टिटहरी:सात बात पते की?

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−दिनेश गंगराड़े,इंदौर

टिटहरी गावों का सर्वाधिक लोकप्रिय, सक्रिय,पक्षी है।इसे कुछ कुकरी, कुछ टिटिभ, कुछ टीटोड़ी भी कहते है।जलाशय के पास रहने वाली ये जलचर पक्षी है।टिटहरी की दिनचर्या, उसका प्रजनन चक्र किसानों को कई देशी फंडे बताता है जिसके आगे कई वैज्ञानिक फेल है।इस बार टिटहरी ने कई जगह छत पर अंडे दिये, ये पिछले पचास वर्ष में राजस्थान में पहली बार देखा गया है कि टिटहरी ने चार अंडे दिये तो समझो चार माह बारिश होगी,भरपूर होगी। टिटहरी ने ऊँचाई पर जमीन पर अंडे दिये तो समझो बहुत अच्छी बारिश की प्रबल संभावना रहेगी।भरपूर आनंद रहेगा।टिटहरी पेड़, दीवार, खम्बे, रस्सी या जहाँ तक हो छत पर नही बैठती है।अक्सर टिटहरिया जमीन पर ही रहती और चलती है।
यदि टिटहरी ने छत पर अंडे दे दिये तो समझो पानी से तबाही है।पानी कम और रुला-रुला कर आएगा।कभी आप टिटहरी को कुरुक्षेत्र के अलावा देश मे मृत नही देख सकते?टिटहरी जिस खेत मे अंडे देती है वो खेत खाली नही रहता।फसल से हराभरा,भरपूर रहता है।
जिस वर्ष टिटहरी अंडे न दे समझ लो भयंकर अकाल है।प्रकृति इनसे है,ये प्रकृति के पोषक है। जब विज्ञान नही था तब ये थे, प्रभु ने इसलिये इन्हें बनाया, हम खो रहे भुगत रहे है ।अचेत है इनको इग्नोर कर, संभलो मुह नही बोलते पर सन्देश अटल है।टिटहरी के बोलने पर भी संकेत है।यदि ये रात में तेज बोलना शुरु करें तो वर्षा,मौसम के बदलाव का संकेत है।लगातार बोले तो अंडों को बचाने का प्रयास है।अंडे की सुरक्षा हेतु ये पैर ऊपर कर सोती है।कहा जाता है कि टीटोड़ी के पास पारस पत्थर होता है जिससे वो अपना अंडा फोड़ती है।धारणा है कि इस पारस पत्थर की रखवाली या तो जिन्न करता है अथवा टीटोड़ी करती है।अक्सर टिटहरी जोड़ा समुद्र किनारे रहता है।

#दिनेश गंगराड़े,इंदौर

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