एक फैशन बन गया है संघ पर रोक लगाने की मांग

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बाल मुकुन्द ओझा

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर एक बार फिर प्रतिबंध लगाने की बात कही है। इससे पूर्व उनके बेटे और कर्नाटक के आईटी मंत्री प्रियंक खरगे भी ऐसी ही बात कह चुके है। कांग्रेस के शीर्ष नेताओं द्वारा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग पर एकाएक ही देश की सियासत गरमा उठी है और परस्पर आरोप प्रत्यारोपों की राजनीति शुरू हो गई है। सियासी समीक्षकों का मानना है बिहार चुनावों के मधे नज़र कांग्रेस की ऐसी बेतुकी टिप्पणी पार्टी के लिए आत्मघाती हो सकती है, क्योंकि जब जब भी कांग्रेस सरकारों ने संघ पर प्रतिबन्ध लगाया है वह दुगुनी ताकत से उभरकर सामने आया।

खरगे बाप और बेटे दोनों संघ के खिलाफ लगातार जहर उगलते रहे है, यह किसी से छिपा नहीं है। हालांकि उन्होंने कहा कि मेरा व्यक्तिगत विचार है और मैं खुले तौर पर कहता हूं कि आरएसएस पर प्रतिबंध लगना चाहिए। सरदार पटेल का जिक्र करते हुए उन्होंने कही ये बात। कांग्रेस अध्यक्ष तो यहाँ तक कहते है वे मरने से पहले प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ताच्युत करके रहेंगे। आरएसएस पर प्रतिबंध की मांग से जुड़े खरगे के बयान को आपत्तिजनक बताते हुए भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि उन्हें संघ के इतिहास के बारे में जानना चाहिए। गांधी जी की हत्या के बाद कपूर कमीशन ने आरएसएस को क्लीन चिट दी थी। भाजपा नेताओं ने पलटवार करते हुए कहा है, लोकतंत्र में असहमति पर पूरे देश को जेलखाना बना देने वाली यह कांग्रेसी मानसिकता द्वारा संघ पर प्रतिबंध लगाने की बात करना कोई पहला अवसर नहीं है। पहले भी इन लोगों ने अपनी सत्ता और तुष्टिकरण की राजनीति को बचाए रखने के लिए संघ पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की है।

कांग्रेस की सरकारों ने तीन बार 1948 1975 व 1992 में इस पर प्रतिबंध लगाया, लेकिन तीनों बार संघ पहले से भी अधिक मजबूत होकर उभरा। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने अनेक निर्णयों में माना है कि संघ एक सामाजिक, सांस्कृतिक संगठन है। आजादी के बाद से ही कांग्रेस के निशाने पर रहा है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। लाख चेष्टा के बावजूद कांग्रेस संघ को समाप्त करना तो दूर हाशिये पर लाने में सफल नहीं हुआ। संघ को खत्म करने के चक्कर में खुद कांग्रेस अपना वजूद समाप्त करने की ओर अग्रसर है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर पहली विपदा महात्मा गांधी की हत्या के दौरान आई जब हत्यारे नाथूराम गोडसे को संघ का स्वयंसेवक बताकर संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था। बाद में एक जांच समिति ने संघ पर लगे आरोपों को सही नहीं बताया तब संघ से प्रतिबन्ध हटा लिया गया और एक बार फिर संघ ने स्वतंत्र होकर अपना कार्य शुरू किया। संघ पर इस दौरान यह आरोप लगाया गया कि वह हिन्दू अधिकारों की वकालत करता है। मगर संघ का कहना है कि हिन्दुत्व एक जीवन पद्धति है। भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है तो इसका कारण यह है कि यहाँ हिन्दू बहुमत में हैं। बताया जाता है कि 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान संघ के अप्रतिम सेवाभावी कार्यों से प्रभावित होकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने 1963 में गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने का संघ को निमंत्रण दिया। दो दिन की अल्प सूचना के बाबजूद तीन हजार गणवेशधारी स्वयं सेवक उस परेड में शामिल हुए। यहाँ यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि संघ गांधी हत्यारा था तो पं. नेहरू ने उसे देशभक्त संगठन मानकर परेड में शामिल क्यों किया। संघ पर दूसरी विपदा 1975 में तब आई जब आपातकाल के दौरान उस पर प्रतिबन्ध लगाकर हजारों स्वयंसेवकों को कारागार में डाल दिया गया। आपातकाल के बाद संघ से प्रतिबन्ध हटाया गया और संघ ने पुनः अपना कार्य प्रारम्भ किया।

बापू की हत्या के आरोप सहित कई बार प्रतिबन्ध की मार झेल चुका यह संगठन आज भी लोगों के दिलों में बसा है और यही कारण है की इसका एक स्वयं सेवक प्रधान मंत्री की कुर्सी पर काबिज है और अनेक स्वयं सेवक राज्यों के मुख्यमंत्री है। संघ विचारकों का मानना है कि डॉ. राममनोहर लोहिया और लोक नायक जय प्रकाश नारायण सरीखे देश भक्तों ने कभी संघ का विरोध नहीं किया और समय-समय पर संघ कार्यों की प्रशंसा की। विभिन्न गुटों में बंटे उनके कथित समाजवादी अनुयायी अपने राजनैतिक लाभों को हासिल करने के लिए उनका विरोध करते हैं। पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी भी संघ के नागपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लेकर कांग्रेस को झटका दे चुके है। उन्होंने संघ के संस्थापक हेडगेवार को बड़ा देशभक्त बताया था।

बाल मुकुन्द ओझा

वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार

डी 32, मॉडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर

मो.- 9414441218

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