तमिलनाडु से सातवां आध्यात्मिक दल विशेष ट्रेन से बनारस रेलवे स्टेशन पहुंचा।

काशी तमिल संगमम् 4.0 के अंतर्गत केंद्रीय शास्त्रीय भाषा संस्थान (सीआईसीटी) का स्टॉल तमिल भाषा, साहित्य और संस्कृति को समझने का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनकर उभरा है। इस स्टॉल का उद्देश्य “तमिल करकलाम” (तमिल सीखें) पहल के माध्यम से तमिल शास्त्रीय भाषा को सरल, सुलभ और बहुभाषी स्वरूप में प्रस्तुत करना है।उधर काशी तमिल संगमम 4.0 में शामिल होने के लिए तमिलनाडु से सातवां आध्यात्मिक दल विशेष ट्रेन से बनारस रेलवे स्टेशन पहुंचा।
सीआईसीटी द्वारा तमिल शास्त्रीय ग्रंथों का हिन्दी अनुवाद कर समस्त पुस्तकें स्टॉल पर उपलब्ध कराई गई हैं। इसके साथ ही यहाँ हिन्दी, तमिल, अंग्रेज़ी, थाई सहित कई अन्य भाषाओं में भी पुस्तकें प्रदर्शित की गई हैं, जिससे काशी और तमिलनाडु से आए प्रतिनिधि तमिल साहित्य को सहजता से समझ सकें।
स्टॉल पर विशेष रूप से तिरुक्कुरल ग्रंथ उपलब्ध है, जो लगभग 300 वर्ष पुराना माना जाता है और तमिल साहित्य की अमूल्य धरोहर है। यह ग्रंथ तीन भागों में विभाजित है प्रथम भाग में धर्म, द्वितीय भाग में अर्थ और तृतीय भाग में प्रेम के दर्शन प्रस्तुत किए गए हैं। जैसे हिन्दी में अर्थशास्त्र का महत्व है, उसी प्रकार तिरुक्कुरल तमिल समाज का नैतिक और दार्शनिक आधार है।
काशी तमिल संगमम् के बाद सांस्कृतिक एकता को और सुदृढ़ करने के उद्देश्य से सीआईसीटी ने “Kashi as etched on the Tamil Indian Book” नामक एक विशेष अंतर-सांस्कृतिक पुस्तक भी प्रकाशित की है, जो काशी और तमिल संस्कृति के ऐतिहासिक व भावनात्मक संबंधों को रेखांकित करती है।
स्टॉल पर इंटरैक्टिव लर्निंग सत्र भी आयोजित किए जा रहे हैं, जहाँ शिक्षक पाँच प्रमुख पुस्तकों के माध्यम से सरल व्याकरण, तमिल शब्दकोश, संवाद अभ्यास और तमिल अक्षर लेखन सिखा रहे हैं। चार्ट और दृश्य सामग्री के प्रयोग से बच्चों एवं नवशिक्षार्थियों के लिए सीखना और अधिक सहज हो गया है।
इसके अतिरिक्त पीएम ई-विद्या पहल के अंतर्गत ऑनलाइन कक्षाओं के माध्यम से भी तमिल भाषा का शिक्षण कराया जा रहा है। स्टॉल पर तमिल की प्रथम व्याकरणिक पुस्तक तोळ्काप्पियम (Tolkappiyam), संगम साहित्य, पोस्ट-संगम साहित्य, कला साहित्य (18 भागों में) तथा तमिल शोध से संबंधित अनेक पुस्तकें भी उपलब्ध हैं।
इस स्टॉल का संचालन सीआईसीटी के निदेशक डॉ. आर. चन्द्रशेखर, रजिस्ट्रार डॉ. आर. भुवनेश्वरी के मार्गदर्शन में किया जा रहा है। स्टॉल टीम में डॉ. देवी, डॉ. कार्तिक एवं डॉ. पियरस्वामी सक्रिय रूप से सहभागिता निभा रहे हैं।
सीआईसीटी का यह प्रयास तमिल भाषा को सीखने, समझने और भारत की विविध सांस्कृतिक विरासत को जोड़ने की दिशा में एक सशक्त कदम सिद्ध हो रहा है।

स्टॉल पर तमिल भाषा सीख रही वाराणसी के स्थानीय निवासी साजिया ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि सीआईसीटी का यह प्रयास अत्यंत उपयोगी और प्रेरणादायक है। उन्होंने बताया, पहले मुझे लगता था कि तमिल भाषा सीखना कठिन होगा, लेकिन यहाँ ‘तमिल करकलाम’ के माध्यम से बहुत ही सरल और रोचक तरीके से पढ़ाया जा रहा है। हिन्दी में अनुवादित पुस्तकों, चार्ट और संवाद अभ्यास से भाषा समझना आसान हो गया है।”
साजिया ने कहा कि इंटरैक्टिव क्लास और शिक्षकों का मार्गदर्शन उन्हें तमिल अक्षर, शब्द और सामान्य बातचीत सीखने में आत्मविश्वास दे रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि इस तरह के मंच स्थानीय युवाओं को नई भाषाएँ सीखने और अन्य संस्कृतियों को समझने का बेहतरीन अवसर प्रदान करते हैं।
उन्होंने सीआईसीटी और काशी तमिल संगमम् 4.0 की सराहना करते हुए कहा कि ऐसे प्रयास “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” की भावना को वास्तविक रूप में साकार करते हैं और युवाओं को ज्ञान व संस्कृति से जोड़ते हैं।
काशी तमिल संगमम 4.0 में शामिल होने के लिए तमिलनाडु से सातवां आध्यात्मिक दल विशेष ट्रेन से बनारस रेलवे स्टेशन पहुंचा। स्टेशन पर उतरते ही इस दल का पारंपरिक तरीके से डमरू वादन,पुष्प वर्षा और ‘हर-हर महादेव’ तथा ‘वणक्कम काशी’ के उद्घोष से भव्य स्वागत किया गया। स्टेशन पर पारंपरिक स्वागत देखकर तमिल दल के सदस्यों में खासा उत्साह देखने को मिला।

कई लोगों ने कहा कि काशी में मिल रही आध्यात्मिक वातावरण उनके लिए अविस्मरणीय है। डमरू वादन की ध्वनि से पूरा परिसर शिवमय हो गया और काशी व तमिलनाडु की सांस्कृतिक एकता की झलक साफ दिखाई दी।
इस दल में शामिल रामानुज ने कहा कि यह पहल भारत की दो प्राचीन सभ्यताओं काशी और तमिलनाडु के सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक संबंधों का उत्सव है। सदियों से तीर्थयात्रियों, विद्वानों और साधकों ने दोनों क्षेत्रों के बीच ज्ञान, भाषा और परंपराओं का आदान-प्रदान किया है। संगमम उसी ऐतिहासिक जुड़ाव को आधुनिक संदर्भ में पुनर्स्थापित करता है। हम काफी उत्साहित हैं काशी, प्रयागराज और अयोध्या भ्रमण करने के लिए।


