राहुल गांधी ने फिर भारत में लोकतंत्र को खतरा बता दिया

Date:

कोलंबिया में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने फिर से भारत में लोकतंत्र को खतरा बता दिया ? विदेश गए राहुल की कोई खबर इस बार नहीं आ रही थी । हमें लगा कि सैम पित्रोदा ने खबरों को अतीत के परिणाम देखते हुए न रोक लिया हो । बात यह है कि विदेश में राहुल जब अपनी निर्वाचित सरकार के खिलाफ बोलते हैं और लोकतंत्र की दुहाई देते हैं तो स्वदेश में मजाक ही उड़ाया जाता है ।

लेकिन कोलंबिया की पहली ही सभा में उन्होंने भारतीय लोकतंत्र के तमाम अंगों को फेल बता दिया । भारतीय सिस्टम और सरकार के विभिन्न संवैधानिक अंगों को निकम्मा बताते हुए राहुल ने वही सब कुछ दोहराया जो हर बार हर साल दोहराते आ रहे हैं । यही उम्मीद थी । हां हमेशा की तरह भारत से तुलना करते हुए उन्होंने चीन की खूब सराहना की ।

अब राहुल तो खैर राहुल हैं । उनकी पार्टी के मणिशंकर अय्यर हों , पी चिदम्बरम , दिग्विजय सिंह या कैसी वेणुगोपाल ! ये सभी कांग्रेस को डुबोने में क्यूँ लगे हैं ? इसके लिए तो पवन खेड़ा , अभय दुबे , सुप्रिया श्रीनेत और अनिल शर्मा ही काफी हैं ? वैसे सहयोगी गठबंधन के संजय राउत और पूर्व सहयोगी संजय सिंह का उद्देश्य भी इतना ही है कि ऐ सनम , हम बचें न बचें कम से कम वे तो डूब ही जाएं ?

बचते बचाते शशि थरूर , मनीष तिवारी , गुलामनबी आदि तो दामन बचाकर निकल ही लिए । अब देखिए सरकार ने पुनः शशि थरूर और कनिमोझी को संसदीय समितियों के खास पद प्रदान किए हैं । पता नहीं कि कांग्रेस पार्टी में कोई थिंक टैंक अब बचा है या नहीं ? होगा ही नहीं और होता भी तो सोनिया , राहुल , प्रियंका की तिगड़ी से पूछे बिना किस थिंक टैंक में इतनी हिम्मत बची है कि कोई फैसला विवेकपूर्वक कर लिया जाए ?

जरा देखिए ? उदित राज जैसे धूर्त और मूर्ख नेता कैसे कैसे बयान दे रहे हैं ? वे बड़े अधिकारी थे कभी , कितने घटिया अधिकारी रहे होंगे , सबको समझ आ चुका है । उदित राज का कोई बयान देख लीजिए बेहद सड़ा गला होगा । इतने घटिया आदमी हैं कि एक बार तो खुद के हिन्दू परिवार में जन्म लेने पर भी अफसोस प्रकट कर चुके हैं । ऐसे में क्या कहें राहुल गांधी को । कैसे कैसे नगीने प्रवक्ता बनाकर सजा दिए गए हैं ।

वैसे पार्टी को क्या जरूरत है ऐसे नगीने बैठाने की ? राहुल बड़े नेता हैं , समय समय पर होने वाले उनके विदेशी दौरे ही काफी हैं ? देश में रहें तो आग , विदेश जाएं तो आग । वही गिने चुने विषय , वे ही बासी शब्द ? अब अंबानी अडानी का जप तो छोड़ दिया , भारत के तमाम उद्योगपतियों पर बरसने लगे हैं । इस बार चार देशों का दौरा है तो अपनी फितरत बनाए रखिए । इन यात्राओं से सत्ता तो नहीं मिलेगी , उसके लिए देशवासियों के वोट चाहिए । छींका टूट जाए , बिल्ली का ऐसा भाग्य तो अभी पढ़ा नहीं किसी ने ? तो अपनी खरखरी और ख़टपटी बनाए रखिए ।

…..कौशल सिखौला

वरिष्ठ पत्रकार

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

पोस्ट साझा करें:

सदस्यता लें

spot_imgspot_img

लोकप्रिय

इस तरह और भी
संबंधित

हरियाणा के एडीजीपी वाई. पूरन की आत्महत्या , हमारी सामूहिक असफलता

“एक वर्दी का मौन: (पद और प्रतिष्ठा के पीछे...

मुंशी प्रेमचंद की कलम ने अन्याय और नाइंसाफी के खिलाफ बुलंद की आवाज

( बाल मुकुन्द ओझा आज उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की पुण्य...

बढ़ती छात्र आत्महत्याएँ: कानून हैं, लेकिन संवेदना कहाँ है?

भारत में बढ़ती छात्र आत्महत्याएँ एक गहरी सामाजिक और...

महर्षि वाल्मीकि: शिक्षा, साधना और समाज का सच

(गुरु का कार्य शिक्षा देना है, किंतु उस शिक्षा...
hi_INहिन्दी