राजस्थान में तीसरे मोर्चे के झंडाबरदार

Date:

बाल मुकुन्द ओझा

राजस्थान विधानसभा के अंता उप चुनाव ने तीसरे मोर्चे की नींव खड़ी करदी है। राज्य की राजनीति एक बार फिर नए समीकरणों की ओर बढ़ती दिख रही है। इस बार चर्चा है एक तीसरे मोर्चे की, जो भाजपा और कांग्रेस दोनों से अलग अपनी राजनीतिक पहचान बनाने की कोशिश कर रहा है। राजस्थान में एक बार फिर तीसरे मोर्चे की संभावनाएं हिलोरे लेने लगी है। सांसद हनुमान बेनीवाल प्रदेश में तीसरे मोर्चे की संभावनाओं पर बड़े आशान्वित है। बेनीवाल का कहना है कि 2024 में 7 विधानसभा सीटों पर हुए उप -चुनाव में कांग्रेस पार्टी की 6 सीटों पर हार हुई जिसमें से खींवसर सहित 4 सीटों पर कांग्रेस पार्टी की जमानत जब्त हुई और अंता विधानसभा क्षेत्र के उप- चुनाव के परिणाम में तीसरे मोर्चे के उम्मीदवार नरेश मीणा ने लगभग 55 हजार मत लेकर यह स्पष्ट कर दिया कि जब हाड़ौती आंचल में भी तीसरे मोर्चे ने स्थापित दोनों राष्ट्रीय पार्टियों को कड़ी चुनौती दी है तो आने वाले समय में राजस्थान की जनता तीसरे मोर्चे को बड़ा आशीर्वाद देगी। इस बार तीन लड़ाकू नेता तीसरे मोर्चे के झंडाबरदार बनने जा रहे है। ये नेता है, नरेश मीना, राजेंद्र गुड्डा और हनुमान बेनीवाल। इनमें हनुमान बेनीवाल राजस्थान लोकतान्त्रिक पार्टी की कमान संभाले हुए है, साथ ही वे नागौर से सांसद भी है। वहीं राजेंद्र गुढ़ा दो बार के विधायक और मंत्री रहे है। तीसरे जुझारू नेता नरेश मीना है जो विधानसभा का कोई चुनाव तो अब तक नहीं जीत पाए मगर 50 हज़ार से अधिक वोट लेकर अपने दमख़म का परिचय दिया। अंता उप चुनाव के दौरान ये नेता एक साथ जुड़े थे। इन तीनों नेताओं  का कभी न कभी कांग्रेस से जुड़ाव रहा है। हनुमान बेनीवाल अपनी बात मुखरता से रखते है। जाट बाहुल्य इलाकों में उनकी पार्टी के जड़े गहराई से जुडी है। युवाओं में लोकप्रिय है, उनकी एक आवाज पर हजारों लोग इक्कठे होते देर नहीं करते। यही उनकी ताकत है। राजेंद्र गुढ़ा ने एक संघर्षशील नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई है। बेनीवाल की भांति कांग्रेस और भाजपा के विरोध में झंडा बुलंद कर रखा है। तीसरे नेता नरेश मीना ने राजस्थान विश्व विधालय के छात्र नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई। मीना ने कई बार कांग्रेस से टिकट मांगी मगर टिकट नहीं मिलने से तीनों बार निर्दलीय चुनाव लड़ा। वे चुनाव में सफल तो नहीं हुए मगर अपने स्वजातीय वोटों का बड़ा हिस्सा अपने पक्ष में जरूर कर लिया जिसका खामियाजा कांग्रेस को उठाना पड़ा है। अतः उप चनाव में कई नेताओं ने उनका समर्थन किया था और माना जा रहा है इसी चुनाव से तीसरे मोर्चे की नींव पड़ गई है। तीनों नेता अपनी अपनी जातियों में अच्छा खासा दखल रखते है। इन तीनों के अलावा प्रदेश में दो और नेता है जो कांग्रेस और भाजपा से अलग अपना प्रभुत्व कायम किये हुए है। इनमें राजकुमार रोत बांसवाड़ा से सांसद है और रविंद्र भाटी बाड़मेर जिले से निर्दलीय विधायक है। अगर ये पांचों नेता एक हो जाते है तो राजस्थान में तीसरे मोर्चे की संभावनाएं बलवती हो जाएगी। पांचों नेता लड़ाकू प्रवृति के है। इस तरह जाट, राजपूत, मीना और आदिवासी समुदाय के मतदाताओं में इनके दबदबे से इंकार नहीं किया जा सकता।  राजस्थान में चौधरी कुम्भाराम आर्य से लेकर हनुमान बेनीवाल तक तीसरे मोर्चे के अनेक झंडाबरदार हुए है। इनमें आर्य सहित नाथूराम मिर्धा, दौलत राम सारण, दिग्विजय सिंह, देवी सिंह भाटी,  लोकेन्द्र सिंह कालवी, किरोड़ी लाल मीणा, घनश्याम तिवाड़ी और हनुमान बेनीवाल के नाम मुख्य रूप से लिए जा सकते है। इन लोगों ने भारी शोर शराबे और धूम धड़ाके से तीसरे मोर्चे की हुंकार भरी थी मगर प्रदेश की मरुभूमि में ये मोर्चा सरसब्ज नहीं हुआ। अनेक की भ्रूण हत्या भी हो गई। राजस्थान में कई बार तीसरे मोर्चे की बुनियाद रखी गई मगर हर बार दीवार खड़ी होने  से पहले ही धराशाही हो गई। आजादी के बाद राज्य में तीस साल तक कांग्रेस का एकछत्र राज रहा। 1977 में पहली बार कांग्रेस का राज पलटा और विभिन्न दलों को मिलाकर बनी जनता पार्टी सत्तारूढ़ हुई। बाद के दो दशकों में राज्य की राजनीति अस्थिर रही। जनता पार्टी टुकड़े टुकड़े होकर बिखर गई। भाजपा के रूप में जनसंघ का पुनः उदय हुआ। इस पार्टी ने कद्दावर नेता भैरोंसिंह शेखावत के नेतृत्व में विभिन्न क्षेत्रीय और अपने अपने इलाकों में जमीन से जुड़े  नेताओं को भाजपा में शामिल कर पार्टी को मजबूत बनाया। इस भांति प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा में सीधे मुकाबले की स्थिति बनी। साम्यवादी, समाजवादी और अन्य जातीय दल मिलकर तीसरा मोर्चा खड़ा नहीं कर पाए। राजपूत नेता कल्याण सिंह कालवी, देवीसिंह भाटी जाट नेता कुंभाराम आर्य, नाथूराम मिर्घा, दौलत राम सहारण, किरोड़ी मीणा, हनुमान बेनीवाल और घनश्याम तिवाड़ी लाख प्रयासों के बाद भी राज्य में तीसरा मोर्चा खड़ा नहीं कर पाए। हारकर देवी सिंह भाटी, किरोड़ी और तिवाड़ी अपनी मूल पार्टी भाजपा में लौट आये। हनुमान बेनीवाल अभी मैदान में डटे है और दोनों मुख्य दलों को ललकार रहे है।

बाल मुकुन्द ओझा

वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार

डी 32, मॉडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर

                                                     

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Share post:

Subscribe

spot_imgspot_img

Popular

More like this
Related

तृणमूल विधायक हुमायूं कबीर का छह दिसंबर को ‘बाबरी मस्जिद’ की नींव रखने का ऐलान

तृणमूल कांग्रेस विधायक हुमायूं कबीर ने छह दिसंबर...

साफ़ छुपते भी नहीं, सामने आते भी नहीं

व्यंग्य आलोक पुराणिकचांदनी चौक जाना जैसे कई पीढ़ियों के इतिहास...

शेख हसीना को मृत्युदंड: दक्षिण एशियाई कूटनीति में भारत की नई चुनौती

बांग्लादेश के न्यायिक संकट और भारत का कूटनीतिक संतुलन  शेख...

भारत सरकार के श्रम सुधारों के नए युग में पत्रकार क्यों छूट गए पीछे ?

भारत सरकार द्वारा श्रम कानूनों में किए गए व्यापक...
en_USEnglish