
बाल मुकुन्द ओझा
25 नवम्बर को अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस हम ऐसे समय मना रहे है जब महिलाएं लगातार हिंसा की शिकार हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है वैश्विक प्रयासों के बावजूद इस दिशा में कोई साथक सुधर नहीं हुआ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की नई रिपोर्ट ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा की भयावह तस्वीर पेश की है। रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर लगभग तीन में से एक महिला, यानी करीब 84 करोड़ महिलाओं ने अपने जीवनकाल में कभी न कभी यौन हिंसा का शिकार होने का दर्द झेला है। यह आंकड़ा मानवता के सबसे पुराने और व्यापक अन्याय को उजागर करता है, जिस पर अभी भी पर्याप्त कार्रवाई नहीं हो रही है। हाल ही जारी इस रिपोर्ट में खुलासा किया गया कि पिछले एक वर्ष में 15 वर्ष और उससे अधिक उम्र की 31.6 करोड़ महिलाओं और लड़कियों को उनके इंटीमेट पार्टनर द्वारा शारीरिक या यौन हिंसा का सामना करना पड़ा। यह संख्या वैश्विक स्तर पर इस आयु वर्ग की सभी महिलाओं और लड़कियों के 11 प्रतिशत के बराबर है। यह रिपोर्ट 2000 से 2023 के बीच 168 देशों से एकत्रित डेटा पर आधारित है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस एडनॉम घेब्रेयेसस ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा मानवता की सबसे पुरानी और सबसे व्यापक ज्यादतियों में से एक है, फिर भी इस पर सबसे कम कार्रवाई की जाती है। कोई भी समाज खुद को निष्पक्ष, सुरक्षित या स्वस्थ नहीं कह सकता जब तक कि उसकी आधी आबादी भय के माहौल में जी रही हो। इस हिंसा को समाप्त करना केवल नीतिगत मामला नहीं है; यह सम्मान, समानता और मानवाधिकारों का मामला है।
भारत की बात करें तो राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की हाल ही में आई रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में साल 2023 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 4 लाख 48 हजार 211 मामले दर्ज किए गए थे, जो पिछले दो सालों यानी 2022 और 2021 की तुलना में काफी ज्यादा है। यह रिपोर्ट दिखाती है कि प्रति 1 लाख महिलाओं पर अपराध की राष्ट्रीय दर 66.2 है. तो वहीं, दूसरी तरफ रिपोर्ट के मुताबिक, बलात्कार के 29 हजार 670 मामले (दर 4.4 प्रतिशत ) और महिलाओं पर शील भंग करने के इरादे से हमले के 83 हजार 891 मामले दर्ज किए गए हैं। भारत को संस्कार, संस्कृति और मर्यादा की त्रिवेणी कहा जाता है। भारतीय संस्कृति में नारी अस्मिता को बहुत महत्व दिया गया है। संस्कृत में एक श्लोक है- यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता। अर्थात जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। मगर आज सब कुछ उल्टा पुल्टा हो रहा है। न नारी की पूजा हो रही है और देवताओं की जगह सर्वत्र राक्षस ही राक्षस दिखाई दे रहे है। समाज के नजरिए में भी महिलाओं के प्रति अब तक कोई खास बदलाव देखने को नहीं मिला है। ऐसा लगता है जैसे हमारा देश भारत धीरे-धीरे बलात्कार की महामारी से पीड़ित होता जा रहा है। यौन अपराध चिंताजनक रफ्तार से बढ़ रहे हैं।
आजकल रोज प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर महिलाओं के साथ दुष्कर्म और छेड़छाड़ की खबर दिखाई जाती रहती है परंतु इसकी रोकथाम के उपाय पर चर्चा कहीं नहीं होती है। इस तरह के अत्याचार कब रुकेंगें। क्या हम सिर्फ मूक दर्शक बन खुद की बारी का इंतजार करेंगे। लड़कियों पर अत्याचार पहले भी हो रहे थे और आज भी हो रहे हैं अगर इसके रोकने के कोई ठोस उपाय नहीं किये गये। आज भी हमारे समाज में बलात्कारी सीना ताने खुले आम घूमता है और बेकसूर पीड़ित लड़की को बुरी और अपमानित नजरों से देखा जाता है । न तो समाज अपनी जिम्मेदारी का माकूल निर्वहन कर रहा है और न ही सरकार। ऐसे में बालिका कैसे अपने को सुरक्षित महसूस करेगी यह हम सब के लिए बेहद चिंता की बात है।
सच तो यह है कि एक छोटे से गांव से देश की राजधानी तक महिला सुरक्षित नहीं है। अंधेरा होते-होते महिला प्रगति और विकास की बातें छू-मंतर हो जाती हैं। रात में विचरण करना बेहद डरावना लगता है। कामकाजी महिलाओं को सुरक्षित घर पहुँचने की चिंता सताने लगती है। देश में महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में कमी नहीं आरही है। भारत में आए दिन महिलाएं हिंसा और अत्याचारों का शिकार हो रही हैं। घर से लेकर सड़क तक कहीं भी महिला सुरक्षित नहीं है। देश में महिला सुरक्षा को लेकर किये जा रहे तमाम दावे खोखले साबित हुए है। महिला सुरक्षा को लेकर देशभर से रोजाना अलग-अलग खबरें सामने आती रहती हैं। देश में महिलाओं की स्थिति पर हमेशा ही सवाल खड़े होते रहे हैं। महिलाओं की सुरक्षा के तमाम दावों और वादों के बाद भी उनकी हालत जस की तस है। महिलाएं रोज ही दुष्कर्म, छेड़छाड़, घरेलू हिंसा और अत्याचार से रूबरू होती है।

– बाल मुकुन्द ओझा
वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार
डी 32, मॉडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर
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