“भाषणों से नहीं, हकीकत से बचेगा स्वदेशी”

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−भूपेन्द्र शर्मा सोनू

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 75वें जन्मदिन पर मध्य प्रदेश के बदनावर तहसील के भैंसोला गांव में पीएम मित्र पार्क की आधारशिला रखते हुए यह संदेश दिया कि “स्वदेशी ही खरीदो, स्वदेशी ही बेचो”। यह नारा सुनने में जितना आकर्षक लगता है, उतना ही व्यवहार में कठिन भी है। वजह साफ है कि आज भारत का बाजार विदेशी कंपनियों से भरा पड़ा है। चाहे ऑनलाइन व्यापार हो या दूरसंचार सेवा, विदेशी और निजी कंपनियों ने उपभोक्ता को सस्ती दरों, आकर्षक छूट और बेहतर सुविधाओं का आदी बना दिया है। ऐसे में केवल स्वदेशी खरीदने का मतलब आम आदमी के लिए अपनी जेब पर अतिरिक्त बोझ डालना है। बीएसएनएल की स्थिति इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। कभी देश की शान रही यह स्वदेशी दूरसंचार कंपनी आज अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद में है। जबकि जियो और एयरटेल जैसी कंपनियां न सिर्फ आधुनिक सेवाएं दे रही हैं, बल्कि भारी मुनाफा भी कमा रही हैं। उपभोक्ता भी जानता है कि बीएसएनएल का नेटवर्क कमजोर है, सेवाएं धीमी हैं और सुविधाएं सीमित। अब ऐसे में वह केवल स्वदेशी के नाम पर खराब सेवा क्यों खरीदे? यही समस्या लगभग हर क्षेत्र में दिखती है।ऑनलाइन बाजार में अमेज़न, मीशो और फ्लिपकार्ट जैसी विदेशी कंपनियों का बोलबाला है। वे ग्राहक को आकर्षक छूट, कैशबैक और सुविधाजनक डिलीवरी का लालच देती हैं। वहीं स्थानीय दुकानदार या स्वदेशी कंपनियां इतनी सुविधा नहीं दे पातीं। नतीजा यह होता है कि उपभोक्ता अपनी जेब और सुविधा को देखकर विदेशी कंपनियों की ओर खिंच जाता है। आखिर जब वही सामान विदेशी मंचों से सस्ता और आसानी से मिल रहा हो तो कोई क्यों महंगा स्वदेशी खरीदे? यही कारण है कि मोदी जी का नारा व्यवहार में मुश्किल साबित होता है। फिर भी यह बात भी उतनी ही सही है कि स्वदेशी के बिना आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना अधूरी है। यदि हम अपने देश के उद्योग, रोजगार और पूंजी को मजबूत करना चाहते हैं तो स्वदेशी को बढ़ावा देना ही होगा, लेकिन इसके लिए केवल भाषण और नारे काफी नहीं हैं। सरकार को विदेशी कंपनियों की मनमानी पर अंकुश लगाना होगा। स्वदेशी कंपनियों को आधुनिक तकनीक और वित्तीय सहयोग देना होगा, छोटे व्यापारियों को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराने होंगे और उपभोक्ताओं को यह भरोसा दिलाना होगा कि स्वदेशी भी गुणवत्ता और कीमत के मामले में किसी से कम नहीं। असल चुनौती यही है कि उपभोक्ता को विकल्प देते समय उसकी जेब और सुविधा का ध्यान रखा जाए। यदि स्वदेशी सामान महंगा और साधारण गुणवत्ता वाला होगा तो वह विदेशी विकल्पों के आगे टिक नहीं पाएगा, लेकिन यदि स्वदेशी उत्पाद गुणवत्ता में बेहतर और कीमत में प्रतिस्पर्धी होंगे‌। तभी “स्वदेशी खरीदो, स्वदेशी बेचो” का सपना साकार होगा। इसलिए जरूरी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस आह्वान को केवल भावनात्मक नारा न समझकर, इसे व्यवहारिक बनाने के लिए ठोस नीति बनाई जाए। स्वदेशी कंपनियों को सहारा मिले, विदेशी कंपनियों की छूट और प्रभुत्व पर नियंत्रण हो और आम आदमी के लिए स्वदेशी चुनना बोझ नहीं, बल्कि गर्व और लाभ का सौदा बने। तभी यह नारा जन-आंदोलन का रूप ले सकेगा और आत्मनिर्भर भारत की राह मजबूत होगी।

भूपेन्द्र शर्मा सोनू (स्वतंत्र पत्रकार)

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