बिहार में फिर एक बार नीतीशे सरकारःएग्जिट पोल ने लगाई मुहर

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बाल मुकुन्द ओझा

बिहार में एग्जिट पोल को लेकर सियासी क्षेत्रों में घमासान छिड़ गया है। एनडीए जहां इसे वास्तविकता के निकट बता कर स्वागत कर रहा है वहीं महागठबंधन इसे झूठ का पुलिंदा करार देकर नकार रहा है। हालाँकि दो दिन बाद 14 नवम्बर को पता लग जायेगा कि मतदाता किसे जीत का ताज पहनायेगा। बिहार विधानसभा चुनाव का मतदान मंगलवार शाम को संपन्न होते ही साढ़े छह बजे से खबरिया चैनलों में एग्जिट पोल की होड़ लग गई। एक को छोड़कर अन्य सभी डेढ़ दर्ज़न चुनावी सर्वे  में एक बार फिर एनडीए सरकार पर मुहर लगादी है। दूसरी तरफ सट्टा बाजार ने भी बिहार में एनडीए सरकार की भविष्यवाणी करदी है। सभी प्रमुख सर्वे एजेंसियों ने एनडीए को दो-तिहाई बहुमत के करीब या उससे भी अधिक सीटें मिलने का अनुमान लगाया है। इस भांति एनडीए गठबंधन की प्रचंड लहर दिख रही है। बिहार विधानसभा चुनाव 66.91 प्रतिशत के ऐतिहासिक मतदान के साथ संपन्न हुआ है।

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी आजकल चुनाव में बड़ी भूमिका निभाने लगे है। चुनावी सर्वे करने वाली विभिन्न संस्थाओं से मिलकर किये जाने वाले सर्वेक्षणों में मतदाताओं का मूड जानने का प्रयास कर सटीक आकलन किया जाता है। कई बार ये सर्वे वास्तविकता के नजदीक होते है तो कई बार फैल भी हो जाते है। सर्वे का सीधा अर्थ है किसी भी वस्तु को खोजना या संभावनाओं का पत्ता लगाना। यह शब्द अधिकतर चुनावों के दौरान सुना जाता है और जबसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का प्रादुर्भाव हुआ है तब से लोकप्रिय हो रहा है। हमारे देश में दो चीजों का विकास करीब-करीब एक साथ ही हुआ है। पहला इन चुनावी सर्वेक्षणों  और दूसरा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया या कहें समाचार चैनलों का। समाचार चैनलों  की भारी भीड़ ने चुनावी सर्वेक्षणों को पिछले दो दशक से हर चुनाव के समय का अपरिहार्य बना दिया है। आज बिना इन सर्वेक्षणों के भारत में चुनावों की कल्पना भी नहीं की जाती। बल्कि कुछ समाचार चैनल तो साल में कई बार ऐसे सर्वेक्षण करवाते हैं और इसके जरिये सरकारों की लोकप्रियता और समाज को प्रभावित करने वाले मुद्दों की पड़ताल करते रहते हैं। ऐसे में यह जानना दिलचस्प है कि आखिर भारत में इन सर्वेक्षणों का अर्थशास्त्र क्या  है? आखिर इन सर्वेक्षणों को करवाने से किसका भला होता है।

 टीवी चैनल टीआरपी के चक्कर में अपनी लोकप्रियता दांव पर लगा देते है। यदि सर्वे सही  जाता है तो बल्ले बल्ले अन्यथा साख पर विपरीत असर देखने को मिलता है। आज हम बिहार चुनाव की बात कर रहे है जहां महाएग्जिट पोल में एनडीए की बम्पर जीत का दावा किया गया है। बिहार में एक बार फिर भाजपा नीत एनडीए को स्पष्ट बहुमत का अपना आंकलन प्रस्तुत किया है। पोल ऑफ एग्जिट पोल्स में एनडीए को 155 सीटें मिलने का आकलन प्रस्तुत किया है। जबकि महागठबंधन को 82 से 98 सीटों पर संतोष करना पड़ सकता है। इसके अलावा जनसुराज का खाता तो खुल सकता है, लेकिन उसे 2 से ज्यादा सीटें मिलने का अनुमान नहीं लगाया गया है। अन्य के खाते में 3 से 7 सीटें जा सकती  है।  IANS मैट्रिज, चाणक्य स्ट्रैटिजीज, पोल स्टार्ट, टाइम्स नाऊ-सीवोटर्स, दैनिक भास्कर,आज तक-सिसेरो, पोल डायरी, डीवी रिसर्च, न्यूज एक्स-सीएनएक्स, न्यूज नेशन, पीपुल्स इनसाइट, कामख्या ऐनालिटिक्स सहित लगभग डेढ़ दर्ज़न सर्वे एजेंसियों ने अपने एग्जिट पोल में एनडीए को 130 से 180 तक सीटें मिलने की भविष्यवाणी कर दी है। एग्जिट पोल एक तरह का चुनावी सर्वे होता है। मतदान वाले दिन जब मतदाता वोट देकर पोलिंग बूथ से बाहर निकलता है तो वहां अलग-अलग सर्वे एजेंसियों के प्रतिनिधि मौजूद होते हैं। वह मतदाता से मतदान को लेकर सवाल पूछते हैं। इसमें उनसे पूछा जाता है कि उन्होंने किसको वोट दिया है? इस तरह से हर विधानसभा या लोकसभा के अलग-अलग पोलिंग बूथ से मतदाताओं से सवाल पूछा जाता है। मतदान खत्म होने तक बड़ी संख्या में आंकड़े एकत्र हो जाते हैं। इन आंकड़ों को जुटाकर और उनके उत्तर के हिसाब से अंदाजा लगाया जाता है कि पब्लिक का मूड किस ओर है? गणितीय मॉडल के आधार पर ये निकाला जाता है कि कौन सी पार्टी को कितनी सीटें मिल सकती हैं? इसका प्रसारण मतदान खत्म होने के बाद ही किया जाता है। खबरिया चैनलों के एग्जिट पोल में कितना दम और सच्चाई है यह तो 14 नवम्बर को होने वाली मतगणना से ही पता चलेगा।

                                                                  

बाल मुकुन्द ओझा

वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार

डी-32, मॉडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर                                                                   

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