प्रिया तेंदुलकर , आज जिनका जन्मदिन है

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प्रिया तेंदुलकर का जन्म 19 अक्टुबर, 1954 को हुआ। वे भारत की पहली टीवी स्टार हैं। प्रिया तेंडुलकर ने अनेक फिल्मों व टीवी धारावाहिकों में भूमिका निभाई पर संभवतः वे संपूर्ण जीवन अपने सबसे पहले टीवी अवतार “रजनी” के नाम से ही बेहतर पहचानी जाती रहीं। 1985 में निर्मित व बासू चटर्जी द्वारा निर्देशित इस धारावाहिक में उन्होंने भ्रष्टाचार और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ बेखौफ आवाज़ उठाने वाली एक साधारण गृहणी का किरदार निभाया था।

वह लेखिका भी थी। प्रसिद्ध नाटककार विजय तेंडुलकर उनके पिता थे। उनकी दो बहनें और एक भाई था। प्रिया का विवाह अभिनेता व लेखक करण राजदान से 1988 में हुआ। पर यह विवाह सात साल ही चल सका और इसके बाद उनका संबंध विच्छेद हो गया। करण व प्रिया ने “रजनी” और “किस्से मियाँ बीवी के” धारावाहिकों में पति− पत्नी के वास्तविक जीवन के किरदार भी निभाये। 1974 में श्याम बेनेगल की फिल्म अंकुर में निभाई भूमिका के कारण प्रिया के अभिनेता अनंत नाग से भी संबंध जोड़े जाते रहे।

प्रिया का प्रारंभ से ही अभिनय की और झुकाव था। 1939 में जब वे स्कूल में थीं, उन्होंने सत्यदेव दुबे के निर्देशन तले गिरीश कर्नाड के लिखे पौराणिक नाटक “हयवदन” में गुड़िया की भूमिका निभाई। इस नाटक में निर्देशिका कल्पना लाज़मी उनकी सह कलाकार थीं। इसके बाद पिग्मेलियन, अंजी, कमला, कन्यादान, सखाराम बाइंडर, ती फूलराणी, एक हठी मुलगी जैसे अनेक मराठी नाटकों में उन्होंने भूमिकायें कीं।

प्रिया ने टीवी पर जहाँ गुलज़ार निर्देशित स्वयंसिद्ध जैसे नारीवादी धारावाहिक में काम किया वहीं “हम पाँच” जैसे हास्य धारावाहिक में फोटो फ्रेम से बोलती मृत बीवी की भूमिका भी अदा की और “द प्रिया तेंडुलकर शो” और “ज़िम्मेदार कौन” जैसे सफल टॉक शो भी किये जिसमें वे काफी आक्रामक तेवर के लिये जानी जाती थीं। अंकुर, मोहरा और त्रिमूर्ती जैसी कुछ हिन्दी फिल्मों में भी उन्होंने काम किया पर कोई उल्लेखनीय भूमिकायें नहीं निभाईं।

शायद “रजनी” के किरदार और अपने पिता का ही प्रभाव था कि प्रिया सामाजिक मुद्दों के प्रति सदा जागरूक रहीं। उनका व्यक्तित्व खुला और साहसी था। “द प्रिया तेंडुलकर शो” की बुलंदी पर शिवसेना समेत कई राजनीतिक दलों ने उन्हें अपने दल में शामिल करने का प्रयास किया पर वे मन नहीं बना पाईं।

वे स्वयं लघु कथायें लिखती रहती थीं। ज्याचा त्याचा प्रश्न, जन्मलेला प्रत्येकला, असंही व पंचतारांकित उनकी कुछ कृतियाँ हैं, जिनमें से कुछ पुरस्कृत भी हुईं।

19 सितंबर, 2002 में 47 वर्ष की अल्पायु में उनका हृदयाघात से देहांत हो गया। वे कुछ समय कैंसर से भी लड़ती रहीं। उनकी असमय मृत्यु पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा, “रजनी के रूप में उनकी जिहादी भूमिका ने अनेक सामाजिक मुद्दों को मुखरित किया।

रजनीकांत शुक्ला

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