कन्याओं   का पूजिये भी  ,  आत्मसुरक्षा भी सिखाइए

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अशोक मधुप

21 सिंतबर रविवार से शारदीय  नवरात्र शुरू  हो गए हैं। नवरात्र में अधिकांश हिंदू परिवार घर में मां के कलश की स्थापना करते हैं।इन नौ दिन उपवास रखकर  देवी के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है।देवी स्परुपा कन्याओं को पूजा जाता है। उन्हें जिमाया जाता है। वस्त्रादि भेंट किए जाते हैं। ये परंपरा सदियों से चली आ रही है। सदियों से चली आ रही इस परम्परा  में वक्त के हिसाब से अब सुधार की जरूरत है। आज जरूरत है कि हम कन्याओं को पूजे  और जिमाएं ही नहीं। उन्हें शिक्षित भी  करें।उन्हें आज के समय और परिस्थिति में जीने के अनुकूल बनाए। आत्मसुरक्षा  भी  सिखाए। उन्हें गुड टच और बेड टच  की जानकारी दें। कन्याओं  को आज के समाज में शान और  सम्मान के साथ जीने के योग्य बनाएं। ज्यादति के खिलाफ  बोलना भी बताएं। ज्यादति का मुकाबला भी करना सिखाएं।

नवरात्र देश भर में अलग −अलग रूप में मनाए  जाते हैं। पूजा अर्चन की जाती है। सबका तात्पर्य यह ही है कि देवी शक्ति की पूजा कर हम उनसे  अपने  और  समाज के कल्याण का आशीर्वाद मांगे। स्वस्थ  समाज की मांग करे। ये सब कुछ सदियों से चला आ रहा है। आज समय की मांग है कि हम समय के अनुरूप पुरानी मान्यताओं से   कुछ आगे बढ़े। वक्त की जरूरत के साथ अपनी मान्यताओं और सोच में  परिवर्तन करें।

आज देश की देवियां ,महिलाएं, मातृशक्ति   विकास के हर क्षेत्र में अपना योगदान कर रही हैं। कार – स्कूटर तो बहुत समय से चलाती रही हैं। अब ये आटो, ट्रक,ट्रेन ,मालगाड़ी  भी चलाने लगीं हैं।ये  प्लेन  उड़ा रही हैं। अब तो   सेना  में जाकर बार्डर की हिफाजत  भी  महिलाएं  कर रही हैं। आधुनिकतम लड़ाकू विमान भी  उड़ा  रहीं हैं। उन्हें नियंत्रित भी कर रही हैं।

 कभी गाना , बजना, नाचना महिलाओं की कला मानी जाती थी। उसमें उन्हें पारंगत करने के साथ− साथ पुराने  समय से  परिवार की  बेटियों को  सिलाई, कढ़ाई, बुनाई,अनाज पिसाई,छनाई के साथ घर के कामकाज भोजन बनाने में आदि में निपुण किया  जाता था। ताकि वह समय की जरूरत के हिसाब के शादी के बाद अपने परिवार को संभाल सकें। इस समय शिक्षा पर उतना  जोर नही था। परिवार की जरूरतें बढ़ी तो पढ़ी −लिखी  महिलाएं घर की चाहरदीवारी से निकलीं।  नौकरी करने लगीं।  बिजनेस में परिवार को  सहयोग देने लगीं।समय  बदला । महिलाएं आज शिक्षित हो सभी क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दे रही हैं। नौकरी के लिए  अकेली युवती का विदेश  जाना अब आम हो गया। पैरा मिलेट्री फोर्सेज में योगदान करने के साथ आज वह सेना में आकर देश सीमाओं को सुरक्षित बनाने और शत्रु से लोहा  लेने में भी लगी हैं। 

समय के साथ− साथ समाज की प्राथमिकताएं भी बदलीं।  नहीं बदला तो महिलाओं और युवतियों के शोषण  का सिलसिला। भारतीय समाज में  फैली दहेज की कुप्रथा के कारण गर्भ में ही बालिका भ्रूण मारे  जाने लगे। परिवार में ही आसपास ने नाते,  रिश्तेदारों और अन्यों द्वारा छुटपन से बेटियों के साथ छेड़छाड़ ,यौन शोषण चलता रहा। देश में चेतना आई ,शिक्षा  का स्तर बढ़ा पर महिलाओं  के प्रति होने वाले अपराध कम नही हुए। हाल ही में राष्ट्रीय महिला  आयोग ने सूचित किया कि वर्ष 2021 के प्रारंभिक आठ महीनों में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की शिकायतों में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 46 प्रतिशत  की वृद्धि हुई है।

राष्ट्रीय महिला आयोग को साल 2021 में महिलाओं के खिलाफ अपराध की करीब 31,000 शिकायतें मिलीं थी जो 2014 के बाद सबसे ज्यादा हैं। इनमें से आधे से ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश के थे। महिलाओं के खिलाफ अपराध की शिकायतों में 2020 की तुलना में 2021 में 30 प्रतिशत का इजाफा हुआ था। साल 2020 में कुल 23,722 शिकायतें महिला आयोग को मिली थीं।राष्ट्रीय महिला आयोग की ओर से जारी आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 30,864 शिकायतों में से, अधिकतम 11,013 सम्मान के साथ जीने के अधिकार से संबंधित थीं।  घरेलू हिंसा से संबंधित 6,633 और दहेज उत्पीड़न से संबंधित 4,589 शिकायतें थीं। ये वे शिकायत हैं  जो रजिस्टर होती हैं1 इससे  कई गुनी शिकायत तो दर्ज ही नही होती। परिवार का सम्मान बताकर ,युवती की स्मिता  की बातकर घटनांए दबाली जाती हैं।

अब तक बच्चियों को गाने – बचाना ,डांस करने के वीडियो सामने आते थे। हाल ही में एक वीडियो सामने  आया  जिसमें एक पिता  अपनी  बेटी को  लाठी चलाना  सिखा रहा है। इस छोटे से वीडियो को बहुत पसंद किया गया।एक और वीडियों  पोपुलर हो रहा है।  इसमें एक युवती अपने चेहरे  पर स्कार्फ बांध रही है। एक युवक उसका स्कार्फ लेकर उसे राजस्थानी पगड़ी की तरह बाधंता है। युवती के सिर पर पगड़ी बंधी देख दर्शक उसकी प्रशंसा करते हैं। आज समय की  मांग है कि परिवार विशेषकर मां बेटी को बचपन से गुड टच और बैड टच बताए।  इनका  अंतर बताए। कहीं कुछ घर के आसपास , स्कूल में, स्कूल बस में अगर ऐसा होता है तो वह घर आकर बतांए। बेटी अब घर की देहरी के अंदर तक ही सीमित नही रह गई है। वह कार्य के लिए घर से बाहर निकल रही है। ट्रेन में, बस में अकेले  सफर कर रही है। नौकरी के लिए  सात समुंद पार जा रही है। ऐसे में जरूरत है उसे  आत्मसुरक्षा की जानकारी देने की। जूडे−कराटे सिखाए जाएं । जरूरत है घर की प्रत्येक बेअ को आत्मसुरक्षा में निपुण करने की, ताकि वह विपरीत परिस्थिति में अपना बचाव कर सके। अगर ऐसा होगा तो छेड़छाड़  करने वाले के भय से युवती को आत्महत्या नही करनी पड़ेगी, जबकि आज इस तरह की रोज अखबारों में खबर आ रही हैं।

पिछले दिनों मुरादाबाद में से 12वीं में पढ़ने वाली छात्रा ने छेड़छाड़ से परेशान होकर कीटनाशक खा कर आत्महत्याकर ली। मुंबई के  विनोबा भावे नगर में चचेरे भाई के बार-बार यौन उत्पीड़न से तंग आकर 15 वर्षीय किशोरी ने आत्महत्या कर ली।    उत्तर प्रदेश के पीलीभीत  जनपद में  मनचले की छेड़छाड़ से परेशान छात्रा ने अपने ही घर में फांसी का फंदा लगाकर खुदकुशी की। इस तरह की खबर रोज अखबारों में  सुर्खियां बन रही हैं।  हम अपने परिवार की बेटी को ऐसे  संस्कार और शिक्षा  दें। उसे आत्मनिर्भर बनांए, आत्मसुरक्षा सिखाएं,ज्यादति के खिलाफ उसे आवाज उठाना भी सिखांए ताकि समाज की कन्या और समाज  बेटी की खबर अखबार की सुर्खी न बने। उसके साथ ज्यादति करने का कोई हौंसला न कर सके  । हाल में अच्छा यह हुआ है कि केंद्र ने इस तरह की घटनाओं के लिए पास्को एक्ट बनाया। इसमें त्वरित न्याय दिलाने की भी व्यवस्था की है, ताकि अपराधी अपराध करता डरे। जरूरत है कि पास्को एक्ट के तहत हुए  निर्णयों का प्रचार −प्रसार व्यापक स्तर से किया जाए ताकि अपराधी में भय पैदा हो।

अशोक मधुप  

(लेखक वरिष्ठ  पत्रकार हैं)

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