भारतीय साहित्य और पत्रकारिता की धुरी थे मंगलेश डबराल

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भारतीय साहित्य और पत्रकारिता की दुनिया में मंगलेश्वर डबराल जी, जिन्हें साहित्य जगत में मंगलेश डबराल के रूप में अधिक पहचाना जाता है, एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्होंने साधारण जीवन, जमीनी संघर्ष, और संवेदनात्मक अनुभवों को अपनी लेखनी में अद्भुत सहजता के साथ व्यक्त किया। वे केवल कवि ही नहीं, बल्कि जनपक्षीय पत्रकार और विचारशील साहित्यकार भी थे। आधुनिक हिंदी कविता में सरलता, गहराई और संवेदना की त्रयी को प्रतिष्ठित करने में उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

मंगलेश्वर डबराल जी का जन्म उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल क्षेत्र में हुआ। पहाड़ों की कठोर ज़िंदगी, प्रकृति की निर्मलता और ग्रामीण समाज के संघर्ष ने उनके मन में बचपन से ही संवेदनाओं की एक गहरी धारा प्रवाहित की। यही वजह है कि उनकी कविताओं में पहाड़ की आत्मा, उसकी खुशबू, उसकी पीड़ा और उसका अकेलापन साफ़ दिखाई देता है। वे मानते थे कि कविता मनुष्यता का सबसे स्वाभाविक स्वर है—और इसी मान्यता के कारण उनकी रचनाएँ हर पाठक को अपनी-सी लगती हैं।

पत्रकारिता में उनका प्रवेश भी साहित्यिक दृष्टि से प्रभावित था। उन्होंने अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कार्य किया और हमेशा जनहित, समाज के हाशिये पर रह रहे लोगों और असमानताओं के मुद्दों को प्रमुखता दी। उनकी रिपोर्टिंग का दृष्टिकोण वस्तुनिष्ठ होते हुए भी संवेदनात्मक था। वे समाचारों के भीतर छिपे जीवन के सच को उजागर करने में सहज थे। उनके लेखन में किसी प्रकार का प्रदर्शन नहीं, बल्कि सादगी और नैतिक साहस की झलक स्पष्ट मिलती है।

डबराल जी ने कविता को जनता की भाषा और जनता के सरोकारों का माध्यम बनाया। उनकी काव्यधारा में रोमांच या आडंबर नहीं, बल्कि आंतरिक शांति, आत्मीयता और जीवन की बारीकियों का सूक्ष्म अवलोकन मिलता है। उनकी प्रसिद्ध काव्य-पंक्तियाँ और रचनाएँ आज भी नए लेखकों और पाठकों को सोचने और संवेदित होने की प्रेरणा देती हैं। वे शब्दों में सादगी रखते हुए भी गहनतम भावों को इस प्रकार व्यक्त करते थे कि कविता सीधे हृदय में उतर जाती थी।

उनकी कविता में व्यक्ति का अकेलापन, समय की निरंतरता, जीवन की छोटी-छोटी खुशियाँ, सामाजिक विडंबनाएँ और मनुष्य का संघर्ष एक साथ दिखाई देते हैं। वे मानते थे कि कविता आत्मा की भाषा है और इसी कारण उनकी रचनाओं में कृत्रिमता का कोई स्थान नहीं था। डबराल जी की कविताएँ आधुनिक समय के द्वंद्व को ऐसे चित्रित करती हैं जैसे कोई सामान्य व्यक्ति अपने जीवन का साधारण विवरण दे रहा हो, लेकिन वह साधारण विवरण ही असाधारण संवेदना में बदल जाता है।

मंगलेश्वर डबराल जी का व्यक्तित्व एक शांत, सरल और विनम्र कवि का था। वे साहित्यिक स्पर्धाओं या मंचीय प्रतिष्ठा से दूर रहे। उनका विश्वास था कि सच्चा साहित्य वही है जो समाज को संवेदित करे, उसे सोचने पर मजबूर करे और मनुष्य को मनुष्य से जोड़ने का कार्य करे। वे साहित्य को सामाजिक जिम्मेदारी का हिस्सा मानते थे, किसी व्यक्तिगत उपलब्धि का नहीं।

पत्रकारिता में रहते हुए भी उन्होंने अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। वे सत्ता के विरुद्ध और सच के पक्ष में निर्भीक होकर लिखते थे। उनके लेखन का उद्देश्य जागरूकता पैदा करना था, विवाद खड़ा करना नहीं। उन्होंने अनेक महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी सशक्त टिप्पणियों के माध्यम से पाठकों का ध्यान आकर्षित किया। उनका लेखन संतुलित, गहन और अध्ययन आधारित होता था।

डबराल जी को साहित्य के क्षेत्र में कई सम्मान मिले, जिनमें साहित्य अकादमी सम्मान विशेष उल्लेखनीय है। यह सम्मान उन्हें उनकी कृति हम जो देखते हैं पर प्राप्त हुआ। किंतु उनके लिए सम्मान पुरस्कारों से अधिक महत्वपूर्ण पाठकों का विश्वास और प्रेम था। वे कहा करते थे कि कवि को पुरस्कार नहीं, बल्कि समाज की संवेदनशीलता को बढ़ाने वाला मार्ग तैयार करना चाहिए।

उनके व्यक्तित्व का सबसे प्रखर पक्ष था—उनकी जनपक्षीय सोच। वे गरीबों, मजदूरों, प्रवासियों और ग्रामीण समाज के दुखों को अपनी कविताओं का केंद्र बनाते थे। उन्होंने शहरों के कृत्रिम चमक-दमक के पीछे छिपी संवेदनहीनता पर भी तीखे शब्दों में टिप्पणी की। उनके लेखन ने पहाड़ के संघर्ष और शहर की व्यस्त भागदौड़, दोनों को ही समान संवेदना के साथ सामने रखा।

मंगलेश्वर डबराल जी का जीवन, कविता और पत्रकारिता एक-दूसरे से अलग नहीं, बल्कि एक ही धारा के विभिन्न रूप थे। वे जिस समाज में रहते थे, उसी समाज की धड़कनों को सुनकर लिखते थे। उनके शब्दों में पहाड़ की ऊँचाई, नदी की विनम्रता और जनजीवन की सच्चाई—सब कुछ दिखाई देता है। वे उस परंपरा के कवि थे जो कविता को केवल साहित्यिक प्रयोग नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना का साधन मानते थे।

उनका निधन हिंदी साहित्य और पत्रकारिता दोनों की दुनिया के लिए एक अपूरणीय क्षति थी। उन्होंने लेखनी की जो परंपरा स्थापित की, वह आने वाली पीढ़ियों को लंबे समय तक प्रेरित करती रहेगी। वे हमें सिखाते हैं कि साहित्य केवल सुन्दर शब्दों का खेल नहीं, बल्कि जीवन की सच्चाइयों को महसूस करना और समाज के प्रति जिम्मेदारी निभाना भी है।

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