भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो के अकुशल संचालन के चलते पिछले दिनों देशभर में भारी उड़ान संकट पैदा हो गया। हालांकि यह संकट मुख्य रूप से 2 दिसंबर 2025 से शुरू हुआ और 5 दिसंबर को अपने चरम पर जा पहुंचा था जब इंडिगो ने देश भर की अपनी लगभग एक हज़ार से अधिक उड़ानें रद्द कर दी थीं । जिससे देश भर में हज़ारों यात्री विभिन्न शहरों में अकारण ही फंस गए थे । इस घटना ने केवल यात्रियों को ही परेशान नहीं किया, बल्कि एविएशन सेक्टर की कार्यकुशलता पर भी कई सवाल खड़े कर दिए। अभी तक पूरे देश में उड़ानों की स्थिति सामान्य नहीं हो सकी है। मुंबई,इंदौर,दिल्ली हैदराबाद व बेंगलुरु जैसे कुछ महत्वपूर्ण नगरों की इंडिगो उड़ान सेवाएं अभी भी प्रभावित होने के समाचार हैं। हवाई अड्डों पर जहां सामान्य दिनों में पहले ही भारी भीड़ इकट्ठा हो रही थी पिछले दिनों की अफ़रा तफ़री के दौरान इन्हीं उड़ान प्रभावित हवाई अड्डों पर तो भीड़ का कुछ ऐसा दृश्य दिखाई दिया जैसा कि छठ-दिवाली व दशहरा जैसे त्योहारों के दौरान रेलवे स्टेशन पर नज़र आता है।
हवाई संचालन में आये इस तरह के असामान्य व्यवधान के कई कारण बताये जा रहे हैं। इनमें नए पायलट और क्रू रेस्ट नियमों का प्रभाव, तकनीकी ख़राबी और ऑपरेशनल लापरवाही, मौसम, भीड़भाड़ और उड़ान शेड्यूल में बदलाव जैसी वजहें मुख्य रूप से शामिल हैं। इस अव्यवस्था के चलते देश भर में विमान यात्रियों को जिस शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना को सहन करना पड़ा वह तो अपनी जगह पर परन्तु दुर्भाग्यपूर्ण बात यह कि इस कई एयरलाइंस कंपनियों ने इसी अव्यवस्था का फ़ायदा उठाकर देश के कई प्रमुख हवाई रूट्स पर किराए 2 से 10 गुना तक मंहगे कर दिए। उदाहरण स्वरूप दिल्ली-बेंगलुरु का सामान्य किराया जो 10,000 से 15,000 के मध्य होता था वह बढ़कर 70,000 तक और कुछ मामलों में तो 1 लाख से ज़्यादा और एयर इंडिया पर नॉन स्टॉप फ़्लाइट का 1.02 लाख तक पहुँच गया था। इसी तरह दिल्ली-मुंबई का किराया 25,000से 60,000 तक और कुछ विमानों में 93,000 से भी अधिक हो गया था। जबकि एयरलाइंस कंपनियों द्वारा दिल्ली-चेन्नई के 40,000 से लेकर 80,000+ तक वसूल किये गये। दिल्ली-पुणे, गोवा, लखनऊ पर भी 20,000 से 50,000 से भी अधिक की टिकट बेची गयी। डिमांड-सप्लाई गैप के कारण ख़ासकर इंडिगो की 60%+ मार्केट शेयर वाली फ़्लाट्स कैंसिल होने के कारण यात्रियों को दूसरी एयरलाइंस में शिफ़्ट होना ही था। इसी का लाभ एयर इण्डिया ,एयर इण्डियाएक्सप्रैस,इस्पाईस जेट व अकासा एयर जैसी कई विमानन कंपनियों ने उठाया। हालांकि बाद में सरकार ने किराए की इस बेतहाशा बढ़ोतरी पर अस्थायी कैप लगाई ताकि अनुचित किराया बढ़ोतरी रोकी जा सके।
अब विमानन क्षेत्र में मची इसी अफ़रातफ़री के सन्दर्भ में ज़रा नरेंद्र मोदी का वह कथन याद कीजिये जब मार्च 2014 में सिलीगुड़ी (पश्चिम बंगाल) में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुये उन्होंने कहा था कि “मैं चाहता हूँ कि हमारे गाँव के ग़रीब, जो हवाई चप्पल पहनते हैं, वो हवाई जहाज़ में बैठें। मैं ये सपना देखता हूँ कि जिस ग़रीब की झोली में कभी दो जून की रोटी भी मुश्किल से आती थी, वो हवाई जहाज़ में सफ़र करे। क्या ये सपना देखना गुनाह है?” मोदी ने यह ‘भावनात्मक जुमले ‘कई रैलियों में अलग-अलग शब्दों में दोहराये। यह भी सच है कि मोदी सरकार के कार्यकाल में भारत में हवाई अड्डों के विकास और संचालन में काफ़ी प्रगति हुई है। मुख्य रूप से क्षेत्रीय संपर्क योजना (उड़ान ) के तहत कई नए हवाई अड्डे शुरू किए गए हैं, साथ ही पुराने बंद पड़े या कम उपयोग वाले हवाई अड्डों को पुनर्जीवित भी किया गया है। नवी मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट के रूप में जहाँ इसी वर्ष मुंबई का दूसरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा शुरू किया गया है वहीँ महर्षि बाल्मीकि इंटरनेशनल एयरपोर्ट के नाम से अयोध्या इंटरनेशनल एयरपोर्ट, दोनी पोलो एयरपोर्ट, ईटानगर (अरुणाचल प्रदेश), मोपाह एयरपोर्ट, गोवा (गोवा का दूसरा एयरपोर्ट), देवघर एयरपोर्ट, झारखंड, कुशीनगर इंटरनेशनल एयरपोर्ट, उत्तर प्रदेश, पाक्योंग एयरपोर्ट, सिक्किम (सिक्किम का पहला एयरपोर्ट),पसीघाट, जीरो, होलोंगी, तेजू (अरुणाचल प्रदेश); आगत्ती (लक्षद्वीप),रीवा (मध्य प्रदेश), अंबिकापुर (छत्तीसगढ़), सहारनपुर (उत्तर प्रदेश), सतना और दतिया (मध्य प्रदेश),अलीगढ़, आज़मगढ़, चित्रकूट, मुरादाबाद, श्रावस्ती (उत्तर प्रदेश) आदि अनेक नये एयर पोर्ट विकसित किये गए हैं तो दिल्ली, लखनऊ, पुणे, ग्वालियर, जबलपुर जैसे कई हवाई अड्डों पर नये टर्मिनल का भी निर्माण किया गया है।
अब सवाल यह है कि विमानन क्षेत्र में होने वाले इस विकास से ग़रीबों को फ़ायदा हुआ या विमानन कंपनियों को ? क्या आज इस बात की कल्पना की जा सकती है कि पैरों में हवाई चप्पल धारण करने वाली यानी देश की ग़रीब जनता या दूसरे शब्दों में वे 80 करोड़ लोग जिन्हें सरकार ने 5 किलो मुफ़्त राशन पर आश्रित बना दिया है ऐसे लोग जो दस हज़ार रूपये की हवाई यात्रा की टिकट भी नहीं ख़रीद सकते वे लोग वही टिकट विमानन संचालन संकट के समय भला सत्तर हज़ार की कैसे ख़रीद सकते हैं ? यदि नहीं तो मोदी के उन ‘जुमलों ‘ की क्या हक़ीक़त जिसमें वे दो जून की रोटी भी मुश्किल से खाने वाले ग़रीब की हवाई यात्रा की ‘जुमलेबाज़ी ‘ करते हैं ? हाँ विमानन क्षेत्र में हो रहे विस्तार से स्पष्ट रूप से विमानन कंपनियों को फ़ायदे ज़रूर हुये हैं। इंडिगो जैसी कंपनियां ही 66% से अधिक बाज़ार पर क़ब्ज़ा कर चुकी हैं। इंडिगो ने तो अपनी स्थापना के तीन वर्षों में ही लाभ कमाना शुरू कर दिया, और लागत नियंत्रण (जैसे ईंधन दक्षता) से सालाना 850 करोड़ रुपये की बचत की। देश के अनेक छोटे बड़े हवाई अड्डों का संचालन व रखरखाव अडानी की कंपनियों द्वारा किया जा रहा है। जिसका फ़ायदा अडानी को पहुँच रहा है। इस बीच में हवाई चप्पलों वाला या 2 वक़्त की रोटी भी न खाने पाने वाले किसी व्यक्ति की हवाई यात्रा की गुंजाईश ही कहाँ नज़र आती है ? इस तरह की ‘जुमलेबाज़ियाँ’ आकर्षक,लोक लुभावन व भावनाओं को छूने वाली तो ज़रूर हो सकती हैं परन्तु इनका वास्तविकता से कोई वास्ता नहीं। सच्चाई तो यह है कि गत दिनों आये विमान संकट ने हवाई चप्पल वालों की हवाई यात्रा जैसे ‘जुमले’ही हवा हवाई कर दिये।

तनवीर जाफ़री


