
हमारे शरीर का महत्वपूर्ण अंग हृदय खून को पंप कर बदन के हर भाग तक आॅक्सीजन और जरूरी पोषक तत्व पहंुचाने का कार्य करता है। इसलिए शरीर के सुचारू रूप से कार्य करने के लिए दिल का स्वस्थ होना बहुत जरूरी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया में सबसे ज्यादा 1.80 करोड़ मौतें दिल की बीमारी से होती हैं। हर पांच में से चार व्यक्ति हार्ट अटैक और स्ट्रोक का शिकार होकर मौत के मुंह में समा जाते हैं। हार्ट अटैक तब आता है, जब दिल तक आॅक्सीजन लेकर जाने वाले खून की सप्लाई रुक जाती है। इसमें हृदय की मांसपेशियों को नुकसान पहुंच सकता है या उनके कार्य करना बंद करने और समय पर इलाज नहीं होने से जन हानि हो सकती है।
भारत में 98 प्रतिशत लोगों द्वारा सीपीआर का तरीका नहीं जानने के चलते हर साल दिल का दौरा पड़ने से करीब सात लाख लोग मौत का शिकार हो जाते हैं। अचानक हृदय रुकने की घटनाएं शहरों तक ही सीमित नहीं रहीं। इस किस्म की बढ़ती वारदातों से अब गांव भी अछूते नहीं रहे। आधुनिक जीवन शैली और खानेपीने के तरीकों में बदलाव के कारण मनुष्य खराब खनपान, पानी, तनाव, प्रदूषण, नीरसता और निष्क्रियता ने सूतरतहाल को और पैचीदा बना दिया है। इससे हृदयाघात की समस्याएं बढ़ी हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक एक तंदरुस्त शख्स के लिए रेटिंग हार्ट रेट 80 से 100 बीट प्रति मिनट होती है। इससे कम या अधिक बीमारी का लक्षण माना जाता है। दिल का दौरा पड़ने का अहसास होते ही चिकित्सक की मदद ली जानी चाहिए। दौरा पड़ने से पहले हमारा शरीर सिगनल देता है। अकारण दर्द या तकलीफ महसूस होना हार्ट अटैक का लक्षण हो सकता है। सीने में दर्द या दबाव अचानक शुरू हो सकता है और निरंतर रह सकता है। यह दर्द गर्दन, कंधों और कमर में भी हो सकता है। बाई बाहु में दर्द इसका खास लक्षण है। दिल का दौरा उस समय पड़ता है, जब दिल तक खून की सप्लाई रुक जाती है। यदि हृदय की गति रुकने के पांच मिनट पहले रोगी को साधारण तकनीक कार्डियो पल्मोनरी रिससिटेशन (सीपीआर) दिया जाए, तो उसकी जान बचने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। अचानक हृदयगति रुकने से जान गंवाने को महज इत्तेफाक कहकर पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता। इसमें मानवीय संस्कार और सामाजिक विफलता की भी अहम भूमिका है। इसलिए जागरूक ही नहीं, आम लोगों को भी सीपीआर और उसे देने के तरीके से वाकिफ होना जरूरी है। जानकारी के अभाव में हमारे देश में केवल सात प्रतिशत रोगियों को समय पर सीपीआर मिल पाता है। हमारी सामान्य जानकारी और मामूली सजगता पीड़ित व्यक्ति की जान बचाने में मददगार हो सकती है। आंकड़े गवाह हैं कि मात्र दो प्रतिशत देशवासियों को सीपीआर देने का तरीका आता है। 49 गुना लोग इस साधारण सी तकनीक से पूरी तरह नावाकिफ हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि हमारे देश में हृदय रोग पहले से ही मौत का एक बड़ा कारण है। भविष्य में इस संकट के और गहराने की संभावना है। 2030 तक देश में 60 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के लोगों की संख्या 19.3 करोड़ को पार कर जाएगी। इनमें सार्वजनिक स्थानों पर सांस रुकने, बेहोश होकर गिरने और हर्ट अटैक के मामलों में वृद्धि होगी। ऐसी स्थिति में सीपीआर या आॅटोमेटेड एक्सटर्नल डिफिब्रिलेटर (एईडी) जैसे उपकरण जीवन बचाने में कारगर साबित हो सकते हैं। चूंकि, हमारे मुल्क में यह व्यवस्था बहुत सीमित है, इसलिए सीपीआर पर ही तवज्जह देना बेहतर विकल्प है। पीड़ित व्यक्ति में हृदयगति रुकने के बाद प्रत्येक मिनट की देरी से उसके जीवित रहने की संभावना 10 प्रतिशत तक कम हो जाती है। पांच मिनट का विलंब जान का जोखिम हो सकता है। सीपीआर एक साधारण सी तकनीक है। इसमें अपने दानों हाथों को मरीज की छाती के बीच में रखकर तेज और समान दबाव डालने के साथ मुंह पर मुंह रखकर सांस देना होता है, ताकि खून के प्रवाह को जारी रखकर मरीज के मस्तिष्क और हृदय तक आॅक्सीजन पहुंचाई जा सके। अधिकांश कार्यालयों, स्कूलों और सार्वजनिक स्थनाों पर पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। स्कूल के पाठ्यक्रम में सीपीआर तो शामिल है, लेकिन प्रशिक्षण का अभाव है। नारवे और सिंगापुर जैसे देशों में स्कूली बच्चों और ड्राइविंग लाइसेंस धारकों के लिए सीपीआर का प्रशिक्षण अनिवार्य है। हमारे मुल्क के कई शहरों के अस्पतालों और निजी संस्थाओं में सीपीआर वर्कशाॅप शरू किए गए हैं, लेकिन गांवों में अभी इस प्रकार की सुविधाएं नहीं हैं। इस प्रक्रिया को तब तक जारी रखना चाहिए, जब तक चिकित्सीय सहायता रोगी तक न पहुंच जाए। इस तरह हम हृदयाघात के रोगी की जान बचाने में कामयाब हो सकते हैं। आजकल दिल से जुड़ी समस्याएं एक बड़ा सबब बन चुकी हैं। माना जाता है कि हार्ट अटैक या स्ट्रोक पर काबू पाना मुश्किल है, लेकिन वल्र्ड हार्ट फेडरेशन के मुताबिक साधारण सी आदतों का अनुपालन कर 80 प्रतिशत तक दिल की बीमारियों को रोका और हृदय को लंबे समय तक स्वस्थ रखा जा सकता है।
अमेरिका के विशेषज्ञ डाॅक्टर वास ने कुछ आसान और प्रभावी आदतें अपनाकर दिल की देखभाल आसानी से करने की सलाह दी है। इनमें रोजाना खाने के बाद 10-15 मिनट टहलना, तेल की गोलियों के स्थान पर ओमेगा-3 से भरपूर फूड्स लेना, अच्छी नींद को अहमियत देना, प्लास्टिक के स्थान पर कांच या स्टील की बोतलों का इस्तेमाल करना और नियमित रूप से स्वास्थ्य चेकअप कराना शामिल है। टहलने से ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल में रहता है और दिल पर कम दबाव पड़ता है। सैल्मन, अख्रोट, अलसी या चिया सीड्स में पाया जाने वाला ओमेगाा-3 खून की खराब चर्बी को कम करने के अलावा नसें ब्लाॅकेज होने से बचाता है। दिल की सेहत के लिए कम से कम छह घंटे भरपूर नींद जरूरी है। गहरी नींद से ब्लड प्रेशर नियंत्रित और आर्टरीज रिलैक्स रहती हैं। प्लास्टिक की बोतलों और डिब्बों का प्रयोग न करें। इनमें मौजूद बीपीए जैसे रसायन हार्मोंस को बिगाड़कर दिल को प्रभावित कर सकते हैं। दिल की बीमारियों से ऐहतियात बरतने के लिए साल में एक या दो बार ब्लड शुगर, कोलेस्ट्रोल और ब्लड प्रेशर की जांच जरूर कराएं, ताकि समय रहते आवश्यक बदलाव कर बड़ी परेशानी से बचा जा सके।

एमए कंवल जाफरी
वरिष्ठ पत्रकार


