दो स्वतंत्र राष्ट्र ही समस्या का समाधान

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एमए कंवल जाफरी    

सात अक्टूबर 2023 को हमास ने अचानक इजरायल पर एक साथ जमीन, समुद्र और हवाई हमला कर पूरी दुनिया को आश्चर्य चकित कर दिया था। इस हमले में करीब 1200 लोगों की मौत हुई थी और 251 को बंधक बना लिया गया था। इजरायल ने गाजा पट्टी से हमास के शासन को उखाड़ फेंकने, हमास को पूरी तरह नष्ट करने और अपने बंधकों को छुड़ाने के लिए सैन्य अभियान शुरू किया। इजरायली हमलों में 24 सितंबर 2025 तक 65,382 फलस्तीनी मारे गए और 1,66,985 जख्मी हो चुके हैं। मरने और जख्मी होने वालों में ज्यादातर तादाद बच्चों और महिलाओं की है। इजरायल की बंबारी से अस्पताल, स्कूल और धार्मिक स्थलों समेत गाजा की 80 प्रतिशत से ज्यादा इमारतें जमींदोज होकर मलबे के ढेर में तब्दील हो चुकी हैं। इजरायली प्रधान मंत्री बेनजामिन नेतन्याहू ने हमास का नामानिशान मिटाने तक हमले जारी रखने का संकल्प लिया है। हमास की आड़ में आम नागरिक मारे जा रहे हैं। लड़ाई के लंबी खिंचने और गाज़ा मे आम नागरिकों पर इजरायल के बर्बरतापूर्ण हमलों के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र परिषद समेत कई संगठन और देश आवाज उठा रहे हैं, लेकिन नेतन्याहू को किसी का आग्रह सुनाई नहीं दे रहा है। उनके नजदीक अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून, मानवाधिकार चार्टर और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की भी अहमियत नहीं है।
संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में फलस्तीन और इजरायल के लिए दो-राष्ट्र के सिद्धांत पर आयोजित शिखर सम्मेलन में कई बड़े देशों ने फलस्तीन को आधिकारिक मान्यता देने की घोषणा की। तीन दिनों में फलस्तीन को मान्यता देने वाले देशों में ब्रिटेन, आस्ट्रैलिया, कनाडा, पुर्तगाल, फ्रांस, बेलजियम, माल्टा, इंदौरा, मोनाको और लक्जंबर्ग शामिल हैं। ब्रिटेन और कनाडा ऐसा करने वाले जी-7 के पहले देश हैं। अमेरिका को छोड़कर सुरक्षा परिषद के सभी स्थायी सदस्य रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन फलस्तीन का पूर्ण राष्ट्र बनाने के पक्ष में हैं। भारत समेत संयुक्त राष्ट्र के तीन चौथाई देश पहले ही उसे मान्यता दे चुके हैं। 15 नवंबर 1988 को फलस्तीनी मुक्ति संठन (पीएलओ) के नेता यासिर अराफात के स्वतंत्र फलस्तीनी राज्य की घोषणा करने के कुछ ही मिनटों बाद सबसे पहले अल्जीरिया ने आधिकारिक तौर पर फलस्तीन को मान्यता दी थी। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने कहा है कि एक देश के रूप में मान्यता फलस्तीनियों का अधिकार है, कोई उपहार नहीं। फलस्तीन में निरापराध आम नागरिकों की हत्याएं पूरी तरह अस्वीकारीय हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फलस्तीन के द्विराष्ट्रीय हल की कोशिशें प्रशंसनीय हैं। इसका एकमात्र हल यही है कि दोनों स्वतंत्र देश एक दूसरे को आधिकारिक तौर पर मान्यता देकर पूर्णतया वैश्विक बिरादरी का हिस्सा बनें। इससे न केवल क्षेत्र, अपितु दुनिया में अमन कायम होगा। यदि ऐसा नहीं किया जाता, तो इससे हमास को फायदा पहुंचेगा और उसे अपनी गतिविधियां जारी रखने में मदद मिलेगी। लेकिन, बेंजामिन नेतन्याहू को यह समाधान स्वीकार नहीं है। वह फलस्तीन का अस्तित्व स्वीकार करने को ही तैयार नहीं और उसे मान्यता देने वाले देशों पर अपना गुस्सा उतारते हुए अंजाम भुगतने की धमकी दे रहे हैं। नेतन्याहू के कटु तेवरों और धमकियों से नाराज वे देश भी फलस्तीन की हिमायत में आ खड़े हुए, जो कल तक यहूदियों के साथ होने वाले ऐतिहासिक अन्याय के चलते इजरायल के साथ हमदर्दी रखते आ रहे थे। इजरायल की गाजा में आक्रमक कार्रवाई, निर्दोषों के नरसंहार और भूखे लोगों तक राहत सामग्री नहीं पहुंचने देने के अमानवीय कृत्य से क्षुब्ध और आहत यूरोपीय देशों को कठोर रुख अपनाने पर मजबूर किया। फलस्तीन को संयुक्त राष्ट्र के 193 देशों में से 145 ने मान्यता दे दी है, जबकि इजरायल के साथ सिर्फ 45 मुल्कों का समर्थन है। इजरायल, अमेरिका और उनके सहयोगी देशों के अलावा जापान, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर फलस्तीन को मान्यता नहीं देने वाले देशों में शामिल हैं। अगर, इजरायल ने अपना रवैया नहीं बदला, तो निकट भविष्य में उसकी हिमायत में खड़े देशों में और कमी हो सकती है।

एमए कंवल जाफरी

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