भारतीय संगीत में डिस्को शैली को स्थापित करने गायक − संगीतकार बप्पी लहरी

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भारतीय फिल्म संगीत की दुनिया में बप्पी लहरी का नाम एक विशिष्ट पहचान रखता है। अस्सी और नब्बे के दशक में बॉलीवुड में जिस तरह का संगीत लोकप्रिय हुआ, उसमें बप्पी लहरी ने एक नई दिशा और नई ऊर्जा का संचार किया। वे न सिर्फ एक संगीतकार थे, बल्कि एक गायक, नवप्रवर्तनकर्ता और लाखों युवाओं के फैशन आइकॉन भी थे। भारतीय संगीत में डिस्को शैली को स्थापित करने का श्रेय बड़ी हद तक बप्पी लहरी को दिया जाता है, जिन्होंने फिल्म संगीत को अंतरराष्ट्रीय पॉप और इलेक्ट्रॉनिक ध्वनियों से जोड़ा। अपने चकाचौंध भरे अंदाज़ और अनोखे संगीत प्रयोगों के कारण वे “डिस्को किंग” के नाम से पूरे देश में प्रसिद्ध हुए।

बप्पी लहरी का जन्म 27 नवंबर 1952 को कोलकाता के एक संगीत-समृद्ध बंगाली परिवार में हुआ था। उनका वास्तविक नाम आलोकेश लाहिड़ी था। उनके माता-पिता अपरेश लाहिड़ी और बंसरी लाहिड़ी स्वयं प्रतिष्ठित शास्त्रीय संगीतकार तथा गायिका थे। इस सांगीतिक वातावरण ने बप्पी को बचपन से ही संगीत की ओर प्रेरित किया। तीन वर्ष की उम्र में ही उन्होंने तबला बजाना और छह वर्ष की उम्र में पहला संगीत कार्यक्रम किया। किशोरावस्था तक वे वाद्ययंत्रों, ताल और सुर में पूरी तरह पारंगत हो चुके थे। किशोर कुमार के साथ उनका पारिवारिक संबंध भी उनके शुरुआती संगीत मार्गदर्शन में महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ।

संगीतकार के रूप में बप्पी लहरी का बॉलीवुड में पदार्पण 1973 की फिल्म नन्हा शीकारी से हुआ, लेकिन उन्हें व्यापक पहचान 1975 की फिल्म ज़ख्मी से मिलने लगी, जिसके गीतों ने उनकी प्रतिभा को सबके सामने ला दिया। 1980 का दशक उनके करियर का स्वर्णिम काल रहा। इस दौर में उन्होंने एक के बाद एक ऐसी फिल्में दीं जिनके गीतों ने भारतीय संगीत संस्कृति को पूरी तरह बदल दिया। वार्डन, डिस्को डांसर, डांस डांस, कसम पैदा करने वाले की, नमक हलाल, शराबी, हिम्मतवाला, सहस और तोहफा जैसी बड़ी फिल्मों में उनका संगीत सुपरहिट हुआ। हर गाने में उन्होंने आधुनिक बीट, सिंथेसाइज़र, इलेक्ट्रॉनिक संगीत और भारतीय सुरों का अनूठा मेल तैयार किया।

फिल्म डिस्को डांसर ने तो मानो संगीत के इतिहास में क्रांति ला दी। मिथुन चक्रवर्ती पर फिल्माए गए उनके गीत—आई एम ए डिस्को डांसर, जिमी जिमी जिमी आजा—दुनिया के विभिन्न देशों में लोकप्रिय हुए। यह उन दिनों की बात है जब भारतीय गीतों का वैश्विक प्रसार इतना आसान नहीं था, लेकिन बप्पी लहरी के संगीत ने सीमाएँ तोड़ दीं। रूस, चीन और मध्य-एशियाई देशों तक उनकी धुनों ने भारतीय फिल्मों की पहुंच बढ़ाई। उनकी इसी वैश्विक लोकप्रियता के कारण वे भारत में वेस्टर्न पॉप और नृत्य संगीत के लगभग पर्याय बन गए।

गायक के रूप में भी बप्पी लहरी बेहद सफल रहे। उनकी आवाज़ में एक अनूठी मिठास और आधुनिकता थी, जो युवा दर्शकों को जल्दी आकर्षित करती थी। कोई यहां नाचे नाचे, बंबई से आया मेरा दोस्त, यार बिना चेन कहां रे, ऊ लाला ऊ लाला, आज रपट जाएं, तम्मा तम्मा लोगे और दे दे प्यार दे जैसे गीत आज भी पार्टी और नृत्य का माहौल बना देते हैं। उनका अंदाज़, उनकी आवाज़ और उनकी मस्ती ने उन्हें गायकों की भीड़ में अलग खड़ा किया।

बप्पी लहरी की सबसे खास बात यह थी कि उन्होंने भारतीय फिल्म संगीत में प्रयोगों को हमेशा अपनाया। उस समय जब अधिकतर संगीतकार पारंपरिक वाद्ययंत्रों और रागों पर निर्भर थे, बप्पी दा इलेक्ट्रॉनिक गिटार, सिंथेसाइज़र, ड्रम मशीन और विदेशी ताल-ध्वनियों का उपयोग कर रहे थे। यही नवाचार आगे चलकर बॉलीवुड के संगीत का मुख्य स्वरूप बन गया। उनकी वजह से ही अस्सी और नब्बे के दशक में बॉलीवुड का संगीत युवा पीढ़ी को पश्चिमी पॉप संगीत की ओर आकर्षित किए बिना उसके स्वाद को भारतीय शैली में परिवर्तित कर बताया गया।

उनके व्यक्तित्व का एक और महत्वपूर्ण पहलू उनका फैशन था। बप्पी लहरी और सोने की चेनें एक-दूसरे के पर्याय बन गए थे। उनके कई लेयर्ड गोल्ड चेन, गोल्ड ब्रेसलेट्स, चश्मे और चमकदार कपड़े उनकी पहचान का हिस्सा बन गए थे। वे कहते थे कि सोना उनके लिए शुभ है और उनकी ऊर्जा बढ़ाता है। भले ही कुछ लोग इसे दिखावा समझते थे, लेकिन उनकी यह शैली उन्हें पॉप कल्चर का हिस्सा बना चुकी थी।

नब्बे के दशक और उसके बाद भी बप्पी दा का योगदान जारी रहा। बदलते संगीत दौर में भी उन्होंने अपनी धुनों और स्टाइल को आधुनिक रूप में प्रस्तुत किया। 2000 के दशक में जब रिमिक्स और रीक्रिएटेड सॉन्ग्स की लहर चली, तब उनके कई गीतों के नए संस्करण सुपरहिट हुए। उन्होंने खुद भी फिल्मों और एल्बमों के लिए नए गाने बनाए। फिल्म डर्टी पिक्चर का उनका गीत ऊ लाला ऊ लाला उन की वापसी का शानदार उदाहरण बना। 2014 में उन्होंने हॉलीवुड फिल्म स्लमडॉग मिलियनेयर के लिए भी अपनी आवाज़ दी।

बप्पी लहरी को उनके संगीत योगदान के लिए कई सम्मान मिले। फिल्मफेयर पुरस्कार, राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार, दादा साहेब फाल्के अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार सहित अनेक मंचों पर उन्हें सम्मानित किया गया। वे लंबे समय तक इंडियन परफॉर्मिंग राइट्स सोसाइटी (IPRS) और अन्य संगीत अधिकार संस्थाओं से जुड़े रहे, जहाँ उन्होंने कलाकारों के अधिकारों की मजबूती के लिए आवाज उठाई।

18 फरवरी 2022 को बप्पी लहरी का निधन मुंबई में हुआ। उनकी उम्र 69 वर्ष थी। उनके अचानक चले जाने से भारतीय संगीत जगत में गहरा शोक फैल गया। करोड़ों प्रशंसकों ने उन्हें सोशल मीडिया पर याद किया, और उनके गीत कई दिनों तक ट्रेंड में बने रहे। उनकी अतुलनीय ऊर्जा, प्रयोगशीलता और संगीत प्रेम हमेशा प्रेरणा का स्रोत रहेंगे।

बप्पी लहरी केवल एक संगीतकार नहीं थे, वे एक सांस्कृतिक धरोहर थे। उन्होंने भारतीय फिल्म संगीत में वह परिवर्तन लाया जिसने न सिर्फ बॉलीवुड को नया रूप दिया, बल्कि दुनियाभर के दर्शकों को भारतीय गीतों से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज भी जब कोई युवा “डिस्को” शब्द सुनता है, तो सबसे पहले बप्पी दा की ही याद आती है। उनकी संगीत यात्रा और योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए भारतीय पॉप और फिल्म संगीत का आदर्श उदाहरण है।

बप्पी दा ने हिन्दी, बांग्ला और दक्षिण भारतीय भाषाओं में 5000 से ज्यादा गाने कंपोज किए. यह भी अपने आप में एक उपलब्धि है. इसके साथ ही उन्होंने कई सिंगिग रिएलिटी शोज में बतौर जज अपनी भूमिका निभाई. राजनीति में भी बप्पी दा ने कदम रखा. 2014 में वह भाजपा में शामिल हुए थे, लेकिन सक्रिय राजनीति नहीं की.

एक अवॉर्ड शो के दौरान बप्पी लाहिरी और राजकुमार की अचानक मुलाकात हो गई। राजकुमार ने बप्पी दा के गहनों को देखकर तारीफ की और कहा कि एक से बढ़कर एक जेवर पहने हो। पहले तो सब हंसी-खुशी थी, लेकिन फिर राजकुमार ने मजाक में तंज कसते हुए कहा, ‘बस अब तो एक मंगलसूत्र की कमी रह गई है।’ ये बात बप्पी लाहिरी को बुरी तरह चुभ गई और उन्हें बिल्कुल अच्छी नहीं लगी।

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