देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 75वां जन्मदिन आया तो पूरे देश में धूमधाम से स्वच्छता अभियान चलाया गया। भाजपा नेता और कार्यकर्ता झाड़ू लेकर मैदान में उतरे, कहीं सड़क पर दो कागज उठाए, कहीं नाली के पास झाड़ू फेर दी और कैमरे के सामने मुस्कुरा कर फोटो खिंचवा ली। फिर क्या था सोशल मीडिया पर वही फोटो वायरल हो गईं और संदेश दिया गया कि देशभर में स्वच्छता अभियान चला, लेकिन असलियत में यह सब दिखावे से ज्यादा कुछ नहीं था। अगर सचमुच नेताओं और अफसरों में स्वच्छ भारत मिशन के लिए प्रतिबद्धता होती तो आज हर शहर में खड़े कूड़े के पहाड़ कब के खत्म हो चुके होते। हकीकत यह है कि देश का कोई भी शहर देख लीजिए। कहीं न कहीं कूड़े का अंबार खड़ा मिलेगा। गलियां, चौराहे, सड़कों के किनारे ढेर लग जाते हैं और नगर पालिका या निगम के लोग सिर्फ खानापूर्ति कर निकल जाते हैं। स्वच्छ भारत का सपना तब पूरा होगा जब इन ढेरों का सही निस्तारण होगा। मगर यहां न तो अफसरों को इसकी फिक्र है और न ही नेताओं को। सब बस मौकों पर फोटो खिंचवा कर जिम्मेदारी निभाने का नाटक करते हैं। धामपुर समेत पूरे देश का हाल भी इसी तरह का है। उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी तहसील मानी जाने वाली धामपुर में रेलवे ओवरब्रिज के किनारे सालों से कूड़े का पहाड़ खड़ा है। अगर ब्रिज न होता तो यह गंदगी दूर से ही साफ दिखाई देती। रोज हजारों लोग वहां से गुजरते हैं। बदबू और गंदगी सहते हैं। मगर प्रशासन चुप्पी साधे रहता है। यही हाल देश के हर शहर का है। कहीं न कहीं आपको ऐसा ही गंदगी का टीला देखने को मिल जाएगा। असलियत यह है कि नेता अब फोटोजीवी बन चुके हैं। मतलब बस कैमरे में आने तक ही काम करते हैं। दो मिनट के लिए झाड़ू उठाई। हंसी-मजाक की, फोटो खिंचवाई और काम खत्म। उसके बाद वही कूड़ा वैसे का वैसा पड़ा रहता है। जनता को भ्रम दिया जाता है कि देश साफ हो रहा है, लेकिन धरातल पर कुछ भी नहीं बदलता। यही वजह है कि लोग अब इन अभियानों को गंभीरता से लेना छोड़ चुके हैं। अब सवाल उठता है कि आखिर जिम्मेदारी किसकी है। सिर्फ नेताओं और अफसरों की नहीं, जनता की भी है। लोग भी खुले में कचरा फेंकते हैं। पॉलिथीन का इस्तेमाल बंद नहीं करते और नालियों में गंदगी डाल देते हैं। अगर समाज बदलेगा नहीं तो सिर्फ नेता बदलने से कुछ नहीं होगा, लेकिन नेताओं का काम तो फिर भी जनता को रास्ता दिखाना है। जब वही लोग दिखावा करेंगे तो जनता से क्या उम्मीद की जाए।अगर भाजपा नेता और अफसर सचमुच प्रधानमंत्री मोदी का जन्मदिन सार्थक बनाना चाहते तो उन्हें जमीन पर उतरकर कूड़े के पहाड़ हटाने का अभियान शुरू करना चाहिए था। कचरा प्रबंधन प्लांट लगते, गंदगी साफ होती, पॉलिथीन पर रोक लगती और लोगों को जागरूक किया जाता। तभी असली श्रमदान कहलाता। बाकी तो बस फोटो खिंचवाने की राजनीति है, जिसमें पब्लिक को बेवकूफ बनाना आसान है। बाकी स्वच्छ भारत का सपना तभी पूरा होगा जब नेता, अफसर और जनता सब मिलकर असली काम करेंगे। फोटो से नहीं, गली और मोहल्ले साफ करने से फर्क पड़ेगा। वरना हर साल ऐसे ही स्वच्छता अभियान चलते रहेंगे और देश में कूड़े के पहाड़ और ऊंचे होते जाएंगे।

भूपेन्द्र शर्मा सोनू
(स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखक)
प्रधानमंत्री तो खुद जुमलेबाज है फेकू है उनकी कोई बात सच है क्या जो सफाई अभियान अच्छा होगा।