्न-आधारित परीक्षण और व्यवहारिक अभ्यास को और भी अधिक बढ़ाएँ। इससे अधिकारी न केवल जनसेवा के लिए अधिक तैयार होंगे बल्कि प्रशासनिक जटिलताओं को सहजता से हल करने की क्षमता भी विकसित करेंगे।

निष्कर्षतः, मसूरी में घटित यह छोटा-सा घटना क्रम इस बात का प्रतीक है कि नेतृत्व की ताकत केवल बड़े भाषणों या उच्च ज्ञान में नहीं, बल्कि सरल तर्क और मौलिक समझ में भी निहित होती है। सिविल सेवा के भविष्य को आकार देने वाले प्रशिक्षुओं के लिए यह एक स्मरणीय संदेश है—प्रशासन की महानता सरलता में है, न कि जटिलता में।

-प्रियंका सौरभ 

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,

कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

पोस्ट साझा करें:

सदस्यता लें

spot_imgspot_img

लोकप्रिय

इस तरह और भी
संबंधित

भारत वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच आत्मविश्वास से भरा हुआ हैः मोदी

नई दिल्ली, ६ दिसंबर , प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने...

डॉ. जितेंद्र सिंह ने पंचकुला में विज्ञान महोत्सव का उद्घाटन किया

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने...

प्रधानमंत्री ने डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर को महापरिनिर्वाण दिवस पर श्रद्धांजलि दी

केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने महापरिनिर्वाण दिवस पर डॉ....

प्रधानमंत्री राष्ट्रीय संग्रहालय में आयोजित डॉ. भीमराव आंबेडकर की महापरिनिर्वाण दिवस पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (एनसीएससी) ने  नई दिल्ली स्थित प्रधानमंत्री राष्ट्रीय संग्रहालय में एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया। यह कार्यक्रम डॉ. भीमराव आंबेडकर की महापरिनिर्वाण दिवस पर उनकी स्मृति में तथा सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती के उपलक्ष में आयोजित किया गया, जो सरदार पटेल एकता मार्च के समापन के साथ भी संयोगित थाकार्यक्रम का संचालन माननीय अध्यक्ष, एनसीएससी की अध्यक्षता में हुआ तथा आयोग के माननीय सदस्य भी इस अवसर पर उपस्थित रहे। इस अवसर पर सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री, डॉ. वीरेंद्र कुमार मुख्य अतिथि के रूप में पधारे और उन्होंने कार्यक्रम की गरिमा में वृद्धि की। कार्यक्रम में प्रख्यात इतिहासकार एवं प्रधानमंत्री राष्ट्रीय संग्रहालय के सदस्य, प्रो. रिज़वान क़ादरी ने मुख्य वक्ता के रूप में संबोधन दिया। उन्होंने डॉ. आंबेडकर और सरदार पटेल के ऐतिहासिक योगदानों का उल्लेख करते हुए बताया कि कैसे दोनों महान नेताओं ने भारत में सामाजिक न्याय की स्थापना, राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने और संवैधानिक शासन को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अस्पृश्यता उन्मूलन, सामाजिक सुधार, शिक्षा के प्रसार तथा वंचित समुदायों के सशक्तिकरण के प्रति दोनों नेताओं की प्रतिबद्धता पर बल दिया। इससे पूर्व, श्री गुड़े श्रीनिवास, सचिव, एनसीएससी ने स्वागत भाषण दिया। उन्होंने डॉ. आंबेडकर एवं सरदार पटेल द्वारा अनुसूचित जातियों, महिलाओं, श्रमिकों एवं सामाजिक रूप से वंचित समूहों के उत्थान हेतु किए गए आजीवन प्रयासों का स्मरण कराया। उन्होंने यह भी बताया कि किस प्रकार डॉ. आंबेडकर ने भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष किया और संविधान में कमजोर वर्गों के लिए महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रावधान सुनिश्चित किए। साथ ही, उन्होंने सरदार पटेल द्वारा 562 रियासतों के एकीकरण के माध्यम से “अखंड भारत” की नींव को मजबूत करने की भूमिका पर प्रकाश डाला। आयोग के  सदस्य,  लव कुश कुमार एवं  वड्ढेपल्ली रामचंदर ने भी सभा को संबोधित किया और दोनों राष्ट्रीय नेताओं के समतामूलक समाज निर्माण में दिए गए योगदानों को रेखांकित किया। अध्यक्ष,  किशोर मकवाना, एनसीएससी ने डॉ. भीमराव आंबेडकर और सरदार वल्लभभाई पटेल के बीच हुए महत्वपूर्ण ऐतिहासिक संवादों का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि सामाजिक अशांति के समय सरदार पटेल ने अस्पृश्यों के अधिकारों की जिस दृढ़ता से रक्षा की, उसकी स्वयं डॉ. आंबेडकर ने प्रशंसा की थी। अध्यक्ष ने यह भी रेखांकित किया कि राष्ट्र सदैव किसी भी व्यक्ति या संगठन से ऊपर होता है और राष्ट्रीय एकता एवं राष्ट्रीय हित को सर्वोपरि माना जाना चाहिए। अपने समापन संबोधन में  केंद्रीय मंत्री, डॉ. वीरेंद्र कुमार ने इस संगोष्ठी के सफल आयोजन हेतु आयोग की सराहना की तथा दोनों महान राष्ट्र-निर्माताओं को श्रद्धांजलि अर्पित की।
hi_INहिन्दी