लेडीज बैग और कोलंबिया

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व्यंग

लेडीज बैग और कोलंबिया

“बहुत सुंदर है। कहां से लाई?”

ये चेन्नई गए थे। वहीं से लाए थे।

“बहुत सुंदर है। हमारे तो कहीं जाते ही नहीं। “

ये तो जाते रहते हैं। लाते रहते हैं।

‘बैग..?”

अरे नहीं। बैग नहीं। कभी कुछ। कभी कुछ।

‘महंगा होगा?”

दूर से लाए हैं तो महंगा ही होगा।

पड़ोसन ने बैग का अपने सजल नेत्रों में स्क्रीन शॉट लिया। कुछ दिन बाद वही बैग उसके कंधों पर था । घर में जंग छिड़ गई। एक बैग दो के कंधों पर कैसे? निश्चित, तुम दो लाए होंगे।

( एक वस्तु, एक रंग महिला शास्त्र में निषेध है)

भारतीय नारी बहुत बोझ उठाती है। गहने। सड़क पर झाड़ू लगाता परिधान। दोनों हाथों की उंगलियों से उनको पकड़े रखना। फिर कंधे का भारी भरकम बैग। ऊंची हिल। कद ऊंचा। घर का बोझ। पति का बोझ। बच्चों का बोझ। समाज का बोझ। दुनिया का बोझ। माथे पर बिंदी। मांग में सिंदूर। बिछुए। पायल। अधरों पर लाली। कानों में बाली। नाक में नथ। आंखों में न जाने क्या क्या? उफ़! इतना बोझ।

आदमी तो मर जाए। वह तो पर्स भी पीछे की जेब में रखता है। आमदनी सदा छिपा कर रखनी चाहिए। बीबी ऐसा नहीं करती। वह सदा मोटा बैग अपने कंधों पर रखती है। पता नहीं, कब आलू खरीदने पड़ जाएं। बैग होगा तो पांच किलो आलू कभी भी ले लो।

मल्टी पर्पज यह बैग। एक बार पति ने जिद पकड़ ली-” दिखाओ, इसमें क्या क्या है?” पत्नी मना करती रही। पति ने पर्स यानि बैग झटक लिया। निकला क्या..? एक लिपस्टिक, एक कंघा, एक शीशा, दूध की बोतल ( ऐच्छिक), मोबाइल और एस्प्रिन या डोलो।

पति बोला..”इतने से सामान के लिए इतना बड़ा बैग?”

“तुम कुछ नहीं समझते। लाओ मेरा बैग। देख लिया। तसल्ली हो गई। आजकल यही चल रहा है। अबकि बाहर जाओ। तो थोड़ा बड़ा लाना। ये छोटा पड़ रहा है। काम नहीं चलता।”

कोलंबिया यूनिवर्सिटी में एक सवाल पूछा गया। कार बाइक से भारी क्यों होती है? इसका उत्तर भारत को ही देना था। सो, हमारे नेता जी ने दिया। “एक पैसेंजर को ले जाने के लिए कार में 3,000 किलो धातु चाहिए, जबकि 100 किलो की बाइक दो पैसेंजर ले जाती है। तो आखिर क्यों बाइक 150 किलो के धातु से दो लोगों को ले जा सकती है, लेकिन कार के लिए 3,000 किलो की जरूरत होती है । कार से इंजन चिपका होता है। अलग नहीं होता। बाइक में अलग हो जाता है।

यह है बेसिक डिफरेंस। पर्स और लेडीज पर्स का। लेडीज पर्स यानि डबल इंजन सरकार। यानी कार का इंजन। यानी खुद्दारी। दाल कैसी भी हो। तड़का मिर्च का होना चाहिए। यह ज्ञान हमको भारत के लोगों से परदेश में मिलता है।

अपनी पत्नी कितने सिसी यानी क्यूबिक कैपेसिटी (Cubic Capacity) की है। यह कौन पता करेगा? यकीन मानिए। ऐसा कोई मानक नहीं जो यह बता सके लेडीज बैग इतना भारी क्यों होता है। कोई महिला डॉक्टर के यहां वजन नहीं कराती। डॉक्टर भी जिद नहीं करता। इंजन-इंजन का फर्क है।

सूर्यकांत द्विवेदी

वरिष्ठ लेखक और चिंतक

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