केदारनाथ को धाम ही रहने दो मोदी जी! रोपवे से प्रकृति का विनाश निश्चित

Date:

भूपेन्द्र शर्मा सोनू

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट सोनप्रयाग से केदारनाथ धाम तक रोपवे है। इसका टेंडर अदाणी एंटरप्राइजेज को मिल चुका है। करीब 4081 करोड़ की लागत से बनने वाला यह काम छह साल में पूरा होगा। कहा जा रहा है कि रोपवे बनने के बाद 13 किलोमीटर की दूरी सिर्फ 36 मिनट में तय हो जाएगी। सुनने में बढ़िया लगता है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह सच में हमारी ज़रूरत है या फिर पहाड़ों के लिए नई मुसीबत, क्योंकि केदारनाथ धाम तक पहले ही हेलीकॉप्टर सेवाएँ चल रही हैं। हेलीकॉप्टर का शोर, धुएँ से वायु प्रदूषण और आसमान में गूँजता शोर, यह सब उस घाटी की शांति को तोड़ रहा है। जहाँ लोग आध्यात्मिक सुकून लेने आते हैं। अब रोपवे भी बन जाएगा तो रोज़ाना हज़ारों-लाखों लोग कुछ ही मिनट में धाम पहुँचेंगे। क्या इतनी भीड़ और दबाव उस जगह को सहन हो पाएगा। 2013 की आपदा को कौन भूला है। बादल फटा, नदियाँ उफनीं, पहाड़ दरके और हजारों लोग मौत के मुँह में समा गए। तब यही कहा गया था कि प्रकृति से छेड़छाड़ बंद करनी होगी, लेकिन कुछ ही साल बीते और सरकार फिर से वैसा ही कर रही है। कभी हेलीकॉप्टर, कभी रोपवे, कभी नए-नए होटल। सवाल है कि क्या हमने उस त्रासदी से कोई सबक लिया‌। हिमालय कोई साधारण पहाड़ नहीं है। यह पूरा क्षेत्र बहुत नाज़ुक है। यहाँ ज़रा सा भी ज़्यादा दबाव पड़ता है तो नतीजे भयानक होते हैं। वैज्ञानिक भी कहते हैं कि यहाँ विस्फोट करके सुरंगें खोदना, बड़े-बड़े प्रोजेक्ट चलाना या अनियंत्रित निर्माण करना खतरनाक है, लेकिन वोट और कारोबार की राजनीति में प्रकृति की चिंता करने का वक्त किसके पास है‌। आज हाल यह है कि केदारनाथ जैसे पवित्र धाम को सरकार और ठेकेदार मिलकर धीरे-धीरे पिकनिक स्पॉट बना रहे हैं। जहाँ श्रद्धालु भक्ति भाव से दर्शन करने जाएँ, वहाँ भीड़ का मेला लगेगा, फोटो खिंचाने वालों की लाइनें लगेंगी और प्रकृति कराहती रहेगी। धाम का मतलब है आस्था, शांति और सादगी, लेकिन अब उसका रूप बदलकर महज़ सुविधा और कमाई का ठिकाना बनता जा रहा है। सोचिए, जब रोज़ाना लाखों लोग रोपवे से कुछ ही मिनटों में पहुँचेंगे तो कूड़ा, प्लास्टिक, गंदगी और शोर किस हद तक बढ़ेगा। मंदिर के चारों तरफ का इलाक़ा जहाँ आज भी शांति और भक्ति का माहौल रहता है, वो कल किसी बाज़ार जैसा दिखेगा। आस्था और सुविधा दोनों ज़रूरी हैं, लेकिन इनके बीच संतुलन ज़्यादा ज़रूरी है। रास्तों की मरम्मत की जाए, ट्रैकिंग रूट सुरक्षित बनाए जाएँ, यात्रियों की संख्या सीमित रखी जाए आदि उपाय भी किए जा सकते हैं, लेकिन सीधा-सीधा पहाड़ काटकर या रोपवे लटकाकर विकास का ढोल पीटना सिर्फ आने वाली विपत्तियों को न्योता देना है। सच यही है कि जब-जब इंसान ने प्रकृति को चुनौती दी है, तब-तब उसे करारा जवाब मिला है। पंजाब की ज़मीन को देख लो। अंधाधुंध खेती और कैमिकल ने मिट्टी खराब कर दी। उत्तराखण्ड में 2013 की आपदा अब भी ताज़ा है। बावजूद इसके सरकार फिर से वही गलती दोहरा रही है।केदारनाथ सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि हमारी आस्था और हिमालय की आत्मा है। अगर हमने इसे पिकनिक स्पॉट बना दिया तो आने वाले समय में न तो धाम बचेगा, न ही उसका पवित्र माहौल। सरकार को समझना होगा कि धाम को धाम रहने दो, इसे मेला-ठेला मत बनाओ। वरना आने वाली विपत्ति को कोई नहीं रोक पाएगा।

भूपेन्द्र शर्मा सोनू
(स्वतंत्र पत्रकार व लेखक)

2 टिप्पणी

  1. पाठक जी कमेंट नहीं दिखा पाएंगे क्योंकि मर्जी है उनकी न्यूज़ का चैनल चलाना है मोदी जी नाराज हो जाएंगे और अगर पाठक जी मेरा कमेंट नहीं दिखाएंगे तो उनकी गिनती भी गोदी मीडिया में आ जाएगी

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

पोस्ट साझा करें:

सदस्यता लें

spot_imgspot_img

लोकप्रिय

इस तरह और भी
संबंधित

हरियाणा के एडीजीपी वाई. पूरन की आत्महत्या , हमारी सामूहिक असफलता

“एक वर्दी का मौन: (पद और प्रतिष्ठा के पीछे...

मुंशी प्रेमचंद की कलम ने अन्याय और नाइंसाफी के खिलाफ बुलंद की आवाज

( बाल मुकुन्द ओझा आज उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की पुण्य...

बढ़ती छात्र आत्महत्याएँ: कानून हैं, लेकिन संवेदना कहाँ है?

भारत में बढ़ती छात्र आत्महत्याएँ एक गहरी सामाजिक और...

महर्षि वाल्मीकि: शिक्षा, साधना और समाज का सच

(गुरु का कार्य शिक्षा देना है, किंतु उस शिक्षा...
hi_INहिन्दी