बिहार के बाद बंगाल में भी भाजपा ने फूंका चुनावी बिगुल

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बाल मुकुन्द ओझा

बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए की बंफर जीत से भाजपा उत्साहित है। भाजपा नेताओं ने ‘बिहार के बाद अब बंगाल की बारी’ का नारा दिया है। बंगाल के किले को भेदने के लिए भाजपा ने मजबूत रणनीति बनाकर उसपर तेजी से अमल शुरू कर दिया है। पार्टी ने बंगाल में चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव, त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देव और आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय को सौंपी है। वहीं पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सुनील बंसल पिछले तीन वर्षों से राज्य में पार्टी संगठन को मजबूत करने में लगे हैं। साथ ही बंगाल को पाँच बड़े जोन में विभाजित करते हुए छह राज्यों के संगठन मंत्रियों और छह वरिष्ठ नेताओं की तैनाती कर दी है। ये सभी नेता आगामी पाँच महीनों तक बंगाल में ही डेरा डालकर चुनावी मशीनरी को मजबूत करेंगे। बिहार की जीत के बाद पार्टी मुख्यालय पर कार्यकर्ताओं को अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि गंगाजी बिहार से होकर बंगाल तक जाती है। बंगाल में जीत भाजपा का एक बड़ा सपना है। फिलहाल बंगाल में भी वोटर लिस्ट सुधार कार्यक्रम चल रहा है। सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और उसकी मुखिया ममता बनर्जी वोटर सुधर का विरोध कर रही है। बंगाल में अगले छह माह में चुनाव होने है जिसके लिए सभी सियासी पार्टियों ने अपनी कमर कास ली है।

पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव के सियासी नगाड़े बजने शरू हो गए है। विधान सभा चुनावों की सरगर्मियां अभी से तेज़ हो गई है। यह चुनाव भाजपा के लिए करो या मरो साबित होंगे, इसमें कोई  संशय नहीं है। चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं वैसे वैसे भाजपा और टीएमसी के बीच सियासी टकराव बढ़ता ही जा रहा हैं। भाजपा ने  चुनाव की सियासी जंग फतह करने के लिए अपना एजेंडा सेट कर लिया है तो टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी अपनी सत्ता को बचाए रखनी की कवायद में है। देश की सत्ता पर भाजपा तीसरी बार काबिज है, लेकिन बंगाल में अभी तक कमल नहीं खिल सका है। नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा को बंगाल में उम्मीद की किरण दिखाई दी है, जिसके चलते 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले ममता बनर्जी के सियासी दुर्ग में भाजपा अपनी सियासी बेस को बनाने की एक्सरसाइज शुरू कर दी है। बंगाल में एनडीए का मतलब भाजपा और इंडिया गठबंधन का अर्थ टीएमसी है। बंगाल में लोकसभा और विधान सभा में कांग्रेस और कम्युनिष्टों का सूपड़ा साफ़ हो चुका है। ममता इंडिया में जरूर है मगर बंगाल के चुनाव में किसी भी सहयोगी पार्टी को पास फटकने नहीं दे रही है। एनडीए में भाजपा को छोड़कर किसी सहयोगी दल का अस्तित्व नहीं है। ऐसे में भाजपा और टीएमसी में सीधा मुकाबला होगा। ममता बनर्जी अपनी सत्ता बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है तो भाजपा ममता की चालों को धराशाही करने के लिए कमर कस ली है। बंगाल का चुनाव बेहद दिलचस्प और धूम धड़ाके वाला होगा और पूरे देश की निगाह इस पर टिकी होंगी। 

बंगाल में स्वतंत्र और निष्पक्ष  कराना चुनाव आयोग के सामने बड़ी चुनौती है। यहाँ रक्तरंजित चुनाव से इंकार नहीं किया जा सकता। प्रमुख दलों ने अभी से बड़ी बड़ी रैलियों का आगाज कर  प्रचार शरू कर दिया है। पार्टियों में रोज ही मारकाट होती है। एक दूसरे पर हमले हो रहे है। 2021 के विधानसभा चुनाव में भी ममता बनर्जी ने बीजेपी के हिंदुत्व पॉलिटिक्स के सामने मां, माटी और मानुष के भरोसे सियासी जंग फतह करने में कामयाब रहीं। बीजेपी 2026 के चुनाव में जिस तरह हिंदुत्व के मुद्दे को धार देने में जुटी है, उसके चलते माना जा रहा है कि ममता बनर्जी फिर से बंगाल अस्मिता वाले हथियार का इस्तेमाल कर सकती हैं।

ममता बनर्जी ने पिछले चुनाव को ‘बंगाली बनाम बाहरी’ की लड़ाई का सियासी रंग दिया थ। ममता बनर्जी ने खुद को बंगाली और बीजेपी नेताओं को बाहरी कहकर बंगाल की जनता को आगाह करने की कोशिश करती नजर आईं थी। ममता ने कहा कि बंगाल गुजरात या यूपी नहीं है। बंगाल, बंगाल है। कुछ बाहरी गुंडे यहां आ रहे हैं। टीएमसी फिर कह रही है कि 2026 विधानसभा चुनाव के दौरान विकास के अलावा बंगाली अस्मिता हमारा मुख्य चुनावी मुद्दा होगा। बंगाली अस्मिता केवल बंगालियों के बारे में नहीं है इसमें सभी भूमि पुत्रों के लिए अपील है। ऐसे में साफ है कि बीजेपी के हिंदुत्व को काउंटर करने के लिए ममता बनर्जी बंगाल अस्मिता के मुद्दे को फिर से उठा सकती हैं।

बाल मुकुन्द ओझा

  वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार

डी  32, मॉडल टाउन

मालवीय नगर, जयपुर

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