विलुप्त होते जा रहे दुर्लभ प्रजाति के जीव जंतु

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बाल मुकुन्द ओझा

देश में हर वर्ष दो से आठ अक्टूबर तक वन्यजीव सप्ताह मनाया जाता है। इस वर्ष यह सेवा पर्व विषय के अंतर्गत आयोजित किया जा रहा है, जो प्रकृति के प्रति सेवा और दायित्व की व्यापक भावना प्रदर्शित करता है। वन्यजीव संरक्षण और पारिस्थितिक संतुलन के महत्व के बारे में व्यापक जागरूकता के प्रसार के लिए यह आयोजन किया जा रहा है।

वन्यजीव संरक्षण केवल एक प्रजाति या समुदाय के लिए नहीं है। यह समूची मानव जाति के व्यापक हित और कल्याण से जुड़ा है। पृथ्वी पर जन जीवन का आधार वन्यजीव है। वन्यजीव संरक्षण में उनके समुचित प्राकृतिक आवास और आर्थिक संसाधन महत्वपूर्ण केंद्र बिन्दु के रूप में उभरे है। ये दो केंद्र बिंदु हमारे ग्रह की विविध प्रजातियों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए जागरूकता बढ़ाने, व्यवहार बदलने और नीति में बदलाव लाने के लिए महत्वपूर्ण हैं। थीम के मुताबिक हमें वन्यजीवों और उनके प्राकृतिक आवासों के संरक्षण हेतु न केवल आर्थिक संसाधनों का प्रबंध करना है अपितु जैव विविधता की रक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने है, ताकि इसका लाभ समाज और धरती को भी मिले। वन्यजीवों के लुप्त होने की चिंताजनक दर को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ की रिपोर्ट से रेखांकित किया गया है, जिससे पता चलता है कि लगभग 44,016 प्रजातियाँ विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रही हैं। यह अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ रेड लिस्ट में सूचीबद्ध 157,190 प्रजातियों में से लगभग 28  फीसदी है। इसके लिए विभिन्न क्षेत्रों की प्रौद्योगिकियों का पता लगाने और उन्हें एकजुट करने, खतरों को कम करने और वन्यजीवों को विलुप्त होने से बचाने के लिए उन्हें फिर से लागू करने के सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। भारत में विभिन्न वन्य जीवों की आबादी में लगातार वृद्धि हो रही है। हमें अपने वनों की सुरक्षा और जानवरों के लिए सुरक्षित आवास सुनिश्चित करने के लिए हर संभव कोशिश करनी चाहिए।

मानव सभ्यता ने प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन शुरू कर दिया। जंगलों को खत्म कर दिया गया। ऐसे ही कितने ही जीव-जंतुओं का शिकार इस हद तक किया गया कि वह विलुप्त होने की कगार में हैं और कुछ तो विलुप्त भी हो गए। पूरा संसार जंतु तथा पेड़- पौधों की विभिन्न प्रजातियों से भरा हुआ है। सभी प्रजातियों के जीव, जंतु, पेड़, पौधे तथा पक्षी पारिस्थितिकी तंत्र के अस्तित्व के लिए अपने-अपने तरीकों से महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। वन्यजीव मानव अस्तित्व के समय से ही धरती पर उपस्थित हैं, तथा एक- दूसरे के जीवन का अभिन्न अंग भी बन चुके हैं। नई बस्तियां बसाने, औद्योगीकरण, बढ़ती हुई आबादी, गैरकानूनी व्यापार तथा शिकार इत्यादि कार्यों का वन्यजीवों पर विपरीत असर पड़ रहा है। धरती जीव- जंतुओं तथा पौधों की विभिन्न प्रजातियों की संख्या इतनी अधिक तेजी से घट रही है, जितनी तेज गति से यह पूर्व में शायद ही कभी घटी हो। प्रत्येक  24 घंटे के अंदर जीव-जंतुओं तथा पेड़-पौधों की लगभग 200 प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं। इस भांति प्रति वर्ष करीब 73,000 प्रजातियां पृथ्वी से विलुप्त हो रही हैं।

भारत में विश्व के पांच प्रतिशत अर्थात 75,000 प्रजातियों के जीव-जन्तु निवास करते हैं तथा वनस्पतियों की 45,000 प्रजातियाँ भारत में पाई जाती हैं।  जनसंख्या विस्फोट और शहरीकरण के ही परिणाम हैं कि वनों को काटकर इसे इमारतों, होटलों, या मानव बस्तियों में बदलने की गतिविधियों में वृद्धि हुई है। इसके परिणामस्वरूप जंगल में रहने वाले विभिन्न प्रजातियों के निवास स्थान में कमी आई है। उन्हें उन स्थानों को छोड़ना पड़ता था और नए आवास की तलाश करनी होती थी जो कि आसान नहीं होता है। नए निवास स्थान की खोज, भोजन के लिए बहुत सारी प्रतियोगिता, कई प्रजातियों को लुप्त होने की कगार पर ले जाती है। लेकिन आज इनमें से कई विलुप्त हो गई हैं और कई विलुप्त होने की कगार पर हैं। प्रजातियों के विलुप्त होने के खतरे का पहला कारण इनके रहने की जगह लगातार कम होना है। और इसके लिए जिम्मेदार इंसान हैं क्योंकि इनको भोजन और आश्रय प्रदान करने वाले पेड़ों को वह अपने स्वार्थ के लिए लगातार काट रहे हैं। साथ ही खनन और कृषि जैसी मानवीय गतिविधियां भी इसके लिए जिम्मेदार हैं।

वन्यजीव जानवर और पौधे प्रकृति के महत्वपूर्ण पहलू हैं। किसी भी स्तर पर नुकसान होने पर इसके अप्राकृतिक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। वे पारिस्थितिक संतुलन के लिए जिम्मेदार हैं और मानव जाति के निर्वाह के लिए, यह संतुलन बनाए रखना चाहिए। इसलिए सरकार द्वारा संरक्षण प्रयासों के साथ, यह हमारी सामाजिक जिम्मेदारी भी है, कि हम व्यक्तिगत रूप से वन्यजीवों के संरक्षण में अपना योगदान करें।

बाल मुकुन्द ओझा

वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार

D 32, मॉडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर

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