पेट्रोल पुराण : या इलाही ये माजरा क्या है ?

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                                                                   निर्मल रानी 

 विश्व के अधिकांश देशों में पेट्रोल डीज़ल की क़ीमतें भिन्न भिन्न हैं। प्रत्येक देशों में ईंधन रुपी इन तेलों की क़ीमतों का निर्धारण वहां के टैक्स दर, कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता, कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय,क़ीमत, करेंसी एक्सचेंज रेट, रिफ़ाइनिंग लागत, स्थानीय मांग और सरकारी नीतियों के आधार पर होता है। इसके अतिरिक्त अधिक आयात शुल्क, वैट, और स्थानीय कर भी ईंधन की क़ीमत के निर्धारण के मुख्य कारक होते हैं। दुनिया के कई देश ऐसे भी हैं जहाँ देश की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने जैसे सड़क निर्माण, इनके रखरखाव व अन्य विकास सम्बन्धी योजनाओं के लिए ईंधन पर भारी टैक्स लगाया जाता है। तेल की क़ीमतों के निर्धारण में तेल उत्पादक देशों से कच्चा तेल आयत करने का ख़र्च भी एक ख़ास वजह होती है। कच्चा तेल आयात करने वाले देशों को चूंकि डॉलर में भुगतान करना पड़ता है। ऐसे में यदि किसी देश की अपनी मुद्रा, डॉलर के मुक़ाबले कमज़ोर है अथवा कच्चे तेल के दाम अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में बढ़ जाते हैं, तो ईंधन स्वभाविक रूप से महंगा हो जाता है। इसके अलावा अलग-अलग ग्रेड के स्वच्छ ईंधन बनाने में लगने वाली रिफ़ाइनिंग और वितरण की लागत भी तेल की क़ीमत में जुड़ जाती है। मांग और आपूर्ति भी तेल क़ीमतों के निर्धारण का बड़ा कारक होती है। यदि  किसी देश में ईंधन की मांग अधिक है, परन्तु इसकी आपूर्ति खपत के मुक़ाबले कम है, तो ईंधन की क़ीमतें बढ़ जाती हैं। जबकि कुछ देशों में पर्यावरण की रक्षा के लिए ख़ास क्लीन फ़्यूल नीतियाँ लागू की जाती हैं, जिससे उत्पादन, वितरण व रिफ़ाइनिंग में लागत बढ़ती है। प्रायः इन सभी कारणों की वजह से ही दुनिया के विभिन्न देशों में ईंधन की क़ीमतें अलग अलग होती हैं।

               परन्तु आश्चर्य तब होता है जब कोई देश स्वयं कच्चा तेल आयात कर स्वयं ही उसकी रिफ़ाइनिंग कर अपने देश में अपनी जनता को तो ज़रुरत से अधिक महंगा तेल बेचे जबकि वही तेल दूसरे देश में निर्यात होने पर लगभग आधे मूल्य पर बिकता हो? जी हाँ यह हक़ीक़त है भारत के पड़ोसी सीमावर्ती देश भूटान की जहाँ पेट्रोल और डीज़ल का आयात मुख्य रूप से भारत से ही होता है गोया भूटान ईंधन के क्षेत्र में शत प्रतिशत भारत पर ही निर्भर है। चूँकि भूटान में पेट्रोलियम उत्पादों के लिए स्थानीय कच्चे तेल के संसाधन या रिफ़ाइनरी नहीं हैं, इस वजह से 100 प्रतिशत रिफ़ाइंड पेट्रोल और डीज़ल भारत से ही आयातित किया जाता है। परन्तु भूटान में तेल की क़ीमतें भारत की वर्तमान औसत क़ीमत 103-105 प्रति लीटर से काफ़ी कम हैं। जबकि दोनों ही देशों के पंपों पर ज़्यादातर इंडियन ऑयल का ही ईंधन मिलता है। भूटान में इन दिनों तेल का मूल्य भारतीय मुद्रा रुपये के अनुसार  पेट्रोल लगभग ₹64.38 प्रति लीटर है जबकि डीज़ल का मूल्य लगभग 64.27 प्रति लीटर है। भूटान में ईंधन की क़ीमतों में कमी का सबसे मुख्य कारण यही है कि भूटान सरकार इन पर बहुत ही कम टैक्स लगाती है। दूसरी बात यह भी है कि भारत में पेट्रोल में 20% इथेनॉल (गन्ने के रस से प्राप्त होने वाला रसायन ) मिलाना अब अनिवार्य हो गया है गोया भारत में E20 ईंधन मिलता है। परन्तु भूटान में बिना इथेनॉल के पेट्रोल उपलब्ध है। यानी भूटान में भारत की तुलना में पेट्रोल शुद्ध भी है और क़ीमतें भी अलग हैं। यही वजह है कि सीमावर्ती भारतीय अपने वाहनों में तेल डलवाने भूटान चले जाते हैं। 

            अब रहा सवाल पेट्रोल में इथेनॉल मिश्रण का तो दुनिया के कई देशों में पेट्रोल में इथेनॉल मिलाया जाता है।  ऐसा करने का मक़सद पर्यावरण पर पड़ने वाले दुषप्रभाव के साथ ही तेल की खपत कम करना बताया जा रहा है। ब्राज़ील, अमेरिका, भारत, और अनेक यूरोपीय देश ऐसे हैं जहाँ पेट्रोल में इथेनॉल मिलाया जाता है। भारत सरकार ने तो पेट्रोल में 20% इथेनॉल मिलाने का लक्ष्य समय से पहले ही पूरा कर लिया है और आज यही E20 ईंधन देश के सभी पेट्रोल पंप्स पर उपलब्ध है। अधिकतर पेट्रोल पंप्स पर इस बात की सार्वजनिक सूचना नहीं होती कि उपभोक्ताओं को दिया जा रहा पेट्रोल E10 है या E20, इस जानकारी के अभाव में उपभोक्ता अपने वाहन में E20 भरवा लेते हैं और यही लोग बाद में इंजन पर संभावित दुष्प्रभाव को भी झेलते हैं। पर्यावरण दुष्प्रभाव व तेल की खपत कम करने की ग़रज़ से भले ही भारत सहित दुनिया के अनेक देश पेट्रोल में इथेनॉल क्यों न मिला रहे हों परन्तु इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल के प्रयोग से इंजन व वाहन के अन्य पुर्ज़ों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव से भी इंकार नहीं किया जा सकता। उदाहरण के तौर पर  E20 ईंधन  प्रयोग से फ़्यूल पंप्स, इंजेक्टर्स, गास्केट व रबर पार्ट्स पर असर तो पड़ता ही है साथ ही माइलेज में कमी व इंजन के निष्पादन (परफ़ार्मेंस) में गिरावट भी आ सकती है। वाहन निर्माता कंपनियां भी E20 के प्रयोग से वाहन को हुए नुक़्सान को वारंटी के अंतर्गत स्वीकार नहीं करतीं न ही इस तरह की कोई जानकारी या सूचना सार्वजनिक रूप से पेट्रोल पंप पर दी जाती है।

           इन हालात में भारतीय ईंधन उपभोक्ताओं का यह सवाल पूरी तरह जायज़ है कि आख़िर सरकार की यह कैसी नीति है जिसके तहत भारत से निर्यातित पेट्रोल डीज़ल पड़ोसी देश भूटान में तो अत्याधिक सस्ता यानी लगभग 64 रूपये प्रति लीटर के दर पर उपलब्ध है जबकि वही तेल निर्यातक देश भारत के लोगों को 103 रूपये से लेकर 105 रूपये प्रति लीटर तक बेचा जा रहा है? साथ ही भूटान में तो भारत 100 % शुद्ध तेल भेजता है जबकि भारत में 20% इथेनॉल मिश्रित कर तेल बेचा जा रहा है। सवाल यह भी है कि क्या प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर देश भूटान की सरकार को अपने देश के पर्यावरण की फ़िक्र नहीं ? और एक सवाल यह भी कि अनेक प्रकार के करों से राहत देकर जिस तरह भूटान की सरकार भूटान वासियों को तेल की क़ीमत में राहत दे रही है भारत सरकार भी ऐसा क्यों नहीं करती ? भारत के इस निराले ‘पेट्रोल पुराण’ को लेकर यह सवाल भी ज़रूरी है कि क्या देश के वाहनों में ईंधन में 20% इथेनॉल मिश्रण के चलते आने वाली दिक़्क़तों व इंजन संबंधी ख़राबियों की फ़िक्र सरकार को नहीं ? या फिर महंगा तेल और मिलावटी तेल का मक़सद तेल कंपनियों,तेल व्यवसायियों को लाभ पहुँचाने के साथ साथ वाहन निर्माता कंपनियों को भी फ़ायदा पहुँचाना और भारतीय वाहन धारकों की जेबें ढीली करना है ? इसीलिये आज पूरा देश इस ‘पेट्रोल पुराण’ पर यह सवाल पूछ रहा है कि या इलाही ये माजरा क्या है ?                                                       

               निर्मल रानी  

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