राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन को अनुमति

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गंगा के डिजिटल ट्विन को राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन और सरकार की अन्य एजेंसियों में डेटा-आधारित निर्णय लेने में सहायता के लिए आईआईटी (दिल्ली) के उत्कृष्टता केंद्र के अंतर्गत मंजूरी दी गई है। जल विज्ञान मॉडलिंग, भूजल में कमी का आकलन, हॉटस्पॉट की पहचान, परिदृश्य विश्लेषण और बेसिन जल संसाधनों की निगरानी इस परियोजना के मुख्य कार्य हैं, जो निर्णय लेने की प्रक्रिया में निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने में मदद करते हैं। परियोजना की कार्य-योजना में कृत्रिम बुद्धिमत्ता, गणितीय सिमुलेशन और नियोजन उपकरणों के उपयोग की परिकल्पना की गई है।

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के अंतर्गत हाइब्रिड एन्युटी आधारित सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) परियोजनाएँ सीवरेज अवसंरचना के लिए एक नवोन्मेषी वित्तपोषण दृष्टिकोण प्रस्तुत करती हैं। इसका मुख्य उद्देश्य भुगतान को सीवेज उपचार संयंत्रों (एसटीपी) के वास्तविक कार्य निष्पादन से जोड़ना है। एनएमसीजी द्वारा हाइब्रिड एन्युटी पीपीपी मोड के अंतर्गत 361.86 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत से पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी नगर निगम में महानंदा नदी के प्रदूषण को कम करने के लिए इंटरसेप्शन एंड डायवर्जन (आई एंड डी) और एसटीपी के लिए एक परियोजना को मंजूरी दी गई है।

परंपरागत रूप से, संचालन और रखरखाव (ओ एंड एम) चरण के दौरान यह दुविधा रहती थी कि, निजी संचालक उचित संचालन और रखरखाव पर कम ध्यान देते थे क्योंकि निर्माण चरण के दौरान प्राप्त होने वाले बड़े भुगतानों की तुलना में मासिक भुगतान अपेक्षाकृत कम होता था। इसके परिणामस्वरूप कभी-कभी गैर-अनुपालन और खराब प्रचालन प्रतिक्रिया होती थी।

इस मुद्दे के समाधान हेतु एक नया वित्तपोषण मॉडल विकसित किया गया है, जिसमें निर्माण भुगतान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा स्थगित कर दिया जाता है और एसटीपी के संतोषजनक कार्य निष्पादन के आधार पर ओ एंड एम चरण के दौरान वार्षिकी के रूप में जारी किया जाता है।

इस मॉडल के अंतर्गत, सरकार निर्माण अवधि के दौरान पूंजीगत लागत का केवल 40% भुगतान करती है। शेष 60% पूंजीगत लागत रियायत लेने वाले को 15 वर्ष की संचालन एवं रखरखाव अवधि में वार्षिकी के रूप में ब्याज सहित दी जाती है। यह संरचना सुनिश्चित करती है कि सरकार और निजी क्षेत्र, दोनों वित्तीय जोखिम को साझा करें। रियायत लेने वाले का मूल्यांकन रियायत समझौते में परिभाषित विशिष्ट प्रमुख प्रदर्शन संकेतकों (केपीआई) के आधार पर किया जाता है, और वार्षिकी भुगतान केवल तभी जारी किए जाते हैं जब कार्य निष्पादन के मानक पूरे हो जाते हैं।

इन परियोजनाओं में कोई उपयोगकर्ता शुल्क या शुल्क संग्रह शामिल नहीं है। पूरी परियोजना लागत सरकार द्वारा वहन की जाती है और राज्य सरकार को केंद्रीय अनुदान सहायता के रूप में प्रदान की जाती है।

राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान को भागीरथी और अलकनंदा बेसिन (देवप्रयाग तक) में एक वास्तविक समय निगरानी नेटवर्क स्थापित करने के उद्देश्य से ग्लेशियर पिघलने संबंधी अध्ययन अनुमोदित किया गया है, जिसमें सभी प्रमुख धाराएँ और संबंधित प्रमुख ग्लेशियर क्षेत्र जैसे गंगोत्री, सतोपंथ, खतलिंग, पिंडर, चोराबाड़ी आदि शामिल होंगे।

इस परियोजना में उपग्रह डेटा, क्षेत्रीय अवलोकन और एसपीएचवाई मॉडलिंग का उपयोग करके ग्लेशियर द्रव्यमान संतुलन, पिघले हुए अपवाह का योगदान और जलवायु परिवर्तन प्रभावों का आकलन, और एनएमसीजी के लिए एक वेब-जीआईएस डैशबोर्ड को विकसित करना शामिल है। परियोजना के परिकल्पित उद्देश्यों में परियोजना के अंतर्गत उत्पन्न डेटा का उपयोग करके ग्लेशियरों पर बढ़ते तापमान के प्रभावों और जोखिमों का आकलन करना शामिल है।

यह सूचना जल शक्ति राज्यमंत्री  राज भूषण चौधरी द्वारा राज्यसभा में लिखित प्रश्न के उत्तर में प्रदान की गई है।

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