हांसी : इतिहास के केंद्र से हाशिये तक और फिर जिले की दहलीज़ पर

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(हांसी : इतिहास ने छीना, वक्त ने लौटाया जिला) 

हांसी कभी हरियाणा क्षेत्र की राजधानी रही है। जॉर्ज थॉमस के शासनकाल में यह प्रशासनिक और व्यापारिक केंद्र था। मुगल काल में यहां टकसाल और सैनिक छावनी स्थापित की गई। 1857 के विद्रोह में अंग्रेजों के खिलाफ तीव्र प्रतिरोध के कारण हांसी से जिला दर्जा छीना गया और लगभग 1870–80 के बीच हिसार को जिला बनाया गया। 1966 में हरियाणा गठन के बाद हिसार का कई बार पुनर्गठन हुआ। 2025 में हांसी को पुनः जिला बनाने की घोषणा हुई, जिसे ऐतिहासिक न्याय के रूप में देखा जा रहा है।

– डॉ. प्रियंका सौरभ

इतिहास कभी अचानक नहीं बदलता, वह धीरे-धीरे करवट लेता है। हरियाणा की प्राचीन नगरी हांसी इसका जीवंत उदाहरण है। एक समय यह नगर सत्ता, प्रशासन, व्यापार और सामरिक दृष्टि से उत्तरी भारत के सबसे महत्वपूर्ण केंद्रों में गिना जाता था। आज वही हांसी, जिसने सदियों तक शासन का भार उठाया, लंबे समय तक प्रशासनिक उपेक्षा झेलने के बाद एक बार फिर जिले के रूप में अपनी पहचान पाने की ओर अग्रसर हुई है। वर्ष 2025 में हांसी को नया जिला बनाए जाने की घोषणा केवल एक प्रशासनिक फैसला नहीं, बल्कि इतिहास के एक अधूरे अध्याय को पूरा करने की कोशिश के रूप में देखी जा रही है।

अंग्रेजों के भारत आगमन से बहुत पहले हांसी का गौरव अपने चरम पर था। जॉर्ज थॉमस के दौर में हांसी हरियाणा क्षेत्र की राजधानी के रूप में स्थापित थी। उस समय यह नगर दिल्ली परगना के अधीन उत्तरी भारत के प्रमुख व्यापारिक केंद्रों में शामिल था। हांसी से ही प्रशासनिक आदेश जारी होते थे और आसपास के बड़े भूभाग पर शासन संचालित किया जाता था। यह नगर केवल सत्ता का केंद्र नहीं था, बल्कि व्यापारिक गतिविधियों, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सैनिक रणनीतियों का भी प्रमुख केंद्र था।

मुगल काल में भी हांसी का महत्व कम नहीं हुआ। अकबर के शासनकाल के ऐतिहासिक दस्तावेज़ों और नक्शों में हांसी को एक महत्वपूर्ण मुगल केंद्र के रूप में दर्शाया गया है। यहां एक टकसाल स्थापित थी, जहां सिक्कों का निर्माण होता था। किसी भी नगर में टकसाल का होना उसकी आर्थिक और प्रशासनिक ताकत का प्रतीक माना जाता था। इससे स्पष्ट होता है कि हांसी केवल एक कस्बा नहीं, बल्कि उस दौर की अर्थव्यवस्था का अहम स्तंभ था।

हांसी की भौगोलिक स्थिति ने भी इसे सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण बना दिया था। दिल्ली, पंजाब और राजस्थान की ओर जाने वाले मार्गों पर स्थित होने के कारण यहां मुगलों ने सैनिक छावनी स्थापित की। बाद में अंग्रेजों ने भी इसी सामरिक महत्ता को समझते हुए यहां अपनी सैन्य मौजूदगी बनाए रखी। हांसी की किलेबंदी, प्रशासनिक ढांचा और सैन्य व्यवस्था इसे उत्तरी भारत के सुरक्षित और संगठित नगरों में शामिल करती थी।

लेकिन इतिहास की दिशा 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के साथ बदल गई। हांसी और आसपास के क्षेत्रों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ खुलकर विद्रोह किया। यह क्षेत्र उन इलाकों में शामिल था जहां अंग्रेजों को सबसे तीव्र प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। स्थानीय जनता, सैनिकों और जमींदारों ने अंग्रेजी सत्ता को चुनौती दी। यह विद्रोह अंग्रेजों के लिए केवल कानून-व्यवस्था की समस्या नहीं था, बल्कि उनकी सत्ता के लिए सीधी चुनौती था।

1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने प्रतिशोध की नीति अपनाई। जिन क्षेत्रों ने सबसे अधिक प्रतिरोध किया, उन्हें प्रशासनिक रूप से कमजोर किया गया। हांसी भी इसी नीति का शिकार बना। भले ही हांसी से जिले का दर्जा छीने जाने की कोई सटीक और प्रमाणिक तारीख उपलब्ध नहीं है, लेकिन इतिहासकारों का मानना है कि 1870 से 1880 के बीच अंग्रेजों ने हांसी से जिला मुख्यालय हटाकर हिसार को नया जिला बना दिया। इसके साथ ही हांसी का प्रशासनिक महत्व लगभग समाप्त कर दिया गया।

हिसार को जिला बनाकर अंग्रेजों ने न केवल प्रशासनिक ढांचा बदला, बल्कि हांसी की ऐतिहासिक भूमिका को भी हाशिये पर डाल दिया। फतेहाबाद, सिरसा जैसे इलाकों पर हिसार से शासन चलाया जाने लगा। यह बदलाव केवल सुविधा के नाम पर नहीं था, बल्कि एक ऐसे क्षेत्र को नियंत्रित करने की रणनीति थी, जिसने अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ विद्रोह का साहस दिखाया था।

इतिहासकार यह भी बताते हैं कि 1700 ईस्वी के आसपास हरियाणा, पंजाब से अलग एक विशिष्ट भू-राजनीतिक पहचान के साथ नक्शों में मौजूद था। उस दौर के कई नक्शे आज भी उपलब्ध हैं, जिनमें हांसी को हरियाणा की राजधानी के रूप में दर्शाया गया है। जॉर्ज थॉमस ने हांसी को अपना प्रमुख केंद्र बनाकर पूरे इलाके पर शासन किया। इससे यह स्पष्ट होता है कि हांसी का महत्व किसी एक शासक या काल तक सीमित नहीं था, बल्कि यह लंबे समय तक सत्ता का केंद्र रहा।

स्वतंत्रता के बाद 1966 में जब हरियाणा राज्य का गठन हुआ, तब हिसार प्रदेश का सबसे बड़ा जिला था। उस समय हांसी एक बार फिर उम्मीद कर रहा था कि उसे उसका ऐतिहासिक दर्जा वापस मिलेगा। लेकिन प्रशासनिक प्राथमिकताओं और राजनीतिक संतुलनों के चलते ऐसा नहीं हो सका। इसके बजाय हिसार जिले का समय-समय पर पुनर्गठन किया गया।

1972 में भिवानी को अलग जिला बनाया गया। इसके बाद 1975 में सिरसा और 1997 में फतेहाबाद को जिला का दर्जा मिला। 2016 में भिवानी से अलग होकर चरखी दादरी नया जिला बना। इन सभी विभाजनों ने हिसार के प्रशासनिक नक्शे को लगातार बदला और छोटा किया, लेकिन हांसी हर बार जिले की सूची से बाहर रह गया।

इस उपेक्षा ने धीरे-धीरे हांसी में असंतोष को जन्म दिया। लोगों को लगने लगा कि यह केवल प्रशासनिक अनदेखी नहीं, बल्कि ऐतिहासिक अन्याय का विस्तार है। पिछले लगभग दस वर्षों से हांसी को जिला बनाने की मांग ने जोर पकड़ना शुरू किया। स्थानीय सामाजिक संगठनों, व्यापार मंडलों और राजनीतिक प्रतिनिधियों ने इस मुद्दे को लगातार उठाया। यह मांग धीरे-धीरे एक जन आंदोलन का रूप लेने लगी।

हांसी के लोग यह तर्क देते रहे कि यह नगर ऐतिहासिक, भौगोलिक और प्रशासनिक—तीनों दृष्टियों से जिला बनने की सभी शर्तें पूरी करता है। यहां पहले से ही कई प्रशासनिक कार्यालय मौजूद हैं। आसपास के क्षेत्रों की दूरी और जनसंख्या दबाव को देखते हुए भी जिला बनना तर्कसंगत माना गया। लेकिन इन सभी दलीलों से ऊपर एक भावनात्मक पहलू भी था—हांसी को उसका खोया हुआ सम्मान लौटाने की आकांक्षा।

2025 में जब हांसी को नया जिला बनाए जाने की घोषणा हुई, तो इसे केवल एक प्रशासनिक खबर के रूप में नहीं देखा गया। यह घोषणा हांसी के इतिहास, संघर्ष और प्रतीक्षा की परिणति मानी गई। लोगों ने इसे उस अन्याय के आंशिक सुधार के रूप में देखा, जो 1857 के बाद अंग्रेजों ने किया था और जिसे स्वतंत्र भारत में लंबे समय तक अनदेखा किया गया।

हांसी का जिला बनना प्रशासनिक विकेंद्रीकरण की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे न केवल स्थानीय लोगों को बेहतर प्रशासनिक सुविधाएं मिलेंगी, बल्कि क्षेत्रीय विकास को भी गति मिलेगी। शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और रोजगार जैसे क्षेत्रों में नए अवसर पैदा होने की संभावना है। इसके साथ ही यह निर्णय क्षेत्रीय संतुलन को भी मजबूत करेगा।

इतिहास गवाह है कि जिन नगरों को सत्ता के केंद्र से हटाया गया, वे केवल भौगोलिक रूप से नहीं, बल्कि मानसिक रूप से भी हाशिये पर चले जाते हैं। हांसी भी लंबे समय तक इसी स्थिति से गुजरा। लेकिन अब जिला बनने के साथ ही यह नगर एक बार फिर केंद्र में लौटने की तैयारी कर रहा है।

हांसी की कहानी हमें यह भी सिखाती है कि इतिहास केवल किताबों में दर्ज घटनाओं का संग्रह नहीं होता, बल्कि वह वर्तमान की नीतियों और फैसलों को भी प्रभावित करता है। हांसी को जिला बनाना इस बात का प्रमाण है कि इतिहास चाहे देर से ही सही, लेकिन अपनी न्यायपूर्ण दिशा जरूर खोज लेता है।

आज जब हांसी जिले की दहलीज़ पर खड़ा है, तो यह केवल एक प्रशासनिक इकाई का विस्तार नहीं, बल्कि उस नगर की आत्मा की पुनर्स्थापना है, जिसने कभी हरियाणा को राजधानी दी थी, जिसने सत्ता को चुनौती दी थी और जिसने लंबे समय तक उपेक्षा सहकर भी अपनी पहचान नहीं खोई। हांसी का यह नया अध्याय इतिहास के उसी पुराने गौरव से जुड़ता है, जहां से उसकी यात्रा शुरू हुई थी।

हांसी एक नज़र में

प्राचीन पहचान : जॉर्ज थॉमस के शासनकाल में हरियाणा क्षेत्र की राजधानी

मुगल काल : अकबर के समय प्रमुख प्रशासनिक केंद्र, यहां टकसाल स्थापित

सामरिक महत्व : मुगल और अंग्रेजी दौर में सैनिक छावनी

1857 का विद्रोह : अंग्रेजों के खिलाफ सशक्त प्रतिरोध, प्रशासनिक दंड मिला

जिला दर्जा छीना गया : लगभग 1870–80 के बीच हांसी से जिला मुख्यालय हटाया गया

हिसार जिला बना : हांसी, फतेहाबाद व सिरसा हिसार के अधीन आए

हरियाणा गठन (1966) : हिसार सबसे बड़ा जिला

हिसार का पुनर्गठन :

1972 – भिवानी अलग

1975 – सिरसा अलग

1997 – फतेहाबाद अलग

2016 – चरखी दादरी अलग

2025 : हांसी को नया जिला बनाए जाने की घोषणा

मांग की अवधि : पिछले लगभग 10 वर्षों से निरंतर आंदोलन

-प्रियंका सौरभ 

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,

कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,

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