विशुद्ध भारतीय जमीन और संस्कृति से जुड़े शायर निदा फाजली

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निदा फाजली का जन्म 12 अक्टूबर 1938 को दिल्ली में हुआ था। उनके पिता, मुर्तुज़ा हसन, स्वयं एक शायर थे, जिससे उन्हें बचपन से ही साहित्य और शायरी का माहौल मिला। उन्होंने अपना बचपन और शुरुआती शिक्षा ग्वालियर, मध्य प्रदेश में पूरी की और 1958 में ग्वालियर कॉलेज से स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की।
​भारत विभाजन के समय उनके परिवार के अधिकांश सदस्य पाकिस्तान चले गए थे, लेकिन भारतीयता के पोषक निदा फाजली ने भारत में ही रहने का निर्णय लिया। यह निर्णय उनकी रचनाओं में भी परिलक्षित होता है, जहाँ वे विशुद्ध भारतीय जमीन और संस्कृति से जुड़े रहे। रोज़ी-रोटी की तलाश में वे 1964 के आसपास बंबई (अब मुंबई) आ गए, जहाँ उन्हें ‘धर्मयुग’ और ‘ब्लिट्ज़’ जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं और अख़बारों में काम करने का अवसर मिला।
​उनका लेखन नाम ‘निदा फाजली’ दो भागों से मिलकर बना है: ‘निदा’ का अर्थ है स्वर या आवाज़ और ‘फाज़ली’ उनके पूर्वजों के कश्मीर के फ़ाज़िला नामक इलाके से आकर दिल्ली में बसने के कारण उनके उपनाम से जुड़ा।

​साहित्यिक सेवाएं और कृतित्व

​निदा फाजली की साहित्यिक यात्रा एक शायर, गद्यकार और फिल्म गीतकार के रूप में बहुआयामी रही है। उनकी शायरी में सूफीवाद का गहरा प्रभाव दिखता है और वे कबीर, रहीम, मीरा के साथ-साथ मीर और गालिब से भी प्रभावित थे। उन्होंने अपनी शायरी में आम आदमी की समस्याओं, दैनिक जीवन के अनुभव, मानवीय रिश्तों की जटिलता और साम्प्रदायिक सद्भाव जैसे विषयों को अत्यंत सादगी और गहराई से अभिव्यक्त किया। उनकी भाषा सरल, लोक-संस्कृति से जुड़ी हुई और हृदय को छूने वाली रही है, जिसने उन्हें हिंदी पाठकों के बीच भी अपार लोकप्रियता दिलाई।
​काव्य संग्रह (शायरी)
​फाजली साहब का पहला काव्य संकलन ‘लफ़्ज़ों के पुल’ (1971) प्रकाशित होते ही उन्हें व्यापक पहचान मिली। उनकी नई और आकर्षक आवाज़ ने लोगों को उनकी ओर आकर्षित किया। उनके अन्य महत्वपूर्ण काव्य संग्रहों में शामिल हैं:

​खोया हुआ सा कुछ: इस कृति के लिए उन्हें 1998 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो उनके साहित्यिक कद को दर्शाता है।

​मोर नाच

​आँख और ख़्वाब के दरमियाँ

​सफ़र में धूप तो होगी

​आँखों भर आकाश

​गद्य रचनाएँ और आत्मकथा
​शायरी के अलावा, निदा फाजली ने गद्य में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी गद्य रचनाओं में भी शेरो-शायरी का पुट मिलता है। उनकी गद्य की किताब ‘मुलाकातें’ काफी चर्चित रही।
​उनकी आत्मकथा, जो दो खंडों में प्रकाशित हुई, अत्यंत लोकप्रिय हुई और उनके व्यक्तिगत एवं साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालती है:

​दीवारों के बीच (पहला खंड)

​दीवारों के बाहर (दूसरा खंड)

​फिल्म गीत लेखन
​निदा फाजली का योगदान फिल्म जगत में भी अविस्मरणीय रहा। उन्होंने कई फिल्मों के लिए यादगार गीत लिखे, जिनमें “कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता” (फिल्म: आहिस्ता आहिस्ता) और “होश वालों को खबर क्या” (फिल्म: सरफ़रोश) जैसे गीत आज भी लोकप्रिय हैं। उन्होंने छोटे पर्दे के लिए भी गीत लिखे, जैसे टीवी सीरियल ‘सैलाब’ का शीर्षक गीत।
​विरासत और सम्मान
​निदा फाजली ने अपनी शायरी और लेखन के माध्यम से साम्प्रदायिक सद्भाव और मनुष्यता का संदेश दिया। उनकी रचनाएँ आशा, यथार्थ और प्रेम की भावना से ओत-प्रोत हैं।
​उन्हें उनकी उत्कृष्ट साहित्यिक सेवाओं के लिए कई सम्मानों से नवाजा गया:

​साहित्य अकादमी पुरस्कार (1998, खोया हुआ सा कुछ के लिए)

​पद्म श्री (भारत सरकार द्वारा)

​नेशनल हारमनी अवार्ड (साम्प्रदायिक सद्भाव पर लेखन के लिए)

​निदा फाजली 8 फरवरी 2016 को इस दुनिया को अलविदा कह गए, लेकिन उनके शब्द आज भी उनकी रचनात्मक प्रतिभा और मानवीय संवेदनाओं की गवाही देते हुए लोगों के दिलों में गूंजते हैं। उनकी शायरी जीवन के दर्शन को सरल और सहज तरीके से प्रस्तुत करने के लिए हमेशा याद की जाएगी।
​यह वीडियो निदा फाजली की जीवनी और उनकी रचनाओं के बारे में जानकारी प्रदान करता है, जो उनके जीवन परिचय और साहित्यिक सेवाओं को समझने में सहायक है

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