छठ पर्व को यूनेस्को की सांस्कृतिक धरोहर में शामिल कराने के प्रयास जारीः मोदी

0

प्रधानमंत्री मोदी ने मन की बात के 126वें एपिसोड में कहा कि छठ पर्व को यूनेस्को की सांस्कृतिक धरोहर में शामिल कराने के प्रयास किए जा रहे हैं । शहीद भगत सिंह और लता मंगेशकर को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि दी। कहा कि भगत सिंह आज भी युवाओं को प्रेरित करते हैं। उन्होंने उन्होंने नारी शक्ति को सराहा और भारतीय नौसेना की दो महिला अधिकारियों की समुद्री यात्रा का जिक्र किया । पीएम ने गांधी जयंती पर खादी अपनाने की अपील करते हुए ‘वोकल फॉर लोकल’ को बढ़ावा देने को कहा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में उन्होंने श्रोताओं से कहा, ‘मन की बात में आप सभी से जुड़ना, आप सभी से सीखना, देश के लोगों की उपलब्धियों के बारे में जानना, वाकई मुझे बहुत सुखद अनुभव देता है। एक दूसरे के साथ अपनी बातें साझा करते हुए, अपने मन की बात करते हुए, हमें पता ही नहीं चला, इस कार्यक्रम ने 125 एपिसोड पूरे कर लिए हैं।

उन्होंने आगे कहा कि आज लता मंगेशकर की भी जयंती है। भारतीय संस्कृति और संगीत में रुचि रखने वाला कोई भी उनके गीतों को सुनकर अभिभूत हुए बिना नहीं रह सकता। उनके गीतों में वह सबकुछ है, जो मानवीय संवेदनाओं को झकझोरता है। उन्होंने देशभक्ति के जो गीत गाए, उन गीतों ने लोगों को बहुत प्रेरित किया। भारत की संस्कृति से भी उनका गहरा जुड़ाव था। मैं लता दीदी के लिए हृदय से अपनी श्रद्धांजलि प्रकट करता हूं। साथियों, लता दीदी जिन महान विभूतियों से प्रेरित थीं, उनमें वीर सावरकर भी एक थे। इन्हें वह तात्या कहती थीं। उन्होंने वीर सावरकर के कई गीतों को अपने सुरों में पिरोया। लता दीदी से मेरा स्नेह का बंधन हमेशा कायम रहा। वह मुझे बिना बोले हर साल राखी भेजा करती थीं। मुझे याद है मराठी सुगम संगीत की महान हस्ती सुधीर फड़के जी ने सबसे पहले मेरा परिचय लता दीदी से कराया था। मैंने लता दीदी को कहा कि मुझे आपके द्वारा गाया और सुधीर जी द्वारा संगीतबद्ध गीत ‘ज्योति कलश छलके’ बहुत पसंद है।प्रधानमंत्री ने कहा कि नवरात्रि के इस समय में हम शक्ति की उपासना करते हैं। हम नारी शक्ति का उत्सव मनाते हैं। बिजनेस से लेकर स्पोर्ट्स तक, एजुकेशन से लेकर साइंस तक.. आप किसी भी क्षेत्र को लीजिए देश की बेटियां हर जगह अपना परचम लहरा रही हैं। अगर मैं आपसे यह सवाल करूं कि क्या आप समंदर में लगातार आठ महीने रह सकते हैं। क्या आप समंदर में पतवार वाली नाव यानी हवा के वेग से आगे बढ़ने वाली नाव से पचास हजार किलोमीटर की यात्रा कर सकते हैं और वो भी तक जब समंदर में मौसम कभी भी बिगड़ जाता है। ऐसा करने से पहले आप हजार बार सोचेंगे। लेकिन भारतीय नौसेना की दो बहादुर अधिकारियों ने नाविका सागर परिक्रमा के दौरान ऐसा कर दिखाया है। उन्होंने दिखाया है कि साहस और दृढ़ संकल्प होता क्या है। आज मैं मन की बात के श्रोताओं को इन दो जांबाज अधिकारियों से मिलवाना चाहता हूं। एक हैं लेफ्टिनेंट कमांडर दिलना और दूसरी हैं लेफ्टिनेंट कमांडर रूपा। इसके बाद प्रधानमंत्री दोनों अधिकारियों से फोन पर बात करते हुए सुनाई देते हैं। 

उन्होंने कहाकि छठ पर्व एक ऐसा पावन-पर्व है जो दिवाली के बाद आता है। सूर्य देव को समर्पित यह महापर्व बहुत ही विशेष है। इसमें हम डूबते सूर्य को भी अर्घ्य देते हैं। उनकी आराधना करते हैं। छठ न केवल देश के अलग-अलग हिस्सों में मनाया जाता है। बल्कि दुनियाभर में इसकी छठा देखने को मिलती है। आज यह एक वैश्विक त्योहार बन रहा है। साथियों, मुझे आपको यह बताते हुए बहुत खुशी है कि भारत सरकार भी छठ पूजा को लेकर एक बड़े प्रयास में जुटी है। भारत सरकार छठ पर्व को यूनेस्को की सांस्कृतिक धरोहर की सूची में शामिल कराने का प्रयास कर रही है। छठ पूजा में यूनेस्को की सूची में शामिल होगी, तो दुनिया के कोने-कोने में लोग इसकी भव्यता और दिव्यता का अनुभव कर पाएंगे। साथियों, कुछ समय पहले भारत सरकार के ऐसे ही प्रयासों से कोलकाता की दुर्गा पूजा भी यूनेस्को की इस सूची का हिस्सा बनी है। हम अपने सांस्कृतिक आयोजनों को ऐसे ही वैश्विक पहचान दिलाएंगे, तो दुनिया भी उनके बारे में जानेगी, समझेगी, उनमें शामिल होने के लिए आगे आएगी। 


उन्होंने कहा, दो अक्तूबर को गांधी जयंती है। गांधी जी ने हमेशा स्वदेशी को अपनाने पर बल दिया। उनमें खादी सबसे प्रसिद्ध थी। दुर्भाग्य से आजादी के बाद खादी की रौनक कुछ फीकी पड़ती जा रही थी। लेकिन बीते ग्यारह साल में खादी के प्रति देश के लोगों का आकर्षण बहुत बढ़ गया है। पिछले कुछ वर्षों में खादी की बिक्री में बहुत तेजी देखी गई है। मैं आप सभी से आग्रह करता हूं कि दो अक्तूबर को कोई न कोई खादी उत्पाद जरूर खरीदें। गर्व से कहें ये स्वदेशी है। इसे सोशल मीडिया पर वोकल फॉर लोकल हैशटैग के साथ साझा भी करें।

ख़राब लाइफस्टाइल से बढ़ रहे है हार्ट अटैक के मामले

0

बाल मुकुन्द ओझा

विश्व हृदय दिवस 29 सितम्बर को मनाया जाता है। यह दिन हमें हृदय स्वास्थ्य के महत्व को याद दिलाने का मौका प्रदान करता है। हर साल विश्व हृदय दिवस अलग-अलग थीम के साथ मनाया जाता है। इस साल यानी 2025 में इस दिवस की थीम धड़कन को न छोड़ें रखी गई है। इस थीम से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने हार्ट का सही इस्तेमाल करना चाहिए। साथ ही साथ हार्ट का ख्याल भी रखना चाहिए, जिससे हम एक्शन लेने में समर्थ बने रह सकें। यह थीम हार्ट हेल्थ को गंभीरता से लने की बात कह रही है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य लोगों को हृदय रोग के बारे में जागरूक करना है।

आज दुनिया भर में मृत्यु का सबसे बड़ा कारण हृदय संबंधी रोग बताया जा रहा है। ख़राब जीवन शैली के चलते हर साल लाखों करोड़ों लोग विभिन्न बीमारियों के शिकार होकर असमय अपनी जान गंवा रहे है। इनमें हृदय या हार्ट से जुडी बीमारियां भी शामिल है जिनकी संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। खराब लाइफस्टाइल के साथ स्मोकिंग, जंक फूड और स्ट्रेस इसके मुख्य कारण हैं। अधुनिक जीवन शैली के फलस्वरूप उठते बैठते, नाचते गाते और खेलते कूदते आप कभी भी हार्ट अटैक के शिकार हो सकते है। अख़बारों की रोजमर्रा की सुर्खियां बताती है कि आज के दौर में बुजुर्गों के साथ युवा भी लगातार हार्ट अटैक के शिकार हो रहे है। हर साल जन जागरूकता के लिए विश्व हृदय दिवस का आयोजन किया जाता है। डॉक्टरों का कहना है गलत खानपान, हर वक्त तनाव की स्थित तथा रोज व्यायाम न होने यह बीमारी बढ़ती जा रही है। हृदय रोग, कई वर्षों से दुनिया में सबसे अधिक मौतों का कारण बना हुआ है, जिसके परिणाम स्वरुप सालाना लगभग 1.90 करोड़ मौतें होती हैं। देश और दुनिया इस समय हार्ट अटैक की समस्या से सहमी हुई है। पिछले कुछ सालों में हार्ट अटैक से मरने वालों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है। दुनिया भर में हर साल लाखों लोगों की मौत दिल की बीमारी से होती है। अच्छे भले दिखने वाले इंसान को कब हार्ट अटैक हो जाए पता नहीं। आपका दिल अगर कमजोर हो रहा है तो संकेत मिलने लगते हैं। हालांकि हमें नहीं पता चल पाता कि इनको इग्नोर करना कितना भारी पड़ सकता है। सबसे अच्छी बात यह है कि दिल की 80 फीसदी बीमारियों से बचाव संभव है। अगर आपको पहले से लक्षण पता हैं तो आप सतर्क हो सकते हैं।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) का कहना है कि अगर इंसान थोड़ी सी अपनी लाइफस्टाइल को चेंज कर ले और नौ तरह से उसका ख्याल रखें तो उसका दिल एकदम फिट रहेगा और उसे किसी दवा की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। दिल तो बहुत कोमल होता है, इसलिए इसे केयर की जरूरत होती है, उसके पास दिमाग तो होता नहीं इसलिए उसका ख्याल आपको ही रखना होगा। अगर आप की उम्र 30 के पार है तो आप अपनी लाइफ में कसरत को जगह दीजिये। कोई जरूरी नहीं कि आप जिम जाएं या फिर दौड़-भाग करें, बस आपको 30 मिनट वॉक की जरूरत है। हेल्दी फूड को अपने मैन्यू चार्ट में शामिल करें। जंक फूड और एल्कोहल का सेवन कम से कम या ना के बराबर करें। हो सके तो घर का खाना खाएं। हफ्ते में एक दिन आप बाहर खाना खा सकते हैं। अपने खाने में मीठी चीजों का इस्तेमाल कम करें, हो सके तो नमक भी कम और हल्का खाएं। रात के भोजन में स्वीट डिश को बॉय-बॉय कर दें तो बेहतर होगा। रात का डिनर हल्का होना चाहिए जबकि ब्रेकफास्ट हैवी हो सकता है। अपने फूड में आप ताजे फलों और सब्जियों को जगह दीजिये। ऑयली फूड से दूर रहिए और अगर आपको मीठी चीज खाने का मन करें तो आप मीठे फल खाइये और टीवी देखते वक्त डिनर ना करें। घर पर धूम्रपान ना करें और ना ही शराब का सेवन करें। ये दोनों ही चीजें हार्ट के लिए घातक हैं। स्मोकिंग जहां सीधे आपके दिल को खराब करती है वहीं एल्कोहल से वजन बढ़ता है जो कि आपके लीवर के लिए सही नहीं है। अगर आप सीटिंग जॉब वाले इंसान हैं तो ऑफिस में चाय-कॉफी कम ही पीजिये, अगर मन करे तो आप ग्रीन टी और जूस का सेवन करें जो आपको फ्रेश भी करेगा और हेल्दी भी रखेगा। तनावमुक्त जीवन जिएं। तनाव अधिक होने पर योगा करें। टाइम से सोएं और टाइम से जगें और प्रतिदिन तीस मिनट वॉक करें।

   

बाल मुकुन्द ओझा

वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार

डी-32, मॉडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर

भगत सिंह: “इंकलाब से आज तक”

0

“क्रांति बंदूक की गोली से नहीं, बल्कि विचारों की ताकत से आती है।”

भगत सिंह का जीवन केवल एक क्रांतिकारी गाथा नहीं, बल्कि एक विचारधारा का प्रतीक है। उनकी शहादत से पहले उनके विचारों की ताकत थी, और उनकी शहादत के बाद भी उनका प्रभाव अमर है। आज जब हम आर्थिक असमानता, सांप्रदायिकता और भ्रष्टाचार से जूझ रहे हैं, तो भगत सिंह के विचार पहले से भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं। उनका सपना केवल ब्रिटिश शासन से मुक्ति तक सीमित नहीं था; वे एक ऐसे भारत की कल्पना कर रहे थे, जहाँ सबको समान अधिकार और अवसर मिले।

–डॉ. सत्यवान सौरभ

23 मार्च 1931—लाहौर की जेल में तीन नौजवानों के कदमों की आहट सुनाई देती है। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव मुस्कुराते हुए फांसीघर की ओर बढ़ रहे हैं। मौत का कोई खौफ नहीं, बल्कि आंखों में एक चमक है—क्रांति की, बदलाव की। वे जानते हैं कि उनके विचार कभी नहीं मरेंगे। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई। लेकिन क्या सच में एक क्रांतिकारी मर सकता है? उनके विचार, उनकी सोच और उनकी प्रेरणा आज भी जीवंत हैं। वे केवल ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ नहीं लड़े, बल्कि एक ऐसे भारत के लिए संघर्ष किया, जो समानता, न्याय और स्वतंत्रता पर आधारित हो।

एक विचारक का जन्म

28 सितंबर 1907 को पंजाब के बंगा गांव (अब पाकिस्तान) में जन्मे भगत सिंह का बचपन किताबों और क्रांतिकारी चर्चाओं के बीच बीता। उनके परिवार में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी थी। लेकिन 1919 का जलियांवाला बाग हत्याकांड उनके लिए किसी सदमे से कम नहीं था। उन्होंने महसूस किया कि आजादी केवल एक सपना नहीं, बल्कि संघर्ष की हकीकत बननी चाहिए। भगत सिंह बचपन से ही विद्रोही और जिज्ञासु थे। जलियांवाला बाग हत्याकांड (1919) ने उनके दिल को झकझोर दिया और यह तय कर दिया कि वे केवल दर्शक नहीं बने रह सकते।

क्रांति की राह पर पहला कदम

हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) से जुड़कर भगत सिंह ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अपनी लड़ाई को दिशा दी। सॉन्डर्स हत्याकांड (1928) – लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या की। यह एक क्रांतिकारी संदेश था कि अत्याचार का प्रतिरोध किया जाएगा। असेंबली बम कांड (1929) – भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने ब्रिटिश संसद में बम फेंका, लेकिन यह किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं था। वे गिरफ्तार होने के लिए आए थे ताकि अपने विचारों को अदालत के मंच से पूरे देश तक पहुंचा सकें। नका मकसद केवल हिंसा नहीं था। उनका इरादा लोगों को जगाना था, उन्हें यह दिखाना था कि आजादी केवल राजनीतिक बदलाव नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव भी होनी चाहिए।

जेल में विचारों की क्रांति

भगत सिंह केवल बंदूक के क्रांतिकारी नहीं थे, वे विचारों की ताकत में विश्वास रखते थे। जेल में रहते हुए उन्होंने 64 दिनों तक भूख हड़ताल की, जिससे ब्रिटिश सरकार को झुकने पर मजबूर होना पड़ा। उन्होंने कई लेख लिखे, जिनमें समाजवाद, धर्म और स्वतंत्रता पर उनके विचार साफ दिखाई देते हैं। उनका मानना था कि असली क्रांति तब होगी जब समाज में बदलाव की लहर आएगी। यह कहना गलत नहीं होगा कि भगत सिंह की असली ताकत उनकी कलम और उनकी सोच थी। जेल में रहते हुए उन्होंने कई लेख लिखे, जिनमें उन्होंने समाजवाद, धर्म, स्वतंत्रता और क्रांति के बारे में अपनी गहरी सोच व्यक्त की। उन्होंने कहा था – “अगर बहरों को सुनाना है, तो आवाज़ को बहुत ऊँचा करना होगा।”

शहादत और अमरता

23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई। लेकिन उनकी मौत केवल एक घटना नहीं थी, यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए ईंधन बन गई। उनकी विचारधारा, उनका साहस और उनकी क्रांतिकारी भावना आज भी जीवंत है। भगत सिंह की विचारधारा केवल ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ नहीं थी, बल्कि यह एक शोषणविहीन, न्यायसंगत और वैज्ञानिक सोच पर आधारित समाज की वकालत करती थी। उनकी विचारधारा आज भी हमें एक नई दिशा देने में सक्षम है।

आज के समय में भगत सिंह की विचारधारा की प्रासंगिकता

आज जब हम आर्थिक असमानता, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, सामाजिक भेदभाव और सांप्रदायिकता जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं, भगत सिंह की विचारधारा पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गई है। उन्होंने न केवल स्वतंत्रता संग्राम के लिए लड़ाई लड़ी, बल्कि शोषणमुक्त और समानता पर आधारित समाज की कल्पना भी की। भगत सिंह का मानना था कि असली आज़ादी तभी मिलेगी जब जनता शिक्षित और जागरूक होगी। आज भी, बेहतर शिक्षा व्यवस्था और तर्कशील सोच की जरूरत बनी हुई है। उन्होंने जाति, धर्म और वर्ग के भेदभाव से मुक्त समाज की वकालत की थी। आज भी हमें सामाजिक समरसता और समान अवसरों की दिशा में काम करने की जरूरत है। भगत सिंह ने युवाओं को बदलाव का वाहक माना था। आज, जब देश के युवा विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर अपनी आवाज उठा रहे हैं, भगत सिंह की विचारधारा उन्हें मार्गदर्शन दे सकती है। भगत सिंह ने एक ऐसी शासन व्यवस्था की कल्पना की थी जो जनता की सेवा करे, न कि अपने स्वार्थ के लिए सत्ता का दुरुपयोग करे। आज के समय में भी पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग बनी हुई है।

क्या हम उनके सपनों का भारत बना सके?

आज जब हम सामाजिक असमानता, भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता से लड़ रहे हैं, भगत सिंह के विचार पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गए हैं। उन्होंने केवल राजनीतिक आज़ादी की नहीं, बल्कि आर्थिक और सामाजिक समानता की भी बात की थी। भगत सिंह केवल एक नाम नहीं, एक विचारधारा हैं

 भगत सिंह की क्रांति बंदूक से नहीं, बल्कि विचारों से थी। उन्होंने हमें सिखाया कि वास्तविक बदलाव संघर्ष और बलिदान से आता है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है सोचने और सवाल करने की शक्ति। आज, जब हम उनके विचारों को अपने जीवन में अपनाने की बात करते हैं, तो यह जरूरी हो जाता है कि हम उनके सपनों के भारत के निर्माण में अपना योगदान दें।

“इंकलाब जिंदाबाद!”

– डॉo सत्यवान सौरभ,

कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार

तमिलनाडु टीपीके की रैली में भगदड़ , 36 लोगों की मौत की आशंका

0

करूर (तमिलनाडु), तमिलगा वेत्री कषगम (टीवीके) प्रमुख विजय के नेतृत्व में यहां आयोजित एक रैली में शनिवार को भगदड़ जैसी स्थिति देखी गई ! सूचनाओं के अनुसार इसमें बच्चों समेत कम से कम 36 लोगों की मौत होने की आशंका है। रैली में भारी भीड़ के मद्देनजर हताहतों की संख्या और बढ़ सकती है।54 से ज्यादा लोगों के घायल होने की सूचना है।

जब विजय सभा को संबोधित कर रहे थे, तब भीड़ बढ़ती गई और बेकाबू हो गई तथा पार्टी कार्यकर्ताओं और कुछ बच्चों समेत कई लोग बेहोश होकर गिर पड़े।

कई कार्यकर्ताओं ने स्थिति को भांप लिया और शोर मचाया। विजय ने ध्यान दिया और अपना भाषण रोककर, खासतौर पर बनाई गई प्रचार बस के ऊपर से लोगों तक पानी की बोतलें पहुंचाने की कोशिश की।

एम्बुलेंस को भीड़-भाड़ वाली सड़क से होते हुए घटनास्थल तक पहुंचने में काफी मशक्कत करनी पड़ी।

बेहोश हुए लोगों को एम्बुलेंस से पास के अस्पतालों में ले जाया गया और बताया जा रहा है कि उनमें से कुछ लोगों की हालत खराब है।

विजय ने स्थिति को समझते हुए अपना भाषण निर्धारित समय से पहले ही समाप्त कर दिया।

इस बीच तमिलनाड के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने कहा कि ‘करूर से मिली जानकारी चिंताजनक’ है।

उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य मंत्री मा सुब्रमण्यम और जिलाधिकारी को हरसंभव सहायता प्रदान करने की सलाह दी। उन्होंने मंत्री अन्बिल महेश को भी सहायता प्रदान करने के लिए करूर जाने को कहा है।

घटना की सूचना पर मंत्री, शीर्ष प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी करूर पहुंच गए हैं।

मुख्यमंत्री स्टालिन ने कहा कि उन्होंने शीर्ष पुलिस अधिकारियों को करूर में सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए उचित कदम उठाने का निर्देश दिया है।

स्टालिन ने करूर में आम जनता से चिकित्सकों और पुलिस के साथ सहयोग करने की अपील की।

मोटरसाईकिल दुर्घटना में 19.72 लाख का मुआवजा देने का आदेश

0

 

ठाणे, (भाषा) महाराष्ट्र के ठाणे जिले में मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी) ने मोटरसाईकिल दुर्घटना में 42 साल की महिला के मौत पर उसके परिजनों को 19.72 लाख का मुआवजा देने का आदेश दिया है। यह दुर्घटना साल 2020 में हुई थी।

एमएसीटी के सदस्य आर वी मोहिते ने मोटरसाईकिल के मालिक और बीमाकर्ता (आईसीआईसीआई लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड) को दावा दायर करने के दिन से प्रतिवर्ष नौ प्रतिशत ब्याज के साथ संयुक्त रूप से और अलग-अलग मुआवजा भुगतान करने का आदेश दिया।

यह आदेश 23 सितंबर को दिया गया जिसकी प्रति शनिवार को प्राप्त हुई।

पीड़िता शिवानी संदीप पश्ते 19 नवंबर,2020 को मोटरसाइकिल पर पीछे बैठी थीं तभी लापरवाही से वाहन चलाने के कारण मोटरसाइकिल फिसल गई। इससे पश्ते को गंभीर चोटें आई। कुछ दिन बाद मुंबई के जे जे अस्पताल में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई।

पश्ते ठाणे नगर परिवहन सेवा में परिचालक के पद पर कार्यरत थीं।

न्यायाधिकरण ने कहा कि दुर्घटना के समय मोटर साईकिल फिसल गई और पश्ते गिर गईं जिससे उनके सिर में चोट लग गई।

न्यायाधिकरण ने कहा कि दुर्घटनास्थल पर सड़क निर्माण कार्य चल रहा था, लेकिन मोटरसाईकिल के मालिक के किसी चीज की परवाह नहीं की।

इस मामले में मोटरसाईकिल मालिक के खिलाफ एकपक्षीय रूप से फैसला किया गया जिसके कारण बीमाकर्ता कंपनी ने दावे का विरोध किया। कंपनी ने कहा कि वाहन और चालक दुर्घटना में शामिल नहीं थे और चालक का लाइसेंस वैध नहीं था।

हालांकि न्यायाधिकरण ने इन आपत्तियों को खारिज कर दिया है।

न्यायाधिकरण ने पश्ते की आय और परिवार में उनके योगदान को ध्यान में रखते हुए मुआवजे की गणना की।

न्यायाधिकरण ने कहा कि मृतक एक कामकाजी महिला थी जो बहुत स्नेह और प्यार के साथ परिवार के सदस्यों की देखरेख करने के साथ घरेलू काम, अपने करियर और परिवार से जुड़ी ज्म्मेदारियों को भी निभाती थी।

आदेश में कहा गया है कि महिला की आकस्मिक मृत्यु के कारण दावेदारों (महिला के परिजन) को नुकसान हुआ है। न्यायाधिकरण ने पश्ते के पति और दो बेटियों को 19.72 लाख रुपये का मुआवजा प्रदान करने का आदेश दिया।

बरेली में ‘आई लव मोहम्मद’ विवाद: जुम्मे की नमाज़ के बाद हिंसा और घटनाक्रम

0

​उत्तर प्रदेश के बरेली शहर में हाल ही में जुम्मे की नमाज़ के बाद ‘आई लव मोहम्मद’ स्लोगन को लेकर बड़ा विवाद और हिंसक झड़प देखने को मिली। यह घटनाक्रम कानपुर में इसी स्लोगन वाले बैनर पर दर्ज हुई FIR के विरोध में बुलाई गई एक रैली के बाद शुरू हुआ। प्रशासन ने रैली की अनुमति नहीं दी थी, जिसके बावजूद बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए और तनाव पैदा हो गया।

​1. विवाद का मूल कारण
​बरेली में हिंसा की पृष्ठभूमि कानपुर में एक धार्मिक जुलूस के दौरान ‘आई लव मोहम्मद’ (I Love Muhammad) लिखे बैनर लगाए जाने के मामले से जुड़ी है। इस मामले में कानपुर पुलिस द्वारा कुछ लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की गई थी। इसी FIR और धार्मिक मुद्दों पर कथित अपमानजनक टिप्पणियों के विरोध में, इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल (IMC) के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रज़ा खान ने 26 सितंबर, 2025 (शुक्रवार) को जुम्मे की नमाज़ के बाद प्रदर्शन का आह्वान किया था।
​2. प्रशासन द्वारा अनुमति अस्वीकार
​विरोध प्रदर्शन की घोषणा के बाद, जिला प्रशासन ने पूरे जिले में धारा 163 BNSS (जो सार्वजनिक सभाओं पर रोक लगाती है) लागू करते हुए किसी भी तरह के जुलूस या सभा की अनुमति देने से इनकार कर दिया। प्रशासन ने मौलाना तौकीर रज़ा खान को उनके आवास पर नजरबंद भी कर दिया था, ताकि वह भीड़ को संबोधित न कर सकें।
​3. नमाज़ के बाद भीड़ का जमावड़ा
​शुक्रवार की नमाज़ शांतिपूर्वक समाप्त होने के बावजूद, दोपहर करीब 2:30 बजे, बड़ी संख्या में लोग शहर के हृदय स्थल इस्लामिया ग्राउंड और दरगाह-ए-आला हज़रत के आसपास जमा होने लगे। प्रदर्शनकारियों के हाथों में ‘आई लव मोहम्मद’ लिखे पोस्टर और बैनर थे, और वे ज़ोर-ज़ोर से नारे लगा रहे थे।
​4. पुलिस बैरिकेड तोड़कर आगे बढ़ने की कोशिश
​भीड़ मौलाना रज़ा की अपील पर इस्लामिया ग्राउंड तक मार्च करने की जिद पर अड़ी थी और जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपना चाहती थी। पुलिस ने उन्हें रोकने के लिए कई स्थानों पर बैरिकेड लगाए थे। जब पुलिस ने भीड़ को आगे बढ़ने से रोका और वापस जाने की चेतावनी दी, तो कुछ उपद्रवी तत्वों ने आक्रामक रुख अपना लिया और बैरिकेड्स तोड़कर आगे बढ़ने की कोशिश की।
​5. हिंसक झड़प और पथराव
​यह विरोध जल्द ही हिंसक टकराव में बदल गया। भीड़ ने पुलिसकर्मियों पर पथराव शुरू कर दिया। रिपोर्टों के अनुसार, पत्थर छतों और गलियों से भी फेंके गए। इस दौरान कुछ वाहनों में तोड़फोड़ की गई और पुलिसकर्मियों को निशाना बनाया गया। पुलिस अधिकारियों ने पुष्टि की कि कुछ उपद्रवियों ने हवा में गोलीबारी भी की। पथराव में 20 से अधिक पुलिसकर्मी घायल हुए।
​6. पुलिस का लाठीचार्ज और आंसू गैस का प्रयोग
​हालात बेकाबू होते देख, पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए हल्के बल का प्रयोग किया, जिसमें लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले दागना शामिल था। पुलिस की कार्रवाई के बाद भीड़ में भगदड़ मच गई और लोग इधर-उधर भागने लगे।
​7. गिरफ्तारी और कानूनी कार्रवाई
​हिंसा पर नियंत्रण पाने के बाद, पुलिस ने उपद्रवियों की पहचान करने के लिए वीडियो और सीसीटीवी फुटेज का इस्तेमाल किया। पुलिस ने मौलाना तौकीर रज़ा खान सहित लगभग 40 उपद्रवी तत्वों को गिरफ्तार/हिरासत में लिया है। पुलिस ने लगभग 2000 अज्ञात लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की है। प्रशासन ने इस घटना को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अशांति पैदा करने की एक “सुनियोजित साजिश” बताया है और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी है।

घर घर गूंजेगा संघ का सामाजिक जागरण का शंखनाद

0

बाल मुकुन्द ओझा

देश और दुनिया के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का आगामी विजयादशमी से शताब्दी वर्ष शुरू हो रहा है। शताब्दी वर्ष के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा गृह सम्पर्क अभियान शुरू करेगा। इस अवसर पर संघ के लाखों स्वयंसेवक घर घर जाकर लोगों को संघ की रीति नीति के साथ पंच परिवर्तन का शंखनाद करेंगे। पंच परिवर्तन में पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक समसरता, स्व आधारित व्यवस्था, कुटुंब प्रबोधन तथा नागरिक कर्तव्य, इन बिंदुओं का समावेश रहेगा। शताब्दी वर्ष के दौरान व्यापक गृह संपर्क अभियान, हिन्दू सम्मेलन, प्रबुद्ध नागरिक गोष्ठी और सामाजिक सद्भाव बैठकों का आयोजन भी किया जाएगा। शताब्दी वर्ष का पहला कार्यक्रम विजयादशमी का होगा। मण्डल व बस्ती स्तर पर आयोजित विजयादशमी उत्सव के कार्यक्रम में सभी स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में शामिल होंगे। 20 नवम्बर से 21 दिसम्बर के बीच संघ कार्यकर्ता देश के छह लाख गांवों के 20 करोड़ परिवारों में सम्पर्क करेंगे।

 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने विजयादशमी के दिन 1925 में की थी। आज देश भर में 51570 स्थानों पर प्रतिदिन कुल 83129 शाखाएं संचालित की जाती हैं, जो पिछले वर्ष की तुलना में 10 हजार  से अधिक हैं। साप्ताहिक मिलन में पिछले वर्ष की तुलना में 4430 की वृद्धि के साथ 32147 हो गए है। देश में शाखाओं और मिलन की कुल संख्या 1,15,276 है। यह विश्व का सबसे विशाल संगठन है। समाज के हर क्षेत्र में संघ की प्रेरणा से विभिन्न संगठन चल रहे हैं जो राष्ट्र निर्माण तथा हिंदू समाज को संगठित करने में अपना योगदान दे रहे हैं। संघ के विरोधियों ने तीन बार 1948 1975 व 1992 में इस पर प्रतिबंध लगाया, लेकिन तीनों बार संघ पहले से भी अधिक मजबूत होकर उभरा। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने अनेक निर्णयों में माना है कि संघ एक सामाजिक, सांस्कृतिक संगठन है।

आजादी के बाद से ही कांग्रेस के निशाने पर रहा है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। लाख चेष्टा के बावजूद कांग्रेस संघ को समाप्त करना तो दूर हाशिये पर लाने में सफल नहीं हुआ। संघ को खत्म करने के चक्कर में खुद कांग्रेस अपना वजूद समाप्त करने की ओर अग्रसर है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर पहली विपदा महात्मा गांधी की हत्या के दौरान आई जब हत्यारे नाथूराम गोडसे को संघ का स्वयंसेवक बताकर संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था। बाद में एक जांच समिति ने संघ पर लगे आरोपों को सही नहीं बताया तब संघ से प्रतिबन्ध हटा लिया गया और एक बार फिर संघ ने स्वतंत्र होकर अपना कार्य शुरू किया। संघ पर इस दौरान यह आरोप लगाया गया कि वह हिन्दू अधिकारों की वकालत करता है। मगर संघ का कहना है कि हिन्दुत्व एक जीवन पद्धति है। भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है तो इसका कारण यह है कि यहाँ हिन्दू बहुमत में हैं। बताया जाता है कि 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान संघ के अप्रतिम सेवाभावी कार्यों से प्रभावित होकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने 1963 में गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने का संघ को निमंत्रण दिया। दो दिन की अल्प सूचना के बाबजूद तीन हजार गणवेशधारी स्वयं सेवक उस परेड में शामिल हुए। यहाँ यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि संघ गांधी हत्यारा था तो पं. नेहरू ने उसे देशभक्त संगठन मानकर परेड में शामिल क्यों किया। संघ पर दूसरी विपदा 1975 में तब आई जब आपातकाल के दौरान उस पर प्रतिबन्ध लगाकर हजारों स्वयंसेवकों को कारागार में डाल दिया गया। आपातकाल के बाद संघ से प्रतिबन्ध हटाया गया और संघ ने पुनः अपना कार्य प्रारम्भ किया।

बापू की हत्या के आरोप सहित कई बार प्रतिबन्ध की मार झेल चुका यह संगठन आज भी लोगों के दिलों में बसा है और यही कारण है की इसका एक स्वयं सेवक प्रधान मंत्री की कुर्सी पर काबिज है और अनेक स्वयं सेवक राज्यों के मुख्यमंत्री है। संघ विचारकों का मानना है कि डॉ. राममनोहर लोहिया और लोक नायक जय प्रकाश नारायण सरीखे देश भक्तों ने कभी संघ का विरोध नहीं किया और समय-समय पर संघ कार्यों की प्रशंसा की। विभिन्न गुटों में बंटे उनके कथित समाजवादी अनुयायी अपने राजनैतिक लाभों को हासिल करने के लिए उनका विरोध करते हैं। पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी भी संघ के नागपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लेकर कांग्रेस को झटका दे चुके है। उन्होंने संघ के संस्थापक हेडगेवार को बड़ा देशभक्त बताया था।

बाल मुकुन्द ओझा

वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार

डी 32, मॉडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर

गिरफ्तार आंतकी भारत लाया गया

0

बब्बर खालसा इंटरनेशनल (BKI) के कुख्यात आतंकी परमिंदर सिंह उर्फ ‘पिंडी’ को अबू धाबी (UAE) से भारत लाया गया है। केंद्रीय एजेंसियों और विदेश मंत्रालय के सहयोग से पंजाब पुलिस ने से यह कामयाबी हासिल की है।

पिंडी विदेश में बैठे कुख्यात आतंकियों हरविंदर सिंह उर्फ ‘रिंदा’ और हैप्पी पासिया का करीबी सहयोगी माना जाता है। वह गुरदासपुर के बटाला इलाके में पेट्रोल बम हमलों, हिंसक वारदातों और जबरन वसूली जैसे कई गंभीर अपराधों में वांछित था।

अमृतसर हवाई अड्डे से गैंगस्टर रूबल सरदार गिरफ्तार

0

नयी दिल्ली, 27 सितंबर (भाषा) दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ ने हाशिम गिरोह के सदस्य गैंगस्टर रूबल सरदार को अमृतसर हवाई अड्डे से गिरफ्तार किया है। आधिकारिक सूत्रों ने शनिवार को यह जानकारी दी।

सूत्रों ने बताया कि सरदार के खिलाफ लुकआउट सर्कुलर (एलओसी) जारी था और उस पर पुलिस टीम लगातार नजर बनाए हुए थीं।

हाशिम गिरोह के सदस्यों के खिलाफ जारी कार्रवाई के तहत ही उसे गिरफ्तार किया गया है।

शनि ग्रह पर काले मोती जैसा तारा

0

अपनी सुन्दरता और रहस्यों के लिए पहले से ही प्रसिद्ध शनि ग्रह के लिए यह और भी अधिक रहस्यमय हो गया है।

शनि ग्रह से मिले नएचित्र में काले मोती जैसा तारा दिखाई दे रहा है।जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप ( JWST ) से प्राप्त ताज़ा और ग्रह के ऊपरी वायुमंडल के अब तक के सबसे विस्तृत अवलोकन में शनि के चमकते उरोरा में बिखरे “काले मोती” और एक तारे के आकार का दिखाई देता है। इसकी दो भुजाएँ रहस्यमय ढंग से गायब हैं। ऐसी विशेषताएँ किसी अन्य ग्रह पर पहले कभी नहीं देखी गई हैं।

ब्रिटेन के नॉर्थम्ब्रिया विश्वविद्यालय के खगोलशास्त्री टॉम स्टालार्ड, जिन्होंने इस अध्ययन का नेतृत्व किया, ने एक बयान में कहा , “ये विशेषताएं पूरी तरह से अप्रत्याशित और वर्तमान में पूरी तरह से अस्पष्ट हैं।”

वैज्ञानिकों का कहना है कि इन विचित्रताओं का अध्ययन करने से इस बारे में महत्वपूर्ण सुराग मिल सकते हैं कि शनि का चुंबकीय बुलबुला अपने वायुमंडल के साथ किस प्रकार ऊर्जा का आदान-प्रदान करता है, यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो ग्रह के झिलमिलाते धूर्वीय ज्योतिशियों को शक्ति दान करती है ।

ये निष्कर्ष पिछले सप्ताह फिनलैंड के हेलसिंकी में आयोजित यूरोप्लेनेट विज्ञान कांग्रेस-ग्रह विज्ञान प्रभाग की बैठक में प्रस्तुत किये गये।

शनि के वायुमंडल में एक नई पहेली

चित्रों को कैद करने के लिए, ब्रिटेन, अमेरिका और फ्रांस के 23 वैज्ञानिकों की एक टीम ने 29 नवंबर, 2024 को JWST का उपयोग करते हुए शनि ग्रह का लगातार 10 घंटे तक, यानी तेजी से घूमते इस विशालकाय ग्रह पर लगभग एक पूरा दिन, निरीक्षण किया। उन्होंने हाइड्रोजन आयनों और मीथेन से निकलने वाले अवरक्त प्रकाश का पता लगाया, जो दोनों ही ग्रह के आकाश में रसायन विज्ञान और गति के बारे में मूल्यवान सुराग प्रदान करते हैं।

बादलों से लगभग 680 मील (1,100 किलोमीटर) ऊपर, टीम ने शनि के ध्रुवीय ज्योतियों में गहरे, मनके जैसे धब्बों की एक श्रृंखला देखी। नए अध्ययन के अनुसार, ये मनके प्रकाश में छोटे-छोटे छिद्रों जैसे दिखते थे, जो घंटों तक स्थिर रहते थे और दिन के दौरान केवल कुछ डिग्री ही आगे बढ़ते थे।