न्यूज चैनल के रवैये ने बढ़ाया प्रिंट मीडिया में विश्वास

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वंदना शर्मा

आज इलेक्ट्रॉनिक मीडिया बोरिंग और उबाऊ हो गया है। जब भी टीवी खोलो न्यूज़ सुनने के लिए या तो वहां फालतू की बहस चलती रहेगी, जिसमें सब भेड़ बकरी की तरह चिल्लाते रहते हैं। मुद्दा क्या है? समाधान क्या है ?किसी को कोई मतलब नहीं। एक ही खबर को बार-बार दिखाते रहते हैं। पूरे भारत में क्या हो रहा है, क्या समस्या है इन न्यूज़ चैनल को कोई मतलब नहीं। उत्तरी भारत में उत्तर पूर्वी भारत में जैसे असम −मेघालय सिक्किम वहां की तो कोई खबर ही नहीं दिखाते हैं । उत्तर भारतीय क्षेत्र के लोगों की क्या समस्याएं  हैं, उससे  इन्हें कोई मतलब नहीं। बस फिल्म स्टार क्या कर रहे हैं। नेता क्या कर रहे हैं? इन्हीं पर इनका  फोकस रहता है ।

 मजबूरन आज आम आदमी सोचता है कि इनमें इन सबसे अच्छा है तो कोई अखबार पढ़ लो ।सही और प्रामाणिक खबर मिलेंगी ,वह भी तथ्यों के साथ ।नो बकवास कोई मजबूरी भी नहीं ।जबरदस्ती ऊंट −पतंग खबरें सुनने की टीवी पर तो एक ही खबर को इतना बढ़ा− चढ़ाकर दिखाते हैं कि अगर  मुख्य तथ्य सुनने बैठो तो आधा घंटा उनकी बकवास सुनाई पड़ती है अपनी रुचि के अनुसार जब चाहे अखबार को पढ़ो, कहीं भी ले जाओ । बाहर खुले में या कहीं भी बैठकर आप अपनी सुविधा अनुसार पढ़ सकते हैं। हर क्षेत्र की खबरें आती है । विज्ञापन, कला ,साहित्य ,देश −विदेश राजनीति सब जिसको जो अच्छा लगे, वह खबर अपने इच्छा अनुसार पढ़ लो कोई मजबूरी नहीं है कि सारी खबर ही तुम्हें पढ़नी है ।

आज  इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में झूठ भी ज्यादा दिखाते हैं वहां कोई प्रमाणिकता भी नहीं होती है ।आरपरेशन सिंदूर के दौरान एक ने दिखाया कि भारत ने करांची फतह कर लिया तो एक के एंकर चिल्ला रहे  कि भारतीय सेनाएं लाहौर में घ़ुंस गईं।अब दो दिन से चल रहा है कि भारत को संयुक्त राष्ट्र संघ में विटो पावर मिल गई।इस प्रस्ताव पर आयाअमेरिका का विटो निरस्त  हो गया।

 ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशंस (ABC) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी से जून 2025 की अवधि में दैनिक अखबारों की औसत योग्य बिक्री 2.77 प्रतिशत बढ़कर 29,74,148 प्रतियां पहुंच गई, जो पिछले छह माह (जुलाई-दिसंबर 2024) की 28,94,1876 प्रतियों से 8,02,272 प्रतियों की शुद्ध वृद्धि दर्शाती है। यह वृद्धि तीन प्रतिशत के आसपास है।यह आंकड़ा न केवल प्रिंट की लचीलापन को रेखांकित करता है, बल्कि यह भी साबित करता है कि सत्यापित और गहन पत्रकारिता की भूख आज भी बरकरार है।

ABC के महासचिव अदिल कसाद ने एक बयान में कहा, “ये आंकड़े पाठकों के अटूट विश्वास को उजागर करते हैं। समाचार पत्र विश्वसनीय, सत्यापित और विस्तृत जानकारी का मजबूत स्रोत बने हुए हैं।” यह वृद्धि वैश्विक स्तर पर प्रिंट उद्योग के पतन के दौर में भारत के लिए एक सकारात्मक संकेत है, जहां कई देशों में डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने पारंपरिक मीडिया को पीछे धकेल दिया है। लेकिन भारत में, जहां साक्षरता दर बढ़ रही है और आर्थिक विकास तेज हो रहा है, प्रिंट अभी भी सूचना का मुख्य माध्यम बना हुआ है।ABC के आंकड़ों से स्पष्ट है कि शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में प्रिंट की मांग बढ़ी है, खासकर युवा और शिक्षित वर्ग में।

यह वृद्धि महामारी के बाद की रिकवरी का हिस्सा है। 2020 में कोविड-19 ने प्रिंट उद्योग को बुरी तरह प्रभावित किया था, लेकिन 2024 से शुरू हुई सुधार की प्रक्रिया अब गति पकड़ रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह 8 लाख से अधिक की वृद्धि प्रिंट मीडिया की बाजार हिस्सेदारी को 2025 के अंत तक और मजबूत करेगी

सोशल मीडिया पर फेक न्यूज और अफवाहों की बाढ़ के बीच, प्रिंट मीडिया की विश्वसनीयता एक बड़ा कारक बन गई है। ABC रिपोर्ट में उल्लेख है कि पाठक गहन विश्लेषण और सत्यापित तथ्यों की तलाश में समाचार पत्रों की ओर लौट रहे हैं। एक हालिया सर्वे में 70 प्रतिशत से अधिक पाठकों ने प्रिंट को डिजिटल से अधिक भरोसेमंद बताया।

वंदना शर्मा

1 टिप्पणी

  1. बहुत बढ़िया लेख संपादन किया है सर आपने, एक बार तो हम भी आश्चर्य से पढ़ते रहे कि हमने ये लिखा है, मान गए सर जी आपको, क्या बात क्या बात।
    धन्यवाद सहित प्रणाम

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